लेखक की झूठ की पोल कैसे खुली? - lekhak kee jhooth kee pol kaise khulee?

पाठ का सारांश-प्रस्तुत कहानी ‘साइकिल की सवारी’ में लेखक ने अपनी आपबीती घटनाओं का वर्णन किया है। लेखक जब अपने पुत्र को साइकिल चलाते देखता है तो उसके मन में हीनता का भाव जन्म लेता है कि हमारे भाग्य में दो विद्याएँ-साइकिल चलाना और हारमोनियम बजाना नहीं लिखा है। इसलिए लेखक ने साइकिल चलाना सीख लेने का निर्णय किया ।  सन् 1932 की बात है। लेखक के मन में ख्याल आया कि क्या हमी जमाने भर में फिसड्डी रह गए हैं कि साइकिल नहीं चला सकते। इस कारण उन्होंने निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो जाए, साइलिक चलाना सीखेंगे। दूसरे ही दिन लेखक ने अपने फटे-पुराने कपड़े की तलाश की और उन्हें श्रीमतीजी के सामने मरम्मती के लिए पटक दिया। पत्नी के पूछने पर लेखक ने बताया कि वह साइकिल चलाना सीखेंगे।, पत्नी ने कहा— “मुझे तो आशा नहीं कि आपसे यह बेल मत्थे चढ़ सके । खैर; यत्नकर देखिए लेखक ने कहा-साइकिल सीखते समय एकाध बार गिरना स्वाभाविक है. इस बुद्धिमान लोग पुराने कपड़ों से काम चलाते हैं, जो मूर्ख होते हैं, वही नए कपड़े पहनक साइकिल चलाना सीखते हैं । लेखक के इस युक्ति पर पत्नी ने कपड़ों की मरम्मत कर दी।
साइकिल चलाना सीखने की तैयारी शुरू हो गई। लेखक ने बाजार जाकर ‘जंबक’ के दो डब्बे खरीद लाए, ताकि चोट लगने पर उसी समय इलाज किया जा सके । अभ्यास करने के लिए खुला मैदान तलाशा गया। अब उस्ताद किसे बनाया जाए, लेखक इसी ऊहापोह में बैठा था कि तिवारी जी आ गए। लेखक को खिन्न देखकर तिवारीजी ने पूछा-अरे भई! क्या मामला है कि खिन्न हो ? …
लेखक ने कहा-ख्याल आया कि साइकिल की सवारी सीख लें । मगर कोई आदमी नजर नहीं आता, जो सिखाने में मदद करे । तिवारी जी ने विरोध जताते हुए कहा- ‘मेरी मानो तो रोग न पालो।’ इस आयु में साइकिल पर चढ़ोगे, तिवारीजी के इस उत्तर का प्रतिकार करते हुए लेखक ने कहा- ”भाई तिवारी, हम तो जरूर सीखेंगे। कोई आदमी बताओ!” आदमी तो ऐसा है एक, मगर फीस लेंकर सिखाएगा। फीस दोगे? लेखक ने बताया कि दस दिनों का बीस रुपये लेगा। यह सुनते ही लेखक के मन में विचार आया कि यदि ऐसी तीन-चार ट्यूशनें मिल जएँ तो महीने में दो-चार सौ रुपये की आय हो सकती है। लेखक मन ही मन खुश हो रहा था कि साइकिल चलाना आ जाए तो एक ट्रेनिंग स्कूल खोलकर तीन-चार सौ रुपये मासिक कमाया जा सकता है। Cycle Ki Sawari class 7 Saransh in Hindi
इस प्रकार उस्तादजी बुलाए गए। उन्हें फीस के.बीस रुपये दिए गए और अगले दिन से साइकिल सीखने की योजना बन गई। साइकिल सीखने की इस खुशी में लेखक को रात भर नींद नहीं आई। रात भर चौंकते रहे। सपने में देखा कि हम साइकिल से गिरकर जख्मी हो गए हैं। सबेरे मिस्त्री के यहाँ से साइकिल आई। पुराने कपड़े पहन लिए और जंबक का डिब्बा जेब में रखकर लारेंसबाग की ओर चल पड़े। लेकिन निकलते ही बिल्ली रास्ता काट गई और एक लड़के ने छींक दिया। लेखक इसे अपशकुन मानकर कुछ देर बाद भगवान का पावन नाम लेकर आगे बढ़ा । इस बार भी उसे लोगा का हसो का पात्र बनना पड़ा, क्योंकि पाजामा एवं अचकन उल्टे पहन रखा था। दूसरे दिन पाव पर साइकिल गिर जाने से जख्मी हो गया। लँगड़ाते हुए घर आया, लेकिन साहस एवं धैर्य से कष्ट सहन करते हुए साइकिल सीखना जारी रखा। आठ-नौ दिनों में साइकिल चलाना सीख गए, लेकिन अभी उस पर चढ़ना नहीं आता था। जब कोई सहारा देता तो उसे चलाने लग जाते. थे। इस समय उनके आनंद की कोई सीमा न होती। वे मनही-मन सोचते कि हमने मैदान मार लिया। दो-चार दिनों में मास्टर, फिर प्रोफेसर इसके बाद प्रिंसिपल बन जाएँगे। फिर ट्रेनिंग कॉलेज और तीन-चार सौ रुपये मासिक आय। . तिवारीजी देखेंगे और ईर्ष्या से जलेंगे।
अब लेखक मन-ही-मन काफी प्रसन्न होता था, लेकिन हाल यह था कि जब कोई दो सौ गज के फासले पर होता तो गला फाड़-फाड़कर चिल्लाना शुरू कर देता कि साहब जरा बाईं तरफ हट जाइए। कोई गाड़ी दिखाई पड़ती तो प्राण सूख जाते थे। एक दिन तिवारीजी को भी अल्टीमेटम दे दिया कि बाईं तरफ हट जाओ वरना साइकिल तुम्हारे पर चढ़ा देंगे। तिवारीजी ने रगइकिल से उतर जाने को कहा तो लेखक ने उत्तर दिया-अभी चलाना सीखा है, चढ़ना नहीं यह कहते हुए आगे बढ़ा कि सामने से एक ताँगा आते दिखाई दिया। एकाएक घोड़ा भड़क उठा और हम तथा हमारी साइकिल दोनों .. ताँगे के नीचे आ गए। होश आने पर देखा कि हमारी देह पर कितनी पट्टियाँ बँधी थीं। हमें होश में देखकर श्रीमतीजी ने कहा-अब क्या हाल है ? तब लेखक ने तिवारीजी पर दोष मढ़ने का प्रयास किया तो श्रीमतीजी ने मुस्कुराते हुए कहा—उस ताँगे पर बच्चों के साथ मैं ही तो सैर करने निकली थी कि सैर भी कर लेंगे और तुम्हें साइकिल चलाते देख भी आएँगे। मैंने निरुत्तर होकर आँखें नीची कर ली और साइकिल चलाना बंद कर दिया। Cycle Ki Sawari class 7 Saransh in Hindi
Bihar Board Class 7 Hindi Kisalya Solutions Chapter 7 साइकिल की सवारी Text Book Questions and Answers and Summary

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 7 साइकिल की सवारी - सुदर्शन

प्रश्न और अभ्यास : प्रश्नोत्तर

पाठ से :

Cycle ki Sawari Question Answer प्रश्न 1.

साइकिल चलाने देर बारे में लेखक की क्या धारणा थी ? क्या यह धारणा सही थी ? तर्की सहित उत्तर दीजिए ।

उत्तर – साइकिल चलाने के बारे में लेखक की धारणा थी कि इसमें समय की बचत होती हैं । भीड़-भाड़ में भी साइकिल सवार घंटी बजाते निकल जाते हैं। इसके चलाने में भी किसी विशेष ट्रेनिंग की जरूरत नहीं पड़ती कूदकर चढ़ गए और ताबड़-तोड़ पाँव चलाने लगे । यदि राह में कोई खड़ा 

रहा तो टन-टन करके घंटी बजा दी और न हटा तो क्रोधपूर्ण आँखों से उसकी तरफ देखते हुए निकल गए। यही तो इस लोहे की सवारी का असली गुर है। लेकिन लेखक की यह धारणा सही नहीं थी, क्योंकि असावधानी तथा अकुशलता से चलाने पर जीवन पर सदा खतरा मँडराता रहता है।


Bihar Board Class 7 Hindi Book Solutions प्रश्न 2.

लेखक ने साइकिल सीखने के लिए कौन-कौन सी तैयारियाँ कीं ?

उत्तर – लेखक ने साइकिल चलाने के लिए पुराने कपड़ों की मरम्मत कराई, बाजार से जंबक खरीदकर लाए । मिस्त्री से साइकिल उधार माँगी, खुले मैदान की तलाश की तथा साइकिल सिखानेवाले उस्ताद को अग्रिम फीस देकर तैयार कराया ।


Bihar Board Class 7 Hindi Book PDF प्रश्न 3.

लेखक के झूठ की पोल कैसे खुल गई?

उत्तर – लेखक के झूठ की पोल तब खुल गई जब उनकी पत्नी अपने बच्चों के साथ ताँगे से घूमने निकली और लेखक उस ताँगे के नीचे आने के कारण बेहोश हो गया। जब उसने इस दुर्घटना का कारण तिवारीजी को बताना चाहा तो पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा- यह तो तुम उसको चकमा दो जो कुछ जानता न हो । उस ताँगे पर मैं ही तो बच्चों के साथ थी। पत्नी

की बात सुनकर वह चुप रह गया ।


Kislay class 7 solutions प्रश्न 4.

किसने किससे कहा:

(क) "कितने दिन में सिखा देगा ।”

(ख) "नहीं सिखाया तो फीस लौटा देंगे । ”

(ग) “मुझे तो आशा नहीं कि आपसे यह बेल मत्थे चढ़ सके ।”

(घ) “हम शहर के पास नहीं सीखेंगे। लारेंसबाग में जो मैदान है वहाँ सीखेंगे ।”

उत्तर : (क) यह बात लेखक ने तिवारीजी से कही ।

(ख) यह बात उस्ताद ने लेखक से कही ।

(ग) यह बात लेखक की पत्नी ने लेखक से कही ।

(घ) यह बात लेखक ने उस्ताद से कही ।


पाठ से आगे :

Bseb Class 7 Hindi Solutions प्रश्न 1.

बिल्ली के रास्ता काटने एवं बच्चे के छींकने पर लेखक को गुस्सा आया । क्या लेखक का गुस्सा करना उचित था । अपना विचार लिखिए |

उत्तर – बिल्ली के रास्ते काटने एवं बच्चे के छींकने पर गुस्सा करना उचित नहीं था, क्योंकि बिल्ली का रास्ता काटना तथा बच्चे का छींकना स्वाभाविक प्रक्रिया है । लेखक मानसिक दुर्बलता के कारण अथवा अंधविश्वास के कारण इसे अशुभ मानता है। यह भी मान्यता है कि कोई अशुभ घटना घटित होने से पहले व्यक्ति को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए कुछ अशुभ संकेत मिल जाते हैं। इसलिए लेखक को बिल्ली एवं बच्चे पर गुस्सा प्रकट न करके अपनी विवेकहीनता पर दुःख प्रकट करना ठीक था ।


प्रश्न 2. किसी काम को सम्पन्न करने में आपको किससे किस प्रकार की मदद की अपेक्षा रहती है ? किसी एक उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – किसी काम को सम्पन्न करने के लिए हमें वैसे व्यक्ति की मदद की जरूरत पड़ती जो उस काम में दक्ष या निपुण होता है। जैसे—कपड़े सीने का काम कोई दर्जी ही कर सकता है, कोई मोची नहीं । उसी प्रकार मोची का काम वही कर सकता है, जो उस काम को जानता है । तात्पर्य यह कि संसार में हर कोई हर काम नहीं जानता। उसे जानकार लोगों से मदद लेनी पड़ती है। जैसे, साइकिल सीखने में तिवारीजी ने लेखक की मदद की।

लेखक के झूठ के बोल कैसे खुल गई?

लेखक के झूठ का पोल कैसे खुल गई? उत्तर: लेखक ने जब झूठ बोलकर दुर्घटना का दोष तिवारी जी पर मढ़ने – लगे तो पोल खुल गई क्योंकि जिस ताँगा से लेखक दुर्घटनाग्रस्त हुए थे उस ताँगा पर उनकी पत्नी ही बैठी थी।

लेखक ने साइकिल सीखने के लिए कौन कौन सी तैयारी की?

लेखक ने साइकिल सीखने के लिए कौन-कौन-सी तैयारियाँ की? उत्तर: लेखक ने साइकिल सीखने के लिए कपडे बनवाये । उस्ताद ठीक किए ।

साइकिल की सवारी के लेखक कौन है?

साइकिल की सवारी के लेखक सुदर्शन “पंडित बद्रीनाथ भट्ट” जी हैं।

लेखक के मन में साइकिल सीखने का विचार कब आया?

इसलिए लेखक ने साइकिल चलाना सीख लेने का निर्णय किया । सन् 1932 की बात है। लेखक के मन में ख्याल आया कि क्या हमी जमाने भर में फिसड्डी रह गए हैं कि साइकिल नहीं चला सकते। इस कारण उन्होंने निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो जाए, साइलिक चलाना सीखेंगे।

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