भारत पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी पर आधारित कहानी का नाम क्या है? - bhaarat paakistaan vibhaajan kee traasadee par aadhaarit kahaanee ka naam kya hai?

भारत-पाक बंटवारे की वो प्रेम कहानी

  • सौतिक बिस्वास
  • बीबीसी संवाददाता

25 मार्च 2017

इमेज स्रोत, Courtesy the Partition Museum, Town Hall, Amritsar

ऊपर की तस्वीर में आपको एक कढ़ाईदार जैकेट और एक भूरे रंग का चमड़े का ब्रीफ़केस दिख रहा होगा. देखने में तो ये किसी सधारण जैकेट और ब्रीफ़केस की तरह लग रहे होंगे, लेकिन ये ख़ास हैं.

ये जैकेट और ब्रीफ़केस उस आदमी और औरत के हैं जो अविभाजित भारत के पंजाब में रहते थे. उन दोनों की मुलाकात उनके मां-बाप ने करवाई थी.

जब 1947 में बंटवारे के दौरान बड़े पैमाने पर भारत-पाकिस्तान दोनों ही तरफ हिंसा भड़की थी तब दोनों की सगाई हो चुकी थी.

इस बंटवारे में क़रीब दस लाख लोग मारे गए थे और लाखों लोग बेघर हो गए थे.

हिंदू-मुस्लिम दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे.

लाखों लोगों का अपने देश छोड़ कर यूं जाना मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में एक थी.

ऐसे माहौल में अपनी जान बचाने के लिए घर से निकले इन दो शख़्सों के लिए ये जैकेट और ब्रीफकेस किसी अनमोल धरोहर की तरह थे.

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भगवान सिंह और प्रीतम कौर

भगवान सिंह मैनी के तीन भाई पहले ही इस हिंसा की भेंट चढ़ चुके थे. इसलिए भगवान सिंह ने अपने सभी सर्टिफ़िकेट और ज़मीन के कागज़ात इस ब्रीफ़केस में रखे और अपने घर मियांवाली से निकल पड़े.

यहां से ढाई सौ किलोमीटर से ज़्यादा की दूरी पर गुजरांवाला में 22 साल की प्रीतम कौर अपने परिवार से बिछुड़ कर अमृतसर जाने वाली ट्रेन पर सवार हो गई थीं.

उनके गोद में उनका दो साल का भाई था. उनके बैग में उनकी सबसे क़ीमती चीज़ उनकी फुलकारी जैकेट थी.

यह जैकेट उनके अच्छे दिनों की निशानी थी.

इसे इत्तेफाक ही कहेंगे कि अमृतसर में लगे शरणार्थी शिविरों में एक बार फिर भगवान सिंह और प्रीतम कौर की मुलाकात हुई.

सरहद के दूसरे पार से आए डेढ़ करोड़ शरणार्थियों में से इन दोनों का मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं था.

इन दोनों की मुलाकात उस वक़्त हुई जब ये दोनों शरणार्थी शिविर में खाना लेने के लिए लाइन में लगे थे.

भगवान सिंह मैनी की बहू कूकी मैनी बताती हैं, "दोनों ने ही अपने साथ गुज़रे बुरे वक़्त के बारे में एक दूसरे को बताया. वो अपने किस्मत पर आश्चर्य कर रहे थे कि वो एक बार फिर से मिल गए थे. बाद में उनके परिवार भी मिल गए."

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मार्च 1948 में दोनों की शादी हुई. यह एक सीधा-सादा समारोह था. दोनों के ही परिवार वाले अपनी नई ज़िंदगी शुरू करने के जद्दोजहद से गुजर रहे थे.

भगवान सिंह मैनी ने पंजाब में कोर्ट में नौकरी कर ली और प्रीतम कौर के साथ लुधियाना चले गए.

दोनों के ही दो बच्चे हैं. दोनों बच्चे प्रशासनिक अधिकारी हैं. मैनी की 30 साल पहले मौत हो चुकी है और प्रीतम कौर ने 2002 में दुनिया को अलविदा कह दिया.

कूकी मैनी कहती हैं, "ये जैकेट और ब्रीफ़केस उनकी त्रासदीपूर्ण ज़िंदगी जिसमें उनके बिछड़ने और मिलने की कहानी शामिल है, की गवाह है."

अब उनकी यह कहानी अमृतसर में अगले साल से शुरू होने वाले म्यूजियम में धरोहर के तौर पर संरक्षित रहेगी.

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यह म्यूज़ियम बंटवारे की निशानियों को सहेज कर रखने के लिए समर्पित होगी. यह शहर के भव्य टाउन हॉल में होगा.

यहां तस्वीरें, चिट्ठियां, ऑडियो रिकॉर्डिंग्स, शरणार्थियों के सामान, आधिकारिक दस्तावेज़, मानचित्र और समाचार पत्र की कतरनें रखी होंगी.

इस पार्टिशन म्यूज़ियम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मनिका अहलूवालिया का कहना है, "यह बंटवारे को लेकर एक शानदार और दुनिया का अपने आप में एक अनोखा म्यूज़ियम होगा.

बंटवारे के वक्त दोनों तरफ की ट्रेनें खून और लाशों से भरी होती थीं. सेना के बहुत कम जवान दंगों को रोकने में लगे हुए थे.

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इतिहासकार रामचंद्र गुहा का कहना है, "उस वक्त ब्रितानियों की जान बचाना अंग्रेज़ों की पहली प्राथमिकता थी."

पूरा देश लगता था कि शरणार्थी शिविरों के तंबुओं से पटा पड़ा था. किसान अपनी ज़मीन छोड़ कर बेघर हो गए थे.

इसके बदले में उन्हें बहुत थोड़ा-सा मुआवजा मिला था.

बंटवारे के महीनों बाद तक दोनों तरफ खूनख़राबा होता रहा था.

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पार्टिशन म्यूजियम

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अक्टूबर,1947 में लिखा था, "ज़िंदगी यहां भयावह होती जा रही है. हर चीज़ गड़बड़ होती मालूम पड़ती है."

ऐसे वक्त में भगवान सिंह मैनी और प्रीतम कौर जैसी कहानियां ज़िंदगी की उम्मीद को ज़िंदा रखने में कामयाब रहीं.

उम्मीद है कि अमृतसर में खुला यह म्यूज़ियम लोगों को लेखक सुनील खिलनानी के लिखे शब्दों की याद दिलाएगा.

उन्होंने बंटवारे के इस मंज़र पर लिखा था, "भारत के दिल की यह ना सुनाई जाने वाली उदासी है."

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भारत पाक विभाजन पर आधारित कहानी कौन सी है?

विभाजन को लेकर लिखा गया भीष्म साहनी का उपन्यास 'तमस' बेहतरीन उपन्यास है. लेखक को इसे लिखने की प्रेरणा 1970 में भिवंडी, जलगांव और महाड़ में हुए सांप्रदायिक दंगों से मिली थी और वहां के दौरे ने उनकी रावलपिंडी की यादों को ताजा कर दिया था.

देश विभाजन पर आधारित गद्य पाठ का नाम क्या है?

'तमस' भीष्म साहनी का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। तमस को 1975 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसकी कथा 1947 ई० के पंजाब परिवेश और विभाजन पर आधारित कहानी है।

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झूठा सच, यशपाल हिंदी के प्रसिद्ध लेखक यशपाल का उपन्यास है जो भारत विभाजन पर अपने महाकाव्यात्मक स्वरूप में इस त्रास का उदघाटन करता है. झूठा सच दो भागों में लिखा गया है - 'वतन और देश', तथा 'देश का भविष्य'.

देश विभाजन की पीड़ा से सम्बन्धित कहानी कौन है?

विभाजन को लेकर लिखा गया भीष्म साहनी का उपन्यास 'तमस' भी यशपाल के 'झूठा सच' की तरह ही आधुनिक क्लासिक की श्रेणी में रखा जाता है. लेखक को इसे लिखने की प्रेरणा 1970 में भिवंडी, जलगांव और महाड़ में हुए सांप्रदायिक दंगों से मिली थी और वहां के दौरे ने उनकी रावलपिंडी की यादों को ताजा कर दिया था.

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