विषयसूची
भारत के पहले राष्ट्रीय कवि कौन थे?
इसे सुनेंरोकेंमैथिलि शरण गुप्त को भारत का प्रथम राष्ट्र कवी होने का गौरव प्राप्त है. उनका जन्म ३ अगस्त, १८८६ को झाँसी में हुआ था.
द्वितीय राष्ट्रीय कवि कौन है?
इसे सुनेंरोकेंमान्यता वह होती है, जिसे या तो ‘मान’ लिया जाता है अथवा ‘मनवा’ लिया जाता है। हिंदी में दो राष्ट्रकवि माने गए हैं- एक मैथिलीशरण गुप्त, और दूसरे रामधारी सिंह ‘दिनकर।
कौन राष्ट्रकवि कहलाता है?
इसे सुनेंरोकेंभारतवर्ष में मैथिलीशरण जी, माखनलाल चतुर्वेदी जी और सुब्रह्मण्यम भारती जी को राष्ट्रकवि कहते हैं, किन्तु यह आंशिक सत्य है। हमारे असली राष्ट्रकवि वाल्मीकि हैं, कालिदास हैं, तुलसीदास हैं, और रवींद्रनाथ ठाकुर हैं, क्योंकि भारत धर्म को इन्होंने सबसे अधिक अभिव्यक्ति दी है।
हिंदी के सबसे पहले कवि कौन थे?
इसे सुनेंरोकेंहिन्दी के प्रथम कवि सरहपा हैं। अत: सही उत्तर विकल्प 3 सरहपा है। हिन्दी के प्रथम कवि— सरहपा। राहुल सांकृत्यायन ने हिंदी का प्रथम कवि जैन साहित्य के रचयिता सरहपा को माना है जिनका जन्मकाल 8वीं शदी माना जाता है ।
साकेत का प्रकाशन वर्ष क्या है?
इसे सुनेंरोकेंइसका प्रथम प्रकाशन सन् १९३१ में हुआ था। इसके लिए उन्हें १९३२ में मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। साकेत राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की अमर कृति है। इस कृति में राम के भाई लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के विरह का जो चित्रण गुप्त जी ने किया है वह अत्यधिक मार्मिक और गहरी मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं से ओत-प्रोत है।
साकेत की नायिका कौन है?
इसे सुनेंरोकेंइस दृष्टि से उर्मिला को हम साकेत की नायिका मान सकते हैं । शुरुआती सर्गों में श्रीराम को वनवास का आदेश, अयोध्यावासियों का करुण-रुदन और वनगमन की झांकियां हैं। अंत के सर्गों में लक्ष्मण की पत्नी व राजवधू उर्मिला के वियोग का वर्णन है। साकेत मुख्यत: उर्मिला को केन्द्र में रख कर ही लिखी गयी है।
निम्न में से कौन रीतीबद्ध कवि नही है?
आचार्य शुक्ल ने केशवदास को कठिन काव्य का प्रेत कहा है क्योंकि उनकी कविता में अलंकार, चमत्कार एवं पांडित्य प्रदर्शन का भाव प्रमुख है।…केशवदास के ग्रन्थों का विवरण निम्नलिखित है-
मुक्तक | ||
रसिकप्रिया | 1591 | लक्षण ग्रंथ, नवरसों का निरूपण |
कविप्रिया | 1601 | अलंकारों का निरूपण |
राष्ट्रकवि उपाधि नहीं है, न ही पदक है, बल्कि 'मान्यता' है। मान्यता वह होती है, जिसे या तो 'मान' लिया जाता है अथवा 'मनवा' लिया जाता है। हिंदी में दो राष्ट्रकवि माने गए हैं- एक मैथिलीशरण गुप्त, और दूसरे रामधारी सिंह 'दिनकर।' तीसरे की तलाश है।
तीसरा राष्ट्रकवि कौन हो सकता है? कैसे हो सकता है? कब हो सकता है? क्यों हो सकता है? हो भी सकता है कि नहीं? हम यथामति विचार करने की अनुमति चाहते हैं।
जब गुप्तजी ने लिखा, तब अंग्रेजों का शासन था, वह 'भारत' की 'भारती' की तलाश करते रहते थे और सोते-जागते हिंदी वालों से पूछते रहते कि हे तात, बताओ 'हम कौन थे क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी?' तात चकित रह जाते। एक-दूसरे को देखते रहते।
इन सवालों का जबाव भी गुप्तजी को ही देना पड़ा। भारत भारती लिखकर देना पड़ा कि हम कौन थे क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी। इनमें उनका जोर 'हम कौन थे' पर ज्यादा रहा 'और क्या होंगे अभी' बहुत नहीं विचारा। इसके बाद उनको राष्ट्रकवि माना जाने लगा।
राष्ट्रकवि बनाने में संपादक की भूमिका बड़ी होती है। उनके संपादक कहते कि देखो कविवर, इधर कविता में उर्मिला देवी की बड़ी उपेक्षा की गई है। मार्जिन पर भी किसी ने जगह नहीं दी है। हे कवि, इस उपेक्षिता के विरह का वर्णन करो। विरह से खाली हाशिये भर दो। राष्ट्र संकट में है, खाली हाशिया छोड़ना कागज की बर्बादी है। आज्ञाकारी कवि ने साकेत लिख उर्मिला के विरह के इतने मौलिक सीन लिखे कि हिंदी का पेपर सेट करने वाले सेटर आज तक एमए हिंदी करने वाले विद्यार्थियों के लिए 20 नंबर के ऐसे दो सवाल जरूर दिया करते हैं, जिनके बीच में 'अथवा' लिखा रहता है। हिंदी के विद्यार्थी दोनों सवालों को 'टू इन' वन की तरह रटकर फर्स्ट क्लास नंबर पाते रहते हैं।
स्पष्ट हुआ कि राष्ट्रकवि वही है, जो एमए हिंदी के कोर्स में लगा रहे। जिस पर कम से कम दो सवाल पूछे जाते रहें, जिनमें से किसी एक का जवाब जरूरी हो। यानी वही राष्ट्रकवि है, जो कोर्स में लगा रहे और सवाल पुछवाता रहे।
यही बात दिनकरजी के बारे में सही है। वह आजादी के बाद के कवि हुए, लेकिन 'राष्ट्र' के 'खतरों' को पहचानते रहे। वह कविता लिखते रहे और फिर कोर्स में लगे। अब या तो कुरुक्षेत्र पर दो सवाल पुछवाते रहते हैं या रश्मिरथी पर या फिर हिंदी के अंतिम 'महाकाव्य' उर्वशी पर। आप देखें, गुप्तजी ने महाकाव्य में हाथ लगाने से पहले कई खंडकाव्य लिखे, जिनमें से द्वापर और जयद्रथ वध हमें भी अब तक याद है, क्योंकि एमए हिंदी में एक को पढ़ना पड़ा, और दूसरे को पढ़ाना पड़ा।
महाकाव्य की तो बात ही छोडि़ए, किसी के पास आधा या पौना खंडकाव्य तक नहीं है। जब यही नहीं, तब कोर्स में कैसे लगेगा? पेपर सेटर पेपर में 'अथवा' लगाकर एक जैसे दो सवाल कैसे करे? और एमए के विद्यार्थी किसका क्या जबाव दें? जो कवि किसी
को एमए हिंदी भी नहीं करा सकता, वह कैसा राष्ट्रकवि?
राष्ट्रकवि वही है, जो एमए हिंदी करा सकता हो। जो कवि कोर्स में लगा हो, जिस पर बीच में अथवा लगाकर पूछे जाने वाले दो सवाल बनाए जा सकें और जिनके जवाब को रटने के लिए किसी प्रिंस गाइड ने या किसी चैंपियन सीरीज ने ऐसे जबाव बना दिए हों, जिनमें उनकी कविता के कम से कम तीन-चार कोटेशन हों, जिनको पढ़कर एक्जामिनर को लगे कि छात्र मेधावी है, साहित्य के मर्म को पकड़ता है और फर्स्ट क्लास नंबर तो देने ही पड़ें।