पिता भले ही बच्चे से कितना लगाव रखे पर माँ अपने हाथ से बच्चे को खिलाए बिना संतुष्ट नहीं होती है- ‘माता का अँचल’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
भोलानाथ के पिता भोलानाथ को अपने साथ रखते, घुमाते-फिराते, गंगा जी ले जाते। वे भोलानाथ को अपने साथ चौके में बिठाकर खिलाते थे। उनके हाथ से भोजनकर जब भोलानाथ का पेट भर जाता तब उनकी माँ थोड़ा और खिलाने का हठ करती। वे बाबू जी से पेट भर न खिलाने की शिकायत करती और कहती-देखिए मैं खिलाती हूँ। माँ के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भरता है। यह कहकर वह थाली में दही-भात मिलाती थी और अलग-अलग तोता-मैना, हंस-कबूतर आदि पक्षियों के बनावटी नाम लेकर भोजन का कौर बनाती तथा उसे खिलाते हुए यह कहती कि खालो नहीं तो ये पक्षी उड़ जाएँगे। इस तरह भोजन जल्दी से भरपेट खा लिया करता था।
पिता द्वारा भोलानाथ को भरपेट खिला देने पर भी माँ को संतुष्टि क्यों नहीं होती थी?
भोलानाथ हमेशा अपने पिता के साथ रहता था, लेकिन जब भी खाना खाने की बारी आती तो भोलानाथ की माँ को संतुष्टि नहीं होती और पिता द्वारा खाना खिलाने पर माँ को लगता कि उनके बेटे ने पेट भर के खाना नहीं खाया है। इसलिए वह अपने हाथ से भोलानाथ को खाना खिला दी थी।
भोला की मां पिता के खाना खिलाने के बाद भी क्यों और कैसे खिलाती थी?
उत्तर : भोलानाथ को पिताजी गोरस भात सानकर थोड़ा-थोड़ा करके खिला देते थे, फिर भी माता उसे भर-भर कौर खिलाती थी। कभी तोता के नाम का कौर कभी मैना के नाम का कौर। माँ कहती थी कि बच्चे को मर्दे क्या खिलाना जानें । थोड़ा-थोड़ा खिलाने से बच्चे को लगता है कि बहुत खा चुका और बिना पेट भरे ही खाना बन्द कर देता है।
भोलेनाथ की माँ कब संतुष्ट होती है?
उत्तर:- भोलानाथ जब अपने साथियों के साथ गली में खेल रहा होता तभी भोलानाथ की माँ उसे अचानक ही पकड़ लेती और भोलानाथ के लाख ना-नुकर करने पर भी चुल्लूभर कड़वा तेल सिर पर डालकर सराबोर कर देती।
मां बच्चे भोलानाथ को किस प्रकार खाना खिलाती थी और क्यों?
भोलानाथ की अनुसार माँ के हाथ से ही बच्चा पेट भर खाना खाता है। वह अलग-अलग पक्षियों का नाम लेकर दही चावल से पक्षियों की आकृति बनाकर बड़े-बड़े कौर को भोलानाथ के मुँह में डालती और बोलती जल्दी खा ले, नहीं तो यह पक्षी उड़ जाएंगे और भोलानाथ पक्षियों के उड़ने से पहले खाना खा लेता।