क्या इस्लाम में मोहब्बत जायज है? - kya islaam mein mohabbat jaayaj hai?

क्या इस्लाम के अनुसार प्यार की कहानी के बाद की जाने वाली शादी अधिक ठीक है या वह शादी जिसे परिवार के लोग संगठित करते हैं ?

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

इस शादी का मामला इस आधार पर भिन्न होता है कि वह प्यार इस (शादी) से पूर्व कैसा था। यदि दोनों पक्षों के बीच जो प्यार था उसने अल्लाह तआला की शरीअत का उल्लंघन नहीं किया और दोनों साथी अवज्ञा (पाप) में नहीं पड़े; तो यह आशा की जाती है कि इस प्यार से निष्किर्षित होने वाली शादी अधिक स्थायी और स्थिर होगी; क्योंकि यह उन दोनों के एक दूसरे में रूचि रखने के नतीजे में हुई है।

यदि किसी आदमी का दिल किसी ऐसी औरत से लग जाये जिस से शादी करना उसके लिए जाइज़ है तो उसके लिए शादी के अलावा कोई अन्य समाधान नहीं है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: “प्रेमियों के लिए शादी के समान हमने कोई चीज़ नहीं देखी।” इसे इब्ने माजा (हदीस संख्या: 1847) ने रिवायत किया है, तथा बोसीरी ने इसे सहीह कहा है इसी तरह अल्बानी ने भी “अस्सिलसिला अस्सहीहा” (हदीस संख्या: 624) में इसे सहीह कहा है।

अल्लामा सिंधी कहते हैं -जैसा कि सुनन इब्ने माजा के हाशिया में है:

“आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फरमान “प्रेमियों के लिए शादी के समान हमने कोई चीज़ नहीं देखी।” में “प्रेमियों” के शब्द में दो और दो से अधिक दोनों की संभावना है, और सका अर्थ यह है कि: जब दो के बीच प्रेम हो तो उस प्रेम को शादी के समान कोई अन्य संबंध न बढ़ा सकता है और न ही उसे सदैव बाक़ी रख सकता है, यदि उनके बीच उस प्रेम के साथ शादी भी हो जाये तो वह प्रेम प्रति दिन बढ़ता ही जायेगा और उसमें शक्ति पैदा होगी। (सिंधी की बात समाप्त हुई)

और यदि यह शादी अवैध प्रेम संबंध के परिणाम में हुई है जैसे कि उस प्रेम में मुलाक़ातें, एकांत (खल्वत) और चुंबन और इसके समान अन्य चीज़ें होती थीं, तो वह शादी स्थिर नहीं होगी ; इस कारण कि इन लोगों ने शरीअत का उल्लंघन किया है और उस पर अपने जीवन का आधार रखा है जिसके परिणामस्वरूप बर्कत (ईश्वरीय आशीर्वाद) और तौफीक़ में कमी हो सकती है। क्योंकि पाप इस का सबसे बड़ा कारण हैं, यद्यपि बहुत से लोगों को शैतान के आकर्षण से यह प्रतीक होता हैं कि प्रेम -जबकि उसमें शरीअत का उल्लंघन पाया जाता है- शादी को अधिक मज़बूत बनाता है।

फिर ये अवैध संबंध जो उन दोनों के बीच शादी से पूर्व स्थापित थे उन दोनों में से हर एक के दूसरे के बारे में संदेह करने का कारण बन सकते हैं, चुनाँचि पति सोचे गा कि हो सकता है कि उसकी पत्नी इस तरह के (अवैध) संबंध उसके अलावा किसी और के साथ भी रखती रही हो, यदि वह इस सोच को टाल देता है और इसे असंभव समझता है तो वह अपने बारे में सोचे गा कि उसके साथ ऐसा घटित हुआ है। बिल्कुल यही मामला पत्नी के साथ भी होगा, वह अपने पति के बारे में सोचे गी कि संभव है कि वह किसी अन्य महिला के साथ संबंध रखता हो, यदि वह इसे असंभव समझती है तो वह अपने बारे में सोचे गी कि उसके साथ ऐसा हुआ है।

इस तरह पति-पत्नी में से प्रत्येक संदेह, शक और बदगुमानी (अविश्वास) में जीवन व्यतीत करेंगे, और इसके परिणाम स्वरूप दोनों के बीच का रिश्ता जल्दी ही या बाद में नष्ट हो जाये गा। तथा संभव है कि पति अपनी पत्नी की निंदा करे कि उसने अपने लिए इस बात को स्वीकार कर लिया कि उसके साथ शादी से पहले संबंध बनाये, जिसके कारण उसे चोट और पीड़ा पहुँचे गी और उनके बीच का संबंध दुष्ट हो जायेगा।

इसलिए हमारे विचार में वह शादी जो शादी से पूर्व अवैध संबंध पर क़ायम होती है वह अक्सर स्थिर और सफल नहीं होती है।

जहाँ तक परिवार के लोगों (माता पिता) के चयन करने का प्रश्न है, तो वह न तो सब के सब अच्छी होती है और न ही सब के सब बुरी होती है। यदि माता पिता का चुनाव अच्छा है, और महिला धार्मिक और सुंदर है, और यह पति की पसंद के अनुकूल है और वह उस से शादी की इच्छा रखता है: तो आशा है कि उन दोनों की शादी स्थिर और सफल होगी। इसीलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शादी का प्रस्ताव देने वाले को वसीयत की है कि वह उस महिला को देख ले जिसे शादी का पैगाम दे रहा है। मुग़ीरा बिन शोअबा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने एक औरत को शादी का पैगाम दिया तो इस पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “तुम उसे देख लो क्योंकि यह इस बात के अधिक योग्य है कि तुम दोनों के बीच प्यार स्थायी बन जाये।’’ इस हदीस को तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 1087) ने रिवायत किया है और उसे हसन कहा है तथा नसाई (हदीस संख्या: 3235) ने रिवायत किया है।

इमाम तिर्मिज़ी ने फरमाया: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन “तुम्हारे बीच महब्बत पैदा होने के अधिक योग्य है।” का अर्थ यह है कि तुम दोनों के बीच महब्बत और प्यार के स्थायी होने के अधिक सम्भावना है।

यदि माता पिता ने अच्छा चुनाव नहीं किया है, या उन्हों ने चुनाव अच्छा किया परंतु पति उस पर सहमत नहीं है तो आम तौर पर इस शादी को असफलता और अस्थिरता का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि जो चीज़ अरूचि और गैरदिल्चस्पी पर आधारित हो वह अक्सर स्थिर नहीं रहती है।

और अल्लाह सर्वशक्तिमान ही अधिक ज्ञान रखता है।

इस्लाम में प्यार करना मना है क्या?

उन्होंने बताया कि इस्लाम धर्म में प्रेम विवाह की इजाजत है। अगर किसी शख्त का दिल किसी औरत पर आ जाये तो इस्लाम धर्म में प्रेम के बाद शादी करना उसके लिए जायज़ है। यानी प्रमियों के लिए शादी के अलावा कोई अन्य समाधान नहीं है। इस संबंध में पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है।

इस्लाम धर्म में शादी कैसे होती है?

इस निकाह में दुल्हा और दुल्हन की तरफ़ से दो मुस्लिम गवाह होना चाहिए और एक वकील होना भी ज़रूरी है, वकील का मतलब कोर्ट का लायर नही बल्कि वकालत करने रिश्तेदार या दोस्त का होना भी आवश्यक माना जाता है। इस तरीक़े को शरीयत या शरिया या इस्लामीय न्यायसूत्र का तरीका कहते हैं।

एक मुसलमान पुरुष एक साथ कितनी स्त्रियों से निकाह कर सकता है?

एक व्यक्ति एक समय में 4 से अधिक पत्नियां नहीं रख सकता। पांचवी पत्नी से विवाह जब नियमित होगा जब किसी एक पत्नी को तलाक दे दिया जाए या उसकी मृत्यु हो जाए।

इस्लाम की असलियत क्या है?

इस्लामिक शरियत कुरान और हदीस पर आधारित है. कुरान पर ईमान रखना हर मुसलमान को लिए जरूरी बताया गया है. मौलाना डॉ जिशान मिस्बाही कहते हैं कि इस्लाम की पवित्र किताब कुरान सिर्फ मुसलमानों के लिए अल्लाह ने नबी पर नहीं उतारी है बल्कि ये सारी इंसानियत के लिए है.

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