कबंध राक्षस की क्या विशेषता है? - kabandh raakshas kee kya visheshata hai?

Saturday, September 18, 2021

सवाल: कबंध राक्षस की क्या विशेषता थी?

कमल एक विशालकाय राक्षस था। उसके ना ही पैर और ना ही गर्दन थी, उसका पूरा शरीर उसकी छाती विराजमान था। वह बहुत ही भयानक एवं डरावना राक्षस था। वह अपने हाथों के माध्यम से किसी भी जानवर को मारकर खा जाता था, वह अपने हाथ को जितना चाहे उतना बड़ा कर सकता था। जब भगवान श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण जब माता सीता की खोज करते हुए निकले और वहां पहुंचे तो कबंध राक्षस ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की, परंतु लक्ष्मण तलवार के वार से उसके हाथों को काट दिया और फिर उसका अंत हो गया था।

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कबन्ध राक्षस (Kabandh Rakshas) का असली नाम दनु था जिसका जन्म गन्धर्व जाति में हुआ था। वह बचपन से ही अत्यधिक बलशाली व सुंदर था। उसकी सुंदरता के कारण उसके शरीर से एक अलग का प्रकाश निकलता था (Kabandh Ramayan)। साथ ही उसे स्वयं भगवान ब्रह्मा का भी वरदान था कि उसे किसी अस्त्र से नही मारा जा सकता है। अपने बल व पराक्रम के कारण उसमे अहंकार आ गया था व सुंदर शरीर के होते हुए भी वह राक्षसी रूप धारण कर ऋषि मुनियों को डराया करता था। आज हम उसी श्राप तथा कबंध राक्षस के वध (Kabandh Raksh Ka Vadh) के बारे में जानेंगे।

कबंध राक्षस का वध (Ramayana Kabandha Rakshas Vadh)

ऋषि स्थूलशिरा से मिला श्राप (Kabandh Rakshas Ko Kisne Shrap Diya Tha)

कबंध ऐसे ही राक्षसों के भयानक रूप धारण कर प्रतिदिन किसी ना किसी ऋषि को डराया करता था। एक दिन उसने स्थूलशिरा ऋषि को भी डराने के लिए भयानक राक्षस का रूप धारण किया। ऋषि स्थूलशिरा के पास कई दैवीय शक्तियां थी व वे दनु के इस कृत्य से अत्यंत क्रोधित हो गए थे (Kabandh Kaun Rakshas Tha)। इसी क्रोध में उन्होंने उसे श्राप दिया कि वह जिस प्रकार का रूप धारण करके उन्हें डरा रहा हैं वही उसका हमेशा के लिए रूप हो जायेगा और वह राक्षसों के जैसा ही व्यवहार करेगा (Kabandh Kaun The)।

ऋषि के श्राप स्वरुप दनु का शरीर वैसा ही रह गया, उसकी दोनों भुजाएं अत्यंत लंबी व विशाल बन गयी व सारा दिव्य ज्ञान विलुप्त हो गया। अब वह एक राक्षस की भांति व्यवहार करने लगा।

ऋषि ने दिया श्राप का उपाय

अपनी यह अवस्था देखकर दनु ऋषि स्थूलशिरा के सामने गिडगिडाने लगा व क्षमा की याचना करने लगा। ऋषि को भी उस पर दया आ गयी व उन्होंने इस श्राप से मुक्त होने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि एक दिन भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ माता सीता को ढूंढते हुए यहाँ आयेंगे व तुम्हारी दोनों भुजाएं काट देंगे। इसके बाद जैसे ही वे तुम्हारा दाह संस्कार करेंगे तो तुम श्राप से मुक्त हो जायेंगे व पुनः अपने इसी शरीर को प्राप्त करोगे।

देव इंद्र से युद्ध

इसके पश्चात दनु का देवराज इंद्र से युद्ध हुआ। चूँकि दनु को ब्रह्मा जी के द्वारा दीर्घायु होने व किसी अस्त्र से ना मरने का वरदान प्राप्त था इसलिये इंद्र उनकी हत्या तो नही कर पायें लेकिन उनके वज्र के प्रहार से दनु का राक्षस शरीर उसके कबन्ध (पेट) में समा गया व केवल मुख व भुजाएं ही बाहर रही। तब से वह उसी स्थल पर जड़ पड़ा रहा व अपनी लंबी-लंबी भुजाएं फैलाकर पशु पक्षियों को पकड़ कर अपना भोजन करता। तब से उसका नाम कबंध राक्षस पड़ा।

कबंध राक्षस का दाह संस्कार (Ramayan Kabandh Vadh)

जब भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ माता सीता की खोज में वहां पहुंचे तो कबन्ध ने उन्हें अपनी भुजाओं में जकड़ लिया। इससे क्रोधित होकर लक्ष्मण ने उसकी दोनों भुजाएं काट दी। यह देखकर कबन्ध ने उन दोनों का परिचय जाना व सारी बात बताई। साथ ही यह बताया कि पुनः अपने गन्धर्व शरीर को प्राप्त करने के बाद वह माता सीता की खोज में उनकी सहायता कर सकता हैं। अतः भगवान राम व लक्ष्मण ने उनका विधि पूर्वक दाह संस्कार किया।

कबन्ध राक्षस की श्राप से मुक्ति व शबरी का पता बताना (Danu Gandharva)

दाह संस्कार होते ही कबन्ध को ऋषि स्थूलशिरा के श्राप से मुक्ति मिली व पुनः उन्होंने अपने दनु गन्धर्व के शरीर को प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने भगवान राम को उनकी भक्त शबरी का पता दिया व बताया कि वहां से उन्हें सुग्रीव तक पहुँचने का रास्ता मिलेगा जो माता सीता को ढूंढने में उनकी सहायता करेंगे। यह कहकर वे अंतर्धान हो गए।

कबन्ध एक गन्धर्व था जो कि दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण राक्षस बन गया था। राम ने उसका वध करके राक्षस योनि से उसका उद्धार किया। एक अन्य कथा के अनुसार यह "श्री" नामक अप्सरा का पुत्र था और "विश्वावसु "नाम का गंधर्व था | यह अत्यंत सुंदर बलशाली तथा इच्छा के अनुसार रूप धारण करने वाला था एक बार इसने बड़ा भयंकर रूप धारण करके स्थूलशिरा नामक ऋषि को बहुत परेशान किया तब उन्होंने इसे शाप दे दिया कि तू इसी रूप में बना रहे यह बड़ा दारुण शाप था , इसके बाद एक बार इंद्र ने इस पर वज्र का प्रहार किया जिससे इसका सिर पेट में घुस गया केवल कबंध अर्थात धड़ ही शेष रहा जिसके कारण इसका नाम कबन्ध पड़ा || साभार आचार्य गोपाल कृष्ण - रामकथा प्रवक्ता

कबंध राक्षस की क्या विशेषता थी?

कबन्ध राक्षस (Kabandh Rakshas) का असली नाम दनु था जिसका जन्म गन्धर्व जाति में हुआ था। वह बचपन से ही अत्यधिक बलशाली व सुंदर था। उसकी सुंदरता के कारण उसके शरीर से एक अलग का प्रकाश निकलता था (Kabandh Ramayan)। साथ ही उसे स्वयं भगवान ब्रह्मा का भी वरदान था कि उसे किसी अस्त्र से नही मारा जा सकता है।

कबंध राक्षस की?

'रामचरितमानस' पर आधारित है। लोकप्रिय धारावाहिक होने का कीर्तिमान भी शामिल है।

कबंध राक्षस की क्या विशेषता थी * I उसके पैर नहीं थे II उसके हाथ नहीं थे III उसका उदर गायब था IV उसके धड़ पर सिर नहीं था?

कबंध : सीता की खोज में लगे राम-लक्ष्मण को दंडक वन में अचानक एक विचित्र दानव दिखा जिसका मस्तक और गला नहीं थेउसकी केवल एक ही आंख ही नजर आ रही थी। वह विशालकाय और भयानक था। उस विचित्र दैत्य का नाम कबंध था

कबंध राक्षस का अंतिम संस्कार किसने किया था?

उत्तर: कबंध ने श्रीराम से आग्रह करते हुए कहा कि श्रीराम ही उसका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से करें। राम ने कबंध को यह वचन देकर आश्वासित किया कि उसका अंतिम संस्कार वह स्वयं ही करेंगे। कबंध के मृत्यु के पश्चात, श्री राम ने अपने वचन अनुसार उसका अंतिम संस्कार किया और उसे राक्षस योनि से मुक्ति दिलाई।

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