शैक्षिक तकनीकी की उपर्युक्त विवेचना के आधार पर लेखक ने अपनी परिभाषा इस प्रकार दी है शैक्षिक तकनीकी, विज्ञान पर आधारित एक ऐसा विषय है जिसका उद्देश्य शिक्षक, शिक्षण तथा छात्रें के कार्य को निरन्तर सरल बनाना है। जिससे कि शिक्षा के ये तीनों अंग मिलकर भली-भाँति समायोजित रहें और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में क्रमब( उपागमों के माध्यम से सक्षम और समर्थ रहें।
इस विषय के अन्तर्गत शिक्षा के अदा, प्रदा तथा प्रक्रिया (Input, Output and Process) तीनों ही पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए।
शैक्षिक तकनीकी की मान्यताएँ
- प्रत्येक मानव, मशीन की भाँति कार्य करता है अत: शिक्षा के क्षेत्र में मानव व्यवहार में परिमार्जन तथा परिष्करण हेतु इसके वैज्ञानिक सिद्धांतो का सपफलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है।
- शिक्षण कला तथा विज्ञान दोनों ही है।
शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग को प्रभावित करने वाले कारक
शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग को प्रभावित करने वाले कारक है-
- राजनैतिक कारक
- मनोवैज्ञानिक कारक
- शैक्षिक कारक
- आर्थिक कारक
- सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक
1. राजनैतिक कारक
किसी भी राष्ट्र में शैक्षिक तकनीकी का विकास अनेक कारकों पर निर्भर रहता है। इन कारकों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है राजनैतिक कारक। राजनैतिक कारकों से तात्पर्य है वे कारक जो राष्ट्र की राजनीतिक परिस्थितियों, राजनीतिक नीतियों तथा वैज्ञानिक अन्वेषणों एवं राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति से सम्बन्धित होते हैं। देश में जो भी सरकार है उसकी नीति शैक्षिक तकनीकी के विकास के क्षेत्र में केसी है। यदि शासन करने वाली पार्टी को लगता है कि किन्हीं तकनीकी विशेष के प्रयोग से उन्हें ज्यादा लाभ सम्भव है तो वह उनके विकास के लिये भरपूर प्रयास करेगी।अत: कहा जा सकता है कि शैक्षिक तकनीकी पर राजनीतिक कारकों का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। टेलीविजन तथा दूरसंचार के क्षेत्र में छुपे अभिनव प्रयोगों में तथा उनके प्रचार-प्रसार में राजनीतिक कारकों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हाथ रहा है।
2. मनोवैज्ञानिक कारक
मनोवैज्ञानिक कारकों के अन्तर्गत शिक्षकों, छात्रें तथा शिक्षालयों की रुचि, स्तर, प्रवृत्तियों आदि का समावेशन होता है। शिक्षकों की अभिप्रेरणा, सीखने-सिखाने की इच्छा-शक्ति, ध्यान एवं रुचि आदि का प्रभाव मनोवैज्ञानिक कारकों के अन्तर्गत समावेशित होते हैं। शिक्षकों एवं छात्रें की शैक्षिक तकनीकी में व्यक्तिगत रुचि, अभिरुचि, अभिवृत्ति एवं प्रयासों पर बहुत कुछ निर्भर करता है। यदि शिक्षा के ये दोनों अंग शैक्षिक तकनीकी का नवीनतम ज्ञान एवं सूचनायें रखते हैं, उन्हें प्रयोग करने के लिये उचित प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं, उनके उपयोग के लिये विभिन्न स्थानीय एवं अन्य स्रोतों का भरपूर लाभ उठा सकते हैं तथा अपने विद्यालयों के परिवेश में सही प्रकार से उपयोग करने के लिये सहज स्थिति पाते हैं तो शैक्षिक तकनीकी शिक्षा के विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।3. शैक्षिक कारक
ये कारक मनोवैज्ञानिक कारकों के साथ काफी प्रभावशाली सि( होते हैं। शैक्षिक कारकों में शिक्षकों की शिक्षा एवं प्रशिक्षण मुख्य कारक हैं। यदि शिक्षकों को शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में उचित स्तर का सुनियोजित प्रशिक्षण प्रदान किया जाये तो ये शिक्षक शैक्षिक तकनीकी के विकास में मील के पत्थर सिद्ध हो सकते हैं। ये शिक्षक शैक्षिक तकनीकी के विभिन्न उपागमों का प्रयोग करने के लिये प्रयोगशाला का कार्य करने में सक्षम हो सकते हैं। ये नवीन प्रयोग, परिष्करण तथा अन्वेषण का कार्य प्रभावशाली ढंग से कर नवीन खोजों एवं नवीन आयामों को प्रभावशाली नेतृत्व एवं स्वस्थ दिशा देने में समर्थ हो सकती हैं।4. आर्थिक कारक
शैक्षिक तकनीकी के विकास में आख्रथक कारक भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। किसी भी प्रयोग, अन्वेषण तथा खोज की रीढ़ ‘धन’ होता है। बिना समुचित धन के किसी भी तकनीकी का विकास, प्रसार तथा प्रशिक्षण सम्भव नहीं।शैक्षिक तकनीकी में श्रव्य-दृश्य साधनों तथा अन्य उपकरणों के लिये तथा शैक्षिक तकनीकी की प्रयोगशाला निर्माण करने के लिये भी आख्रथक अनुदान चाहिये। बिना अर्थ के न तो उपकरण खरीदे जा सकते हैं और न ही प्रयोग हो सकते हैं और न ही किसी प्रकार के परिष्करण व अन्वेषण का कार्य सम्भव है।
5. सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक
समाज एवं संस्कृति शिक्षा का दर्पण है। जैसा समाज होगा, जैसी संस्कृति होगी वैसी ही वहाँ की शिक्षा होगी। यदि समाज में शैक्षिक तकनीकी के प्रति जागरूकता है, वांछित नेतृत्व का बोलबाला है तथा संस्कृति की नस-नस में तकनीकी का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है तो नि:संदेह शैक्षिक -तकनीकी के क्षेत्र में भी भविष्य उज्ज्वल रहेगा। तभी विद्यालय परिवेश को तकनीकी जामा पहनाने के लिये समाज के लोगों का अभिभावकों का, तथा शिक्षा-विशेषज्ञों का दबाव पड़ेगा। फलस्वरूप शिक्षा के मन्दिर में शैक्षिक तकनीकी अपनी प्रभावशाली भूमिका निभा सकेगी।शैक्षिक तकनीकी की उपयोगिता
शैक्षिक तकनीकी की उपयोगिता आज दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विश्व का प्रत्येक देश इसे अपना रहा है। कोठारी कमीशन (1966) ने अपनी एक टिप्पणी में कहा है, फ्पिछले कुछ सालों में भारत के विद्यालयों में कक्षा-अध्ययन को पिफर से जीवन-दान देने या उसे अनुप्राणित करने की प्रविधियों पर काफी ध्यान दिया गया है। बुनियादी शिक्षा का पहला उद्देश्य प्राइमरी स्वूफलों के सारे जीवन और कार्य-कलापों में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना एवं बच्चे के मन, शरीर तथा आत्मा का सर्वोत्तम तथा सर्वांगीण विकास करना था। इस दृष्टि से भी शैक्षिक तकनीकी का अपना महत्त्व स्वयंसिद्ध है।अधिगम सिद्धांतों की जगह शिक्षण सिद्धांतों को उचित महत्त्व प्रदान करने वाली विषय-वस्तु शैक्षिक तकनीकी ही है। शैक्षिक तकनीकी की उपयोगिता को निम्नांकित भाँति अधिक सरलता से प्रस्तुत किया जा सकता है
(1) शिक्षक के लिए उपयोगिता (Utility for a Teacher) ‘शैक्षिक तकनीकी’ पर अधिकार रखने वाला शिक्षक अपने छात्रें के व्यवहारों का अध्ययन कर सकता है, समझ सकता है और उनमें वांछित सुधार लाने का प्रयत्न कर सकता है। शिक्षक को विषय-वस्तु के साथ-साथ व्यवहार, अध्ययन और व्यवहार सुधार की प्रणालियों का ज्ञान भी होना चाहिए। शैक्षिक तकनीकी इस क्षेत्र में शिक्षक को समर्थ बनाती है।
शैक्षिक तकनीकी शिक्षक को शिक्षण उपागमों, शिक्षण व्यूह रचनाओं तथा शिक्षण विधियों के विषय में वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान करती है। किस समय, किस प्रकरण को स्पष्ट करने के लिए कौन-सी श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग किया जाय, रेडियो, टेलीविजन का उपयोग कर किस प्रकार से रेडियो विजन तथा केसेट विजन का प्रयोग किया जाये तथा छात्रें को अपने सीखने की गति के अनुसार अध्ययन करने के लिए केसे अभिक्रमित अध्ययन सामग्री तैयार की जाय यह शैक्षिक तकनीकी ही शिक्षक को बताती है।
प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में प्रभावशाली शिक्षक तैयार करने के लिए माइक्रो टीचिंग , मिनी टीचिंग, सीमुलेटेड टीचिंग तथा टी. ट्रेनिंग आदि नवीन विधियों का प्रयोग करने के लिए शैक्षिक तकनीकी दिशा निर्देश प्रदान करती है।