बजरंगबली को किसने उनकी शक्तियां याद दिलाई थी
त्रेतायुग में राक्षसों का नाश करने के लिए श्री हरि विष्णु ने श्रीराम के रूप में जन्म लिया। श्रीराम के कार्य में हाथ बंटाने के लिए भगवान शिव ने वानर रूप में अवतार लिया।
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त्रेतायुग में राक्षसों का नाश करने के लिए श्री हरि विष्णु ने श्रीराम के रूप में जन्म लिया। श्रीराम के कार्य में हाथ बंटाने के लिए भगवान शिव ने वानर रूप में अवतार लिया। जिसे सारी दुनिया हनुमान के नाम से जानती है। हनुमान जी माता
अंजनि और केसरी के पुत्र हैं लेकिन उन्हें पवन पुत्र भी कहते हैं अर्थात पवन के समान गतिशील।
हनुमान जी में आध्यात्मिकता के सारे गुण मौजूद हैं। उनका एक विशेष आध्यात्मिक गुण था सेवा। सेवा ही उनकी साधना थी। प्रारंभ में वह वानरों के राजा सुग्रीव के दरबार में सेवा का काम करते थे। तब तक तो उनका दायरा बहुत ही सीमित था और शक्ति सामर्थ्य भी सीमित थी, परंतु जब उन्होंने भगवान राम के प्रति अपने को समर्पित कर दिया और जामवंत ने उन्हें झकझोरा और कहा कि ‘राम काज लगि तव अवतारा’ तब से भगवान राम का कार्य करने के लिए उनका मनोबल बहुत ऊंचा हो गया और वह असंभव लगने वाले कामों को संभव कर दिखाने में सफल हुए। अपनी सेवा-साधना और समर्पण के बल पर ही हनुमान आध्यात्मिकता की उच्च स्थिति तक पहुंच सके।
न्याय, सत्य, प्रेम, सदाचार के लिए हनुमान जी ने अपने आप को समर्पित कर दिया। कितने ही अजय राक्षसों का वध कर डाला और रावण की सोने की लंका जला डाली। सीता जी की खोज कर ली और अपने सेवा-समर्पण के बल पर राम के दरबार में अपना स्थान भी बना लिया। हनुमान जी के जीवन में विवेकशीलता देखते ही बनती है। सीता जी का पता लगाने के लिए जाते हुए समुद्र छलांगते समय जब सुरसा से भेंट होती है तब पहले तो उसकी शक्ति की थाह लेने के लिए स्वयं ही उसके मुंह से अधिक बड़ा आकार बनाते हैं, किन्तु जब उन्हें याद आता है कि मैं राम काज के लिए जा रहा हूं। यहां पर मेरा बल एवं सिद्धि का प्रदर्शन सही न होगा तब बहुत छोटा रूप ‘धरेऊ हनुमंत’, छोटा आकार बनाकर उसके मुंह में प्रवेश करके कान सेे बाहर निकल कर अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते हैं।
हनुमान जी के व्यक्तित्व में अंहकार का कोई नामोनिशान नहीं है। उनके जीवन में अहंकार कभी भी देखने को नहीं मिलता। सीता जी की खोज के लिए समुद्र लांघने की चर्चा चल रही है, सभी वानर-रीछ अपने-अपने बल का बखान कर रहे हैं किन्तु उनमें सर्वाधिक शक्तिशाली होते हुए भी वह चुपचाप बैठे रहते हैं और जामवंत के कहने पर ही अपनी स्वीकृति देते हैं। जामवंत समय-समय पर उन्हें उनकी शक्तियों की याद करवाकर शक्तिशाली बनाते रहे हैं। एक सुयोग्य दूत के रूप में हनुमान की भूमिका गजब की है। वह मुद्रिका लेकर जब सीता जी के पास अशोक वाटिका में पहुंचते हैं तो अपना परिचय इसी रूप में देते हैं-‘राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य शपथ करूणा निधान की’’।
रावण के दरबार में भी जब हनुमान प्रस्तुत होते हैं तो वहां पर भी अपने स्वामी राम के ही गुणों की गाथा गाते हैं। आसुरी ताकतों से जूझने के लिेए एक योद्धा के रूप में हनुमान बेमिसाल हैं।
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