ब्रह्माजी के यूं तो कई मंदिर है लेकिन एकमात्र प्रसिद्ध मंदिर राज्स्थान के पुस्कर में है। शैव और शाक्त आगम संप्रदायों की तरह ही ब्रह्माजी की उपासना का भी एक विशिष्ट संप्रदाय है, जो वैखानस संप्रदाय के नाम से प्रसिद्ध है। माध्व संप्रदाय के आदि आचार्य भगवान ब्रह्मा ही माने जाते हैं। इसलिए उडुपी आदि मुख्य मध्वपीठों में इनकी पूजा-आराधना की विशेष परम्परा है। देवताओं तथा असुरों की तपस्या में प्राय: सबसे अधिक आराधना इन्हीं की होती है। लेकिन प्रचरित समाज में इनकी पूजा कोई नहीं करता और न ही इनके नाम का कोई व्रत या त्योहार है। आखिर ऐसा क्यों है? इसके कई कारण बताए जाते हैं। इनमें से प्रमुख तीन कारण जानिए...
पहला कारण : पुष्कर में ब्रह्माजी को एक यज्ञ करना था और उस वक्त उनकी पत्नीं सावित्री उनके साथ नहीं थी। उनकी पत्नी सावित्री वक्त पर यज्ञ स्थल पर नहीं पहुंच पाईं। यज्ञ का समय निकल रहा था। लिहाजा ब्रह्माजी ने एक स्थानीय ग्वाल बाला गायत्री से शादी कर ली और यज्ञ में बैठ गए। जाट इतिहास अनुसार यह गायत्री देवी राजस्थान के पुष्कर की रहने वाली थी जो वेदज्ञान में पारंगत होने के कारण विख्यात थी और जाट ही थी।
सावित्री थोड़ी देर से पहुंचीं। लेकिन यज्ञ में अपनी जगह पर किसी और औरत को देखकर गुस्से से पागल हो गईं। उन्होंने ब्रह्माजी को शाप दिया कि जाओ इस पृथ्वी लोक में तुम्हारी कहीं पूजा नहीं होगी। सावित्री के इस रुप को देखकर सभी देवता लोग डर गए। उन्होंने उनसे विनती की कि अपना शाप वापस ले लीजिए। जब गुस्सा ठंडा हुआ तो सावित्री ने कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में आपकी पूजा होगी। कोई भी दूसरा आपका मंदिर बनाएगा तो उसका विनाश हो जाएगा।
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ब्रह्माजी ने पुष्कर झील किनारे कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था, जिसकी स्मृति में अनादि काल से यहां कार्तिक मेला लगता आ रहा है। यहां विश्व में ब्रह्माजी का एकमात्र प्राचीन मंदिर है। मंदिर के पीछे रत्नागिरि पहाड़ पर जमीन तल से दो हजार तीन सौ 69 फुट की ऊंचाई पर ब्रह्माजी की प्रथम पत्नी सावित्री का मंदिर है। झील की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ जिससे इस झील का उद्भव हुआ।
राजस्थान में अजमेर शहर से 14 किलोमीटर दूर पुष्कर झील है। पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है।
दूसरा कारण : प्रमुख देवता होने पर भी इनकी पूजा बहुत कम होती है। दूसरा कारण यह की ब्रह्मांड की थाह लेने के लिए जब भगवान शिव ने विष्णु और ब्रह्मा को भेजा तो ब्रह्मा ने वापस लौटकर शिव से असत्य वचन कहा था।
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तीसरा कारण : जगत पिता ब्रह्माजी की काया कांतिमय और मनमोहक थी। उनके मनमोहक रूप को देखकर स्वर्ग अप्सरा मोहिनी नाम कामासक्त हो गई और वह समाधि में लीन ब्रह्माजी के समीप ही आसन लगाकर बैठ गई। जब ब्रह्माजी की तांद्रा टूटी तो उन्होंने मोहिनी से पूछा, देवी! आप स्वर्ग का त्याग कर मेरे समीप क्यों बैठी हैं?
मोहिनी ने कहा, 'हे ब्रह्मदेव! मेरा तन और मन आपके प्रति प्रेममत्त हो रहा है। कृपया आप मेरा प्रेम स्वीकार करें।'
ब्रह्मजी मोहिनी के कामभाव को दूर करने के लिए उसे नीतिपूर्ण ज्ञान देने लगे लेकिन मोहिनी ब्रह्माजी को अपनी ओर असक्त करने के लिए कामुक अदाओं से रिझाने लगी। ब्रह्माजी उसके मोहपाश से बचने के लिए अपने इष्ट श्रीहरि को याद करने लगे।
उसी समय सप्तऋषियों का ब्रह्मलोक में आगमन हुआ। सप्तऋषियों ने ब्रह्माजी के समीप मोहिनी को देखकर उन से पूछा, यह रूपवति अप्सरा आप के साथ क्यों बैठी है? ब्रह्मा जी बोले, 'यह अप्सरा नृत्य करते-करते थक गई थी विश्राम करने के लिए पुत्री भाव से मेरे समीप बैठी है।'
सप्तऋषियों ने अपने योग बल से ब्रह्माजी की मिथ्या भाषा को जान लिया और मुस्कुरा कर वहां से प्रस्थान कर गए। ब्रह्माजी के अपने प्रति ऐसे वचन सुनकर मोहिनी को बहुत गुस्सा आया। मोहिनी बोली, मैं आपसे अपनी काम इच्छाओं की पूर्ति चाहती थी और आपने मुझे पुत्री का दर्जा दिया। अपने मन पर संयम होने का बड़ा घमंड है आपको तभी आपने मेरे प्रेम को ठुकराया। यदि मैं सच्चे हृदय से आपसे प्रेम करती हूं तो जगत में आपको पूजा नहीं जाएगा।
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माता सावित्री के श्राप के कारण नहीं की जाती ब्रह्मा जी की पूजा, पुष्कर में है एक मात्र मंदिर
धर्म डेस्क. हिंदू ग्रंथों और पुराणों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सृष्टि का निर्माता, पालनकर्ता और संहारक माना जाता हैं। लेकिन आप के मन में ये सवाल कई बार आता होगा कि विष्णु और महेश (शिव जी) के तो दुनियाभर में कई मंदिर हैं और लोग घर में भी इनकी स्थापना कर इनकी पूजा करते हैं। लेकिन ब्रह्मा की पूजा कभी नहीं की जाती। और उनका केवल एक ही मंदिर है, जो पुष्कर में है। ब्रह्माजी की पूजा करना वर्जित क्यों माना गया है? दरअसल देवी सावित्री के श्राप के कारण ही ब्रह्माजी की पूजा वर्जित मानी गई है।
देवी सावित्री ने दिया था श्राप
- पुराणों के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी हाथ में कमल का फूल लिए हुए अपने वाहन हंस पर सवार होकर अग्नि यज्ञ के लिए उचित स्थान की तलाश कर रहे थे।
- तभी एक जगह पर उनके हाथ से कमल का फूल गिर गया। फूल के धरती पर गिरते ही धरती पर एक झरना बन गया और उस झरने से 3 सरोवर बन गए।
- जिन जगहों पर वो तीन झरने बने उन्हें ब्रह्म पुष्कर, विष्णु पुष्कर और शिव पुष्कर के नाम से जाना जाता है। यह देखकर ब्रह्मा जी ने इसी जगह यज्ञ करने का निर्णय लिया।
कर लिया था दूसरा विवाह
- यज्ञ में ब्रह्मा जी के
साथ उनकी पत्नी का होना जरुरी था। भगवान ब्रह्मा की पत्नी सावित्री वहां नहीं थी और शुभ मुहूर्त निकला जा रहा था।
- इस कारण ब्रह्मा जी ने उसी समय वहां मौजूद एक सुदंर स्त्री के विवाह करके उसके साथ यज्ञ संपन्न कर लिया।
- जब यह बात देवी सावित्री को पता चली। इससे नाराज होकर उन्होंने ब्रह्मा जी को यह श्राप दे दिया कि जिसने सृष्टि की रचना की पूरी सृष्टि में उसी की कहीं पूजा नहीं की जाएगी।
- पुष्कर को छोड़ कर पूरे विश्व में भगवान ब्रह्मा का कहीं मंदिर नहीं होगा। इसी श्राप की वजह से ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर पुष्कर में है।
ब्रह्मा जी ने यहीं रचा था ब्रह्माण
- पद्म पुराण के अनुसार ब्रह्माजी पुष्कर के इस स्थान पर दस हजार सालों तक रहे थे। इस दौरान उन्होंने सृष्टि की रचना की।
- इसके बाद उन्होंने पांच दिनों तक यज्ञ किया था। उसी यज्ञ के दौरान सावित्री पहुंच गई थीं। आज भी श्रद्धालु केवल दूर से ही ब्रह्मा जी से करते हैं।
देवी सावित्री हैं विराजमान
- पुराण के अनुसार गुस्सा कम होने के
बाद सावित्री पुष्कर के पास मौजूद पहाड़ियों पर जाकर तपस्या करने चलीं गईं थीं।
- मान्यताओं के अनुसार सावित्री देवी मंदिर में रहकर भक्तों का कल्याण करती हैं।