सुखिया सब संसार है
सुखिया सब संसार है, खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै॥
कबीर को पूरा संसार मोह-ग्रस्त दिखाई देता है। वह मृत्यु की छाया में रहकर भी सबसे बेख़बर विषय-वासनाओं को भोगते हुए अचेत पड़ा है। कबीर का अज्ञान दूर हो गया है। उनमें ईश्वर के प्रेम की प्यास जाग उठी है। सांसरिकता से उनका मन विमुख हो गया है। उन्हें दोहरी पीड़ा से गुज़रना पड़ रहा है। पहली पीड़ा है, सुखी जीवों का घोर यातनामय भविष्य, मुक्त होने के अवसर को व्यर्थ में नष्ट करने की उनकी नियति। दूसरी पीड़ा है, भगवान को पा लेने की अतिशय बचैनी। दोहरी व्यथा से व्यथित कबीर जाग्रतावस्था में हैं और ईश्वर को पाने की करुण पुकार लगाए हुए हैं।
स्रोत :
- पुस्तक : कबीर ग्रंथावली (पृष्ठ 144)
- प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
- संस्करण : 2013
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