पानी में ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग करता है - paanee mein bleeching paudar ka upayog karata hai

  • होम
  • वीडियो
  • सर्च
  • वेब स्टोरीज
  • ई-पेपर

  • होम
  • वीडियो
  • सर्च
  • वेब स्टोरीज
  • ई-पेपर

  • Hindi News
  • National
  • Jagdalpur News Chhattisgarh News Bleaching Powder Mixed With Water

अंदाज से ब्लीचिंग पाउडर मिलाकर पानी पिला रहा निगम

नगर निगम शहर की 1 लाख से ज्यादा आबादी को फिल्टर प्लांट से बिना ट्रीटमेंट किया पानी पिला रहा है। इतना ही नहीं पानी साफ करने के लिए ब्लीचिंग पाउडर के मानमाने इस्तेमाल से शरीर को नुकसान होने की आशंका विशेषज्ञ जता रहे हैं। इतना ही नहीं यदि कम मात्रा में क्लोरीन मिलाया गया तो इससे बैक्टीरिया पूरी तरह नष्ट नहीं हो पाते हैं और उपयोग करने वाले पीलिया और टाइफाइड जैसी बीमारियों से पीड़ित हो जाते हैं।

बिना ट्रीटमेंट के ही पानी सप्लाई की शिकायत पर जब भास्कर की टीम फिल्टर प्लांट पहुंची तो वहां तैनात कर्मचारियों ने बताया कि निगम के पास पिछले सात दिनों से लिक्विड क्लोरीन ही नहीं है। जिसके चलते पावर हाउस और नयामुंडा फिल्टर प्लांट से सप्लाई होने वाले पानी में क्लोरीन नहीं मिलाया जा रहा है।

कर्मचारियों के मुताबिक पानी साफ करने के लिए ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन इससे पानी में मौजूद बैक्टीरिया उतनी मात्रा में नहीं मरते है जितना क्लोरीन के छिड़काव नष्ट होते हैं। लिक्विड क्लोरीन नहीं होने से मजबूरी में ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग किया जा रहा है । इधर निगम के ईई एनएन उपाध्याय ने कहा कि निगम को लिक्विड क्लोरीन का छिड़काव करने वाली कंपनी का भुगतान बाकी है। जिसके चलते वह सप्लाई नहीं कर रहा है। पानी में बैक्टीरिया को नष्ट करने के लिए विकल्प के तौर पर इन दिनों एलम के साथ ही ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग किया जा रहा है। जो काम क्लोरीन करता है वही काम ब्लीचिंग पाउडर भी करता है। जिसके चलते लिक्विड क्लोरीन को मंगाने पर विशेष जोर नहीं दिया जा रहा है।

किडनी व पेट की बीमारी : पीएचई विभाग के सेवानिवृत्त केमिस्ट दिनेश रायकवार ने कहा कि बैक्टीरियायुक्त पानी पीने से लोगों को पेट की बीमारियां, पीलिया, दस्त सहित पेट संबंधी रोग हो सकते हैं।

फिल्टर प्लांट में लैब है न टेक्नीशियन, जांच भी हुई बंद
शहर के फिल्टर प्लांट में पानी की जांच के लिए न तो लेबोरेटरी है और न ही लेब टेक्नीशियन। वहीं पाइप लाइन के जरिये घरों तक पहुंचने वाले पानी की जांच भी नहीं हो पाती। नियमानुसार फिल्टर प्लांट से सप्लाई होने वाले पानी की जांच हर दिन होना चाहिए। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की जल परीक्षण प्रयोगशाला में पिछले 15 दिनों से निगम के किसी भी कर्मचारियों द्वारा पानी जांच कराने संबंधी कोई रिकाॅर्ड ही नहीं है। कर्मचारियों के मुताबिक अब निगम की ओर से जांच के लिए कोई नहीं आया है।

लिक्विड क्लोरीन पर हर साल खर्च होता है 20 लाख
नगर निगम शहरवासियों को इंद्रावती नदी से पानी लाकर टंकियों में जमा किया जाता है। यहां एलम और ब्लीचिंग पाउडर मिलाया जाता है। इसके बाद पानी को को फिल्टर कर ओवरहेड टंकियों के माध्यम से घरों में सप्लाई की जाती है। शहर में हर रोज 14 लाख लीटर पानी की प्रतिदिन सप्लाई की जाती है। निगम हर साल लिक्विड क्लोरीन पर हर साल 15 लाख खर्च करता है ।

80 फीसदी बैक्टीरिया को नष्ट करता है ब्लीचिंग पाउडर

डॉ संजय बसाक का कहना है कि बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए पानी में क्लोरिन मिलाया जाता है। क्लोरीन पानी के कोलीफार्म बैक्टीरिया को भी नष्ट करता है। इससे 80 फीसदी तक पानी साफ हो जाता है । एलम और ब्लीचिंग पाउडर की मात्रा पानी में ज्यादा हो जाए तो आंत, किडनी, लीवर और फेफड़े के लिए हानिकारक है।

कोलकाता: आमतौर पर ब्लीचिंग पाउडर का इस्तेमाल पानी शुद्धीकरण के लिए किया जाता है. इससे क्लोरीन की तीव्र गंध निकलती है. क्लोरोफॉर्म एवं क्लोरीन गैस बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है. लेकिन आश्चर्य की बात है कि पश्चिम बंगाल में इसका इस्तेमाल मच्छरों को मारने के लिए किया जाता है.

विभिन्न जगह सड़क किनारे एवं साफ सफाई के दौरान इसका छिड़काव किया जाता है. लेकिन चिकित्सक का कहना है कि ब्लीचिंग पाउडर के छिड़काव से मच्छर कभी नहीं मरते. लोगों की आंखों में धूल झोकने के लिये इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके छिड़काव से मच्छर भले ना मरे, लेकिन लोग सांस संबंधित बीमारियों ने शिकार हो सकते हैं.

स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसीन के डॉ निमाई भट्टाचार्य ने बताया कि ब्लीचिंग पाउडर के छिड़काव से मच्छरों को मारना असंभव है. इसके अत्यधिक प्रयोग से लोगों‍ को समस्या हो सकती है. इससे एलर्जी एवं निमोनिया हो सकती है. पहले ही सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों को क्रोनिक सीओपीडी की समस्या हो सकती है. हवा के जरिये इसके नाक में पहुंचने से नाक में जलन भी हो सकती है.

मारने के लिए रासायनिक तेल व हर्बल धुआं का छिड़काव

ब्लीचिंग पाउडर का मच्छरों पर कोई असर नहीं पड़ता है. इसलिए कोलकाता नगर निगम द्वारा अब इसका छिड़काव नहीं‍ किया जाता है. मच्छर मारने के लिए रासायनिक तेल एवं कमान से हर्बल धुआं छोड़ा जाता है. टेमीफोज नामक तेल का प्रयोग किया जाता है. इस तेल को विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन के अनुसार तैयार किया जाता है. इस तेल का छिड़काव लार्वा मारने के लिए पानी एवं नाला में किया जाता है. चंद्र मल्लिक नामक फूल से हर्बल धुआं तैयार किया जाता है.

देवाशीष विश्वास, कीट विशेषज्ञ (कोलकाता नगर निगम)

ब्लीचिंग पाउडर पानी में डालने से क्या होता है?

ब्लीचिंग पाउडर या कैल्शियम हाइपोक्लोराइट का उपयोग पानी में अशुद्धियों के विरंजन कारक के रूप में किया जाता है। जब इसमें पानी मिलाया जाता है, तो यह क्लोरिक एसिड (HOCl) और हाइपोक्लोराइट आयन (OCl) के साथ क्लोराइड गैस बनाती है। क्लोरीन कीटाणुनाशक के रूप में कार्य करती है।

पीने के पानी में कितना ब्लीचिंग पाउडर इस्तेमाल होता है?

इसी प्रकार हम एक लीटर पानी में सिर्फ 20 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर ही घोल सकते है ।

पानी में ब्लीचिंग पाउडर कैसे डालें?

यह देखा गया है कि कुंए के 1 ली. पानी को रोगाणु रहित करने के लिए 4 mg ब्लीचिंग पाउडर पर्याप्त होता है जो कि समस्त सूक्ष्म जीवों को नष्ट करता है तथा 0.2-0.5 अवशेष क्लोरीन छोड़ता है। 25% उपस्थित क्लोरीन वाले ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग करना चाहिए।

कितना 1000 लीटर पानी में ब्लीचिंग पाउडर?

अगरअगर आपका टैंक 1000 लीटर का है तो आपको 4 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर लगेगा. ब्लीचिंग पाउडर में क्लोरीन होता है जो पानी में पनपने वाले बैक्टीरिया वायरस को खत्म कर देता है।

Toplist

नवीनतम लेख

टैग