सीता ने हनुमान जी को क्या दिया था? - seeta ne hanumaan jee ko kya diya tha?

Authored by Rakesh Jha | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: May 6, 2022, 8:30 PM

देवी सीता की तलाश में हनुमान में जब लंका पहुंचे तो लंका में हाहाकार मचाने के बाद उन्होंने देवी सीता के सामने यह प्रस्ताव रखा कि हे माता आप चाहें तो मैं आपको अभी रावण के अशोका वाटिका से निकालकर प्रभु श्रीराम के पास पहुंचा दूं। पूरी लंका की सेना भी मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकती। हनुमानजी की बातों को सुनकर देवी सीता खुश तो बहुत हईं लेकिन साथ चलने से मना कर दिया। देवी सीता के मना करने पर हनुमानजी ने पूछा कि हे माता मेरे साथ चलने में आपको क्यों आपत्ति है। इसके उत्तर में देवी सीता ने जो कहा उसे सुनकर हनुमानजी ने कहा आप वास्तव में धन्य हो माता। आप अपनी कोई निशानी दीजिए जिससे प्रभु राम को विश्वास हो जाए कि आप सकुशल हैं और मैं आपसे मिलकर आया हूं। देवी सीता ने अपना चूड़ामणि तब हनुमानजी को दिया। आइए जानें देवी सीता ने हनुमानजी को क्यों कहा था ना...

1 नहीं, कारण 4, इसलिए देवी सीता ने हनुमान के साथ चलने से कर दिया था इंकार

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धर्म पालन के लिए जाने से किया इंकार

देवी सीता के मना करने की पहली वजह यह थी कि वह अपने पतिव्रत धर्म का पालन कर रही थीं। वाल्मीकि रामायण में बताया गया है कि देवी सीता ने इसलिए हनुमानजी के साथ चलने से मना कर दिया था कि इससे उनका पतिव्रत धर्म भंग होता। देवी सीता ने कहा कि रावण बलपूर्वक मुझे उठाकर लंका ले आया था उसमें मेरा वश नहीं था लेकिन मैं अपनी मर्जी से किसी अन्य पुरुष का स्पर्श नहीं कर सकती।

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राम की मर्यादा का मान

देवी सीता ने हनुमानजी के साथ आने से मना इसलिए भी कर दिया था कि इससे भगवान राम की कीर्ति की हानि होती। देवी सीता ने रघुकुल के सम्मान और मर्यादा की रक्षा के लिए हनुमानजी के साथ आने से मना कर दिया। अगर देवी सीता हनुमानजी के साथ चली आतीं तो इतिहास में भगवान राम निर्बल कहलाते और संसार हनुमानजी की कीर्ति का बखान करता। शास्त्रों में कहा गया है कि पत्नी का धर्म होता है कि पति के मान और सम्मान और उनके कुल परंपरा का पालन करे। देवी सीता ने इस कारण से भी साथ चलने से इंकार कर दिया।

अपमान का बदला

देवी सीता का हरण करके रावण ने रघुकुल का अपमान किया था। जिस रघुकुल के राजाओं से देवता भी सहायता मांगते थे रावण ने उस कुल की बहू का हरण करने का अपराध किया था। देवी सीता नारी जाती के सम्मान का प्रतिनिधित्व कर रही थीं, वह एक राज कन्या थीं। जो इनका अपहरण कर सकता है वह सामान्य स्त्रियों के साथ कैसा व्यवहार कर सकता है। देवी सीता रावण के कायरता पूर्ण किए गए व्यवहार के लिए उसे भगवान राम के हाथों प्राणदंड दिलवाना चाहती थीं जिससे रघुकूल के उज्जवल कीर्ति पर लगा धब्बा मिटे और रावण को उसके अपराध का बोध हो सके।

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रावण की मुक्ति

देवी सीता जानती थीं कि रावण को वरदान मिला है कि उसकी मृत्यु किसी मनुष्य के हाथों ही होगी। भगवान विष्णु ने रावण का वध करने के लिए ही राम रूप में अवतार लिया है। अगर वह हनुमानजी के साथ चली आतीं तो राम के अवतार का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता। भगवान राम की कीर्ति अनंत काल तक नहीं रहती। रावण के कर्मों से दूषित लंका को शुद्ध् करवाने के लिए यह जरूरी था कि भगवान राम के चरणों की धूलि लंका में पड़े जिससे धर्म का राज्य स्थापित हो सके। इसलिए भी देवी सीता ने हनुमानजी से कहा वह साथ नहीं जा सकती हैं।

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सीता माता ने हनुमान जी को क्या दिया था?

देवी सीता ने हनुमानजी के साथ आने से मना इसलिए भी कर दिया था कि इससे भगवान राम की कीर्ति की हानि होती। देवी सीता ने रघुकुल के सम्मान और मर्यादा की रक्षा के लिए हनुमानजी के साथ आने से मना कर दिया

सीता ने हनुमान को उपहार में क्या दिया?

हनुमान जी ने प्रभु की दी हुई मुद्रिका सीतामाता को देते हैं और कहते हैं – मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा,जैसे रघुनायक मोहि दीन्हा चूडामणि उतारि तब दयऊ, हरष समेत पवन सुत लयऊ सीता जी ने वही चूडा मणि उतार कर हनुमान जी को दे दिया , यह सोंच कर यदि मेरे साथ ये चूडामणि रहेगी तो रावण का बिनाश होना सम्भव नही है।

हनुमान जी ने सीता को राम की अंगूठी क्यों दी?

अगले पन्ने पर जब हनुमान मिले सीता से अशोक वाटिका में... उन्होंने सीता माता के समक्ष लघु रूप में उपस्थित होकर नमन किया और श्रीराम की अंगूठी रखी और कहा- 'हे माता जानकी, मैं श्रीरामजी का दूत हूं। करुणानिधान की सच्ची शपथ करता हूं, यह अंगूठी मैं ही लाया हूं। श्रीरामजी ने मुझे आपके लिए यह सहिदानी (निशानी या पहचान) दी है।

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