शेख अब्दुल्ला-महाराजा हरि सिंह - फोटो : social media
चुनावी मौसम में उमर अब्दुल्ला के बयान पर फिर हंगामा मचा है। उमर ने एक चुनावी रैली में कह दिया कि वो दिन भी जल्द आएंगे जब जम्मू कश्मीर का अपना प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर कांग्रेस को आड़े हाथों लिया जो नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। बहरहाल, इस मुद्दे ने एक बार फिर इतिहास का पुराना विवाद छेड़ दिया है।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री व नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने लोकसभा चुनाव के लिए सभा करते हुए बांदीपोरा में कहा था कि बाकी रियासत बिना शर्त के देश में मिले, पर हमने कहा कि हमारी अपनी पहचान होगी, अपना संविधान होगा। हमने उस वक्त अपने "सदर-ए-रियासत" और "वजीर-ए-आजम" भी रखा था, इंशाअल्लाह उसको भी हम वापस ले आएंगे।
आइए समझने की कोशिश करते हैं कि कौन सा वो दौर था जब जम्मू कश्मीर में प्रधानमंत्री (वजीर ए आजम) और (राष्ट्रपति सदर ए रियासत) हुआ करते थे।
हरि सिंह का शासन
1589 में जम्मू-कश्मीर में मुगलों का राज हुआ करता था। यह अकबर का शासन काल था। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद यहां पठानों का कब्जा हुआ। 1814 में पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह ने पठानों को हराया और सिख साम्राज्य आया। 1846 में अंग्रेजों ने सिखों को पराजित किया जिसके बाद लाहौर संधि हुई। अंग्रेजों ने महाराजा गुलाब सिंह को गद्दी सौंपी जो कश्मीर के स्वतंत्र शासक बने। महाराजा गुलाब सिंह के सबसे बड़े पौत्र महाराजा हरि सिंह 1925 में गद्दी पर बैठे और 1947 तक शासन किया। उन्हीं के दौर में पाकिस्तानी कबायली समूह ने कश्मीर पर आक्रमण किया जिसके बाद वह भारत में विलय के लिए राजी हुए।
मेहर चंद महाजन पहले प्रधानमंत्री
अक्तूबर 1947 से मार्च 1948 तक इंडियन नेशनल कांग्रेस के मेहर चंद महाजन जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री रहे। जम्मू-कश्मीर में पहली बार अगस्त-सितम्बर 1951 में चुनाव हुए और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में सभी 75 सीटों पर निर्विरोध जीत हासिल की थी। शेख अब्दुल्ला 31 अक्टूबर 1951 को राज्य के प्रधानमंत्री (वजीर ए आजम) बने। लेकिन 1953 में प्रेसीडेंट (सदर ए रियासत) कर्ण सिंह ने उन्हें बर्खास्त कर दिया। इस बीच नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक वरिष्ठ नेता बख्शी गुलाम मोहम्मद राज्य के प्रधानमंत्री बने।