गुन गुन करते हुए कौन मँडराते हैं? - gun gun karate hue kaun mandaraate hain?

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  2. उठो धरा के अमर सपूतों

    उठो, धरा के अमर सपूतों।
    पुन: नया निर्माण करो।
    जन-जन के जीवन में फिर से
    नव स्फूर्ति, नव प्राण भरो।

    नई प्रात है नई बात है
    नया किरन है, ज्योति नई।
    नई उमंगें, नई तरंगें
    नई आस है, साँस नई।
    युग-युग के मुरझे सुमनों में
    नई-नई मुस्कान भरो।
    उठो, धरा के अमर सपूतों।
    पुन: नया निर्माण करो।।1।।
    डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ
    नए स्वरों में गाते हैं।
    गुन-गुन, गुन-गुन करते भौंरें
    मस्त उधर मँडराते हैं।
    नवयुग की नूतन वीणा में
    नया राग, नव गान भरो।
    उठो, धरा के अमर सपूतों।
    पुन: नया निर्माण करो।।2।।
    कली-कली खिल रही इधर
    वह फूल-फूल मुस्काया है।
    धरती माँ की आज हो रही
    नई सुनहरी काया है।
    नूतन मंगलमय ध्वनियों से
    गुँजित जग-उद्यान करो।
    उठो, धरा के अमर सपूतों।
    पुन: नया निर्माण करो।।3।।
    सरस्वती का पावन मंदिर
    शुभ संपत्ति तुम्हारी है।
    तुममें से हर बालक इसका
    रक्षक और पुजारी है।
    शत-शत दीपक जला ज्ञान के
    नवयुग का आह्वान करो।
    उठो, धरा के अमर सपूतों।
    पुन: नया निर्माण करो।।4।।

    - द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

    Patriotic Poems
    आज़ादी का गीत

    हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल।
    चाँदी सोने हीरे मोती से सजती गुड़ियाँ।
    इनसे आतंकित करने की बीत गई घड़ियाँ
    इनसे सज धज बैठा करते जो हैं कठपुतले
    हमने तोड़ अभी फेंकी हैं बेड़ी हथकड़ियाँ

    परंपरा गत पुरखों की हमने जाग्रत की फिर से
    उठा शीश पर रक्खा हमने हिम किरीट उज्जवल
    हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल।
    चाँदी सोने हीरे मोती से सजवा छाते
    जो अपने सिर धरवाते थे वे अब शरमाते
    फूलकली बरसाने वाली टूट गई दुनिया
    वज्रों के वाहन अंबर में निर्भय घहराते
    इंद्रायुध भी एक बार जो हिम्मत से ओटे
    छत्र हमारा निर्मित करते साठ कोटि करतल
    हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल।

    - हरिवंश राय बच्चन

    Last edited by a moderator: Aug 15, 2016

  3. झंडा ऊँचा रहे हमारा - Hindi Patriotic Poem

    विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
    झंडा ऊँचा रहे हमारा।
    सदा शक्ति बरसाने वाला,
    प्रेम सुधा सरसाने वाला
    वीरों को हरषाने वाला
    मातृभूमि का तन-मन सारा,
    झंडा ऊँचा रहे हमारा।

    स्वतंत्रता के भीषण रण में,
    लखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण में,
    काँपे शत्रु देखकर मन में,
    मिट जावे भय संकट सारा,
    झंडा ऊँचा रहे हमारा।

    इस झंडे के नीचे निर्भय,
    हो स्वराज जनता का निश्चय,
    बोलो भारत माता की जय,
    स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा,
    झंडा ऊँचा रहे हमारा।

    आओ प्यारे वीरों आओ,
    देश-जाति पर बलि-बलि जाओ,
    एक साथ सब मिलकर गाओ,
    प्यारा भारत देश हमारा,
    झंडा ऊँचा रहे हमारा।

    इसकी शान न जाने पावे,
    चाहे जान भले ही जावे,
    विश्व-विजय करके दिखलावे,
    तब होवे प्रण-पूर्ण हमारा,
    झंडा ऊँचा रहे हमारा।


    - श्यामलाल गुप्त पार्षद

  4. आग बहुत-सी बाकी है - Hindi Patriotic Poem

    भारत क्यों तेरी साँसों के, स्वर आहत से लगते हैं,
    अभी जियाले परवानों में, आग बहुत-सी बाकी है।
    क्यों तेरी आँखों में पानी, आकर ठहरा-ठहरा है,
    जब तेरी नदियों की लहरें, डोल-डोल मदमाती हैं।
    जो गुज़रा है वह तो कल था, अब तो आज की बातें हैं,
    और लड़े जो बेटे तेरे, राज काज की बातें हैं,
    चक्रवात पर, भूकंपों पर, कभी किसी का ज़ोर नहीं,
    और चली सीमा पर गोली, सभ्य समाज की बातें हैं।

    कल फिर तू क्यों, पेट बाँधकर सोया था, मैं सुनता हूँ,
    जब तेरे खेतों की बाली, लहर-लहर इतराती है।

    अगर बात करनी है उनको, काश्मीर पर करने दो,
    अजय अहूजा, अधिकारी, नय्यर, जब्बर को मरने दो,
    वो समझौता ए लाहौरी, याद नहीं कर पाएँगे,
    भूल कारगिल की गद्दारी, नई मित्रता गढ़ने दो,

    ऐसी अटल अवस्था में भी, कल क्यों पल-पल टलता है,
    जब मीठी परवेज़ी गोली, गीत सुना बहलाती है।

    चलो ये माना थोड़ा गम है, पर किसको न होता है,
    जब रातें जगने लगती हैं, तभी सवेरा सोता है,
    जो अधिकारों पर बैठे हैं, वह उनका अधिकार ही है,
    फसल काटता है कोई, और कोई उसको बोता है।

    क्यों तू जीवन जटिल चक्र की, इस उलझन में फँसता है,
    जब तेरी गोदी में बिजली कौंध-कौंध मुस्काती है।

    - अभिनव शुक्ला

  5. Hindi Patriotic Poem by Ramdhari Singh Dinkar

    जाग रहे हम वीर जवान,
    जियो जियो अय हिन्दुस्तान !
    हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल,
    हम नवीन भारत के सैनिक, धीर,वीर,गंभीर, अचल ।
    हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं ।
    हम हैं शान्तिदूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।
    वीर-प्रसू माँ की आँखों के हम नवीन उजियाले हैं
    गंगा, यमुना, हिन्द महासागर के हम रखवाले हैं।
    तन मन धन तुम पर कुर्बान,
    जियो जियो अय हिन्दुस्तान !

    हम सपूत उनके जो नर थे अनल और मधु मिश्रण,
    जिसमें नर का तेज प्रखर था, भीतर था नारी का मन !
    एक नयन संजीवन जिनका, एक नयन था हालाहल,
    जितना कठिन खड्ग था कर में उतना ही अंतर कोमल।
    थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर,
    स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर
    हम उन वीरों की सन्तान ,
    जियो जियो अय हिन्दुस्तान !

    हम शकारि विक्रमादित्य हैं अरिदल को दलनेवाले,
    रण में ज़मीं नहीं, दुश्मन की लाशों पर चलनेंवाले।
    हम अर्जुन, हम भीम, शान्ति के लिये जगत में जीते हैं
    मगर, शत्रु हठ करे अगर तो, लहू वक्ष का पीते हैं।
    हम हैं शिवा-प्रताप रोटियाँ भले घास की खाएंगे,
    मगर, किसी ज़ुल्मी के आगे मस्तक नहीं झुकायेंगे।
    देंगे जान , नहीं ईमान,
    जियो जियो अय हिन्दुस्तान।

    जियो, जियो अय देश! कि पहरे पर ही जगे हुए हैं हम।
    वन, पर्वत, हर तरफ़ चौकसी में ही लगे हुए हैं हम।
    हिन्द-सिन्धु की कसम, कौन इस पर जहाज ला सकता ।
    सरहद के भीतर कोई दुश्मन कैसे आ सकता है ?
    पर की हम कुछ नहीं चाहते, अपनी किन्तु बचायेंगे,
    जिसकी उँगली उठी उसे हम यमपुर को पहुँचायेंगे।
    हम प्रहरी यमराज समान
    जियो जियो अय हिन्दुस्तान!

    - रामधारी सिंह "दिनकर"

  6. Patriotic poems by famous Poets and Writers

    [h=3]वह देश कौन सा है[/h]
    मन-मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है।
    सुख-स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है?

    जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है।
    जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है?

    नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं।
    सींचा हुआ सलोना वह देश कौन-सा है?

    जिसके बड़े रसीले फल, कंद, नाज, मेवे।
    सब अंग में सजे हैं, वह देश कौन-सा है?

    जिसमें सुगंध वाले सुंदर प्रसून प्यारे।
    दिन रात हँस रहे है वह देश कौन-सा है?

    मैदान, गिरि, वनों में हरियालियाँ लहकती।
    आनंदमय जहाँ है वह देश कौन-सा है?

    जिसकी अनंत धन से धरती भरी पड़ी है।
    संसार का शिरोमणि वह देश कौन-सा है?

    सब से प्रथम जगत में जो सभ्य था यशस्वी।
    जगदीश का दुलारा वह देश कौन-सा है?

    पृथ्वी-निवासियों को जिसने प्रथम जगाया।
    शिक्षित किया सुधारा वह देश कौन-सा है?

    जिसमें हुए अलौकिक तत्वज्ञ ब्रह्मज्ञानी।
    गौतम, कपिल, पतंजलि, वह देश कौन-सा है?

    छोड़ा स्वराज तृणवत आदेश से पिता के।
    वह राम थे जहाँ पर वह देश कौन-सा है?

    निस्वार्थ शुद्ध प्रेमी भाई भले जहाँ थे।
    लक्ष्मण-भरत सरीखे वह देश कौन-सा है?

    देवी पतिव्रता श्री सीता जहाँ हुईं थीं।
    माता पिता जगत का वह देश कौन-सा है?

    आदर्श नर जहाँ पर थे बालब्रह्मचारी।
    हनुमान, भीष्म, शंकर, वह देश कौन-सा है?

    विद्वान, वीर, योगी, गुरु राजनीतिकों के।
    श्रीकृष्ण थे जहाँ पर वह देश कौन-सा है?

    विजयी, बली जहाँ के बेजोड़ शूरमा थे।
    गुरु द्रोण, भीम, अर्जुन वह देश कौन-सा है?

    जिसमें दधीचि दानी हरिचंद कर्ण से थे।
    सब लोक का हितैषी वह देश कौन-सा है?

    बाल्मीकि, व्यास ऐसे जिसमें महान कवि थे।
    श्रीकालिदास वाला वह देश कौन-सा है?

    निष्पक्ष न्यायकारी जन जो पढ़े लिखे हैं।
    वे सब बता सकेंगे वह देश कौन-सा है?

    छत्तीस कोटि भाई सेवक सपूत जिसके।
    भारत सिवाय दूजा वह देश कौन-सा है?
    - रामनरेश त्रिपाठी

    Patriotic Poems in Hindi

    [h=3]तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है[/h]

    तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है
    सचमुच आज काट दी हमने
    ज़ंजीरें स्वदेश के तन की
    बदल दिया इतिहास, बदल दी
    चाल समय की चाल पवन की

    देख रहा है राम-राज्य का
    स्वप्न आज साकेत हमारा
    खूनी कफ़न ओढ़ लेती है
    लाश मगर दशरथ के प्रण की

    मानव तो हो गया आज
    आज़ाद दासता बंधन से पर
    मज़हब के पोथों से ईश्वर का जीवन आज़ाद नहीं है ।
    तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है ।

    हम शोणित से सींच देश के
    पतझर में बहार ले आए
    खाद बना अपने तन की —
    हमने नवयुग के फूल खिलाए

    डाल-डाल में हमने ही तो
    अपनी बाहों का बल डाला
    पात-पात पर हमने ही तो
    श्रम-जल के मोती बिखराए

    क़ैद कफ़स सय्याद सभी से
    बुलबुल आज स्वतंत्र हमारी
    ऋतुओं के बंधन से लेकिन अभी चमन आज़ाद नहीं है ।
    तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है ।

    यद्यपि कर निर्माण रहे हम
    एक नई नगरी तारों में
    सीमित किन्तु हमारी पूजा
    मन्दिर-मस्जिद गुरुद्वारों में

    यद्यपि कहते आज कि हम सब
    एक हमारा एक देश है
    गूँज रहा है किन्तु घृणा का
    तार-बीन की झंकारों में

    गंगा-जमना के पानी में
    घुली-मिली ज़िन्दगी हमारी
    मासूमों के गरम लहू से पर दामन आज़ाद नहीं है।
    तन तो आज स्वतंत्र हमारा लेकिन मन आज़ाद नहीं है ।
    - गोपालदास "नीरज"

    PATRIOTIC POEMS IN HINDI

    [h=3]मैं भारत गुण-गौरव गाता[/h]
    मैं भारत गुण-गौरव गाता !
    श्रद्धा से उसके कण-कण को
    उन्नत माथा नवाता ।

    प्रथम स्वप्न-सा आदि पुरातन,
    नव आशाओं से नवीनतम,
    प्राणाहुतियों से युग-युग की
    चिर अजेय बलदाता !

    आर्य शौर्य धृति, बौद्ध शांति द्युति,
    यवन कला स्मिति, प्राच्य कर्म रति,
    अमर अमित प्रतिभायुत भारत
    चिर रहस्य, चिर-ज्ञाता !

    वह भविष्य का प्रेम-सूत है,
    इतिहासों का मर्म पूत है,
    अखिल राष्ट्र का श्रम, संयम, तप:
    कर्मजयी, युग त्राता !

    मैं भारत गुण-गौरव गाता।
    - शमशेर बहादुर सिंह


    PATRIOTIC POEMS IN HINDI

    [h=3]उठो सोने वालों[/h]
    भारत क्यों तेरी साँसों के, स्वर आहात से लगते हैं
    अभी जियाले परवानों में आग बहुत सी बाकी है .
    क्यों तेरी आँखों में पानी, आकार ठहरा–ठहरा है ,
    जब तेरी नदियों की लहरें डोल-डोल मदमाती है .

    जो गुजरा है वह तो कल था, अब तो आज की बातें हैं ,
    और जो लड़े जो बेटे तेरे, राज काज की बातें हैं ,
    चक्रवात पर, भूकम्पों पर, किसी का जोर नहीं ,
    और चली सीमा पर गोली, सभ्य समाज की बातें हैं

    कल फिर तू क्यों, पेट बाँध कर सोया था, मैं सुनता हूँ
    जब तेरे खेतों की बाली, लहर–लहर इतराती हैं

    अगर बात करनी है, उनको कश्मीरों पर करने दो ,
    अजय आहूजा, अधिकारी, नय्यर, जब्बर को मरने दो ,
    वो समझौता–ए–लाहौरी याद नहीं कर पाएंगे ,
    भूल कारगिल की गद्दारी, नयी मित्रता गढ़ने दो ,

    एसी अटल अवस्था में भी, कल क्यों पल-पल टालता है,
    जब मीठी परवेजी गोली, गीत सुना बहलाती है .

    चलो ये माना थोड़ा गम है, पर किसको न होता है ,
    जब रातें जागने लगतीं है, तभी सवेरा सोता है,
    जो अधिकारों पर बैठे हैं, वह उनका अधिकार ही है ,
    फसल काटता है कोई और कोई उसको बोता है .

    क्यों तू जीवन जटिल चक्र की , इस उलझन में फँसता है
    जब तेरी गोद में बिजली कान्ध-कान्ध मुस्काती है .

    -अभिनव शुक्ला

  7. Patriotic Hindi Poems about India

    नेताजी सुभाषचन्द्र बोस

    है समय नदी की बाढ़ कि जिसमें सब बह जाया करते हैं।
    है समय बड़ा तूफ़ान प्रबल पर्वत झुक जाया करते हैं ।।
    अक्सर दुनियाँ के लोग समय में चक्कर खाया करते हैं।
    लेकिन कुछ ऐसे होते हैं, इतिहास बनाया करते हैं ।।

    यह उसी वीर इतिहास-पुरुष की अनुपम अमर कहानी है।
    जो रक्त कणों से लिखी गई,जिसकी जयहिन्द निशानी है।।
    प्यारा सुभाष, नेता सुभाष, भारत भू का उजियारा था ।
    पैदा होते ही गणिकों ने जिसका भविष्य लिख डाला था।।

    यह वीर चक्रवर्ती होगा , या त्यागी होगा सन्यासी।
    जिसके गौरव को याद रखेंगे, युग-युग तक भारतवासी।।
    सो वही वीर नौकरशाही ने,पकड़ जेल में डाला था ।
    पर क्रुद्ध केहरी कभी नहीं फंदे में टिकने वाला था।।

    बाँधे जाते इंसान,कभी तूफ़ान न बाँधे जाते हैं।
    काया ज़रूर बाँधी जाती,बाँधे न इरादे जाते हैं।।
    वह दृढ़-प्रतिज्ञ सेनानी था,जो मौका पाकर निकल गया।
    वह पारा था अंग्रेज़ों की मुट्ठी में आकर फिसल गया।।

    जिस तरह धूर्त दुर्योधन से,बचकर यदुनन्दन आए थे।
    जिस तरह शिवाजी ने मुग़लों के,पहरेदार छकाए थे ।।
    बस उसी तरह यह तोड़ पींजरा , तोते-सा बेदाग़ गया।
    जनवरी माह सन् इकतालिस,मच गया शोर वह भाग गया।।
    वे कहाँ गए, वे कहाँ रहे,ये धूमिल अभी कहानी है।
    हमने तो उसकी नयी कथा,आज़ाद फ़ौज से जानी है।।

    - -गोपाल प्रसाद व्यास

    Hindi Patriotic Poems
    [h=3]मेरे देश के लाल
    [/h]
    पराधीनता को जहाँ समझा श्राप महान
    कण-कण के खातिर जहाँ हुए कोटि बलिदान
    मरना पर झुकना नहीं, मिला जिसे वरदान
    सुनो-सुनो उस देश की शूर-वीर संतान


    आन-मान अभिमान की धरती पैदा करती दीवाने
    मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

    दूध-दही की नदियां जिसके आँचल में कलकल करतीं
    हीरा, पन्ना, माणिक से है पटी जहां की शुभ धरती
    हल की नोंकें जिस धरती की मोती से मांगें भरतीं
    उच्च हिमालय के शिखरों पर जिसकी ऊँची ध्वजा फहरती


    रखवाले ऐसी धरती के हाथ बढ़ाना क्या जाने
    मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

    आज़ादी अधिकार सभी का जहाँ बोलते सेनानी
    विश्व शांति के गीत सुनाती जहाँ चुनरिया ये धानी
    मेघ साँवले बरसाते हैं जहाँ अहिंसा का पानी
    अपनी मांगें पोंछ डालती हंसते-हंसते कल्याणी


    ऐसी भारत माँ के बेटे मान गँवाना क्या जाने
    मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

    जहाँ पढाया जाता केवल माँ की ख़ातिर मर जाना
    जहाँ सिखाया जाता केवल करके अपना वचन निभाना
    जियो शान से मरो शान से जहाँ का है कौमी गाना
    बच्चा-बच्चा पहने रहता जहाँ शहीदों का बाना


    उस धरती के अमर सिपाही पीठ दिखाना क्या जाने
    मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

    - बालकवि बैरागी (Bal kavi bairagi)

    Patriotic Poems by Bhagat singh
    [h=3]उसे यह फिक्र है हरदम by shaheed Bhagat Singh
    [/h]
    उसे यह फ़िक्र है हरदम,
    नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
    हमें यह शौक देखें,

    सितम की इंतहा क्या है?
    दहर से क्यों खफ़ा रहे,

    चर्ख का क्यों गिला करें,
    सारा जहाँ अदू सही,
    आओ मुकाबला करें।
    कोई दम का मेहमान हूँ,
    ए-अहले-महफ़िल,
    चरागे सहर हूँ,
    बुझा चाहता हूँ।
    मेरी हवाओं में रहेगी,
    ख़यालों की बिजली,
    यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी,
    रहे रहे न रहे।
    - भगत सिंह

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