प्लेटलेट्स ज्यादा हो तो क्या होता है? - pletalets jyaada ho to kya hota hai?

हाइलाइट्स

अधिक प्‍लेटलेट्स लेवल से कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं. प्रीमेच्‍योर डिलीवरी या मिसकैरिज की समस्‍या भी हो सकती है.प्‍लेटलेट्स बढ़ने से कैंसर होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

Problem May Occur Due To Platelet count- शरीर को स्‍वस्‍थ रखने में प्‍लेटलेट्स महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. प्‍लेटलेट्स का निर्माण बोन मैरो में होता है, जो बॉडी की बोंस के भीतर एक स्‍पंजी टिशू होता है. प्‍लेटलेट्स छोटे ब्‍लड सेल्‍स होते हैं जो ब्‍लीडिंग रोकने के लिए क्‍लॉट बनाने में मदद करते हैं. जब ब्‍लड में जरूरत से ज्‍यादा प्‍लेटलेट्स हो जाते हैं तब इसे थ्रोम्‍बोसाइटोसिस या हाई प्‍लेटलेट काउंट कहते हैं. एब्‍नॉर्मल ब्‍लड टेस्‍ट रिजल्‍ट की तरह हाई प्‍लेटलेट लेवल को लेकर भी चिंता होना स्‍वाभाविक है. लेकिन हाई प्‍लेटलेट काउंट हमेशा चिंताजनक नहीं होता है लेकिन इसकी अनदेखी करना भी ठीक नहीं है. हाई प्‍लेटलेट काउंट से कई बार गंभीर बीमारी होने का भी खतरा होता है. प्‍लेटलेट काउंट बढ़ने का एक कारण अत्‍यधिक तनाव भी हो सकता है. प्‍लेटलेट्स की ब्‍लड में सामान्‍य संख्‍या 150,000 से 450,000 प्रति माइक्रोलीटर है. 450,000 से अधिक प्‍लेटलेट लेवल को थ्रोम्‍बोसाइटोसिस के रूप में देखा जाता है.

ब्‍लड क्‍लॉट की समस्‍या
वेरीवेल हेल्‍थ के मुताबिक जिन लोगों में प्‍लेटलेट्स काउंट हाई लेवल पर होता है अक्‍सर उन्‍हें किसी तरह की परेशानी नहीं होती है. लेकिन हाई प्‍लेटलेट्स काउंट वाले कुछ लोगों को ब्‍लड क्‍लॉट की समस्‍या हो सकती है. कई बार ब्‍लड वेसल्‍स में ब्‍लड क्‍लॉट्स बन सकते हैं. सामान्‍य तौर पर ये ब्‍लड क्‍लॉट्स हाथ, पैर और मस्तिष्‍क में बनते हैं. ये क्‍लॉट प्रॉपर ब्‍लड फ्लो में रुकावट पैदा करते हैं. इस वजह से सिर दर्द, चक्‍कर आना, स्‍ट्रॉक और नसों में दर्द या सुन्‍नपन की समस्‍या हो सकती है.

हाई ब्‍लड प्रेशर
बहुत अधिक या बहुत कम प्‍लेटलेट्स लेवल से कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं, इनमें हाई ब्‍लड प्रेशर, स्‍लो फेटल ग्रोथ, प्रीमेच्‍योर डिलीवरी, वॉम्‍ब से प्‍लेसेंटा का सेप्रेशन, मिसकैरिज जैसी दिक्‍कत का भी सामना करना पड़ता है.

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कैंसर होने की खतरा
हाई प्‍लेटलेट्स की वजह से कई तरह के कैंसर होने की खतरा भी बढ़ जाता है. थ्रोम्‍बोसाइटोसिस के शुरुआती दौर में ब्‍लड सेल कैंसर होने का खतरा होता है, जिसे एक्‍यूट ल्‍यूकेमिया कहते हैं. हालांकि इस कैंसर से पीडित लोगों की संख्‍या काफी कम है. प्‍लेटलेट्स बढ़ने की वजह से सामान्‍य तौर पर ओवेरियन कैंसर, लंग कैंसर और ब्रेस्‍ट कैंसर के मामले सबसे ज्‍यादा देखे गए हैं. प्‍लेटलेट्स की अत्‍यधिक संख्‍या की वजह से गैस्‍ट्रोइंटेस्‍टाइनल कैंसर भी हो सकता है.

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FIRST PUBLISHED : October 10, 2022, 19:10 IST

साल का फिर वही समय चल रहा है, जब डेंगू , मलेरिया, टाइफाइड जैसे रोग शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देते हैं। इनका असर रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या पर भी पड़ता है। एक सीमा से अधिक इनकी कमी होने पर प्लेटलेट्स चढ़ाने तक की नौबत आ जाती है,  पर विशेषज्ञों की मानें तो इस संबंध में कई मिथक भी काम कर रहे हैं, बता रहे हैं सनी सिंह 

मौसम बदलने के साथ वायरल के मामले तेजी से सामने आने लगते हैं, जिससे बचने के लिए  विशेषज्ञ विटामिन-सी युक्त चीजों के सेवन की सलाह देते हैं। पर बीते पांच सालों में उष्णकटिबंधीय देशों में मच्छरजनित बीमारियों का हमला बढ़ा है। यूं भी मौसम में अधिक नमी का होना मच्छरों के प्रजजन के अनुकूल होता है। मच्छरजनित बुखार की स्थिति में मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और शरीर में प्लेटलेट्स कम होने लगते हैं। डॉक्टर भी उपचार करते समय इन दोनों बिंदुओं का खास ध्यान रखते हैं व मौसम बदलने के साथ अधिक पेय पदार्थ पीने व खान-पान को दुरुस्त रखने की सलाह देते हैं। ऐसा करने से शुरु आती स्तर पर ही प्लेटलेट्स को नियंत्रित रखने में मदद मिल जाती है।

शरीर में प्लेटलेट्स की भूमिका
एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में 5 से 6 लीटर खून होता है। खून में तरल पदार्थ, लाल व सफेद रक्त कोशिकाओं के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनमें से एक प्लेटलेट्स भी हैं। हमारे खून का एक बड़ा हिस्सा इनका होता है। इनका आकार  0.002 माइक्रोमीटर से 0.004 माइक्रोमीटर तक होता है। माइक्रोस्कोप से देखने पर यह अंडाकार आकृति के दिखाई देते हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति के एक घन मिलीलीटर खून में प्लेटलेट्स की संख्या डेढ़ लाख से चार लाख तक होती है।

प्लेटलेट्स का मुख्य कार्य शरीर में रक्तस्राव होने से रोकना है। प्लेटलेट्स कॉलेजन नामक द्रव से मिल कर वहां एक अस्थाई दीवार का निर्माण करते हैं और रक्त वाहिका की अधिक क्षति होने से रोकते हैं। प्लेटलेट्स अस्थि-मज्जा में मौजूद कोशिकाओं के काफी छोटे कण होते हैं। यह थ्रोम्बोपीटिन हार्मोन के कारण विभाजित होकर खून में मिल जाते हैं। 8 से 10 दिन में संचारित होकर खुद ही नष्ट भी हो जाते हैं। शरीर में थ्रोम्बोपीटिन का काम प्लेटलेट्स की संख्या सामान्य बनाए रखना होता है।

घटना-बढ़ना दोनों नहीं सही
शरीर में प्लेटलेट्स की मात्रा अधिक होने की स्थिति को थ्रोम्बोसाइटोसिस कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं। अस्थि-मज्जा में असामान्य कोशिकाओं के होने के कारण जब प्लेटलेट्स बढ़ने लगते हैं तो उसे प्राइमरी थ्रोम्बोसाइटोसिस कहते हैं। वहीं जब किसी बीमारी जैसे एनीमिया, कैंसर, सूजन के चलते या किसी अन्य प्रकार के संक्रमण के कारण प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ती है तो उसे सेकेंडरी थ्रोम्बोसाइटोसिस कहते हैं। शरीर में जरूरत से ज्यादा प्लेटलेट्स होना शरीर के लिए कई गंभीर खतरे उत्पन्न करता है। इससे खून का थक्का जमना शुरू हो जाता है, जिससे दिल के दौरे, किडनी फेल व लकवा आदि की आशंका बढ़ जाती है।

जब शरीर में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है तो उस स्थिति को थ्रोम्बोसाइटोपेनिया कहते हैं। अगर इनकी संख्या 30 हजार से कम हो जाए तो शरीर में रक्त स्राव होने की आशंका बढ़ जाती है। बहते-बहते यह खून नाक, कान, मल इत्यादि से बाहर आने लगता है। यदि यह स्राव अंदर ही होता रहता है तो शरीर के विभिन्न अंगों के फेल होने की आशंका भी बढ़ जाती है। कुछ खास तरह की दवाओं, आनुवंशिक रोगों, कुछ खास तरह के कैंसर, कीमोथेरेपी ट्रीटमेंट, अधिक एल्कोहल के सेवन व कुछ खास तरह के बुखार जैसे डेंगू, मलेरिया व चिकनगुनिया के होने पर भी ब्लड प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है। डॉक्टरों के अनुसार जब प्लेटलेट्स की संख्या 10 हजार से कम रह जाती है, तब इन्हें चढ़ाए जाने की जरूरत होती है।

डेंगू में क्यों कम हो जाते हैं प्लेटलेट्स?
मादा एडीस मच्छर मांसपेशियों में न काट कर रक्तवाहिनी नसों को निशाना बनाता है, जिससे रक्त में वायरस का संक्रमण तेजी से फैलता है। खून में संक्रमण बढ़ने के बाद खून से पानी अलग होने लगता है और ब्लड में छोटे कणों के रूप में मौजूद प्लेटलेट्स की संख्या के कम होने के कारण खून का थक्का नहीं जम पाता। आरबीसी व प्लाज्मा की अपेक्षा प्लेटलेट्स का जीवनचक्र केवल 7 से 8 दिन का होता है, इसलिए वायरस प्लेटलेट्स को सबसे पहले प्रभावित करता है। खून में यदि आयरन या हीमोग्लोबिन की कमी है तो प्लेटलेट्स कम होने की आशंका 80 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, इसलिए मौसम बदलने के साथ ही खान-पान में हरी सब्जियां, आंवला, चीकू, काजू, ब्रोकली और विटामिन के को शामिल करना चाहिए। इसके अलावा विटामिन सी और कैल्शियमयुक्त चीजें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर होने से रोकते हैं।

पपीते के पत्तों का रस भी है लाभकारी
मूलचंद मेडिसिटी में आयुर्वेद कंसल्टेंट डॉ. शशिबाला के अनुसार आयुर्वेद कषाय रस प्रधान द्रव्य जैसे गिलोय, सुदर्शन चूर्ण एवं पपीते के पत्तों जैसी औषधियों को प्लेटलेट्स बढ़ाने में लाभकारी मानता है। अक्सर डेंगू, मलेरिया बुखार के दौरान रोगी की प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है, जिसे बढ़ाने के लिए इन चीजों का सेवन करने की सलाह दी जाती है। हमारे शरीर की सात धातुओं में से प्रथम धातु रस की कमी होने पर प्लेटलेट्स की संख्या कम होने लगती है। ऐसी स्थिति में रोगी को अधिक से अधिक द्रव्य पदार्थ लेने चाहिए।  किसी भी प्रकार के द्रव्य पदार्थ जैसे बकरी का दूध व नारियल पानी का सेवन अच्छा रहता है। इससे शरीर में द्रव्य की आपूर्ति होती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता तो बढ़ती है, पर सीधे तौर पर प्लेटलेट्स बढ़ाने में इनका योगदान नहीं होता। बकरी का दूध आसानी से पचता है, इसलिए भी इसे लेने की सलाह दी जाती है।

ऐसे लें औषधि
- दो चुटकी गिलोय के सत्व को एक चम्मच शहद के साथ दिन में दो बार लें या फिर गिलोय की डंडी को रात भर पानी में भिगो कर सुबह उसका छना हुआ पानी पी लें। 
- सुदर्शन चूर्ण को हर रोज दिन में दो बार आधा-आधा चम्मच पानी के साथ लें।
- पानी की कमी होने व रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर रोगी को  पपीते के पत्तों का रस पीने को दें।

प्लेटलेट्स देने से डरे नहीं
जैसे-जैसे डेंगू के मामले बढ़ते हैं, प्लेटलेट्स की मांग बढ़ने लगती है। हालांकि प्लेटलेट्स को लेकर ज्यादा मारा-मारी इसलिए भी रहती है, क्योंकि लोगों को इस संबंध में अधूरी जानकारी है। आमतौर पर लोग रक्त देने से परहेज नहीं करते, पर प्लेटलेट्स देने के नाम पर पीछे हट जाते हैं। प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन की स्थिति में स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में से मशीन के जरिए प्लेटलेट्स अलग किए जाते हैं और रक्त को वापस स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में डाल दिया जाता है। आजकल अस्पतालों में मौजूद इम्यूनोसेपरेशन मशीनें तकनीक के मामले में न सिर्फ उन्नत हैं, बल्कि यह प्रक्रिया भी पूरी तरह सुरक्षित है।

पर मशीन से खून के होकर गुजरने के बाद वापस शरीर में जाने के कारण कुछ लोग डरते हैं, जो कि सही नहीं है। इसके लिए दो तरीके अपनाए जाते हैं..
होल ब्लड या रैंडम डोनर:  इसमें कई मरीजों का होल ब्लड लिया जाता है, जिसमें बाद में खून से प्लेटलेट्स अलग करके स्टोर कर लिए जाते हैं। इस तरह से लिए गए एक यूनिट खून से 5000 प्लेटलेट्स मिलते हैं।
सिंगल डोनर प्लेटनेट्स: इसे जंबो पैक भी कहा जाता है। इसमें रक्तदाता से होल ब्लड न लेकर केवल खून से प्लेटलेट्स लिए जाते हैं, जबकि बाकी खून शरीर में दोबारा चला जाता है। दिल्ली के 15 प्रमुख अस्पतालों में एफेरेसिस मशीन के जरिए प्लेटलेट्स लेने का काम किया जा रहा है।

इनका रखें ध्यान
- 24 से 48 घंटे के बीच रक्त में प्लेटलेट्स दोबारा बन जाते हैं।
- प्लेटलेट्स के लिए ब्लड मिलाने की जरूरत नहीं होती, हालांकि ओ पॉजिटिव ब्लडग्रुप के लोग प्लेटलेट्स दान नहीं कर सकते।
- विटामिन के और कैल्शियम शरीर में प्लेटलेट्स का तेजी से निर्माण करने में मदद करते हैं।
- रक्त में प्लेटलेट्स की कमी रक्तस्त्राव का कारण बनती है तो प्लेटलेट्स की अधिकता से थ्रोम्बोसाइटोसिस हो सकता है, जो रक्त को गाढ़ा बना देता है।

हमारे विशेषज्ञ
डॉ. श्रीकांत शर्मा, कंसल्टेंट, इंटरनल मेडिसिन, मूलचंद मेडसिटी
डॉ. किरण दीवान, डायटीशियन, लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल
डॉ. अमिता सिंह, माइक्रोबायोलॉजिस्ट, डीपीएमआई
डॉ. एनके भाटिया , जनजागृति ब्लड संस्थान

प्लेटलेट्स बढ़ने से क्या नुकसान है?

प्‍लेटलेट्स बढ़ने की वजह से सामान्‍य तौर पर ओवेरियन कैंसर, लंग कैंसर और ब्रेस्‍ट कैंसर के मामले सबसे ज्‍यादा देखे गए हैं. प्‍लेटलेट्स की अत्‍यधिक संख्‍या की वजह से गैस्‍ट्रोइंटेस्‍टाइनल कैंसर भी हो सकता है.

प्लेटलेट्स अधिक होने पर क्या करें?

प्लेटलेट्स बढ़ाने के उपाय- फोलेट (Folate) लें फोलेट एक बी विटामिन है, जो खून की कोशिकाओं के लिए जरूरी है। यह खाने-पीने की कई चीजों में पाया जाता है। इसे फोलिक एसिड के रूप में भी जाना जाता है। इसके लिए आप मूंगफली, राजमा, संतरा, संतरे का रस आदि चीजों का सेवन बढ़ा सकते हैं।

प्लेटलेट्स का खतरनाक स्तर क्या है?

वेरीवेलहेल्थ के मुताबिक एक सामान्य व्यक्ति का प्लेटलेट्स काउंट खून में 150,000 लाख से 450,000 प्रति माइक्रो-लीटर होना चाहिए. खून में 150,000 प्लेटलेट्स प्रति माइक्रोलीटर से कम है तो यह माइल्ड ब्लीडिंग रिस्क है लेकिन प्लेटलेट्स अगर 20 हजार से नीचे हैं तो गंभीर खतरा है.

प्लेट ज्यादा होने से क्या होता है?

शरीर में जरूरत से ज्यादा प्लेटलेट्स होना शरीर के लिए कई गंभीर खतरे उत्पन्न करता है। इससे खून का थक्का जमना शुरू हो जाता है, जिससे दिल के दौरे, किडनी फेल व लकवा आदि की आशंका बढ़ जाती है। जब शरीर में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है तो उस स्थिति को थ्रोम्बोसाइटोपेनिया कहते हैं।

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