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ट्रेन के ड्राइवर को इंजीनियर से ज्यादा सैलरी क्यों मिलती है? जानें कितना मुश्किल होती है इनकी ड्यूटी
ट्रेन में हजारों यात्री सवार होते हैं, जिन्हें सुरक्षित उनके गंतव्य तक पहुंचाने की जिम्मेदारी ट्रेन के ड्राइवर की ही होती है. दिन हो या रात हो, धूप हो या बरसात हो.. हर परिस्थिति में वे ड्यूटी निभाते हैं.
TV9 Bharatvarsh | Edited By:
Updated on: Nov 02, 2021, 7:45 PM IST
Indian Railway Train Driver Salary: लौहपथगामिनी. इस शब्द से चौंकिए मत. हम बात करने वाले हैं ट्रेनों की. Train का शुद्ध हिंदी नाम लौहपथगामिनी ही है. खैर छोड़िए, ये बताइये कि क्या आप जानते हैं कि ट्रेन के ड्राइवर को क्या कहा जाता है? नहीं पता तो हम बता देते हैं. आधिकारिक भाषा में उन्हें लोको पायलट (Loco Pilot) कहा जाता है. रेलवे में कई तरह की जॉब अपॉर्च्यूनिटी मिलती हैं, कई सारे पदों पर वैकेंसी निकलती हैं, उन्हीं में से एक पद लोको पायलट का भी होता है. यह जॉब कठिन होता है और इसमें सैलरी भी बहुत ज्यादा होती है.
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लोको पायलट यानी ट्रेन के ड्राइवर की जॉब बेहद सावधानी वाली होती है. एक ट्रेन में हजारों यात्री सवार होते हैं, जिन्हें सुरक्षित उनके गंतव्य तक पहुंचाने की जिम्मेदारी ट्रेन के ड्राइवर की ही होती है. दिन हो या रात हो, धूप हो या बरसात हो.. हर परिस्थिति में वे ड्यूटी निभाते हैं. उन्हें पूरे समय अलर्ट रहना पड़ता है. क्योंकि सावधानी हटी और दुर्घटना घटी! तभी तो उनकी सैलरी भी ज्यादा होती है.
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लोको पायलट के लिए डेली रूटीन तो फिक्स नहीं रहता, लेकिन उनका ड्यूटी रोस्टर के मुताबिक लगती है. रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्हें 14 दिन का रोस्टर दिया जाता है. इस बीच उन्हें 2 रेस्ट दिए जाते हैं. इस रोस्टर के मुताबिक, उन्हें करीब 104 घंटे काम करना पड़ता है. कभी-कभी तो उन्हें इससे भी ज्यादा काम करना पड़ता है. खासकर ट्रेन लेट हो जाने की स्थिति में. हालांकि उन्हें इस देरी के लिए भी भुगतान किया जाता है.
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बात करें इनकी सैलरी की, तो जेनरली किसी इंजीनियर की तुलना में इनकी सैलरी बहुत ज्यादा होती है. बहाली होने के बाद इनकी एंट्री एएलपी यानी असिस्टेंट लोको पायलट (ALP) के तौर पर होती है. रेलवे की ओर से इन्हें कई तरह के भत्ते मिलते हैं. 100 किमी के ट्रेन रनिंग पर अलाउंस, ओवरटाइम अलाउंस, नाइट ड्यूटी अलाउंस, हॉलीडे अलाउंस, ड्रेस अलाउंस वगैरह.
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जब ये प्रोमोट होकर एएलपी से एलपी यानी लोको पायलट बनते हैं तो आगे चलकर कई बार इनकी सैलरी सारे अलाउंस को मिलाकर 1 लाख रुपये से भी ज्यादा हो जाती है. इनकी ड्यूटी भी तो बेहद कठिन है. सामान्यत: ये 3-4 दिन बाद वापस आते हैं, जबकि कई बार तो ये कई दिनों तक घर वापस नहीं पहुंच पाते. ड्यूटी के 14 दिनों में 104 घंटे से ज्यादा समय देने पर इन्हें ओवरटाइम का पैसा दिया जाता है. जॉब रोल के कारण ही बहुत सारे लोग ट्रेन का ड्राइवर बनना प्रेफर नहीं करते. हालांकि पिछले कुछ वर्षों से बड़ संख्या में महिलाएं भी लोको पायलट के रूप में सेवा दे रही हैं.
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