एक गाँव पीने के पानी की समस्या - ek gaanv peene ke paanee kee samasya

निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर लगभग ७० से ८० शब्दों में कहानी लिखकर उचित शीर्षक दीजिए तथा सीख लिखिए:

एक गाँव – पीने के पानी की समस्या – दूर-दूर से पानी लाना – सभी लोग परेशान – सभा का आयोजन – मिलकर श्रमदान का निर्णय – दूसरे दिन से – केवल एक आदमी – काम में जुटना – धीरे-धीरे एक-एक का आना – सारा गाँव श्रमदान में – गाँव के तालाब की सफाई – कीचड़, प्लास्टिक निकालना – बरसात में तालाब का स्वच्छ पानी से भरना।

एकता में शक्ति होती है

           एक शीतपुर नामक गाँव था। गाँव के सभी लोग हमेशा अपने-अपने काम में व्यस्त रहते थे। गाँव में एक तालाब था, जो गर्मियों में सूख गया था। तालाब सूखने की वजह से लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिल पा रहा था। सभी गाँववासी दूर-दूर जाकर पानी की खोज करते और बाल्टी, मटके आदि में पीने का पानी भरकर लाते थे। रोज-रोज उतनी दूर से पानी भरकर लाने से वे इतने थक जाते थे कि उनके लिए कोई अन्य काम करना मुश्किल हो जाता था। पानी की इस समस्या से सभी लोग बहुत परेशान थे।
         गाँव के लोगों ने इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए एक सभा का आयोजन किया। उसमें एक आदमी ने सभी से कहा, यदि हमारे गाँव का तालाब सूखा नहीं होता, तो हमें पानी लाने दूर तक नहीं जाना पड़ता। अत: मेरे विचार से हमें गाँव के ही तालाब की सफाई करवानी चाहिए। बरसात का मौसम आने वाला है। यदि हम उससे पहले मिलकर तालाब की सफाई कर लेते हैं, तो बरसात का पानी स्वच्छ तालाब में एकत्रित हो जाएगा, उस पानी का उपयोग हम पीने के लिए कर सकते हैं। उस आदमी की बात से सभी ने सहमत होकर तालाब की सफाई में श्रमदान करने का निर्णय लिया।
           दूसरे दिन तय किए गए समय पर वह आदमी तालाब के पास सभी गाँववासियों का इंतजार कर रहा था। काफी समय तक इंतजार करने के बाद भी जब कोई नहीं आया तब वह आदमी समझ गया कि इस कार्य में गाँववाले उसकी कोई सहायता नहीं करेंगे। वह अकेले ही तालाब की सफाई के काम में जुट गया। आने-जाने वाले लोगों ने जब उस आदमी को अकेले ही तालाब की सफाई करते देखा, तो वे भी उसकी मदद के लिए तुरंत वहाँ पहुँच गए। धीरे-धीरे एक-एक करके काफी लोग तालाब की सफाई में जुट गए। उन्हें देखकर सारा गाँव इस काम के लिए प्रेरित हुआ और इस कार्य में अपना श्रमदान देने के लिए तैयार हुआ। कुछ लोगों ने तालाब से कीचड़ निकालने का कार्य किया तो कुछ लोगों ने तालाब में एकत्रित प्लास्टिक व कूड़ा-कचरा निकालने का कार्य किया। देखते-ही-देखते पूरे गाँववालों के श्रमदान से कुछ ही दिनों में तालाब पूरी तरह साफ हो गया।
          कुछ दिनों बाद बरसात का मौसम आया और झमाझम बरसात हुई। गाँव का तालाब स्वच्छ पानी से लबालब भरकर बहने लगा, जिसकी वजह से गाँव में पानी की समस्या का निदान हुआ। गाँववालों की एकता के कारण ही उन्हें इस समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा मिल गया था।

सीख: मिल-जुलकर काम करने से किसी भी समस्या का हल आसानी से निकाला जा सकता है।

Concept: रचना विभाग (10th Standard)

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इंदौर: गर्मी की शुरुआत होते ही पानी की समस्या (Drinking Water Crisis) बढ जाती है. अभी तो मई-जून की गर्मी अभी बाकी ही है. अप्रैल में ही प्रदेश के कई शहरों में पानी की किल्लत शुरू हो गई है. जिसकी तस्वीरें भी सामने आने लगी हैं. इंदौर जिले के गौतमपुरा इलाके की तस्वीर भी अलग नहीं है. इस समस्या के समाधान के लिए ग्राम पंचायत ने इस साल निर्मल कुंआ निर्माण योजना का प्रस्ताव जनपद में दिया है. 

कैसे प्यास बुझाते हैं नोलाना गांव के लोग.

दरअसल यह तस्वीर किसी सूखाग्रस्त गाँव या रेगिस्तानी इलाके की नहीं है. पानी के डिब्बे लिए लंबी कतार में खड़े ये बच्चे, बूढ़े, जवान इंदौर जिले के गौतमपुरा समीपस्थ ग्राम नोलाना गांव के हैं. यह नजारा यहां अब आम हो चला है. क्योंकि 2000 लोगों की आबादी वाले इस छोटे से गाव में सरकार की ओर से पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. इस इलाके में यह आलम जाड़ा, गर्मी और बरसात हर मौसम में रहता है. गर्मी में यह समस्या विकराल हो जाती है. पूरा गांव पीने के पानी के लिए जद्दोजहद करता हुआ नजर आता है. 

इस गांव से 150 मीटर की दूरी पर चंबल नदी गुजरती है. परंतु गांव में पीने के पानी की व्यवस्था वर्षों से न सरकार ने की न ही सांसद ने ओर न ही किसी विधायक ने. इस वजह से हर वर्ष लोगों को प्यास बुझाने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. गांव में और गांव के आसपास जितने भी बोरिंग करवाए गए हैं, सभी जगह गंदा ओर मैला पानी आता है. जिसे पीना यानी अपनी जान के साथ खिलवाड़ करना है.

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पीने के पानी के लिए क्या कहते हैं ग्रामीण

ग्राम के राधेश्याम सैनी के अनुसार ग्राम पंचायत द्वारा पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. रोजाना ग्रामीणों को या तो 02 से 04 किमी दूर किसी के खेत से पानी के डब्बे भर कर घर लाना पड़ता है या कई घंटे लंबी कतार में खड़े होने के बाद अपने निजी बोरिंग से ग्रामवासी को सेवा दे रहे दिलावसिंह दरबार के यहां से पानी लाकर अपने परिवार की प्यास बुझानी पड़ती है.

अभी पानी के लिए गांव के ही दिलावर सिंह दरबार और उमेसिंह का खेत गांव से 1 किमी दूर है. जहां उनके बोरिंग में मीठा पानी है. ग्रामीणों की सुविधा के लिए दरबार ने निजी खर्च से अपने खेत से गाँव तक 1 किमी कि पाइप लाइन डाली और मोटर लगवाई है. सभी ग्रामीणों की पानी की समस्याओं को देखते हुए.

एक किमी दूर से आता है पीने का पानी

वह सुबह 07 बजे से वह अपने घर पर गांव वालों को पीने का पानी मिले, इसके लिए मोटर चालू करते हैं. इस दौरान गांव के सभी लोग लंबी कतार लगा कर अपने अपने डब्बे में पीने का पानी भर कर ले जाते हैं. इससे वो अपनी प्यास बुझाते हैं. लेकिन वहां भी नलकूप में कम पानी आने से पानी की स्पीड भी घटती-बढ़ती रहती है. इससे वहां इस दौरन बड़ी संख्या में कतार लग जाती है. बच्चे, महिलाएं सभी घण्टों धूप में खड़े होकर अपने डिब्बे भरने तक इंतजार करते है. जैसे तैसे लोग पीने का पानी भर लेते है. कई बार वहां विवाद की स्थिति भी बन जाती है. 

गौतमपुरा का ग्राम नोलाना जिले का एकमात्र ऐसा गांव हैं जो आज भी इतना पिछड़ा है कि यहां पीने के पानी तक कि कोई व्यवस्था नहीं है. इससे पूरे गांव के लोग परेशान हैं. गांव के लोगों ने जिले के सांसद, विधायक, पूर्व विधायक, एसडीएम, जनपद सीओ को लिखित में कई बार समस्या से अवगत कराया है, लेकिन उन्हें आश्वाशन के सिवा कुछ नहीं मिला है. उनकी पीने के पानी के कमी की समस्या जस की तस है.

पहले हुई थी बोरिंग, नहीं आता था साफ पानी

ग्राम पंचायत के सचिव जितेंद्र चौहान ने भी माना कि गांव में पीने के पानी की किल्लत है. इससे ग्रामीण जूझ रहे हैं. सचिव ने बताया कि पंचायत ने कई बोरिंग कराए पर उसमें मैला ओर गंदा पानी निकला जो पीने योग्य नहीं था. इस संबंध में सभी उच्च अधिकारियों को अवगत करा दिया गया है. इस वर्ष पंचायत ने निर्मल कुंआ निर्माण योजना का प्रस्ताव जनपद में दिया है. उमीद है कि कुंआ बनने से गांव में पीने के पानी की व्यवस्था हो जाएगी.

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