क्या पिता अपने पुत्र को अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकता है? - kya pita apane putr ko apanee sampatti se bedakhal kar sakata hai?

बेदखल क्या है ? दहेज केस में कब बेटे को बेदखल करे ?

बेदखल कैसे करते है ? कितने प्रकार से बेदखल कर सकते है ? जानिए कानूनी तौर पर बेटे को जायदाद से बेदखल कैसे करें ? 

हाईलाइट :-

बेदखल क्या है ? इसे कौन करवा सकता है ?

लोग बेदखल क्यों करवाते है ?

बेदखल करने के क़ानूनी तरीके ?

दहेज केस में कब बेटे को बेदखल करे ?

बेदखली कैसे ख़त्म करे ?

बेदखल क्या है / इसे कौन करवा सकता है ?

आप किसी को अपनी जिन्दगी और सम्पति से दूर रखना चाहते है तो उसके के लिए आपको क़ानूनी कारवाही करनी होती है जिसमे आप उस व्यक्ति को अपने जीवन और सम्पति से हमेशा के लिए दूर कर देते है, उसको हम बेदखल या disown कहते है | कोई भी किसी को भी बेदखल करवा सकता है जैसे की माता पिता अपने बेटे या बेटी को ऐसे ही बेटा या बेटी अपने माता पिता को | भाई अपने भाई या बहन को, पति या पत्नी भी एक दुसरे को ऐसे ही बेदखल करवा सकते है | वैसे पति या पत्नी जब सरकारी नौकरी में होते है तो दहेज या तलाक केस के चलते वे एक दुसरे को अपने सरकारी नौकरी के बेनिफिट नही देने के लिए भी बेदखल करवाते है |

लोग बेदखल क्यों करवाते है ?

अगर किसी का कोई बेटा-बेटी, भाई-बहन, माता-पिता या पति या पत्नी गलत हो जाये और उस पर उसका कोई नियन्त्रण नही रहे और उसको लगे की ये व्यक्ति उसको नुकशान पंहुचा सकता है या फिर इसकी गैरकानूनी और असमाजिक हरकते उसको भी मुसीबत में डाल सकती है तो ऐसे में सामने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति को बेदखल घोषित करवा देता है की अब उसकी जिन्दगी में इस व्यक्ति को कोई रोल नही है अगर भविष्य में ये व्यक्ति कुछ भी गैर क़ानूनी और गैर समाजिक करता है तो इसमें उसकी कोई भी जिम्मेदारी नही होगी | जैसे की बेटा अपने पिता की संपत्ति का स्वभाविक दावेदार होता है। संपत्ति के लिए कई बार विवाद भी होते हैं और यह अपराध की हद तक चले जाते हैं। कभी-कभी माता-पिता नहीं चाहते कि उनकी संपत्ति उनके बेटे को मिले। तो ऐसे में माता पिता अपने बेटे को बेदखल  करवा देते है |

वैसे दुसरे रूप में देखे तो लोग दहेज केस से बचने के लिए ज्यादातर बेदखल करवाते है | जब पत्नी अपने पति पर दहेज का केस करती है तो पति अपने माता को बचने के लिए अपने आप को उनसे बेदखल करवा देता है |

बेदखल करने के क़ानूनी तरीके ?

  • वैसे साधारण रूप से लोग अपने वकील साहब के मध्यम से अपने बच्चो या किसी निजी को बेदखल करवाते है | ऐसे में वकील साहब के द्वारा न्यूज़ पेपर में लिखित नोटिस निकलवाया जाता है, की वे अमुक व्यक्ति को अपने क्लाइंट से बेदखल करते है और आज के बाद से उस व्यक्ति का उनके क्लाइंट की किसी भी सम्पति में से चाहे वो चल हो या अचल कोई भी संबध नही रहेगा साथ ही किसी भी प्रकार का कोई समाजिक रिश्ता भी नही रहेगा | अगर वो व्यक्ति किसी से कोई अनुबंध करता है तो उसके लिए भी मेरा क्लाइंट जिम्मेदार नही होगा | ऐसे में उस व्यक्ति को एक नोटिस भी भेज दिया जाता है | लेकिन ये पर्किर्या अधूरी है आपको इसके अलावा और भी क़ानूनी पर्किर्या अपनानी होती है | जैसे की विल
  • यदि आप हमेशा के लिए अपने बेटा/बेटी या कानूनी वारिस को अपनी प्रॉपर्टी से बेदखल करना चाहते हैं तो इसके लिए आप एक रजिस्टर्ड वसीयत बनाएं जिसमें स्पष्ट करें कि कुल कितने लोग आपकी प्रॉपर्टी के कानूनी वारिस हैं और उनमें से किस-किस को आप बेदखल कर रहे हैं या वारिस के अधिकार से हटा रहे हैं।
    ऐसे में आप अपने बेटे से हस्तांतरित PROPERTY भी वापस ले सकते हैं यदि आपकी सम्पति पैतृक है तो पिता अपने बेटे को उससे बेदखल नहीं कर सकता। यदि वो संपत्ति माता-पिता द्वारा अर्जित की गई है तो उन्हे पूरा अधिकार है कि वो अपनी एक संतान या सभी संतानों को चाहे वो बेटा हो या बेटी, अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकते है ।
  • अगर आपके बेदखल व्यक्ति फिर भी प्रॉपर्टी से नही निकले तो ऐसे माता पिता उसके खिलाफ कोर्ट में केस करके उसे निकाल सकते है जैसे की सिविल कोर्ट में केस और? बुजुर्ग माता-पिता जो की 60 वर्ष से उपर है वे उपायुक्त या जिला अधिकारी के पास या सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट को सीनियर सिटीजंस एक्ट के अनुसार इसके ट्रिब्यूनल में आवेदन करके ऐसा कर सकते है | साधारणत: इसके लिए 21 दिन का समय ही लगता है |

इस एक्ट और भी अधिकार बच्चो को मिलते है | जैसे की, अगर माता पिता ने अपने बच्चो के नाम कोई सम्पति कर दी है और बाद में वे उसकी देखभाल नही करते है तो वे इस अधिनियम की धारा की धारा 23 के मुताबिक, बच्चे अगर अपने मां-बाप और बुजुर्गों की देखभाल करने में असफल होते हैं तो ऐसी स्थिति में मां-बाप संपत्ति का हस्तांतरण कर दोबारा संपत्ति के हकदार हो सकते हैं। इस कानून में ये प्रावधान है कि अगर बच्चे, अपने बुजुर्ग माता पिता को देखभाल का भरोसा देकर संपत्ति हथियाने की कोशिश करते हैं तो वैसी स्थिति में बुजुर्ग दोबारा संपत्ति को अपने नाम पर हस्तांतरित कर सकते हैं।

दहेज केस में कब बेटे को बेदखल करे ?

वैसे तो हम सब जानते है की ज्यादातर लोग अपने बेटे को बेदखल , दहेज केस से बचाने के लिए करवाते है लेकिन ये हर जगह ठीक नही है | जैसे की आपके माता पिता नही कमाते है तो ऐसे लड़के को चाहिए की अगर पत्नी उस पर केस करके खर्चा ले तो आप भी अपने माता पिता से अपने उपर केस करवाकर अपने खर्चे को कम करवा सकते है |

आप दहेज केस में अपनी बेदखली जब ही करवाए जब आपके माता की कोई लीगल इनकम है या वो सरकारी नौकरी का लाभ ले रहे हो | क्योकि ऐसे में आप उन से अपने उपर केस नही करवा सकते है |

बेदखली कैसे ख़त्म करे ?

काफी लोग सोचते है की बेदखली एक बार होने के बाद ख़त्म नही हो सकती है ऐसा नही है आप न्यूज़ पेपर में निकलवा कर की पहले जो भी बेदखली आपने की थी उसका बोयरा देकर उस बेदखली को समाप्त करवा सकते है |

जय हिन्द

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ADVOCATE  DHEERAJ  KUMAR

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क्या कोई बाप अपने बेटे को बेदखल कर सकता है?

माता-पिता द्वारा अर्जित संपत्ति से ही बेदखल करने का है कानून माता-पिता द्वारा अर्जित संपत्ति पर ही केवल बेदखल करने का कानून है यानी पिता पैतृक संपत्ति से बेटे को बेदखल नहीं कर सकते हैं. जैसे दादा की संपत्ति पर पिता और बेटे दोनों का हक है.

बेदखल करने का क्या तरीका है?

समाचार पत्र में लिखित नोटिस प्रकाशित कराकर यह अपने किसी उत्तराधिकारी को अपनी संपत्ति से बेदखल करने का एक पुराना तरीका है। संपत्ति का मालिक एक वकील के जरिए समाचार पत्र में एक लिखित नोटिस निकलवाता है। इस नोटिस में लिखा जाता है कि नोटिस देने वाला व्यक्ति संबंधित व्यक्ति को अपनी किसी भी चल, अचल संपत्ति से बेदखल करता है।

क्या बेटा भारत में पिता के जीवित होने पर पिता की संपत्ति का दावा कर सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2020 में आदेश पारित किया था कि पिता, दादा और परदादा की संपत्ति में बेटियों को भी बेटों के बराबर ही उत्तराधिकार का अधिकार होगा। कोर्ट ने तब के आदेश में इस कानून को 1956 से वैध कर दिया था जब हिंदू पर्सनल लॉ अस्तित्व में आया था। लेकिन, ताजा फैसले ने इसकी समयसीमा 1956 से भी पीछे कर दी है।

कैसे एक बेटी पिता की संपत्ति का दावा कर सकते?

हिंदू सक्सेशन ऐक्ट, 1956 में साल 2005 में संशोधन कर बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान हिस्सा पाने का कानूनी अधिकार दिया गया। इसके तहत, बेटी तभी अपने पिता की संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी का दावा कर सकती है जब पिता 9 सितंबर, 2005 को जिंदा रहे हों।

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