प्रथम विश्व युद्ध में अमेरिका कब शामिल हुआ था?...
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10th प्रश्न है प्रथम विश्व युद्ध में अमेरिका कब शामिल हुआ था अज्ञानता है कि प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक हुआ था और प्रथम विश्व युद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका के सहमति मित्र राष्ट्रों के प्रति थी मित्र राष्ट्रों से तात्पर्य है इंग्लैंड फ्रांस रूस के साथ उनके प्रति अमेरिका की सहमति थी लेकिन वह युद्ध में पूरी तरह से शामिल नहीं था परिस्थितियां बदलती गई और 1915 में जर्मनी की फोटो नीलू सी तानिया नामक एक के ब्रिटिश जहाज को डूबा दिया था उस जहाज मैं मरने वाली यात्रा में 127 अमेरिकी ही थे इससे अमेरिका की जनता में वृक्षों हुआ उसके बाद उन्हें 17 में जर्मनी की पनडुब्बियों ने कुछ जहाजों को डुबोया जिसमें अमेरिका को नागरिक अमेरिका के नागरिकों को ले जाने वाले अमेरिकी जहाज भी थे और इसके बाद 1917 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी आपको बताया कि उन्हें 17 में रूसी क्रांति हुई और रूस प्रथम विश्व युद्ध से अलग हो गया जबकि अमेरिका प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुआ 6 अप्रैल 1917 को संयुक्त राज्य अमेरिका युद्ध में शामिल हुआ और इसके बाद जर्मनी की स्थिति कमजोर होने लगी क्योंकि जुलाई 1918 में ब्रिटेन फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका की संयुक्त सेना ने जर्मनी और उनके सहयोगी देशों को हराना प्रारंभ कर दिया और इसके चलते जर्मन सरकार ने 11 नवंबर 1918 को यह 2 ग्राम युद्धविराम पर पुस्तक
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विश्व को WW I की ओर धकेलने वाले
कारकों में कोई एक घटना या एक कारण प्रमुख नहीं था, बल्कि ऐसे बहुत से कारण थे जिनके सिलसिलेवार प्रकटन ने समस्त विश्व को इस भयानक त्रासदी को झेलने के लिये विवश कर दिया। चित्र: युद्ध की शुरुआत में बने सहयोगी समूहप्रथम विश्व युद्ध
परिचय
युद्ध के कारण
युद्ध के चरण
युद्ध के लिये उत्तरदायी कौन था?
इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध के लिये सभी राष्ट्र उत्तरदायी थे, इसके लिये किसी एक राष्ट्र को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।युद्ध के परिणाम
- सामाजिक परिणाम: विश्व युद्ध ने समाज को पूरी तरह से बदल दिया। जन्म दर में गिरावट आई क्योंकि लाखों युवा मारे गए (आठ मिलियन लोग मारे
गए), लाखों घायल हो गए तथा कई अन्य विधवा और अनाथ हो गए। नागरिकों ने अपनी ज़मीन खो दी और अन्य देशों की ओर प्रवास किया।
- महिलाओं की भूमिका में भी परिवर्तन आ गया। उन्होंने कारखानों और दफ्तरों में पुरुषों का स्थान लिया।
- उन्होंने कारखानों और कार्यालयों में पुरुषों की जगह लेने में एक प्रमुख भूमिका निभाई। कई देशों ने युद्ध समाप्त होने के बाद महिलाओं को अधिक अधिकार दिये जिसमें वोट देने का अधिकार भी शामिल था।
- उच्च वर्गों ने समाज में अपनी अग्रणी भूमिका खो दी। युवा, मध्यम और निम्न वर्ग के पुरुषों तथा महिलाओं ने युद्ध के बाद अपने देश के पुनर्गठन की मांग की।
- वर्सेल्स/वर्साय की संधि (Treaty of Versailles): 28 जून, 1919 को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर के साथ प्रथम विश्व युद्ध आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया। वर्साय की संधि दुनिया को दूसरे युद्ध में जाने से रोकने का प्रयास थी।
वर्सेल्स/वर्साय की संधि के कुछ प्रमुख बिंदु
यह संधि अलग-अलग खंडों में विभाजित थीं, जिनके अंदर कई धाराएँ शामिल थीं।
- प्रादेशिक खंड:
- फ्राँस ने अल्सास और लोरेन को वापस पा लिया।
- यूपेन और माल्देमी बेल्जियम के हाथों में चले गए।
- पूर्वी क्षेत्रों को पोलैंड ने नष्ट कर दिया था जिससे पूर्वी प्रुशिया क्षेत्रीय रूप से अलग-थलग पड़ गया था।
- डेंटिग और मेमेल, पूर्व बाल्टिक जर्मन शहरों को मुक्त शहर घोषित किया गया था।
- डेनमार्क ने उत्तरी श्लेस्विग-होल्स्टीन पर कब्ज़ा कर लिया।
- जर्मनी ने अपने सभी उपनिवेश खो दिये और विजेता देशों ने उन्हें वापस ले लिया।
- सैन्य खंड:
- जर्मन नौसेना पर कठोर प्रतिबंध।
- सेना की संख्या में नाटकीय कमी (केवल 100,000 सैनिकों की अनुमति तथा टैंक, विमान और भारी तोपखाने रखना निषेध किया गया।)
- राइनलैंड क्षेत्र का विसैन्यीकरण।
- युद्ध सुधार:
- इस संधि ने जर्मनी और उसके उन सहयोगियों को कुल 'हानि और क्षति' के लिये ज़िम्मेदार ठहराया, जो कि मित्र राष्ट्रों द्वारा पीड़ित थे और इसके परिणामस्वरूप उन्हें युद्ध के पुनर्मूल्यांकन के लिये मजबूर किया गया था।
अन्य संधियाँ
- न्यूली की संधि (Newly Treaty) बुल्गारिया के साथ हस्ताक्षरित
- छोटे बाल्कन देशों को बहुत अधिक क्षेत्रीय नुकसान हुआ तथा बुल्गारिया के अनेक क्षेत्र यूनान, युगोस्लाविया और रोमानिया को दे दिया गया।
- सेवर्स की संधि (Sevres Treaty)
तुर्की के साथ हस्ताक्षरित
- सेवर्स की संधि बेहद कठिन थी और इसने तुर्की के राष्ट्रीय विद्रोह का नेतृत्व किया। इसके अंतर्गत ओटोमन साम्राज्य विखंडित कर दिया गया तथा इसके अनेक क्षेत्र यूनान और इटली को दे दिये गए। फ्राँस को सीरिया तथा पैलेस्तीन, इराक और ट्रांसजॉर्डन को ब्रिटिश मैंडेट के अंतर्गत कर दिया गया।
हालाँकि युद्ध के कारण कई अन्य महत्त्वपूर्ण सामाजिक और वैचारिक परिवर्तन भी देखे गए।
- अमेरिका, जिसने अपने क्षेत्र में संघर्ष का अनुभव किये बिना युद्ध जीत लिया था, पहली विश्व शक्ति बन गया।
- युद्ध में पुरुषों के संलग्न होने के कारण महिलाएँ कार्यबल में शामिल हुईं, जो महिलाओं के अधिकारों के लिये एक बड़ा कदम था।
- युद्ध के दौरान चरम राष्ट्रवाद का अनुभव किया गया, जिसने कम्युनिस्ट क्रांति का डर पैदा किया तथा कुछ देशों के मध्यम वर्ग की आबादी को चरम अधिकारों की मांग की ओर बढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया। इसने फासीवादी आंदोलनों के प्रति आकर्षण भी पैदा किया।
- राष्ट्र संघ का गठन: राष्ट्र संघ प्रथम विश्व युद्ध के बाद विकसित एक अंतर्राष्ट्रीय राजनयिक समूह था, जिसका गठन देशों के बीच विवादों को सुलझाने के लिये किया गया।
WW I और भारत
भारत के लिये प्रथम विश्वयुद्ध का महत्त्व
- चूँकि इस युद्ध में ब्रिटेन भी शामिल था और उन दिनों भारत पर ब्रिटेन का शासन था, अतः इस कारण हमारे सैनिकों को इस युद्ध में शामिल होना पड़ा।
- इसके अतिरिक्त उस समय भारतीय राष्ट्रवाद के प्रभुत्व का दौर था, राष्ट्रवादी यह मानते थे कि युद्ध में ब्रिटेन को सहयोग देने के परिणामस्वरूप अंग्रेजों द्वारा भारतीय निवासियों के प्रति उदारता बरती जाएगी और उन्हें अधिक संवैधानिक अधिकार प्राप्त होंगे।
- इस युद्ध के बाद वापस लौटे सैनिकों ने जनता का मनोबल बढ़ाया।
- दरअसल, भारत ने लोकतंत्र की प्राप्ति के वादे के तहत इस विश्व युद्ध में ब्रिटेन का समर्थन किया था लेकिन युद्ध के तुरंत बाद अंग्रेज़ों ने रौलेट एक्ट पारित कर दिया। इसके परिणामस्वरूप भारतीयों में ब्रिटिश हुकूमत के प्रति असंतोष का भाव जागा और उनमें राष्ट्रीय चेतना का उदय हुआ जिसके चलते जल्द ही असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई।
- इस युद्ध के बाद यूएसएसआर के गठन के साथ ही भारत में भी साम्यवाद का प्रसार (सीपीआई के गठन) हुआ और परिणामतः स्वतंत्रता संग्राम पर समाजवादी प्रभाव देखने को मिला।
प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने का कारण
- भारतीय सैनिकों ने युद्ध के मैदान में बहादुरी के साथ लड़कर अपने कबीले या जाति को सम्मान दिलाने के कार्य को अपने कर्तव्य के रूप में देखा।
- एक भारतीय पैदल सैनिक का मासिक वेतन उस समय महज़ 11 रुपए था, लेकिन युद्ध में भाग लेने से अर्जित अतिरिक्त आय किसान परिवार के लिये एक अच्छा विकल्प थी, इसलिये युद्ध में शामिल होने का एक उद्देश्य धन की प्राप्ति को माना जा सकता है।
- अक्सर विभिन्न पत्रों में उल्लेख मिलता है कि भारतीय सैनिकों ने सम्राट जॉर्ज पंचम के प्रति व्यक्तिगत कर्त्तव्य की भावना से प्रेरित होकर इस युद्ध में हिस्सा लिया था।
- गौरतलब है कि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन और देश का सामाजिक-आर्थिक विकास एक-दूसरे से अलग नहीं है बल्कि यह सह-संबंधित है। प्रथम विश्व युद्ध ने भारत को वैश्विक घटनाओं और इसके विभिन्न प्रभावों से जोड़ने का कार्य किया। इसके विभिन्न प्रभाव निम्नानुसार हैं -
राजनीतिक प्रभाव
- युद्ध की समाप्ति के बाद भारत में पंजाबी सैनिकों की वापसी ने उस प्रांत में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ राजनीतिक गतिविधियों को भी उत्तेजित किया जिसने आगे चलकर व्यापक विरोध प्रदर्शनों का रूप ले लिया। उल्लेखनीय है कि युद्ध के बाद पंजाब में राष्ट्रवाद का बड़े पैमाने पर प्रसार हेतु सैनिकों का एक बड़ा भाग सक्रिय हो गया।
- जब 1919 का मोंटग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार 'गृह शासन की अपेक्षाओं को पूरा करने में असफल रहा तो भारत में राष्ट्रवाद और सामूहिक नागरिक अवज्ञा का उदय हुआ।
- युद्ध हेतु सैनिकों की ज़बरन भर्ती से उत्पन्न आक्रोश ने राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने की पृष्ठभूमि तैयार की।
सामाजिक प्रभाव
- युद्ध के तमाम नकारात्मक प्रभावों के वाबजूद वर्ष 1911 और 1921 के बीच भर्ती हुए सैनिक समुदायों की साक्षरता दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। युद्ध के मैदान में पुरुषों की उपयोगिता की धारणा का उन दिनों महत्त्व होने के कारण सैनिकों ने अपने विदेशी अभियानों हेतु पढ़ना-लिखना सीखा।
- युद्ध में भाग लेने वाले विशेष समुदायों का सम्मान समाज में बढ़ गया।
- इसके अतिरिक्त गैर-लड़ाकों की भी बड़ी संख्या में भारत से भर्ती की गई, जैसे कि नर्स, डॉक्टर इत्यादि। अतः इस युद्ध के दौरान महिलाओं के कार्य-क्षेत्र का भी विस्तार हुआ और उन्हें सामाजिक महत्त्व भी प्राप्त हुआ।
- हालाँकि भारतीय समाज को ऐसी परिस्थितियों में आवश्यक सेवाओं से वंचित कर दिया गया जहाँ पहले से ही एस प्रकार की सेवाओं/कौशल (नर्स, डॉक्टर) का अभाव था।
आर्थिक प्रभाव
- ब्रिटेन में भारतीय सामानों की मांग में तेज़ी से वृद्धि हुई क्योंकि ब्रिटेन में उत्पादन क्षमता पर युद्ध के कारण बुरा प्रभाव पड़ा था।
- हालाँकि युद्ध के कारण शिपिंग लेन में व्यवधान उत्पन्न हुआ लेकिन इसका यह अर्थ था कि भारतीय उद्योगों को ब्रिटेन और जर्मनी से पूर्व में आयात किये गए इनपुट की कमी की वजह से असुविधा का सामना करना पड़ा था। अतः अतिरिक्त मांग के साथ-साथ आपूर्ति की बाधाएँ भी मौजूद थीं।
- युद्ध का एक और परिणाम मुद्रास्फीति के रूप में सामने आया। वर्ष 1914 के बाद छह वर्षों में औद्योगिक कीमतें लगभग दोगुनी हो गईं और तेज़ी से बढ़ती कीमतों ने भारतीय उद्योगों को लाभ पहुँचाया।
- कृषि उत्पादों की कीमत औद्योगिक कीमतों की तुलना में धीमी गति से बढ़ी। अगले कुछ दशकों में विशेष रूप से महामंदी (Great Depression) के दौरान वैश्विक वस्तुओं की कीमतों में गिरावट की प्रवृत्ति जारी रही।
- खाद्य आपूर्ति, विशेष रूप से अनाज की मांग में वृद्धि से खाद्य मुद्रास्फीति में भी भारी वृद्धि हुई। यूरोपीय बाज़ार को नुकसान के कारण जूट जैसे नकदी फसलों के निर्यात को भी भारी नुकसान पहुँचा।
- उल्लेखनीय है कि इस बीच सैनिकों की मांग में वृद्धि के चलते भारत में जूट उत्पादन में संलग्न मज़दूरों की संख्या में कमी हुई और बंगाल के जूट मिलों के उत्पादन को भी हानि पहुँची जिसके लिये मुआवज़ा दिया गया परिणामतः आय असमानता में वृद्धि हुई।
- वहीं, कपास जैसे घरेलू विनिर्माण क्षेत्रों में ब्रिटिश उत्पादों में आई गिरावट से लाभ भी हुआ जो कि युद्ध पूर्व बाज़ार पर हावी था।
- ब्रिटेन में ब्रिटिश निवेश को पुनः शुरू किया गया, जिससे भारतीय पूंजी के लिये अवसर सृजित हुए।
हालाँकि यह "सभी युद्धों को समाप्त करने के लिये एक युद्ध" के विचार के विपरीत निकला। वर्सेटाइल की संधि के माध्यम से जर्मनी की आर्थिक बर्बादी और राजनीतिक अपमान को सुनिश्चित किया गया जो कि द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में परिणत हुआ।
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