कन्यादान के समय मां के दुख को प्रमाणित क्यों कहा गया है? - kanyaadaan ke samay maan ke dukh ko pramaanit kyon kaha gaya hai?

Solution : विवाह के अवसर पर कन्यादान करते समय माँ जो दुःख अनुभव करती थी वह दुःख प्रामाणिक था, क्योंकि बेटी को कन्यादान स्वरुप वर - पक्ष के हाथों सौंपते समय माँ के ह्रदय की पीड़ा स्वाभाविक होती है उसमे किंचित भी कृत्रिमता नहीं होती है।

CBSE Class X, Hindi Course (A) | NCERT Kshitij Bhag - 2

Chapter 8, Kanyadan - by Rituraj

Solutions of CBSE Questions

कन्यादान

Some important sample questions from the stanza as given below - 

"कितना प्रामाणिक था उसका दुःख 

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     कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की"  

Question.1: कवि और कविता का नाम लिखिए। 

Solution: कवि - ऋतुराज, कविता - "कन्यादान"। 

Question.2: कन्यादान के समय माँ के दुख को प्रामाणिक क्यों कहा गया है ?

Solution: कन्यादान के समय माँ का दुख अत्यंत गहरा एवं वास्तविक था। बेटी की सबसे अधिक निकटता माँ के साथ ही थी।  वह माँ के सुख-दुख की साथी थी। इसीलिए वह माँ की आखिरी पूँजी की तरह थी। माँ को इस बात की चिंता थी कि दुनियादारी से अपरिचित उसकी भोली-भाली बेटी भावी जीवन की कठिनाइयों का सामना कैसे कर सकेगी। 

कन्यादान करते समय माँ यह अनुभव कर रही थी कि बेटी के चले जाने के बाद वह एकदम अकेली हो जाएगी। उसके जीवन में एक अपूरणीय रिक्तता आ जाएगी। इसी कारण कन्यादान के समय माँ के दुख को प्रामाणिक कहा गया है। 

Question.3: जीवन के सुख - दुख की लड़की को कितनी समझ थी ?कारण सहित स्पष्ट कीजिए। 

Solution: जीवन के सुख - दुख से लड़की आंशिक रूप से ही परिचित थी। उसने अभी जीवन के सुख ही देखे थे, वह दुखों से अभी अनजान थी।  इसका कारण यह था कि वह एकदम भोली-भाली और सरल थी। उसमें अभी दुनियादारी की समझ नहीं थी। घर के स्नेहपूर्ण वातावरण में वह जीवन के कुछ उजले पक्ष ही देख पाई थी।  


Question.4: माँ को  लड़की के बारे में किस प्रकार की चिंता है और क्यों ?
Solution: कन्यादान करते समय माँ अपनी बेटी के भावी जीवन के प्रति चिंतित है। उसकी बेटी अभी अत्यंत भोली और सरल है। अपने घर में उसे सुख और प्यार ही मिला है। वह जीवन के सुख का तो अनुभव कर चुकी है, परंतु दुखों से अनभिज्ञ है। 
माँ जानती है कि ससुराल में वह अनेक प्रकार के बंधनों में बँध जाएगी। वहाँ उसे जीवन के दुखों का भी सामना करना होगा। बेटी उन्हें किस प्रकार सहन कर पाएगी, माँ को इसी बात की चिंता है। माँ की इस चिंता का कारण यह है कि लड़की में अभी दुनियादारी की समझ नहीं है और वह अत्यंत सीधी-सादी है।
     

Question.5: काव्यांश में किसके दुःख को प्रामाणिक बताया गया है ?

Solution: काव्यांश में माँ के दुःख को प्रामाणिक बताया गया है।    

Question.6: माँ की अंतिम  पूँजी क्या थी ? उसे दान में देते समय दुःख क्यों था ?

Solution: माँ की अंतिम पूँजी अपनी बेटी थी। बेटे को विवाह के समय दान में देते समय माँ दुःखी थी। उसे लग रहा था कि बेटी ही अपने सुख-दुख के समय सहयोग, साथ देने वाली थी। वही एक मात्र स्नेह की पात्र थी, जिसे बड़े स्नेह और सहेजकर आख़िरी पूँजी की तरह सँभाल रखा था। इसलिए माँ को बेटी दान देते समय दुख हो रहा था।
    

Question.7: 'बेटी अभी सयानी नहीं थी' में माँ की अन्तर्वेदना है कैसे ?

Solution: माँ के स्नेह में पली-बढ़ी बेटी उसके लिए सरल ही होती है। इसके अतिरिक्त माँ जानती है कि बेटी को परिवार से हटकर मनुष्यों के कटु व्यवहार की जानकारी नहीं है। ससुराल पक्ष के उस व्यवहार को कैसे सहन कर पाएगी जो छल-छद्मों से युक्त होती है। उन्हें कैसे समझा पाएगी। यही माँ की अन्तर्वेदना उसे संत्रस्त कर रही है। 
   

Question.8: 'लेकिन उसे दुःख बाँचना नहीं आता था' का आशय स्पष्ट कीजिए। 

Solution: माँ के अनुसार बेटी स्नेह के भावों को तो समझती है। किन्तु स्नेह में छल-छद्मों से अपरिचित ही है। उसका उसे अनुभव नहीं है। इसी कारण माँ के हृदय में भय व्याप्त है कि बेटी ससुराल के छल-छद्मों को कैसे समझ पाएगी। 
   

Additional Question: 'कन्यादान' कविता में कवि की क्या प्रेरणा है ?
Solution: 'नारी सौंदर्य की प्रतिमूर्ति है' की कोमल भावना से नारी को मुक्त होकर ऐसे आदर्श स्थापित करना  उचित है कि मानव जगत के मन में पल रही दकियानूसी भावनाएँ पलायन कर जाए। नारी विषमताओं में साहसिक कार्य करने में समर्थ है। ऐसी भावना के निर्मित होने पर नारी आग में समर्पित होने के लिए विवश नहीं होगी। 

 Must study 

  • Class 10, CBSE Guide for NCERT Hindi Course A - Chapter 8 Kshitij, Kanyadan by Rituraj - Hot Questions
  • NCERT Solutions of Class 10, Kshitij Bhag 2, Kanyadan - Chapter exercise questions (to be published soon)

कन्यादान के समय माँ के दुःख को प्रामाणिक क्यों कहा गया है?

Solution : विवाह के अवसर पर कन्यादान करते समय माँ जो दुःख अनुभव करती थी वह दुःख प्रामाणिक था, क्योंकि बेटी को कन्यादान स्वरुप वर - पक्ष के हाथों सौंपते समय माँ के ह्रदय की पीड़ा स्वाभाविक होती है उसमे किंचित भी कृत्रिमता नहीं होती है

कन्यादान में किसकी दुख की बात की गई है और क्यों?

उत्तर: कवि 'क्रतुराज जी द्वारा रचित कविता 'कन्यादान' में उस माँ के दुख की बात की गई है, जो अपने प्राणों से प्रिय पुत्री का 'कन्यादान' अर्थात विवाह करने जा रही है, अपने से दूर करने जा रही है। बेटी माँ की पूँजी होती है, उसकी सुख-दुख की साथी होती है। उसके चले जाने के बाद माँ एकदम अकेली हो जाती है।

कैसे दुख को प्रमाणित कहा गया है?

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कन्यादान पाठ के आधार पर मां की चिंता का मुख्य कारण क्या था?

उत्तर: 'कन्यादान' कविता में माँ की मूल चिन्ता अपनी भोली, सरल स्वभाववाली और लोक व्यवहार से अपरिचित बेटी के भविष्य को सुरक्षित और सुखी बनाना है। इसलिए वह अपने जीवन में प्राप्त अनुभवों के आधार पर लड़की को ऊँचे-ऊँचे आदर्शों और उपदेशों के बजाय समय के अनुकूल ठोस और व्यावहारिक शिक्षाएँ देती है।

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