पाठ्यचर्या की रूपरेखा से आप क्या समझते हैं? - paathyacharya kee rooparekha se aap kya samajhate hain?

• राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 (National Curriculum Framework 2005)

  • • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 (National Curriculum Framework 2005)
    • • NCF 2005 दस्तावेज के 5 अध्याय
    • • ncf-2005 के 5 मार्गदर्शक सिद्धांत
    • • ncf-2005 के विषय क्षेत्र
    • • ncf-2005 की विशेषताएं
      • • ncf-2005 की आवश्यकता / महत्व
      • • ncf-2005 के सिद्धांत
      • • ncf-2005 के अनुसार पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत
      • • ncf-2005 के दोष / बाधाएं
      • • ncf-2005 के लक्ष्य
      • • ncf-2005 में शिक्षक की भूमिका
      • • NCERT, NEP 2020 के हिस्से के रूप में अलग पाठ्यक्रम ढांचा विकसित करेगा
      • • अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (ncf-2005) राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) नई दिल्ली के तत्वावधान में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2000 की समीक्षा हेतु प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय संचालन समिति (कुल 38 सदस्य) (National steering committee) और इक्कीस राष्ट्रीय फोकस समूहों का गठन किया गया। ncf-2005 को बनने का कार्य NCERT के तत्कालीन निदेशक प्रो. कृष्ण कुमार के नेतृत्व में 21 आधार पत्रों के साथ संपन्न हुआ।

पाठ्यचर्या संबंधित सामग्री विकास की संस्तुति के साथ राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की स्थापना 1961 में हुई थी और 1975 में पहली पाठ्यचर्या रूपरेखा विकसित की गई थी।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अनुवर्तन के रूप में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने 1988 में प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा नामक एक और पाठ्यचर्या की रूपरेखा तैयार की।

इसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 द्वारा सुझाए गए सर्वमान्य मूल सिद्धांतों पर प्रकाश डाला गया। वर्ष 2000 में स्कूल शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2000 (NCFSE 2000) तैयार की गई।

इस पाठ्यचर्या का मुख्य जोर अधिगम पर था, जो ऐसी शिक्षा की ओर ले जाता हो जो असमानता से लड़ने में मदद करती है और विद्यार्थियों की सामाजिक, सांस्कृतिक, भावनात्मक तथा आर्थिक आवश्यकताओं को संबोधित करती है।

एन सी एफ 2005 का निर्माण 1993 की ‘शिक्षा बिना बोझ के’ रपट के संदर्भ में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCFSE) 2000 की समीक्षा करने हेतु किया गया।

N C F 2005

इस दस्तावेज में कुल 5 अध्याय है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005 NCF 2005 का अनुवाद संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गईं सभी भाषाओं में किया गया है।
इस समिति ने पाठ्यक्रम को अधिक व्यवहारिक बनाने पर जोर दिया। इसमें शिक्षा को बाल केंद्रित बनाने, रटंत प्रणाली से मुक्ति दिलाने, परीक्षा प्रणाली में सुधार करने और लिंग, जाति, धर्म आदि आधारों पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करने की बात कही गई है।

शोध आधारित दस्तावेज़ तैयार करने के लिए 21 राष्ट्रीय फोकस समूह बनाए गए जो विभिन्न विषयों पर केंद्रित थे। इसके नेतृत्व की जिम्मेदारी संबंधित क्षेत्र के विषय विशेषज्ञों को दी गई थी।
ncf-2005 का मुख्य सूत्र लर्निंग विदाउट बर्डन (learning without burden) है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 का मुख्य उद्देश्य बच्चों के स्कूली जीवन को बाहर के जीवन से जोड़ना है।। यह सिद्धांत किताबी ज्ञान की उस विरासत के विपरीत है जिसके प्रभावंश हमारी व्यवस्था आज तक स्कूल और घर के बीच अंतराल बनाए हुए हैं।

 

नई राष्ट्रीय पाठ्यचर्या पर आधारित पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें इस बुनियादी विचार पर अमल करने का प्रयास है। इस प्रयास में हर विषय को एक मजबूत दीवार से घेर देने और जानकारी को रटा देने की प्रवृत्ति का विरोध शामिल है।

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा की सफलता इस बात पर निर्भर है कि स्कूलों के प्राचार्य और अध्यापक बच्चों को कल्पनाशील गतिविधियों और सवालों की मदद से सीखने और सिखाने के दौरान अपने अनुभवों पर विचार करने का अवसर देते हैं।

हमें यह मानना होगा कि यदि जगह, समय और आजादी दी जाए तो बच्चे बड़ों द्वारा सौंपी गई सूचना-सामग्री से जुड़कर और जूझकर नये ज्ञान का सर्जन करते हैं।

शिक्षा के विभिन्न साधनों एवं स्त्रोतों की अनदेखी किए जाने का प्रमुख कारण पाठ्यपुस्तक को परीक्षा का एकमात्र आधार बनाने की प्रवृत्ति है। सर्जना और पहल को विकसित करने के लिए जरूरी है कि हम बच्चों को सीखने की प्रक्रिया में पूरा भागीदार मानें और बनाएं, उन्हें ज्ञान के निर्धारित खुराक का ग्राहक मानना छोड़ दें।

NCF 2005 में रचनावाद के बारे में ज़रूर सुना होगा। RTE में भी देखा होगा कि बच्चों को गतिविधि के माध्यम से सीखने के मौके देने पर ज़ोर है। इस दिशा के पीछे कई महान विचारकों और वैज्ञानिकों के विचार हैं, जिनके आधार पर NCERT ने NCF व पाठ्यपुस्तकों का निर्माण किया है। इनमें से कुछ के प्रमुख विचार आगे दिये गये हैं। शायद आप उनमें से कुछ से पहले ही परिचित हों।

1. ज़्यां पियाजे, “बच्चा अपनी उम्र अनुसार अपने पूर्व ज्ञान में नए अनुभवों को सिम्मिलत कर के अपनी समझ को बनाता है।”

ये हमें बच्चों के पूर्व ज्ञान के उपयोग और स्वयं से सोचने के मौके देने के लिये प्रेरित करता है – यानी E (अनुभव) और R (चिंतन) एवं A (अनुप्रयोग) सुझाता है।

2. लेव वाइगोत्सकी, “बच्चों के सीखने का एक समीपस्थ क्षेत्र होता है। जब बच्चों को ऐसा कार्य दिया जाए जो उनके वर्तमान स्तर से थोड़ा अधिक मुश्किल हो तो वो बेहतर जुड़ते हैं और सीखते हैं।”

ये हमें बताता है कि बच्चों को जोड़ने के लिये हम चुनौती का प्रयोग करें – और वह न तो बहुत ही मुश्किल हो ना बहुत आसान।

3. जेरोम ब्रूनर, “बच्चे अपनी समझ का ‘सामाजिक’ निर्माण करते हैं। परिवेश और संदर्भ का गहरा प्रभाव होता है। अगर बच्चों को उनके मानसिक स्तर और सार्थकता स्थापित करते हुए बताया जाये, तो वे जटिल बातें भी समझ सकते हैं।“

यानी समूह में कार्य करना, बच्चों की उम्र और संदर्भ ध्यान में रखना और सार्थक बनाने से हमारा काम आसान हो सकता है।

4. महात्मा गाँधी ने मन और शरीर के गहरे संबंध पर ज़ोर दिया, कि बच्चे तभी सीखते हैं जब हाथों का उपयोग भी करते हैं, और मन और हाथ के साथ-साथ हृदय की शिक्षा भी ज़रूरी है। ‘कर के सीखने’ और ‘बच्चों के समग्र विकास’ से तो आप परिचित हैं ही।

5. रबीन्द्रनाथ टैगोर ने रटने के प्रयोग का गहरा विरोध किया (तोते की शिक्षा वाली कहानी तो आप जानते ही होंगे। उन्होंने प्रकृति से जुड़ाव पर ज़ोर दिया, और बच्चों को खाली घड़ा मानने की बजाय उनकी स्वयं से चिंतन करने, निर्णय लेने, और सहानुभूति रखने की क्षमताओं के विकास को अहम माना।

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या दस्तावेज 2005 का प्रारंभ प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री, नोबेल पुरस्कार विजेता तथा राष्ट्रीय गान के निर्माता रविंद्र नाथ टैगोर के निबंध ‘सभ्यता और प्रकृति’ के एक उद्धरण से हुआ है।

• ncf-2005 वेट (VET) को मिशन मोड के रूप में प्रारंभ करता है। यहां वेट (VET) का अर्थ है –
V – Vocational (व्यावसायिक)
E – Education (शिक्षा)
T – Training (प्रशिक्षण)

• NCF 2005 दस्तावेज के 5 अध्याय

अध्याय 1- परिप्रेक्ष्य (Perspective) – परिचय, रूपरेखा, पश्चावलोकन, मार्गदर्शी सिद्धांत, गुणवत्ता के आयाम, शिक्षा का सामाजिक संदर्भ, शिक्षा के लक्ष्य आदि दिए गए हैं।

अध्याय 2 – सीखना और ज्ञान (Learning and Knowledge) से संबंधित

अध्याय 3 – पाठ्यचर्या के क्षेत्र, स्कूल की अवस्थाएँ और आकलन (Curriculum Areas, School Stages and Assessment) से संबंधित

अध्याय 4 – विद्यालय एवं कक्षा का वातावरण (School and Classroom Environment) से संबंधित

अध्याय 5 – व्यवस्थागत सुधार (Systematic Improvement) से संबंधित

ncf-2005 के 5 मार्गदर्शक सिद्धांत

1. ज्ञान को विद्यालय के बाहरी जीवन से जोड़ना।
2. शिक्षा रटन्त प्रणाली से मुक्त हो, यह सुनिश्चित करना।
3. पाठ्यचर्या का इस तरह संवर्धन हो कि वह बच्चों के चहुँमुखी विकास के अवसर उपलब्ध करवाना बजाए इसके कि वह पाठ्य पुस्तक केंद्रित बनकर रह जाये।
4. परीक्षा को और अधिक लचीला बनाना और कक्षा-कक्ष की गतिविधियों से जोड़ना। परीक्षाा में सुधार हेतु सुझाव – कक्षा 10 की परीक्षा ऐच्छिक होनी चाहिए।
5. एक ऐसी अधिभावी पहचान का विकास करना जिसमें लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रीय चिंताएं सम्मिलित हों।

Image Source – NCERT Nishtha Module

ncf-2005 के विषय क्षेत्र

* 4 विषयों में महत्वपूर्ण परिवर्तन का सुझाव

1. भाषा
भाषा शिक्षा (भाषा शिक्षण बहुुुुुुुभाषिक होना चाहिए)
घरेलू/प्रथम भाषा या मातृभाषा

 द्वितीय भाषा सीखना
पढ़ना-लिखना सीखना

त्रिभाषा सूत्र – १. हिंदी (राष्ट्रीय/राज्य की भाषा)

२. अंग्रेजी (अंतर्राष्ट्रीय/वैश्विक भाषा)

३. स्थानीय भाषा/आदिवासी भाषाएं
2. गणित
 स्कूली गणित का दर्शन
 कंप्यूटर विज्ञान
3. विज्ञान
4. सामाजिक विज्ञान

* चार विषय क्षेत्र नये जोड़ने का सुझाव
1. कला और पारंपरिक दस्तकारियां (कला और विरासत शिल्प)
2. स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा
3. व्यावसायिक शिक्षा (काम शिक्षा)
4. शांति के लिए शिक्षा
ncf-2005 और सामाजिक विज्ञान विषय
* सामाजिक विज्ञान में अवधारणाओं को विकसित करने के लिए उपयोग की जाने वाली विधियां प्रमुख विशेषताओं को सूचीबद्ध करती हैं। क्योंकि इसमें इतिहास शामिल है जो हमारी संस्कृति, राजनीतिक विज्ञान जो भारत के संविधान के बारे में बताता है। भूगोल जो पर्यावरण और अर्थशास्‍त्र जो भारत की आर्थिक स्थितियों के बारे में बताता है।
* सामाजिक विज्ञान में उच्च प्राथमिक स्तर पर भूगोल, इतिहास, राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र  शामिल हैं।
* एनसीएफ 2005 के अनुसार, सामाजिक विज्ञान में शिक्षा का उद्देश्य छात्र को सामाजिक-राजनीतिक हकीकत का विश्लेषण करने में सक्षम होना चाहिए ताकि वे समाज में लोगों, सरकार, मीडिया की भूमिका को समझ सकें।
* एक सामाजिक विज्ञान शिक्षक को प्रभावी होने के लिए विचार उत्तेजक और रोचक गतिविधियों द्वारा छात्रों की भागीदारी में वृद्धि को नियोजित करना चाहिए।

* हाशिए पर रह रहे समूह और अल्पसंख्यक संवेदनशीलता से संबंधित बच्चों के प्रति जेंडर, न्याय और संवेदनशीलता संबंधी जानकारी सामाजिक विज्ञान के सभी क्षेत्रों द्वारा प्रदान की जानी चाहिए।

NCF 2005 और गणित विषय

* प्राथमिक स्तर पर गणितीय शिक्षा को दैनिक जीवन से जोड़कर पढ़ाया जाएं।

* गणित की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे बच्चों के वे संसाधन समृद्ध हो जो चिंतन और तर्क में, अमूर्तनों की संकल्पना करने और उनका व्यवहार करने में, समस्याओं को सूचीबद्ध करने और सुलझाने में उनकी सहायता करें।

* गणित विषय के दायरे को विस्तृत करने के लिए इसे दूसरे विषयों के साथ जोड़ा जाना चाहिए।

ncf-2005 की विशेषताएं

ncf-2005 की सिफारिशें
1. प्राथमिक स्तर की शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए तथा इसके पश्चात आवश्यकतानुसार अन्य भाषाएं सीखी जा सकती है।
2. पाठ्यक्रम निर्माण में अभिभावकों के हितों और समझ को महत्व।
3. विद्यार्थियों में पढ़ाई के प्रति रुचि जागृत करने को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाए ताकि शिक्षा रुचि प्रद हो सके।
4. ncf-2005 में राष्ट्रीय एकता पर पर्याप्त बल दिया गया है।
5. बिना बोझ के अधिगम कार्यक्रम को शामिल किया गया है।
6. छात्रों के स्वतंत्र विकास हेतु प्रावधान किया गया है।
7. बालक को परीक्षा के बोझ से मुक्त करते हुए मासिक एवं वार्षिक परीक्षा का प्रावधान जिससे छात्रों की परीक्षा के प्रति रुचि विकसित हो सके।
8. पर्यावरण शिक्षा पर पर्याप्त बल।
9. शिक्षा को व्यवसायोन्मुखी बनाने का प्रयास।
10. ncf-2005 स्कूली शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर कला शिक्षा विषय को लागू करना चाहता है। कला शिक्षा को विद्यालय से जोड़ने का उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत की प्रशंसा करना तथा छात्रों के व्यक्तित्व और मानसिक स्वास्थ्य को विकसित करना है।
11. ncf-2005 के अनुसार ज्ञान की प्रक्रिया में समुदाय की साझेदारी जरूरी है।
12. करके सिखने पर बल (learning by doing)
13. राष्ट्रीय महत्व के बिन्दुओं को पाठ्यक्रम में शामिल।
14. सहशैक्षिक गतिविधियों में छात्रों के अभिभावकों को भी जोड़ा जाना चाहिए।
15. पुस्तकालय में छात्रोंं को खुद पुस्तक का चुनाव करने का मौका दें।
16. दंड व पुरस्कार की भावना को सीमित रूप में प्रयोग करना चाहिए।
17. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मनोरंजन के स्थान पर सौन्दर्यबोध को बढ़ावा देना चाहिए।
18. अध्यापकों के प्रशिक्षण और विद्यार्थियों के मूल्यांकन को सतत आकलन के रूप में अपनाया जाना चाहिए।
19. अध्यापकों को अकादमिक संसाधन व नवाचार आदि समय-समय पर पहुँचाएँ जाएँ।
20. छात्रों के माता-पिता या अभिभावकों को सख्त सन्देश दिया जाना चाहिए कि छात्रों को छोटी उम्र में कुशल बनाने की आकांक्षा रखना गलत है।
21. सूचना (information) को ज्ञान (knowledge) मानने से बचना चाहिए।
22. विशाल पाठ्यक्रम व मोटी-मोटी पुस्तकेंं शिक्षा प्रणाली की असफलता का प्रतीक है।
23. एनसीएफ 2005 का मानना है कि पाठ्यपुस्तकों को समाज के स्वीकृत मूल्यों को लागू करने के लिए एक माध्यम के रूप में देखा जाना चाहिए।
24. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 के अनुसार सीखना अपने चरित्र में सक्रिय और सामाजिक है।

25. कक्षा 1व 2 के विद्यार्थियों के लिए मूल्यांकन प्रेक्षण के आधार पर होना चाहिए।

26. छात्रों द्वारा की गई त्रुटियां समाधान को पहचानने में सहायक होती है।

27. परीक्षा सुधार के लिए निम्न पद्धतियों की सिफारिश – सामुहिक कार्य मूल्यांकन, सतत एवं व्यापक मूल्यांकन, खुली पुस्तक परीक्षा मूल्यांकन

28. NCF 2005 के द्वारा ‘नागरिक शास्त्र’ के स्थान पर राजनीति शास्त्र शब्द का प्रयोग करने का प्रस्ताव दिया गया।

यह भी पढ़ें –

• सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE)

ncf-2005 की आवश्यकता / महत्व

1. छात्रों की आवश्यकता एवं रूचि के अनुसार पाठ्यक्रम निर्माण।
2. पाठ्यक्रम निर्माण में अध्यापक की सहायता।
3. शिक्षण विधियों में सुधार और विकास हेतु।
4. अभिभावकों को संतुष्टि प्रदान करने हेतु।
5. पाठ्यक्रम में नवीन तथ्यों एवं शोधों के निष्कर्षों को शामिल करने हेतु।
6. कक्षा कक्ष शिक्षण को प्रभावशाली बनाने हेतु।
7. भाषा की समस्या के निराकरण हेतु।
8. नैतिक एवं मानवीय मूल्य में वृद्धि करने हेतु।
9. शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु।

ncf-2005 के सिद्धांत

1. रूचि का सिद्धांत
शिक्षक द्वारा शिक्षण कार्य करने एवं विद्यार्थी द्वारा उसे सही समझने के लिए रुचि का होना आवश्यक है। अतः रुचि को विशेष महत्व देते हुए ही पाठ्यक्रम का निर्माण किया गया है।
2. मानवता का सिद्धांत
मानवीय मूल्यों के विकास को प्राथमिकता देना राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का एक अत्यावश्यक लक्ष्य है। इसलिए पाठ्यक्रम में शुरू में ही ऐसे प्रकरणों का समावेश किया गया है जिससे विद्यार्थी में प्रेम, परोपकार, सहिष्णुता, सहयोग की भावना का विकास हो सके।
3. एकता का सिद्धांत
समाज में निहित धर्म, संस्कृति एवं परंपराओं को एक सूत्र में बांधते हुए एवं सांप्रदायिक सद्भाव को ध्यान में रखते हुए ही पाठ्यक्रम का विकास किया गया है। पाठ्यक्रम में भाषा समस्या के निदान हेतु भी प्रयास किया गया है।
4. नैतिकता का सिद्धांत
पाठ्यक्रम में प्रारंभिक स्तर पर ही प्रेरणादायक कहानियों एवं कविताओं के माध्यम से बालकों में नैतिकता के विकास को महत्व दिया गया है।
5. सामाजिकता का सिद्धांत
6. उपयोगिता का सिद्धांत
7. संतुलित विकास का सिद्धांत।

ncf-2005 के अनुसार पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धांत

*  सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन में सह संबंधित
* बाल केंद्रित पाठ्यक्रम
* उच्च कक्षाओं की आवश्यकता पूर्ति का सिद्धांत
* उपयोगिता का सिद्धांत
* लचीला पाठ्यक्रम
* विभिन्न स्तरों के अनुसार पाठ्यक्रम
* रोचक पाठ्य सामग्री का सिद्धांत
* विषयों से सह संबंधित
* क्रियाशीलता का सिद्धांत
* क्रमबद्धता का सिद्धांत
* मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुरूप पाठ्यक्रम
* विज्ञान विषय के वैज्ञानिकों का पाठ्यक्रम
* सृजनात्मकता का सिद्धांत
* व्यापक एवं संतुलन का सिद्धांत

ncf-2005 के दोष / बाधाएं

1. यौन शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया जाना।
2. पाठ्यक्रम का उचित क्रियान्वयन नहीं हो पाना।
3. आर्थिक समस्या के कारण कंप्यूटर शिक्षा पर प्रर्याप्त बल नहीं दिया गया।
4. भाषावाद।

ncf-2005 के लक्ष्य

1. अभिभावकों की आकांक्षाओं की पूर्ति।
2. शिक्षण संसाधनों में समन्वय स्थापित करना।
3. स्तर के अनुकूल शिक्षण विधियों का प्रयोग।
4. अध्यापकों में आत्मविश्वास का विकास।
5. शारीरिक और मानसिक विकास में समन्वय स्थापित करना।
6. विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास करते हुए उनमें मानवीय मूल्यों का विकास करना।
7. प्रभावशाली शिक्षण व्यवस्था स्थापित करना।
8. विद्यार्थीयों में पढ़ने के प्रति रुचि जागृत करना।
9. भारतीय संस्कृति का संरक्षण एवं विकास एवं राष्ट्रीय एकता का विकास।
‘NCF 2005 in hindi pdf’ – NCERT NCF 2005 Download

ncf-2005 में शिक्षक की भूमिका

नेशनल क्रिकुलम फ्रेमवर्क 2005 में शिक्षक विद्यार्थियों के ज्ञान के निर्माण में सहायता कर्ता के रूप में भूमिका निभाता है। शिक्षक, छात्रों को उनकी अपनी समझ और ज्ञान को साझा करने के पर्याप्त अवसर प्रदान करेंं।

• NCERT, NEP 2020 के हिस्से के रूप में अलग पाठ्यक्रम ढांचा विकसित करेगा

भारत में केवल अब तक एक राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा थी, जिसने स्कूल नीति और शिक्षण-अधिगम मॉडल की रीढ़ बनाई।

जब से नयी शिक्षा नीति 2020 पूरे भारत में 2022 से लागू की जाएगी तब चार राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा नई पाठ्यपुस्तकों को विकसित करने और शिक्षाशास्त्र को डिजाइन करने के लिए महत्वपूर्ण होगी।

सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने की प्रक्रिया के हिस्से के रूप में, राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) को स्कूल, बाल्यावस्था, शिक्षक और किशोरों की शिक्षा के लिए अलग-अलग राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (एनसीएफ) विकसित करने के लिए कहा है।

NCERT जो केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के तहत संचालित होता है, ने राज्यों से जिला स्तर के अधिकारियों और ऊपर के अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श के बाद क्षेत्रीय पाठ्यक्रम ढांचे को विकसित करने के लिए कहा है। जिसे बाद में NCF में शामिल किया जाएगा।

एक व्यापक विचार और व्यापक परामर्श करके देश भर से स्थानीय और स्वदेशी संवाद को शामिल और एकीकृत करके एनसीएफ तैयार किया जाना चाहिए। इसके लिए राज्य पाठ्यक्रम ढांचे को विकसित किया जा सकता है और फिर राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचे में शामिल किया जा सकता है।

इसके लिए राज्य शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (SCERT) को चार NCF या NCF के चार खंडों के साथ आना पड़ सकता है। जिसमें बाल्यावस्था से लेकर वयस्क शिक्षा तक चार व्यापक क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाएगा। ध्यातव्य रहें की शिक्षकों की शिक्षा के लिए मॉड्यूल अब तक राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) द्वारा तैयार किया गया था।

NCERT प्रमुख मुद्दों पर स्थिति पत्र विकसित करने के लिए 20 समूहों का गठन कर रहा है। जबकि SCERT काम को अंजाम देने के लिए समितियां बनाएगी।

• अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

      • Q. 01.राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपेरखा 2005 की प्रमुख विशेषता है ?

        Ans. पूर्व प्राथमिक स्तर पर बालक को मातृभाषा में निपुण होना चाहिए। इसके पश्चात् आवश्यकतानुसार अन्य भाषाएँ सीखी जा सकती है। पाठ्यक्रम निर्माण में अभिभावकों के हितों एवं समझ को महत्व दिया गया है। पाठ्यक्रम विद्यार्थियों में पढ़ाई के प्रति रूचि जाग्रत करने को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है ताकि रूचिप्रद हो सकें।

      • Q. 02. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 के अनुसार स्कूलीय स्तर पर त्रिभाषा फाॅर्मूला को स्वीकार किया गया है, इसका तात्पर्य है ?

        Ans. इसका मतलब है प्राथमिक स्तर पर राष्ट्रभाषा काम में ली जानी चाहिए।

      • Q.03. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 में ’गुणवत्ता आयाम’ शीर्षक के अन्तर्गत किसको अधिक महत्व दिया गया है ?

        Ans. बालकों के लिए संरचित अनुभव एवं पाठ्यक्रम सुधार को अधिक महत्व दिया गया है।

      • Q. 04. राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा, 2005 में शान्ति शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कुछ क्रियाओं की अनुशंसा की गई है। वह है –

        Ans. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 में भारत की धार्मिक एवं सांस्कृतिक विविधता को मानना, स्त्रियों के प्रति सम्मान एवं जिम्मेदारी के दृष्टिकोण को बढ़ाने वाले कार्यक्रम का आयोजन एवं वृत्त चित्र तथा फिल्मों को एकत्र करना एवं दिखाना जिनके माध्यम से न्याय एवं शांति में वृद्धि हो सके।

      • Q. 05. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 के अंतर्गत ’परीक्षा सुधारों’ में किस सुधार को सुझाया गया है ?

        Ans. खुली पुस्तक परीक्षा, सतत एवं व्यापक मूल्यांकन, सामूहिक कार्य मूल्यांकन।

      • Q. 06. NCF 2005 में कला शिक्षा को विद्यालय में जोङने का उद्देश्य है –

        Ans. सांस्कृतिक विरासत की प्रशंसा करना, छात्रों के व्यक्तित्व और मानसिक स्वास्थ्य को विकसित करना।

    • Q. 07. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, 2005 के अनुसार पाठ्यचर्या निर्माण के पांच मार्गदर्शक सिद्धांत है-

      Ans. 1. ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोङना। 2. शिक्षा रटन्त प्रणाली से मुक्त हो, यह सुनिश्चित करना। 3. पाठ्यचर्या का इस तरह संवर्धन हो कि वह बच्चों के चहुँमुखी विकास के अवसर उपलब्ध करवाना बजाए इसके की वह पाठ्यपुस्तक केंद्रित बनकर रह जाये। 4. परीक्षा को और अधिक लचीला बनाना और कक्षा-कक्ष की गतिविधियों से जोड़ना। 5. एक ऐसी अधिभावी पहचान का विकास करना जिसमें लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रीय चिंताएं सम्मिलित हों।

    पाठ्यचर्या की रूपरेखा से क्या समझते हैं?

    वर्ष 2000 में स्कूल शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2000 (NCFSE 2000) तैयार की गई। इस पाठ्यचर्या का मुख्य जोर अधिगम पर था, जो ऐसी शिक्षा की ओर ले जाता हो जो असमानता से लड़ने में मदद करती है और विद्यार्थियों की सामाजिक, सांस्कृतिक, भावनात्मक तथा आर्थिक आवश्यकताओं को संबोधित करती है।

    पाठ्यचर्या से आप क्या समझते हैं पाठ्यचर्या की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए?

    पाठ्यचर्या का अर्थ (pathyacharya kise kahate hai) पाठ्य का अर्थ है 'पढ़ने योग्य' अथवा 'पढ़ाने योग्य' और चर्या का अर्थ है नियमपूर्वक अनुसरण'। इस प्रकार पाठ्यचर्या का अर्थ हुआ-- पढ़ने योग्य (सीखने योग्य) अथवा पढ़ाने योग्य (सिखाने योग्य) विषयवस्तु और क्रियाओं का नियमपूर्वक अनुसरण।

    पाठ्यचर्या से आप क्या समझते हैं पाठ्यचर्या निर्माण के विविध सिद्धांत बताइए?

    पाठ्यचर्या निर्माण के निम्नलिखित सिद्धांत हैं - पाठयचर्या को शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति का सदा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि उद्देश्य ही निर्धारित करते हैं कि उन विषयों एवं क्रियाओं को जो उद्देश्यों को जो उदेश्यो को प्राप्त करने के लिए बालको को दी जानी है ! इस सिद्धांत को बाल-केंद्रित सिद्धांत भी कहा जाता है !

    पाठ्यचर्या से आप क्या समझते हैं पाठ्यचर्या की आवश्यकताओं और उपयोगिताओं का वर्णन करें?

    अतः पाठ्यचर्या का उद्देश्य छात्रों की उपलब्धियों का मूल्यांकन करना है। पाठ्यचर्या मे इस प्रकार की पाठ्यवस्तु सम्मिलित की जाती है जो समाज से संबंध रखती है जिससे बालकों मे सामाजिकता की समझ विकसित होती एवं बालक एक सामाजिक प्राणी बनता है। इस तरह से पाठ्यचर्या सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दिशा-निर्देश देता है।

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