रामभक्ति Shakha Ke Kavi
Pradeep Chawla on 30-10-2018
रामभक्ति पंथी शाखा के प्रमुख कवि |
रामानन्द, तुलसीदास, स्वामी अग्रदास, नाभादास, प्राणचंद चौहान, हृदयराम, केशवदास, सेनापति। |
सम्बन्धित प्रश्न
Comments Hindi on 11-10-2022
Usu7s7suussusu
Sunita on 26-08-2022
राममार्गी शाखा के अतिमं कवि कौन है
Hjjsn on 17-06-2022
Ram bhakt parampara me antim ram bhakat kavi kon h?
Sujaan kon hai on 06-05-2022
Sujaan kon hai
Indrajit sao on 05-05-2022
ram bhakti shakha ke pratinidhi kavi kaun hai
तुलसीदास on 05-05-2022
राम भक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि कौन हैं
Sakshi Singh on 19-03-2022
Agradaas Kis dhara ke kavi hai
Avansh yadav on 24-02-2022
रामभक्ति शाखा के कवि
Khushi choudhary on 24-02-2022
Ram bhakti Sakha ke premugh kavi kon hai
Aa on 09-02-2022
Ram bhakti sakaha me Prato idhi kavi ka naam
लिलगल on 28-01-2022
, राम भक्ति धारा के कवि का नाम व उनकी रचनाएं
Rinku yadav on 14-01-2022
Ram bhakti sakha ke char kaviyo ke name likhiye
A.R on 04-08-2021
रामभक्ति शारवा में श्रृगारी भावना के प्रवर्तक है?
Gayatri on 18-04-2020
Ramcharitmanas avadhi bhasha aur braj bhasha likha gaya hai
AKASH VERMA on 29-01-2020
Minn me se rambhaktishakha ke kavi nahi he
(1) Tulshidas. (2)
Chaturbhujdas
(3) Agradas. (4) Nabhadas
Abhilash Tiwari Tiwari on 01-11-2019
Ram bhakti shakha ke kaun kabi he
Om prakash yadav on 16-10-2019
Nimanlikhit me see khvan sagud bhakti sakha ke kavi nahi hai
Saba on 29-07-2019
Ramcharit manas kis bhasha me likhi gayi hai
Ram bhakti shakha ke kavi kaun nahi h on 17-07-2019
No answer
राम काव्य धारा या रामाश्रयी शाखा
जिन भक्त कवियों ने विष्णु के अवतार के रूप में राम की उपासना को अपना लक्ष्य बनाया वे ‘रामाश्रयी शाखा’ या ‘राम काव्य धारा’ के कवि कहलाए। कुछ उल्लेखनीय राम भक्त कवि हैं—रामानंद, अग्रदास, ईश्वर दास, तुलसी दास, नाभादास, केशवदास, नरहरिदास आदि।
राम भक्ति काव्य धारा के सबसे बड़े और प्रतिनिधि कवि हैं तुलसी दास। राम भक्त कवियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। कम संख्या होने का सबसे बड़ा कारण है तुलसीदास का बरगदमयी व्यक्तित्व। यह सवर्णवादी काव्य धारा है इसलिए यह उच्चवर्ण में ज्यादा लोकप्रिय हुआ।
जैन साहित्य में ‘विमलसूरि’ कृत ‘पउम चरिउ’, सिद्ध साहित्य में स्वयंभू कृत ‘पउम चरिउ’ तथा पुष्पदंत कृत ‘महापुराण’ में रामकथा का वर्णन है। बांग्लाभाषा में ‘कृतिवासी’ ने ‘रामायण’ लिखी। तुलसी से पूर्व के रामभक्त कवियों में विष्णुदास ईश्वरदास (भरतमिलाप, अंगदपैज) आदि प्रमुख है। वाल्मिकी की रामायण ही रामकथा का मूलस्त्रोत है।
(देखें – भक्ति काल के साहित्य का सम्पूर्ण इतिहास)
रामभक्ति से सम्बन्धित सम्प्रदाय
- श्री सम्प्रदाय – (रामानुजाचार्य)- इन्हें शेषनाग अथवा लक्ष्मण का अवतार माना जाता है।
- ब्रह्म सम्प्रदाय – (मध्वाचार्य) – इनका सिद्धांत द्वैतवाद था।
रामभक्ति काव्य के प्रमुख कवि
रामानन्द
मूलरूप में रामभक्ति काव्यधारा का प्रारम्भ रामानन्द से माना जाता है। ये रामावत सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे। इनके गुरू का नाम राघवानन्द था। इन्होंने रामभक्ति को जनसाधारण के लिए सुगम बनाया। सगुण और निर्गुण का समन्वय ‘रामावत सम्प्रदाय‘ की उदार दृष्टि का परिणाम है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इन्हें ‘आकाश धर्मगरू‘ कहा है।
रचनाएं – रामार्चन पद्धति, वैष्णवमताब्ज भास्कर, हनुमानजी की आरती (आरती कीजे हनुमान लला की), रामरक्षास्त्रोत।
रामानन्द सम्प्रदाय (रामावत सम्प्रदाय)
रामानन्द सम्प्रदाय की प्रधान पीठ गलताजी जयपुर में ‘कृष्णदास पयहारी‘ ने स्थापित की। इसे ‘उद्धार तोताद्री’ कहा जाता है। इसी सम्प्रदाय की एक शाखा तपसी शाखा है। गुरूग्रंथ साहिब में इनके दोहपद मिले हैं।
अग्रदास
ये कृष्ण पयहारी के षिष्य थे ओर नाभादास के गुरू थे। रामकाव्य परम्परा में रसिक भावना का समावेष इन्होंने ही किया। ये स्वयं को ‘अग्रकली‘ (जानकी की सखी) मानकर काव्य रचना की।
प्रमुख रचनाएं – ध्यान मंजरी, अष्टयाम, रामभजन मंजरी, उपासना बावनी, हितोपदेश भाषा।
तुलसीदास
तुलसीदास का जन्म 1532 ई. में हुआ, रामभक्ति धारा के सबसे बड़े एंव प्रतिनिधि कवि, रामभक्त कवियों की संख्या अपेक्षाकृत कम होने के कारण तुलसीदास का बरगदमयी व्यक्तित्व है।
- ‘तुलसीदास का सम्पूर्ण काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।’ -हजारी प्रसाद द्विवेदी।
- नाभादास ने इन्हें ‘काली काल का वाल्मिकी’ कहा है।
- ग्रिर्यसन ने इन्हें ‘लोकनायक’ कहा।
- इन्हें जातिय कवि भी कहा जाता है।
- अमृतलाल नागर के उपन्यास ‘मानस का हंस’ में तुलसी का वर्णन है।
- आचार्य शुक्ल ने तुलसी का जन्म स्थान राजापुर माना है।
- इनकी माता ‘हुलसी’ तथा पिता का नाम ‘आत्माराम’ था
- बचपन का नाम रामभोला था
- इनकी पत्नी का नाम ‘रत्नावली’
- इनके गुरू का नाम ‘नरहरिदास’ है।
- आचार्य शुक्ल ने कहा है, “भारतीय जनता का प्रतिनिधी कवि यदि किसी को कह सकते हैं तो वह तुलसीदास है।”
- तुलसी अकबर के समकालीन थे।
तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं
आचार्य शुक्ल के अनुसार इनकी 12 रचनाएं है। तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं:-
- रामचरितमानस – यह महाकाव्य 1574 ई. में अयोध्या में लिखा गया; इसके अन्दर सात काण्ड है; पहला बालकाण्ड तथा अंतिम सुन्दरकांड है; किष्किन्धा कांड काशी में लिखा गया; इसकी भाषा अवधि व शैली दोहा-चैपाई है; इसमें तत्कालीन समय की वर्णव्यवस्था की हीनता का वर्णन है।
- बरबैरामायण – इसकी रचना तुलसी ने रहीम के आग्रह पर की।
- कृष्णगीतावली – सूरदास जी से मिलने के बाद लिखी। (अनुसरण के रूप में) इसकी भाषा ब्रज है।
- रामाज्ञा प्रश्नावली – पं. गंगाराम के अनुरोध पर लिखी।
- हनुमानबाहुक – (अप्रामाणिक) बाहु पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए लिखी।
- कलिकाल से मुक्ति पाने हेतु रामदरबार में अर्जी के रूप में प्रस्तुत किया, भाषा ब्रज है।
- कवित रामायण (कवितावलि)
- दोहावली
- गीतावली
- रामलल्ला नहछु
- वैराग्य संदीपनी
- पार्वती मंगल – पार्वती के विवाह का वर्णन है,
- जानकी मंगल – राम-सीता के विरह का वर्णन है,
- विनय पत्रिका – तुलसी के राम को जानने के लिए रामचरितमानस को पढ़ें तथा तुलसी को जानने के लिए विनय पत्रिका पढ़ें; विनय पत्रिका में नवधा भक्ति का स्वरूप है; इनकी भक्ति दैन्य या दास्य भाव की है।
- गीतावली – गीतावली की भाषा ब्रज है तथा संस्कृत शब्दों की बहुलता है, कवितावली तथा गीतावली गीतिकाव्य मुक्तक शैली की रचना है।
नाभादास
ये तुलसीदास के समकालीन थे इनका असली नाम नारायण दास था।
इनकी प्रमुख रचना ‘भक्तमाल‘ जिसमें 200 कवियों का वर्णन है।
केशवदास
केशवदास हालांकि रचना की दृष्टि से रीतिकाल में माने जाते हैं लेकिन काल के अनुसार भक्तिकाल के कवि माने जाते हैं।
प्रमुख रचनाएं –
कविप्रिया, रसिकप्रिया, रामचन्द्रिका, वीरसिंह चरित्, विज्ञान गीता, रत्नबावनी।
जहांगिरी जसचन्द्रिका
ये हिन्दी कवियों में बहुप्रतिभा सम्पन्न कवि थे। इसलिए ये वीरसिंह और जहांगीर की स्तुति के कारण आदिकालीन ‘रामचन्द्रिका‘ के कारण भक्तिकालीन ‘रसिक प्रिया‘ और ‘कवि प्रिया‘ के कारण रीतिकालीन कवियों में शामिल होते हैं।
- रामचन्द्रिका की भाषा बुन्देलखण्डी मिश्रित ब्रज है।
- रामचन्द्रिका को ‘छन्दों का अजायबघर‘ कहा जाता है।
- ये ओरछा नरेष इन्द्रजीत सिंह के दरबारी कवि थे।
- आचार्य शुक्ल ने इन्हें ‘कठिन काव्य का प्रेत‘ कहा है।
राम भक्ति काव्य की विशेषताएँ
- दास्य भाव की भक्ति
- समन्वय का व्यापक प्रयास
- लोक-कल्याण की भावना
- मर्यादा एवं आदर्श की स्थापना
- मुख्य काव्य भाषा-अवधी है
- राम का लोक नायक रूप
- लोक मंगल की सिद्धि
- सामूहिकता पर बल
- समन्वयवाद
- मर्यादावाद
- मानवतावाद
- काव्य-रूप—प्रबंध व मुक्तक दोनों
- काव्य-भाषा-मुख्यतः अवधी
- दार्शनिक प्रतीकों की बहुलता।
राम भक्ति काव्य और रचनाकर
1. | रामानंद | राम आरती |
2. | अग्र दास | रामाष्टयाम, राम भजन मंजरी |
3. | ईश्वर दास | भरत मिलाप, अंगद पैज |
4. | तुलसीदास | रामचरित मानस (प्र०), गीतावली, कवितावली, विनयपत्रिका, दोहावली, कृष्ण गीतावली, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, बरवै रामायण (प्र०), रामाज्ञा प्रश्नावली, वैराग्य संदीपनी, राम लला नहछू |
5. | नाभादास | भक्त माल |
6. | केशव दास | रामचन्द्रिका (प्रबंध काव्य) |
7. | नरहरि दास | पौरुषेय रामायण |
तुलसीदास– तुलसीदास को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। इन्होंने रामकथा को अवधी रूप दे कर घर घर मे प्रसारित कर दिया। इनका जन्म काल विवादित रहा है। इनके कुल 13 ग्रंथ मिलते हैं :- 1. दोहावली, 2. कवितावली, 3. गीतावली, 4. कृष्ण गीतावली, 5. विनय पत्रिका, 6. राम लला नहछू, 7. वैराग्य-संदीपनी, 8. बरवै रामायण, 9. पार्वती मंगल, 10. जानकी मंगल, 11. हनुमान बाहुक, 12. रामाज्ञा प्रश्न, 13. रामचरितमानस।
नाभादास– अग्रदास जी के शिष्य, बड़े भक्त और साधुसेवी थे। संवत् 1657 के लगभग वर्तमान थे और गोस्वामी तुलसीदास जी की मृत्यु के बहुत पीछे तक जीवित रहे। इनकी 3 रचनाए उपलब्ध हैं:– 1. रामाष्टयाम, 2. भक्तमाल, 3. रामचरित संग्रह।
स्वामी अग्रदास– अग्रदास जी कृष्णदास पयहारी के शिष्य थे जो रामानंद की परंपरा के थे। सन् १५५६ के लगभग वर्तमान थे। इनकी बनाई चार पुस्तकों का पता है। प्रमुख कृतियां है– 1. हितोपदेश उपखाणाँ बावनी, 2. ध्यानमंजरी, 3. रामध्यानमंजरी, 4. राम-अष्ट्याम।
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