Deerghkalin Vitt Ke Strot
GkExams on 13-08-2020
वित्त के स्थायी या दीर्घकालीन स्रोत ( Fixed or long term sources )
1. साधारण अंश या समता अंश ( Ordinary fraction )- समता अंश वे हैं जिनके धारकों को कंपनी के संचालन की सामान्य जोखिम को उठाना होता है। इन अंशों के धारकों कंपनी के प्रबंध एवं संचालन को नियमित एवं नियंत्रित करने का अधिकार होता है।
2. पूर्वाधिकार अंश ( Preference share )- उन अंशों से हैं, जिन पर अंश धारियों को एक निश्चित दर से प्रतिवर्ष लाभांश पाने का अधिकार होता है तथा समापन के समय पूंजी की वापसी का पूर्व अधिकार होता है।
3. ऋण पत्र ( Loan letter )- ऋण पत्र कंपनी के सार्वमुद्रा के अधीन जारी एक ऐसा प्रलेख है जो कंपनी पर ऋण को प्रमाणित करता है तथा ऋण की प्रमुख शर्तों को प्रकट करता है।
4. अर्जित आय का पुनः निवेश ( Re-invested income )- कम्पनी या संस्था लाभ का एक भाग भविष्य की आवश्यकता के लिए संचय करके रख लेती है। संचित लाभ को कंपनी अपनी पूंजी के रूप में प्रयोग कर लेती है। उसे अर्जित आय का पुनः निवेश कहते हैं।
5. विशिष्ट वित्तीय संस्थाएं ( Specific financial institutions )– राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर अनेक वित्तीय संस्थाएं हैं जो व्यवसायिक संस्थाओं को अनेक प्रकार की वित्तीय साधन उपलब्ध करा रही है। जैसे भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक आदि।
6. लीज पट्टे पर वित्त- इसमें वित्त नकद रूप में प्राप्त, नहीं होता है बल्कि मशीन उपकरण या अन्य पूंजी संपत्ति के रूप में प्राप्त होता है।
7. अन्य स्रोत ( Other sources )
- विदेशों से ऋण
- विदेशी प्रत्यक्ष निवेश
- विदेशी वित्तीय संस्थाएं
- निवेश ट्रस्ट या प्रन्यास
- सहयोग निधियां
सम्बन्धित प्रश्न
Comments Mahfooj alam on 11-12-2021
Di Dil gallan mithiyan strotten ko samjhaie
अल्पकालीन on 15-07-2021
Alpha kalian strotten ka varnan kijiye
Jwala on 11-08-2020
Diyan gallan with ke strot kaun kaun se Hain koi do bataiye
Roshni karsh on 09-08-2020
dirgh calin vrit Ke srot kaun kaun se Hain
Pulas dewangan on 08-08-2020
दीर्घकालीन वित्त के स्रोत
Ranjeet sao on 01-08-2020
Deerghkalin vitt ke strot kon kon se hai
M.RIYAZ KHAN on 27-07-2020
दीर्घ कालीन वित्त ke स्त्रोत
Khileshwar chouhan on 23-07-2020
dirghkalin vitt ke srot
Rekha barod on 14-04-2019
भारत में बैंकों का बैंक है
औद्योगिक वित्त निगम की स्थापना सन 1948 में की गई । इसकी स्थापना प्रमुख उद्देश्य देश में उद्योगों को मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन साख उपलब्ध कराना था । इस निगम की प्रदत्त पूँजी 5 करोड़ ₹ थी । जिसे बढ़ाकर सन 1962 में 7 करोड़ ₹ कर दी गई । निगम द्वारा ऋणों के अतिरिक्त गारण्टी देने का कार्य भी सम्पन्न किया जाता है । औद्योगिक उपक्रमों द्वारा व्यापारिक बैंकों तथा राज्य सरकारी बैंकों से लिये गये ऋणों तथा भारत सरकार की पूर्वानुमति से विदेशी मुद्रा में लिये गये ऋणों की गारण्टी भी प्रदान की जाती है । निगम औद्योगिक संस्थाओं के अंशों में प्रत्यक्ष विनियोग भी करते हैं । यह निगम व्यापारिक बैंकों, भारतीय जीवन बीमा निगम, औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम आदि के सहयोग से भी कार्य संचालन करता है । निगम द्वारा स्थगित भुगतान की गारण्टी, विदेशी ऋणों की गारण्टी के साथ ही प्रवर्तन सम्बन्धी कार्य भी करता है ।
इसकी पूँजी संगृहीत करने के मुख्य स्रोतों में अंश पूँजी, ऋण-पत्र, भारतीय रिजर्व बैंक से ऋण, भारत सरकार से प्राप्त ऋण तथा अन्य विदेशी संस्थाओं से प्राप्त ऋण प्रमुख हैं । निगम की अधिकृत पूँजी 10 करोड़ ₹ निर्धारित की गई थी जिसमें 50 प्रतिशत प्रदत्त पूँजी निश्चित की गई । निगम की अधिकृत पूँजी को बढ़ाकर 50 करोड़ ₹ किया गया तथा इसी अनुरूप चुकता पूँजी भी बढ़कर 55 प्रतिशत हो गई । निगम के अंश मुख्य रूप से औद्योगिक विकास बैंकों, व्यापारिक बैंकों, भारतीय जीवन बीमा निगम तथा साधारण बीमा निगम एवं सहकारी बैंकों द्वारा क्रय किये जाते हैं ।
औद्योगिक वित्त निगम का संचालन 12 सदस्य वाले संचालक मण्डल द्वारा किया जाता है । निगम के अध्यक्ष का मनोयन भारत सरकार द्वारा किया जाता है । इसके अतिरिक्त केन्द्र सरकार दो संचालकों का मनोयन भी करती है । चार संचालक औद्योगिक विकास बैंक द्वारा मनोनीत किये जाते हैं । शेष सदस्य व्यापारिक बैंकों तथा बीमा निगमों द्वारा मनोनीत किये जाते हैं । वर्तमान में निगम का अध्यक्ष पूर्णकालिक एवं सवैतनिक होता है जो भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी होता है । निगम के क्षेत्रीय कार्यालयों, यथा - कोलकाता, पटना, भुवनेश्वर, अहमदाबाद, बंगलौर, भोपाल, चण्डीगढ़, जयपुर आदि शाखाओं में कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किये जाते हैं । प्रधान कार्यालय के अतिरिक्त निगम की कुल 17 शाखाएँ हैं जो निगम के कार्यों को सम्पन्न करती हैं । निगम द्वारा अपने ऋण सम्बन्धी कार्यों को सम्पन्न करने हेतु विभिन्न समितियाँ बनाई जाती हैं जो मुख्यतः रसायन, इंजीनियरिंग, वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग, होटल उद्योग आदि से सम्बन्धित होती हैं । निगम के दिन-प्रतिदिन के कार्यों के संचालन हेतु एक संचालक मण्डल कार्यरत है जिसमें अध्यक्ष के अतिरिक्त चार और सदस्य होते हैं ।
औद्योगिक वित्त निगम द्वारा मुख्यतः माल के निर्माण हेतु माल की फिनिशिंग तथा जहाजरानी हेतु, खनन कार्य हेतु, ऊर्जा निर्माण तथा होटल व्यवसाय हेतु ऋण प्रदान किया जाता है । निगम ऋण प्रदान करने के अतिरिक्त ऋणों की गारण्टी देने का कार्य भी सम्पन्न करता है । अंशों का अभिगोपन करना, अंश-पत्रों का क्रय करना, प्रत्यक्ष ऋण प्रदान करना, आदि निगम के मुख्य कार्य हैं ।
अल्पविकसित क्षेत्रों में सहायता ( Assistance in Under Developed Sector )
औद्योगिक वित्त निगम द्वारा गरीबी उन्मूलन एवं पिछड़े तथा अल्पविकसित क्षेत्रों में स्थापित उद्योगों के लिए विशेष सहायता की व्यवस्था की गई है जिसके प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं -
[ 1 ] पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित औद्योगिक इकाइयों को उनकी आवश्यकतानुरूप दीर्घ अवधि के लिए ऋण दिये जाने का प्रावधान ।
[ 2 ] पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित इकाइयों को निगम की सामान्य दरों का 50 प्रतिशत शुल्क ही प्रदान करने की छूट है ।
[ 3 ] पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित औद्योगिक इकाइयों को निगम द्वारा रियायती ब्याज दर पर ऋण प्रदान किये जाते हैं ।
[ 4 ] पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित औद्योगिक इकाइयों के अंशों के क्रय, निगम द्वारा प्राथमिकता से किया जाता है ।
[ 5 ] पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित औद्योगिक इकाइयों की ऋण वसूली विशेष परिस्थिति होने पर पाँच वर्ष तक के लिए स्थगित की जा सकती है ।
इस प्रकार औद्योगिक वित्त निगम द्वारा न केवल पूर्व में स्थापित औद्योगिक इकाइयों को ही सहायता प्रदान की जाती है वरन नव उद्यमियों को भी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है ।
प्रगति ( Progress ) :-औद्योगिक वित्त निगम भारतीय औद्योगिक विकास बैंक की एक सहायक संस्था है, जिसकी 50 प्रतिशत अंश पूँजी भारतीय औद्योगिक विकास बैंक के पास है तथा शेष 50 प्रतिशत व्यापारिक बैंक, जीवन बीमा निगम तथा सहकारी बैंकों के पास है । स्थापना के बाद ही यह बैंक उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर अग्रसर रहा है । वित्त निगम ने पिछड़े क्षेत्रों तथा उद्योगों में विविधीकरण को प्रोत्साहन देने हेतु आर्थिक सहायता प्रदान की है । निगम द्वारा वर्ष 1980-81 में 210 करोड़ ₹ के ऋण स्वीकृत किये गए तथा 110 करोड़ ₹ के ऋण आबंटित किये गये, जो बढ़कर 20 वर्षों के बाद 14,554 करोड़ ₹ के ऋण स्वीकृत किये गए । इसमें से 9,113 करोड़ ₹ की राशि ऋण के रूप में आबंटित की गई ।
ऋण आबंटन के अतिरिक्त वित्त निगम द्वारा विभिन्न औद्योगिक समस्याओं के निदान हेतु कार्यशालाओं तथा प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है । औद्योगिक वित्त निगम द्वारा प्रबन्ध विकास संस्थान की स्थापना भी की है, जो शोध एवं प्रशिक्षण का कार्य भी सम्पन्न करती है । निगम द्वारा विभिन्न राज्य-स्तरीय वित्तीय संस्थाओं को तकनीकी सहाय औद्योगिक विकास सम्बन्धी योजनाओं पर परामर्श आदि भी प्रदान किया जाता है । वित्त निगम ने नये उद्यमियों के लिए एक सूचना कोष भी स्थापित किया है जिसमें विभिन्न विषयों से सम्बन्धित जानकारी लघु-पुस्तिकाओं के माध्यम से प्रदान की जाती है ।