पठन सामग्री और नोट्स (Notes)| पाठ 1 - सत्ता की साझेदारी (Satta ki Sajhedari) Loktantrik Rajniti Class 10th
इस अध्याय में विषय
• बेल्जियम की कहानी
• श्रीलंका की कहानी
• श्रीलंका में बहुसंख्यकवाद
• बेल्जियम की समझदारी
• सत्ता की साझेदारी क्यों जरुरी है?
• सत्ता की साझेदारी के रूप
• बेल्जियम एक छोटा सा देश है जिसकी आबादी एक करोड़ से थोड़ी अधिक है।
• इस छोटे से देश के समाज की जातीय बुनावट बहुत जटिल है।
• देश की कुल आबादी का 59 फीसदी हिस्सा फ्लेमिश इलाके में रहता है और डच बोलता है। शेष एक फीसदी लोग जर्मन बोलते हैं।
• राजधानी ब्रूसेल्स के लोग 80 फीसदी लोग फ्रेंच बोलते हैं और 20 फीसदी लोग डच भाषा।
• अल्पसंख्यक फ्रेंच-भाषी लोग तुलनात्मक रूप से ज्यादा समृद्ध और ताकतवर रहे हैं।
→ बहुत बाद में जाकर आर्थिक विकास और शिक्षा का लाभ पाने वाले डच-भाषी लोगों को इस स्थिति से नाराजगी थी।
• इसके चलते 1950 और 1960 के दशक में फ्रेंच और डच बोलने वाले समूहों के बीच तनाव बढ़ने लगा।
• श्रीलंका एक द्वीपीय देश है जो भारत के दक्षिणी तट से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिसकी आबादी करीब दो करोड़ है।
• सबसे प्रमुख सामाजिक समूह सिंहलियों का (74 फीसदी) तथा तमिलों का (18 फीसदी) है।
• तमिलों में भी दो समूह हैं-
→ श्रीलंकन तमिल- श्रीलंकाई मूल के तमिल (13 फीसदी)।
→ हिन्दुस्तानी तमिल- जो औपनिवेशिक शासनकाल में
बागानों में काम करने के लिए भारत से लाए गए लोगों की संतान हैं।
• अधिकतर सिंहली-भाषी लोग बौद्ध हैं जबकि तमिल-भाषी लोगों में कुछ हिंदू हैं और कुछ मुसलमान।
• श्रीलंका की आबादी में ईसाई लोगों का हिस्सा 7 फीसदी है और वे सिंहली और तमिल, दोनों भाषाएँ बोलते हैं।
श्रीलंका में बहुसंख्यकवाद
• लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार ने सिंहली समुदाय की प्रभुता कायम करने के लिए अपनी बहुसंख्यक- परस्ती के तहत् कई कदम
उठाए। वे हैं-
→ सिंहली को एकमात्र राजभाषा घोषित कर दिया गया।
→ विश्वविद्यालयों और सरकारी नौकरियों में सिंहलियों को प्रथमिकता देने की नीति भी चली।
• इन सरकारी फैसलों ने श्रीलंकाई तमिलों की नाराजगी और शासन को लेकर उनमें बेगानापन बढ़ाया।
• श्रीलंकाई तमिलों ने अपनी राजनीतिक पार्टियाँ बनाईं और तमिल को राजभाषा बनाने, क्षेत्रीय स्वायत्तता हासिल करने तथा शिक्षा और रोजगार में समान अवसरों की माँग को लेकर संघर्ष किया।
• 1980 के दशक तक उत्तर-पूर्वी श्रीलंका में स्वतंत्र तमिल ईलम (सरकार) बनाने की माँग को लेकर अनेक राजनीतिक संगठन बने।
• शीघ्र ही यह टकराव गृहयुद्ध में परिणत हुआ।
बेल्जियम की समझदारी
• 1970 और 1993 के बीच बेल्जियम के संविधान में चार संशोधन सिर्फ इस बात के लिए किए गए कि देश में रहने वाले किसी भी आदमी को बेगानेपन का एहसास न हो और सभी मिलजुलकर रह सके।
• बेल्जियम के मॉडल की कुछ मुख्य बातें-
→ संविधान में इस
बात का स्पष्ट प्रावधान है कि केन्द्रीय सरकार में डच और फ्रेंच-भाषी मंत्रियों की संख्या समान रहेगी।
→ केंद्र सरकार की अनेक शक्तियाँ देश के दो इलाकों की क्षेत्रीय सरकारों को सुपुर्द कर दी गई हैं।
→ ब्रूसेल्स में अलग सरकार है और इसमें दोनों समुदायों का समान प्रतिनिधित्व है।
→ डच, फ्रेंच और जर्मन बोलने वाले समुदायों द्वारा चुनी गयी सामुदायिक सरकार का प्रावधान, जिसे संस्कृति, शिक्षा और भाषा जसे मसलों पर फैसले लेने का अधिकार हो।
सत्ता की साझेदारी क्यों जरूरी है?
• सत्ता का बँटवारा ठीक है क्योंकि इससे विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच टकराव का अंदेशा कम हो जाता है।
• सत्ता की साझेदारी दरअसल लोकतंत्र की आत्मा है।
→ लोकतंत्र का मतलब ही होता है कि जो लोग शासन-व्यवस्था के अंतर्गत हैं उनके बीच सत्ता को बाँटा जाए और ये लोग इसी ढर्रे से रहें।
सत्ता की साझेदारी के रूप
• आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी के अनेक
रूप हो सकते हैं।
→ सत्ता का क्षैतिज वितरण- शासन के विभिन्न अंग, जैसे विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता का बँटवारा रहता है। जैसे-भारत
→ संघ सरकार (सत्ता का उर्ध्वाधर वितरण)- सरकार के बीच भी विभिन्न स्तरों पर सत्ता का बँटवारा हो सकता है : जैसे पूरे देश के लिए एक सामान्य सरकार हो और फिर प्रान्त या क्षेत्रीय स्तर पर अलग-अलग सरकार रहे। जैसे- USA.
→ सत्ता का बँटवारा विभिन्न सामाजिक समूहों, मसलन, भाषायी और धार्मिक समूहों के बीच भी हो सकता है। बेल्जियम में सामुदायिक सरकार इस
व्यवस्था का एक अच्छा उदहारण है।
→ सत्ता के बँटवारे का एक रूप हम विभिन्न प्रकार के दबाव-समूह और आंदोलनों द्वारा शासन को प्रभावित और नियंत्रित करने के तरीके में भी लक्ष्य कर सकते हैं।
संक्षेप में लिखें
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रश्न 1. आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी के अलग-अलग तरीके क्या हैं? इनमें से प्रत्येक का एक उदाहरण भी दें।
उत्तर
आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी के अनेक रूप हो सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं –
1. शासन के विभिन्न अंगों के बीच बँटवारा – शासन के विभिन्न अंग, जैसे-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता का बँटवारा रहता है। इसमें सरकार के विभिन्न अंग एक ही स्तर पर रहकर अपनी-अपनी शक्ति का उपयोग करते हैं। इसमें कोई भी एक अंग सत्ता का असीमित प्रयोग नहीं करता, हर अंग दूसरे पर अंकुश रखता है। इससे विभिन्न संस्थाओं के बीच सत्ता का संतुलन बना रहता है। इसके सबसे अच्छे उदाहरण अमेरिका व भारत हैं। यहाँ विधायिका कानून बनाती है, कार्यपालिका कानून को लागू करती है तथा न्यायपालिका न्याय करती है। भारत में कार्यपालिका संसद के प्रति उत्तरदायी है, न्यायपालिका की नियुक्ति कार्यपालिका करती है, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के कानूनों की जाँच करके उन पर नियंत्रण रखती है।
2. सरकार के विभिन्न स्तरों में बँटवारा – पूरे देश के लिए एक सरकार होती है जिसे केंद्र सरकार या संघ सरकार कहते हैं। फिर प्रांत या क्षेत्रीय स्तर पर अलग-अलग सरकारें बनती हैं, जिन्हें अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। भारत में इन्हें राज्य सरकार कहते हैं। इस सत्ता के बँटवारे वाले देशों में संविधान में इस बात का स्पष्ट उल्लेख होता है कि केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता का बँटवारा किस तरह होगा। सत्ता के ऐसे बँटवारे को ऊध्र्वाधर वितरण कहा जाता है। भारत में केंद्र और राज्य स्तर के अतिरिक्त स्थानीय सरकारें भी काम करती हैं। इनके बीच सत्ता के बँटवारे के विषय में संविधान में स्पष्ट रूप से लिखा गया है जिससे विभिन्न सरकारों के बीच शक्तियों को लेकर कोई तनाव न हो।
3. विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच सत्ता का बँटवारा – कुछ देशों के संविधान में इस बात का प्रावधान है कि सामाजिक रूप से कमजोर समुदाय और महिलाओं को विधायिका और प्रशासन में हिस्सेदारी दी जाए ताकि लोग स्वयं को शासन से अलग न समझने लगे। अल्पसंख्यक समुदायों को भी इसी तरीके से सत्ता में उचित हिस्सेदारी दी जाती है। बेल्जियम में सामुदायिक सरकार इस व्यवस्था का अच्छा उदाहरण है।
4. राजनीतिक दलों व दबाव समूहों द्वारा सत्ता का बँटवारा – लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता बारी-बारी से अलग अलग विचारधारा और सामाजिक समूहों वाली पार्टियों के हाथ आती-जाती रहती है। लोकतंत्र में हम व्यापारी, उद्योगपति, किसान और औद्योगिक मजदूर जैसे कई संगठित हित समूहों को भी सक्रिय देखते हैं। सरकार की विभिन्न समितियों में सीधी भागीदारी करने या नीतियों पर अपने सदस्य वर्ग के लाभ के लिए दबाव बनाकर ये समूह भी सत्ता में भागीदारी करते हैं। अमेरिका इसका अच्छा उदाहरण है। वहाँ दो राजनीतिक दल प्रमुख हैं जो चुनाव लड़कर सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं तथा दबाव समूह चुनावों के समय व चुनाव जीतने के बाद राजनीतिक दलों की आर्थिक मदद करके, सार्वजनिक नीतियों को प्रभावित करके सत्ता में भागीदारी निभाते हैं।
प्रश्न 2. भारतीय संदर्भ में सत्ता की हिस्सेदारी का एक उदाहरण देते हुए इसका एक युक्तिपरक और एक नैतिक कारण बताएँ।
उत्तर
भारत में सत्ता का बँटवारा सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच हुआ है, जैसे-केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय सरकार।
- युक्तिपरक कारण – भारत एक घनी आबादी वाला देश है। पूरे देश के लिए एक ही सरकार के द्वारा कानून बनाना, शांति तथा व्यवस्था बनाना संभव नहीं है। इसलिए सरकार को विभिन्न स्तरों में बाँट दिया गया है और उनके बीच कार्यों का बँटवारा संविधान में लिखित रूप से कर दिया गया है, जिससे ये सरकारें बिना झगड़े देश के लोगों के हितों को ध्यान में रखकर शासन कर सकें।
- नैतिक कारण – लोकतंत्रीय देश में सत्ता का बँटवारा जरूरी है। यदि एक ही प्रकार की सरकार होगी तो वह निरंकुश हो जाएगी, ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी शासन में नहीं हो पाएगी जो कि लोकतंत्र के लिए जरूरी है। इसलिए भारत में विभिन्न स्तरों पर सरकारों का वर्गीकरण कर दिया गया है।
प्रश्न 3. इस अध्याय को पढ़ने के बाद तीन छात्रों ने अलग-अलग निष्कर्ष निकाले। आप इनमें से किससे सहमत हैं और क्यों? अपना जवाब करीब 50 शब्दों में दें।
- थम्मन – जिन समाजों में क्षेत्रीय, भाषायी और जातीय आधार पर विभाजन हो सिर्फ वहीं सत्ता की साझेदारी जरूरी है।
- मथाई – सत्ता की साझेदारी सिर्फ ऐसे देशों के लिए उपयुक्त है जहाँ क्षेत्रीय विभाजन मौजूद होते हैं।
- औसेफ – हर समाज में सत्ता की साझेदारी की जरूरत होती है। भले ही वह छोटा हो या उसमें सामाजिक विभाजन न हो।
उत्तर
हम औसेफ के निष्कर्ष से सहमत हैं कि हर समाज में सत्ता की साझेदारी की जरूरत होती है। भले ही वह छोटा हो या उसमें सामाजिक विभाजन न हो। क्योंकि सत्ता का बँटवारा लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए ठीक है। सत्ता की साझेदारी वास्तव में लोकतंत्र की आत्मा है। लोकतंत्र का मतलब ही होता है कि जो लोग इस शासन व्यवस्था के अंतर्गत हैं उनके बीच सत्ता को बाँटा जाए और ये लोग इसी ढर्रे में रहें। वैध सरकार वही है जिसमें अपनी भागीदारी के माध्यम से सभी समूह शासन व्यवस्था से जुड़ते हैं।
प्रश्न 4. बेल्जियम में ब्रुसेल्स के निकट स्थित शहर मर्चटेम के मेयर ने अपने यहाँ के स्कूलों में फ्रेंच बोलने पर लगी रोक को सही बताया है। उन्होंने कहा कि इससे डच भाषा न बोलने वाले लोगों को इस फ्लेमिश शहर के लोगों से जुड़ने में मदद मिलेगी। क्या आपको लगता है कि यह फैसला बेल्जियम की सत्ता की साझेदारी की व्यवस्था की मूल भावना से मेल खाता है? अपना जवाब करीब 50 शब्दों में लिखें।
उत्तर
स्कूलों में फ्रेंच बोलने पर लगी रोक को सही बताना बेल्जियम की सत्ता की साझेदारी की व्यवस्था की मूल भावना के खिलाफ है। बेल्जियम में जो व्यवस्था अपनाई गई उसमें सभी भाषाओं के लोगों को समान अधिकार दिए गए थे। इसलिए स्कूलों में फ्रेंच बोलने पर रोक लगाना सही नहीं है क्योंकि ऐसा करने से फ्रेंच भाषी लोगों की भावनाओं का हनन होता है।
प्रश्न 5. नीचे दिए गए उद्धरण को गौर से पढ़ें और इसमें सत्ता की साझेदारी के जो युक्तिपरक कारण बताए गए हैं उनमें से किसी एक का चुनाव करें।
महात्मा गांधी के सपनों को साकार करने और संविधान निर्माताओं की उम्मीदों को पूरा करने के लिए हमें पंचायतों को अधिकार देने की जरूरत है। पंचायती राज ही वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना करता है। यह सत्ता उन लोगों के हाथों में सौंपता है जिनके हाथों में इसे होना चाहिए। भ्रष्टाचार को कम करने और प्रशासनिक कुशलता को बढ़ाने का एक उपाय पंचायतों को अधिकार देना भी है। जब विकास की योजनाओं को बनाने और लागू करने में लोगों की भागीदारी होगी तो इन योजनाओं पर उनका नियंत्रण बढ़ेगा। इससे भ्रष्ट बिचौलियों को खत्म किया जा सकेगा। इस प्रकार पंचायती राज लोकतंत्र की नींव को मजबूत करेगा।”
उत्तर
इस उद्धरण में बताया गया है कि पंचायतों के स्तर पर सत्ता को बँटवारा जरूरी है क्योंकि इससे भ्रष्टाचार कम होगा तथा प्रशासनिक कुशलता बढ़ेगी। पंचायतों के अधीन जब आम लोग स्वयं अपने लिए विकास की योजनाएँ बनाएँगें और उन्हें लागू करेंगे तो भ्रष्ट बिचौलियों को समाप्त किया जा सकता है। जब स्थानीय लोग स्वयं योजनाएँ बनाएँगे तो उनकी समस्याओं का समाधान शीघ्र होगा, क्योंकि किसी स्थान विशेष की समस्याएँ वहाँ के लोग भली-भाँति समझते हैं। इस प्रकार विकास करने के लिए जरूरी है कि पंचायतों को अधिकार सौंपे जाएँ जिससे लोकतंत्र की नींव मजबूत हो।
प्रश्न 6. सत्ता के बँटवारे के पक्ष और विपक्ष में कई तरह के तर्क दिए जाते हैं। इनमें से जो तर्क सत्ता के बँटवारे के पक्ष में हैं उनकी पहचान करें और नीचे दिए गए कोड से अपने उत्तर का चुनाव करें।
सत्ता की साझेदारीः
(क) विभिन्न समुदायों के बीच टकराव को कम करती है।
(ख) पक्षपात का अंदेशा कम करती है।
(ग) निर्णय लेने की प्रक्रिया को अटका देती है।
(घ) विविधताओं को अपने में समेट लेती है।
(ङ) अस्थिरता और आपसी फूट को बढ़ाती है।
(च) सत्ता में लोगों की भागीदारी बढ़ाती है।
(छ) देश की एकता को कमजोर करती है।
उत्तर (सा) क, ख, घ, च।
प्रश्न 7. बेल्जियम और श्रीलंका की सत्ता में साझीदारी की व्यवस्था के बारे में निम्नलिखित बयानों पर विचार करें :
(क) बेल्जियम में डच भाषी बहुसंख्यकों ने फ्रेंच भाषी अल्पसंख्यकों पर अपना प्रभुत्व जमाने का प्रयास किया।
(ख) सरकार की नीतियों ने सिंहली भाषी बहुसंख्यकों का प्रभुत्व बनाए रखने का प्रयास किया।
(ग) अपनी संस्कृति और भाषा को बचाने तथा शिक्षा तथा रोजगार में समानता के अवसर के लिए श्रीलंका के तमिलों ने सत्ता को संघीय ढाँचे पर बाँटने की माँग की।
(घ) बेल्जियम में एकात्मक सरकार की जगह संघीय शासन व्यवस्था लाकर मुल्क को भाषा के आधार पर टूटने से बचा लिया गया।
ऊपर दिए गए बयानों में से कौन-से सही हैं?
(सा) क, ख, ग और घ (रे) क,ख और घ (गा) ग और घ (मा) ख, ग और घ।
उत्तर (मा) ख, ग, घ।
प्रश्न 8. सूची I ( सत्ता के बँटवारे के स्वरूप ) और सूची II ( शासन के स्वरूप ) में मेल कराएँ और नीचे दिए गए कोड का उपयोग करते हुए सही जवाब दें :
उत्तर (गा) 1. ख, 2. घ, 3. क, 4. ग।
प्रश्न 9. सत्ता की साझेदारी के बारे में निम्नलिखित दो बयानों पर गौर करें और नीचे दिए गए कोड के आधार पर जवाब दें :
(अ) सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र के लिए लाभकर है।
(ब) इससे सामाजिक समूहों में टकराव का अंदेशा घटता है।
इन बयानों में से कौन सही हैं और कौन गलत?
उत्तर (ख) अ और ब दोनों सही हैं।
1 अंक वाले प्रश्न:
प्रश्न - नेपाल में सर्वप्रथम लोकतंत्र की
स्थापना कब हुई थी?
उत्तर - 1990 ई0 में ।
प्रश्न - लोकतंत्र की स्थापना के बाद भी नेपाल में राज्य का प्रधान कौन बना रहा?
उत्तर - राजा वीरेन्द्र |
प्रश्न - नेपाल में जन-संघर्ष किसलिए हुआ था?
उत्तर - लोकतंत्र की स्थापना के लिए।
प्रश्न - ‘माओवादी’ किसे कहते हैं?
उत्तर -
चीनी नेता माओं के विचारधरा को मानने वाले को माओंवादी कहलाते है।
प्रश्न - नेपाल में लोकतंत्रा की स्थापना के लिए संसद की सभी बड़ी राजनैतिक पार्टियों द्वारा कौन सा संगठन बनाया गया था?
उत्तर - एस. पी. ए (सप्तदलीय गठबंधन)
प्रश्न - नेपाल में रहस्यमय तरीके से किस राजा की हत्या कर दी गई थी?
उत्तर - राजा वीरेन्द्र ।
प्रश्न - सन् 2004 में लोकतंत्र की स्थापना के बाद
नेपाल में किसे प्रधानमंत्राी बनाया गया?
उत्तर - गिरीजा प्रसाद कोईराला।
प्रश्न - सन् 2000 में बोलिविया में जन संघर्ष का प्रमुख आधर क्या था?
उत्तर - जल आपूर्ति का अधिकार बहुराष्ट्रीय कंपनी को सौप दिए गए थे।
प्रश्न - जब किसी देश का शासन वहाँ की सेना के हाथों में आ जाता है, तो इसे क्या कहते हैं?
उत्तर - मार्शल लॉ।
प्रश्न
- ‘लामबंदी’ किसे कहते हैं?
उत्तर - जनहित के लिए लोगों का एकजुट होकर आंदोलन चलाना।
प्रश्न - बोलिविया में जन-संघर्ष का नेतृत्व किस संगठन ने किया था?
उत्तर - फेडकोर |
प्रश्न - बामसेफ (BAMCEF) का शब्द-विस्तार लिखिए?
उत्तर - बैकवर्ड एंड माइनॉरिजीट कम्युनिटी एम्पलॉइज फेडेरेशन।
प्रश्न - दबाव समूह किसे कहते हैं? दबाव समूहों का उदाहरण
दीजिए |
उत्तर - ऐसा समुह जो अपनी उदेश्य या माँगों की पूर्ति के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार पर दबाव डालती है उन्हे दबाव समुह कहते है।
उदाहरण - किसान संघ
मजदूर संघ
छात्र संगठन
अध्यापक संघ
धार्मिक संगठन
व्यापार संघ
3 अंक वाले प्रश्न :
प्रश्न - सन् 1990 से 2004 के बीच नेपाल में लोकतंत्रा की स्थापना के लिए कौन-कौन से प्रयास किये गए ?
उत्तर
- नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के लिए निम्न प्रयास किये गए।
(i) संसद की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने एक ‘सेवेन पार्टी अलायंस’ (सप्तदलीय गठबंधन एस.पी.ए.) बनाया गया।
(ii) नेपाल की राजधनी काठमांडू में चार दिन के ‘बंद’ का आह्वान किया। इस प्रतिरोध् ने जल्दी ही अनियतकालीन ‘बंद’ का रूप ले लिया।
(iii) आंदोलनकारियों ने राजा को ‘अल्टीमेटम’ दे दिया लाखों के तादात में लोग सड़कों पर उतर आए ।
प्रश्न - बोलिविया में जन-आंदोलन क्यों हुआ था? तीन कारण
बताइए।
उत्तर -
(i) वहाँ की सरकार ने जल आपूर्ति को एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के हाथों में बेच दिया ।
(ii) इस कंपनी ने आनन-पफानन में पानी की कीमत में चार गुना इजाप़फा कर दिया।
(iii) पुलिस द्वारा बर्बरतापूर्वक दमन किया और सरकार द्वारा ‘मार्शल लॉ’ लगा दिया जाना।
प्रश्न - लोकतंत्र में जन-संघर्ष का क्या महत्व है? तीन बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
(i)
जन-संघर्ष के जरीये लोकतंत्रा का विकास होता है ?
(ii) जन-संघर्ष के जरीये राजनितिक पार्टियाँ लोकतंत्र को मजबुत करती है।
(iii) लोकतंत्रा में किसी मुद्दे पर विवाद जन-संघर्ष के जरीये मनवाया जा सकता है।
प्रश्न - जन-आंदोलन सरकारी नीतियों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? (कोई तीन बिन्दु)
उत्तर -
(i) जन-आंदोलन सरकारी नीतियों को बदलने या वापस लेने के लिए बाध्य करते है।
(ii) सरकार अपनी बनाने से पहले कुछ संगठनों से
राय लेती है।
(iii) सरकार जन-आंदोलन को ध्यान में रखकर ही नीतियाँ बनाती है ताकी समाज के सभी तबकों का भला हो सके।
प्रश्न: हित-समूह और दबाव समूह में तीन अंतर स्पष्ट कीजिए |
उत्तर:
हित-समूह :
(i) हित समुह यह उन लोंगों का औपचारिक संगठन होता है जिनके हित समान होत है।
(ii) ये देश के घटनाचक्र को अपने पक्ष में करने का प्रयास करते है।
(iii) ये प्रत्यक्ष रूप से राजनिति को प्रभावित नहीं
करते।
दबाव समूह :
(i) यह एक ऐसा समुह होता है जो निश्चित उदेश्य के लिए कार्य करते है।
(ii) ये सरकार की नितियों को प्रभावित करने की कोशिश करते है।
(iii) ये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राजनिति को प्रभावित करते है।
प्रश्न - दबाव समुह क्या है ?
उत्तर - जब कुछ लोग अपने विशेष उदेश्यों की पूर्ति के लिए संगठन बनाते है तो ऐसे संगठनों को दबाव समुह या हित समुह कहते है।
प्रश्न
- दबाव समुह और आन्दोलन राजनिति पर असर डालनें के लिए कौन कौन से ढ़ंग अपनाते है ?
उत्तर -
(i) सूचना अभियान चलाकर
(ii) बैठकें आयोजित करके ।
(iii) मीडिया को प्रभावित करके |
प्रश्न - दबाब समूह किस प्रकार राजनीति में प्रभाव डालते हैं ? किन्हीं चार प्रभावों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर -
(i) राजनितिक दल और सरकार पर दबाव डालकर अपनी मांगों को मनवाते है।
(ii) ये जन आन्दोलन द्वारा जनता की सहानुभूति और समर्थन प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं ।
(iii) ये सूचना अभियान और मीडिया के द्वारा सरकार और जनता को प्रभावित करते है।
(iv) अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए राजनितिक दल इन दबाव समूहों को अपने पक्ष में करने की कोशिश करते हैं ।
प्रश्न - अप्रैल 2006 में नेपाल में हुए जन-आन्दोलन का क्या कारण था? और इसके क्या परिणाम हुए।
उत्तर - नेपाल के राजा वीरेन्द्र की हत्या होने के बाद
नेपाल में एक राजनितिक संकट पैदा हो गई । नया शासक राजा ज्ञानेन्द्र लोकतांत्रिक शासन को स्वीकार करने को तैयार नहीं था। तब तत्कालीन प्रधनमंत्री को अपदस्थ करके जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को भंग कर दिया गया । शीघ्र ही इस कार्यवाही के विरुद्ध नेपाल में जन आन्दोलन शुरू हो गया । वहॉ के लोग लोकतंत्र की बहाली चाहते थे और सता जनता के हाथ में सौपना चाहते थे। इसके विरुद्ध अनेक जन संघर्ष हुए और अंततः राजा को जनता की सारी मांगे माननी पडी ।
प्रश्न - कोई दबाव समूह कब राजनैतिक दल बन जाता है?
उदाहरण देते हुए समझाइए।
उत्तर - निम्न परिस्थितियों कोई दबाव समूह राजनैतिक दल बन जाता है।
(i) कुछ मामलों में दबाव-समूह राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाए गए होते हैं अथवा उनका नेतृत्व राजनीतिक दल के नेता करते हैं।
(ii) कुछ दबाव-समूह राजनीतिक दल की एक शाखा के रूप में काम करते हैं। उदाहरण के लिए भारत के अधिकतर मजदूर-संगठन और छात्र-संगठन या तो बड़े राजनीतिक दलों द्वारा बनाए गए हैं
(iii) ऐसे दबाव-समूहों के अधिकतर नेता अमूमन किसी न किसी राजनीतिक दल के
कार्यकर्ता और नेता होते हैं।