कुंडली के छठे भाव का स्वामी कौन है? - kundalee ke chhathe bhaav ka svaamee kaun hai?

कुंडली में भाग्य स्थान से जानिए अपनी किस्मत का हाल

Authored by गरिमा सिंह |

नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: May 4, 2022, 3:30 AM

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, व्यक्ति के कर्म अच्छे होने के साथ ही उसके भाग्य का साथ यदि उसे मिले तो वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर सकता है। कई लोगों के साथ ऐसा होता कि उन्हें अत्यधिक मेहनत करने के बाद भी उस फल की प्राप्ति नहीं हो पाती है, जिसके लिए उन्होंने मेहनत की है। जबकि कुछ लोगों को कम मेहनत पर भी अत्यधिक सफलता की प्राप्ति हो जाती है। आइए, जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है...

कुंडली में भाग्य स्थान से जानिए अपनी किस्मत का हाल

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ऐसे देखते हैं भाग्य का घर

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में पहले घर को लग्न स्थान कहते हैं। कुंडली को सीधा रखने पर टॉप में जो खाना होता है वही लग्न स्थान होता है। लग्न से नवम स्थान भाग्य स्थान कहलाता है यानी कुंडली का नौवां घर भाग्य स्थान कहलता है। भाग्य स्थान से ही यह देखा जाता है कि व्यक्ति की सफलता में उसकी किस्मत का कितना हाथ होगा।

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ऐसे लोग होते हैं जन्म से भाग्यशाली

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में नवम भाव का स्वामी नवम भाव में ही होता है ऐसे लोगों को जन्म से ही भाग्य का साथ मिलता है। ऐसे लोगों के जीवन में कष्ट ना के बराबर आते हैं। यदि ऐसे लोग अपना भाग्य रत्न समय से सही प्रकार से धारण कर लें तो उन्हें भाग्य का फल जल्दी मिलता है। इन्हें कम परिश्रम से ही बड़ी सफलता मिल जाती है। इस तस्वीर में भाग्य स्थान में 1 लिखा है यानी भाग्य का स्वामी ग्रह मंगल होगा क्योंकि 1 का मतलब पहली राशि मेष है। भाग्य स्थान में बुध बैठा है।

ऐसे लोगों के जीवन में आती हैं बाधाएं

जिन लोगों की कुंडली में नवम भाव का स्वामी अष्टम भाव में होता है उन्हें भाग्य का साथ कम मिलता है। इन्हें बहुत सी बाधाओं का सामना करने के बाद सफलता मिलती है। इन्हें किस्मत की बजाय अपनी मेहनत और बुद्धि से लाभ मिलता है। ऐसे लोग अपने दम पर कामयाबी पाते हैं।

शत्रुओं से भी होता है लाभ

जिन लोगों की कुंडली में नवम भाव का स्वामी छठे भाव में होता है, ऐसे लोग अपने दुश्मनों से भी लाभ प्राप्त करने में सफल होते हैं। इन्हें जीवन में कभी धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है।

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राजनीति और प्रॉपर्टी में सफलता

जिन लोगों की कुंडली में नवम भाव का स्वामी ग्रह कुंडली के चतुर्थ भाव में हो और भाग्य स्थान में राशि का स्वामी बैठा हो तो इन्हें खूब तरक्की मिलती है। इन्हें अपनी राशि का रत्न धारण करना चाहिए। ऐसे लोगों के पास बड़ा घर, महंगी गाड़ी और तमाम भौतिक सुविधाएं होती हैं। राजनीति और प्रॉपर्टी के काम में किस्मत का खूब साथ मिलता है।

उच्च पद प्राप्त करते हैं ऐसे लोग

जिन लोगों की कुंडली में नवम भाव में अपनी ही राशि का सूर्य या मंगल हो तो ऐसे लोग जीवन में बड़ी सफलता अर्जित करते हैं और उच्च पदों पर पहुंचते हैं।

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ज्योतिष और लाल किताब के अनुसार कुंडली के बारह भावों को क्या कहते हैं और इन भावों से क्या क्या देखा जाता है। जानिए संक्षिप्त में।

1. प्रथम भाव को लग्न स्थान कहते हैं जिससे व्यक्तित्व, रूप, रंग, आत्म विश्‍वास, अभिमान, यश-अपयश, सुख-दुख देखा जाता है। परंतु लाल किताब के अंतर्गत मनुष्य का चरित्र, खुद की कमाई, मकान तथा उसके कोने, दिमागी ताकत, पिछले जन्म का साथ लाया धन, वर्तमान जन्म नियत, पूर्व दिशा और दूसरे से संबंध को परखा जाता है।

2. द्विती भाव से धन लाभ, आर्थिक स्थिति, वाणी, जीभ, संपत्ति, कुटुंब देखते हैं। परंतु लाल किताब के अनुसार इससे पत्नी और ससुराल की स्थिति को जाना जाता है। इसके अलावा धन लाभ भी देखा जाता है।

3. तृतीय भाव से पराक्रम, धंधा, भवन, भाई, लेखा जोखा देखा जाता है। परंतु लाल किताब के अनुसार यह त्रिलोकी का भेद खोलने वाला स्थान है। इससे भाई से संबंध और पराक्रम का पता चलता है।

4. चतुर्थ भाव से माता सुख, शांति, गृह सुख, भूमि, मन, सेहत, सम्मान, पदवी, वाहन सुख, स्तन, छाती देखा जाता है। परंतु लाल किताब के अनुसार यह दिल और माता के हाल बताता है। मुसीबत के वक्त साथ देने वाला भाव है।

5. पंचम भाव से संतान सुख, प्रेम, शिक्षण, प्रवास, यश, भविष्य, आर्थिक लाभ देखा जाता है। लाल किताब के अनुसार यह स्थान संतान से संबंध, भाग्य और धन के राज खोलता है।


6. षष्ठम भाव से रोग, शोक, शरीर व्याधी त्रास, शत्रु, मामा, नोकर, चाकर, मानसिक क्लेश देखा जाता है। लाल किताब के अनुसार चाल ढाल, मामा, साले, बहनोई, शरीरिक और आध्यात्मिक शक्तियां, रिश्तेदारों से प्राप्त चीजें और बीमारी का हाल बताता है।

7. सप्तम भाव से पत्नी, पति सुख, वैवाहिक सुख, कोर्ट कचेरी, साझेदारी का कार्य, आकर्षण, यश, अपयश देखा जाता है। लाल किताब के अनुसार विवाह, संपत्ति, खान पान, परवरिश, पूर्वजन्म का धन, चेहरे की चमक, समझदारी, लड़की, बहन, पोती आदि का हाल बताता है।

8. अष्टम भाव से मृत्यु, शोक, दु:ख, आर्थिक संकट, नपुंसकता, अनी‍ती, भ्रष्टाचार, तंत्र कर्म देखा जाता है। लाल किताब के अनुसार यह मृत्यु का घर है जिसे श्मशान कहा गया है। नर ग्रह अकेला हो तो यह मृत्यु का घर नहीं रह जाता है।

9. नवम भाव से प्रवास, आध्यात्मिक प्रगति, ग्रंथ लेखन, बुद्धिमत्ता, दूसरा विवाह, भाग्य, बहिन, विदेश योग, साक्षात्कार देखा जाता है। लाल किताब अनुसार यह घर बताता है कि जातक पिछले जन्म से क्या लेकर आया है। भाग्य कितना जोरदार है।

10. दशम भाव से कर्म, व्यापार, नौकरी, पितृ सुख, पद प्रतिष्ठा, राजकाज, अधिकार, सम्मान देखा जाता है। लाल किताब के अनुसार खुद की जायजाद, पिता का सुख, गमी, बेईज्जती, मक्कारी, होशियारी, इंसाफ, पद प्रतिष्ठा आदि को बताता है।

11. एकादश भाव से मित्र, जमाई, लाभ, धन लाभ, भेंट वस्तु, भिन्नलिंगी से संबंध देखा जाता है। लाल किताब के अनुसार यह आय का घर है बचत का नहीं। यह भाग्य का मैदान और जन्म का समय है।

12. द्वादश भाव से कर्ज, नुकसान, व्यसन, त्रास, संन्यास, अनैतिकता, उपभोग, आत्महत्या, शय्यासुख देखा जाता है। लाल किताब के अनुसार अचानक से कुछ होना जैसे किसी विचार का आना, घटना का घटना और गुप्त बातों का पता चलना। ग्रह तय करेंगे कि कब क्या होगा।

लाल किताब में कुंडली में स्थित राशियों को नहीं माना जाता है। केवल भावों को ही माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की हॉरोस्कोप मेष लग्न की ही होती है। बस फर्क होता है तो सिर्फ ग्रहों का। फिर कारकों को और स्वामी ग्रहों को अपने अनुसार बनाकर लिख लेते हैं।

1. पहले भाव का स्वामी ग्रह मंगल होता है जिसका कारक ग्रह सूर्य है।

2. दूसरे भाव का स्वामी ग्रह शुक्र होता है जिसका कारक ग्रह गुरु है।

3. तीसरे भाव का स्वामी ग्रह बुध होता है जिसका कारक ग्रह मंगल है।

4. चौथे भाव का स्वामी ग्रह चंद्र होता है जिसका कारक ग्रह भी चंद्र ही है।

5. पाँचवें भाव का स्वामी ग्रह सूर्य होता है जिसका कारक ग्रह गुरु है।

6. छठे भाव का स्वामी ग्रह बुध होता है जिसका कारक ग्रह केतु है।

7. सातवें का स्वामी शुक्र होता है जिसका कारक ग्रह शुक्र और बुध दोनों हैं।

8. आठवें भाव का स्वामी ग्रह मंगल होता है जिसका कारक ग्रह शनि, मंगल और चंद्र हैं।

9. नौवें भाव का स्वामी ग्रह गुरु होता है जिसका कारक ग्रह भी गुरु होता है।

10. दसवें भाव का स्वामी ग्रह शनि होता है और कारक भी शनि है।

11. ग्यारहवें भाव का स्वामी शनि होता है, लेकिन कारक गुरु है।

12. बारहवें भाव का स्वामी गुरु होता है, लेकिन कारक राहु है।

कुंडली में 6 घर किसका होता है?

इस तरह से आपकी कुंडली में छठे भाव का स्वामी शनि है।

छठे भाव का स्वामी कौन है?

छठे भाव का स्वामी ग्रह बुध होता है जिसका कारक ग्रह केतु है।

वैदिक ज्योतिष में 6 वां घर क्या है?

कुंडली में छठे भाव को वैदिक ज्योतिष में शत्रु भाव के रूप में जाना जाता है। यह छठी राशि कन्या से संबंधित है। इस भाव का प्राकृतिक कारक बुध ग्रह है। यह बुध के लिए सबसे अच्छा घर है लेकिन बृहस्पति, सूर्य, चंद्रमा, शुक्र और शनि के लिए कमजोर घर है।

कुंडली में छठा भाव क्या दर्शाता है?

कुंडली में छठा घर ज्यादातर स्वास्थ्य, कल्याण और दैनिक दिनचर्या को इंगित करता है। एक स्वस्थ जीवन शैली के सभी पहलुओं, जैसे आहार, पोषण, व्यायाम, और आत्म-सुधार की खोज से यह भाव संबंधित है।

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