सेतु निर्माण कितने दिन में हुआ - setu nirmaan kitane din mein hua

Authored by Gitika dubey | नवभारतटाइम्स.कॉमUpdated: Apr 29, 2022, 8:01 AM

लॉकडाउन के बीच घर में बैठे लोगों के मनोरंजन के लिए दूरदर्शन पर रामायण का प्रसारण शुरू किया गया है। रामायण में अब तक दिखाया गया है कि रावण माता सीता का हरण करके उन्‍हें लंका ले जा चुका है और अब भगवान राम की वानर सेना ने लंका तक पहुंचने के लिए रामेश्‍वरम से पुल के निर्माण का कार्य शुरू कर दिया है। इसे राम सेतु का नाम दिया गया है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथ रामायण के अनुसार यह एक ऐसा पुल है, जिसे भगवान विष्णु के सातवें एवं हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार श्रीराम की वानर सेना द्वारा भारत के दक्षिणी भाग रामेश्वरम पर बनाया गया था, जिसका दूसरा किनारा वास्तव में श्रीलंका के मन्नार तक जाकर जुड़ता है। आइए आपको बताते हैं इस सेतु के बारे में 10 अनसुनी बातें...

  • नल और नील ने शुरू किया था निर्माण

    भगवान राम की सेना लंका तक पहुंच सके, इसके लिए समुद्र पर पुल बनाने का कार्य वानर सेना के 2 सर्वश्रेष्‍ठ वानर नल और नील ने इसके लिए सबसे पहले रामेश्‍वरम समुद्र में पत्‍थर फेंके थे। दरअसल नल और नील भगवान विश्‍वकर्मा के पुत्र थे, जिन्‍हें उस वक्‍त के निर्माण कार्यों की बारीकियों के बारे में भली-भांति ज्ञान था। उन्‍होंने पूरी वानर सेना के साथ मिलकर इस पुल का निर्माण किया।

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  • पत्‍थर पर लिखते थे ‘श्रीराम’

    सेतु बंधन के लिए नल और नील जो पत्‍थर समुद्र में फेंकते थे, उस पर वह पहले श्रीराम लिखते थे तो वह पत्‍थर डूबते नहीं थे। इसके अलावा पुल के निर्माण में अन्‍य जरूरत की चीजों में वृक्ष और पत्‍थर लाने का काम अन्‍य वानर करते थे।

  • नल कुबेर को मिला था शाप

    रामायण में बताया गया है कि बचपन से ही नल और नील दोनों बहुत शरारती थे। ये दोनों इतने नटखट थे कि ऋषियों का सामान समुद्र में फेंक दिया करते थे। वस्तु डूब जाने के कारण ऋषियों को परेशानी होती थी। फिर ऋषियों ने इन्‍हें शाप दिया तुम्हारा फेंका सामान जल में डूबेगा नहीं। उनका यह शाप सेतु निर्माण के वक्‍त लाभदायी साबित हुआ। इसलिए नल और नील जो पत्‍थर फेंकते थे, वे डूबते नहीं थे।

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  • महज 5 दिन में बनकर तैयार हुआ सेतु

    आधुनिक प्राद्यौगिकी और विज्ञान के साथ जहां एक पुल को बनाने में महीनों और कई बार तो साल लग जाते हैं, लेकिन उस वक्‍त राम सेतु महज 5 दिन में बनकर तैयार हो गया था। सेतु की लंबाई करीब 100 योजन है। पुराने समय में योजन दूरी नापने का पैमाना होता था। एक योजन में 13 से 14 किलोमीटर होता है। प्रभु श्रीराम की वानर सेना की लगन और ईश्‍वर की शक्ति की बदौलत यह संभव हो पाया।

  • भगवान राम का पत्‍थर डूब गया

    सेतु निर्माण के वक्‍त जब भगवान राम ने स्‍वयं एक पत्‍थर डाला तो वह डूब गया था। हनुमानजी ने तब रामजी को रहस्य बताया कि भगवान जिस पर आपका नाम लिखा है वह तो तैर जाता है लेकिन जिसे आपने फेंक दिया है उसका डूबना तो तय ही है। रामजी हनुमानजी के इन वचनों से बड़े ही प्रसन्न हुए थे। तब जाकर वानर सेना के द्वारा पुल निर्माण का प्रस्‍ताव लाया गया।

  • खुद भगवान ने भी किया था व्रत

    सेतु का निर्माण सफल हो और वानर सेना की मेहनत बेकार न जाए, इसके लिए प्रभु श्रीराम ने खुद विजया एकादशी का व्रत किया था, जिसके बारे में बकदालभ्य ऋषि ने भगवान राम को बताया था। नल तथा नील की मदद से पूरी वानर सेना तमाम प्रकार की योजनाएं बनाने में सफल हुई। अंत में योजनाओं का चुनाव करते हुए पुल बनाने का सामान एकत्रित किया गया। पूरी वानर सेना आसपास से पत्थर, पेड़ के तने, मोटी शाखाएं एवं बड़े पत्ते तथा झाड़ लाने में सफल हुई।

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  • जब सागर को सुखाने के लिए चलाया बाण

    भगवान राम ने 3 दिनों तक व्रत रखकर सागर की उपासना की थी ताकि सागर जल के बीच सेना ले जाने के लिए मार्ग प्रदान करे। जब सागर नहीं माना तो रामजी सागर को सुखा देने के लिए अमोघ बाण चलाना चाहा तब सागर प्रकट हुआ और समुद्र पर सेतु बनाने का सुझाव दिया। सागर ने ही रामजी से नल नील की खूबी बताई। समुद्र देव ने बताया, श्रीराम! आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे ऊपर पत्थरों का एक पुल बनाएं। मैं इन सभी पत्थरों का वजन संभाल लूंगा। आपकी सेना में नल एवं नील नामक दो वानर हैं, जो इस कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ हैं।

  • भगवान राम ने की शिवलिंग की स्‍थापना

    सेतु निर्माण के बाद भगवान ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व एक पार्थिक शिवलिंग की स्‍थापना करके पूजा अर्चना की थी। रामेश्‍वरम का यही शिवलिंग आज भगवान के 12 प्रमुख ज्‍योर्तिलिंगों में से एक माना जाता है। यहां लाखों भक्‍त हर साल दर्शन करने आते हैं।

  • बाद में सेतु को डुबो दिया

    भगवान राम जब लंका पर विजय प्राप्‍त करके लौट रहे तो इस सेतु को पार करने के बाद उन्‍होंने इसे फिर से समुद्र में डुबो दिया था। पौराणिक मान्‍यताओं में बताया गया है कि ऐसा उन्‍होंने इसलिए किया था ताकि कोई इसका दुरुपयोग न कर सके। यह घटना युगों पहले की बताई जाती है। लेकिन कालांतर में बताया जाता है कि समुद्र का जलस्‍तर घटता गया और यह सेतु फिर से ऊपर आ गया।

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रामसेतु की लंबाई कितनी है?

भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की चेन है, इसे भारत में रामसेतु और दुनिया में एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई करीब 30 मील (48 किमी) है। यह ढांचा मन्नार की खाड़ी और पॉक स्ट्रेट को एक दूसरे से अलग करता है।

श्री राम सेतु कितने साल पुराना है?

धनुषकोडी और रामसेतु के बीच के रेत की टीलों की आयु ५००-६०० साल पुरानी बताई जाती है। तिरुचिरापल्ली स्थित भारतिदासन विश्वविद्यालय के २००३ के सर्वेक्षण के अनुसार रामसेतु की आयु सिर्फ ३,५०० साल है।

राम सेतु क्या अभी भी है?

भगवान श्रीराम ने लंका पहुंचने के लिए वानर सेना से रामसेतु बनवाया था। कहते हैं कि आज भी यह सेतु विद्यमान है परंतु राम सेतु को लेकर भारत में 'सेतुसमुद्रम परियोजना' के तहत जब इस सेतु को तोड़ने का कार्य किया गया तो हिन्दुओं में इसे लेकर रोष उत्पन्न हुआ और फिर विवाद बढ़ता ही गया।

समुद्र पर पुल बनने में कितना समय लगा?

ऐसे में हनुमान जी की वानर सेना ने समुद्र में पुल बनाकर इसे बार करने का निर्णय लिया था। 3. मान्यता के अनुसार रामसेतु के निर्माण में 5 दिनों का वक्त लगा था। इसके तहत पहले दिन 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन का कार्य पूरा किया गया था।

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