पतंग /पतंग कविता की व्याख्या और अभ्यास के प्रश्न / पतंग कविता - आलोक धन्वा /PatangpoeminHindiClass 12
पतंग कविता की व्याख्या/Patang poem in Hindi Class 12
(1)सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादों गया
सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादों
गया
सवेरा हुआ
ख़रगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ानेवाले बच्चों के झुंड को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश
को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके-
दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके
दुनिया का सबसे पतला काग़ज़ उड़ सके-
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके-
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और
तितलियों की इतनी नाज़ुक दुनिया
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक "आरोह भाग-2" में संकलित "आलोक धन्वा" द्वारा रचित' पतंग' नामक कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने प्राकृतिक परिवर्तन के साथ-साथ बाल मन की चेष्टाओं का मनोहारी चित्रण किया है।
व्याख्या:
कवि का कथन है कि प्रकृति में निरंतर परिवर्तन हो रहे हैं। तन-मन को भिगो देने वाली तेज बौछारें समाप्त हो गई हैं तथा भादो मास का अंधकार भी समाप्त हो गया है। खरगोश की आंखों के समान लालिमा और चमक से युक्त सवेरा हो गया है। दूसरी ओर उजाला भी अनेक झाड़ियों और अँधेरों को पार करके आ गया है। शरद एक नया उजाला लेकर पदार्पण कर चुका है। कवि शरद ऋतु का मानवीकरण करते हुए कहते हैं कि शरद अपनी नई चमकदार साइकिल को तेज गति से चलाते हुए तथा जोर-जोर से उसकी घंटी बजा कर पतंग उड़ाने वाले बच्चों के समूह को सुंदर संकेतों के माध्यम से बुला रहा है। कहने का भाव है कि जैसे ही शरद ऋतु आती है तो नन्हे बच्चे अपने हाथों में पतंगे लेकर दौड़ पड़ते हैं।
ऐसा लगता है कि सर्द ऋतु बच्चों को मनोहर क्रीडायेँ करने हेतु आमंत्रित कर रहा हो। अपनी चमकदार संकेतों और मधुर ध्वनियों से आकाश को भी इतना कोमल बना दिया है कि पतंग अब असीम आकाश में ऊपर उठ सके। कवि कल्पना करता है कि दुनिया की सबसे हल्की, कोमल, रंग बिरंगी वस्तु उड़ सके, संसार के सबसे पतले कागज के साथ बांस की सबसे पतली कमानी भी इसके साथ उड़ सके और इनको उड़ता हुआ देखकर तितलियों रूपी कोमल एवं सुंदर बच्चों की सीटियाँ और किलकारियां शुरू हो सके। पतंगों के उड़ाने के साथ ही बच्चों की इच्छाएं भी उनके साथ साथ उड़ने लगती हैं। बच्चों के समूह आकाश में उड़ती पतंगों को देखकर प्रफुल्लित होकर सीटियाँ बजाने लगते हैं, किलकारियां मारने लगते हैं। इस मोहकता को देखकर उनके मन में अनेक भावनाएं जन्म लेती हैं।
(2)जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं
बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अक्सर
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक "आरोह भाग-2" में संकलित "आलोक धन्वा" द्वारा रचित' पतंग' नामक कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने कोमल बच्चों की इच्छाओं और क्रियाकलापों का चित्रण किया है।
व्याख्या:
कवि बालमन की चेष्टा ओं का मनोहारी चित्रण करते हुए कहता है कि बालक जन्म से अत्यंत नाजुक और कोमल होते हैं। वह अपने जन्म के साथ ही कोमलता का भाव लेकर आते हैं। बच्चों की कोमलता को स्पर्श करने के लिए पृथ्वी भी लालायित रहती है । जब वह मकान की छतों को अपने कोमल पावों से कोमल बनाते हुए बेसुध होकर दौड़ते हैं तो पृथ्वी भी उनके बेचैन पांव के पास उनका स्पर्श करने हेतु घूमती हुई आती है। बच्चे अपनी किलकारीयों के द्वारा सभी दिशाओं को नगाड़ों की तरह बजाते प्रतीत होते हैं। वे प्राय वृक्ष की शाखा की भांति कोमल लचीले वेग के साथ इधर-उधर डालते हुए उसे अपनी मस्ती में डूब कर झूला झूलते हुए से दौड़े आते हैं।
(3)छतों के खतरनाक किनारों तक
छतों के खतरनाक किनारों तक
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ़ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक "आरोह भाग-2" में संकलित "आलोक धन्वा" द्वारा रचित' पतंग' नामक कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने कोमल बच्चों की इच्छाओं और क्रियाकलापों का चित्रण किया है।
व्याख्या:
कवि कमल बच्चों के क्रियाकलापों का चित्रण करते हुए कहते हैं कि जब बच्चे अपनी पतंगों को उड़ाने के लिए मकानों की छतों के खतरनाक किनारों पर दौड़ते हैं तो उन्हें अन्य कोई बचाने नहीं आता बल्कि उनके रोमांचित शरीर का संगीत ही उनकी रक्षा करता है, उन्हें गिरने से बचाता है। कवि का अभिप्राय है कि यह कोमल बच्चे अपनी इसी रोमांच के सहारे खतरनाक स्थानों को भी पार कर अपनी मंजिल पर पहुंच जाते हैं। जो पतंग मात्र एक धागे के सहारे असीम आकाश में उड़ रही होती है तो वह भी अपनी डोलती ऊंचाइयों से कोमल बच्चों को सहारा प्रदान करती है। यह कोमल बच्चे असीम आकाश में उड़ने वाली पतंगों के साथ-साथ अपने र्ंद्रों के सहारे स्वयं भी उड़ रहे हैं। बाल मन की ऊंचाइयों को छू रही पतंगों के साथ आकाश में उड़ना चाहता है। वह उनकी हदों को पार करना चाहता है। वैसे भी इन कोमल बच्चों का कोमल मन भी इन्हीं पतंगों के साथ उड़ रहा होता है।
(4)अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वीन और भी तेज़ घूमती हूई आती है
उनके बेचैन पैरों के
पास।
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक "आरोह भाग-2" में संकलित "आलोक धन्वा" द्वारा रचित' पतंग' नामक कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने कोमल बच्चों की इच्छाओं और क्रियाकलापों का चित्रण किया है।
व्याख्या:
कवि का कथन है कि अगर बच्चे अपने पतंगों को उड़ाते हुए कभी मकानों के खतरनाक किनारों से गिर जाते हैं। तत्पश्चात यदि वे बच जाते हैं तो उनमें और साहस और निडरता पैदा हो जाती है। इन खतरनाक किनारों से बचने के बाद वे और भी निडरता के साथ सुनहरे सूर्य के सामने आते हैं। अर्थात बच्चे निडरता एवं साहस के साथ सूर्योदय होते ही अपने पतंग उड़ाने हेतु दौड़ पड़ते हैं। कोमल बच्चों की बाल चेष्टा, निडरता, साहस को देखकर पृथ्वी भी उनके पैरों के पास और भी तेज गति से घूमने लगती है।
पतंग कविता केअभ्यास के प्रश्न
प्रश्न-1: 'सबसे तेज़ बौछारें गयीं, भादों गया' के बाद प्रकृति में जो परिवर्तन कवि ने दिखाया है, उसका वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति से पता चलता है कि भादों का महीना समाप्त हो गया है। अर्थात बारिश का मौसम बीत गया है। अब क्वार का महीना है और इसके आने से वातावरण में सुंदर परिवर्तन होने लगते हैं। सुबह चमकीली, सुरमयी और सिंदूरी हो गई है। भाव यह है कि सूरज की लालिमा तथा प्रकाश बढ़ गया है। शरद ऋतु आ गई है। तेज़ गर्मी समाप्त हो गई है। बच्चे छतों पर पतंग उड़ाने लगे हैं। फूल खिल गए हैं। उन पर रंग-बिरंगी तितलियाँ मंडराने लगी हैं।
प्रश्न-2: सोचकर बताएँ कि पतंग के लिए सबसे हलकी और रंगीन चीज़, सबसे पतला कागज़, सबसे पतली कमानी जैसे विशेषणों का प्रयोग क्यों किया है?
उत्तर : प्रस्तुत कविता में कवि ने पतंग की विशेषताओं को और अच्छे तरीके से बताने के लिए इन विशेषणों का प्रयोग किया है। पंतग का कागज़ जितना पतला और हल्का होगा, वह उतनी ही आकाश में ऊँचाई में जाएगी। इसके अतिरिक्त उसके भार को कम बताने के लिए कवि ने इन विशेषणों का प्रयोग किया है। इस प्रकार के विशेषणों का प्रयोग करके पंतग को रंग-बिरंगी, हलकी तथा आकर्षित बताने का प्रयास किया गया है।
प्रश्न-3: बिंब स्पष्ट करें-
सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी
चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके।
उत्तर : इस काव्यांश में गतिशील बिंब को साकार किया गया है। इस पंक्ति में चाक्षु बिंब भी विद्यमान है। भादों के जाते ही सुबह नई चमक-दमक के साथ आती है। शरद ऋतु की भोर को खरगोश की आँखों के समान लाल दिखाया गया है। इस पंक्ति को बोलते ही खरगोश की आँखों का बिंब हमारे सामने आ जाता है। शरद साइकिल चलाता तथा घंटी बजाता हमें दिखाई देता है। आकाश को मुलायम बताकर कवि ने जो कल्पना की है, वह अद्भुत है। यहाँ पतंग का आकाश में उड़ना एक नए दृश्य को दृष्टिगोचर करता है।
प्रश्न-4 : जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास- कपास के बारे में सोचें कि कपास से बच्चों का संबंध बन सकता है।
उत्तर :'जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास' इस पंक्ति में कपास का तात्पर्य कपास (रूई) से नहीं बल्कि उसकी कोमलता तथा उसके सफ़ेद रंग की पवित्रता से लिया गया है। बच्चों का स्वभाव कपास (रुई) के समान कोमल, पवित्र तथा निश्छल होता है। वे स्वभाव से कोमल होते हैं। उनके मन में किसी प्रकार का कपट नहीं होता है। वे पवित्रता लिए होते हैं। इसके अतिरिक्त वे शारीरिक रूप में भी कोमल होते हैं। अतः कपास और बच्चों में बहुत अधिक संबंध है। यही कारण है कि कवि ने उनका कपास से संबंध स्थापित किया है।
प्रश्न-5 : पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं- बच्चों का उड़ान से कैसा संबंध बनाता है?
उत्तर : बच्चों को पतंग बहुत प्रिय है। आकाश में उड़ती पतंग को देखकर बच्चे भी उड़ने लगते हैं। अर्थात उनका मन भी मतंग के साथ उड़ान भरने लगता है। जैसे-जैसे पतंग आकाश में ऊँचाई में जाने लगती है, वैसे-वैसे उनका उत्साह बढ़ने लगता है। वे सारी दुनिया को भूल जाते हैं। बस पतंग के साथ हो जाते हैं। यह ऐसा संबंध बन जाता है कि जिसे तोड़ा नहीं जा सकता है। पतंग की प्रत्येक हिलोरों के साथ उनका मन में हिलोरों से भर जाता है। चारों और बस वे तथा उनकी पतंग रह जाती है। यही कारण है कि ऐसा कहा गया है कि पंतगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं।
प्रश्न-6 : निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़ कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(क) छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
(ख) अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के समान आते हैं।
❖ दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने का क्या तात्पर्य है?❖ जब पतंग सामने हो तो छतों पर दौड़ते हुए क्या आपको छत कठोर लगती है?❖
खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद आप दुनिया की चुनौतियों के सामने स्वयं को कैसा महसूस करते हैं?
उत्तर :❖ बच्चे पतंग उड़ाते हुए छत में एक दिशा से दूसरी दिशा में यहाँ से वहाँ कूदते फाँगते रहते हैं। इस कारण से उनके पैरों से ध्वनि होने लगती है। कवि ने इस स्थिति को मृदंग के समान बताया है। अर्थात जब
बच्चे छत में यहाँ से वहाँ कूदते-फाँगते हैं, तो लगता है मानो वे मृदंग (छत) में हाथ (पैरों) से थाप पर रहे हैं। इस कारण से स्वर फूट रहे हैं, जो कवि को मृदंग बजाने के समान लगता है।
उत्तर :❖ जब पतंग सामने हो, तो हमें छत कठोर नहीं लगती। यह ऐसा समय होता है, जब
बस पतंग को उड़ाने का मज़ा आ रहा होता है। तब सारी दुनिया से हमारा संपर्क समाप्त हो जाता है, बस पतंग और हम होते हैं। कोई कष्ट कोई दुख हमें छू नहीं पाता है।
उत्तर :❖ खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद हम दुनिया की चुनौतियों के सामने स्वयं को निर्भीक और मज़बूत महसूस करते हैं। तब ये चुनौतियों मामूली-सी प्रतीत होती हैं। खतरनाक परिस्थितियाँ का सामना करने के बाद पता चलता है कि चुनौतियाँ होती क्या हैं। फिर तो अंदर सकारात्मकता और साहस भर जाता है। हम लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।
प्रश्न-7 आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर आपके मन में कैसे खयाल आते हैं? लिखिए।
उत्तर : रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर लगता है मानो हम भी पतंग के समान होते। सबका ध्यान हमारी ओर होता। हम हर दिशा में मज़े से उड़ पाते और जब दिल करता नीचे आ जाते। बहुत से बच्चों की खुशी और आनंद के हम कारण होते। हमारे कारण उनका जीवन उत्साह से भर जाता।
प्रश्न-8: 'रोमांचित शरीर का संगीत' का जीवन के लय से क्या संबंध है?
उत्तर : हमारा शरीर जब रोमांचित होता है, तभी हमारे हृदय से जीवन का सच्चा संगीत फूटता है। इसके कारण ही जीवन को लय प्रदान होती है। जब जीवन लय में होता है, तो आनंद अपने आप ही समा जाता है। यही आनंद हमारे शरीर को रोमांच से भर देता है। यह स्थिति हमें सोचने-समझने की सही दिशा प्रदान करती है और हम सही प्रकार से निर्णय ले पाते हैं। सही निर्णय हमारे अंदर सकारात्मकता का भाव पैदा करता है। इससे हमारा रोम-रोम रोमांचित होता हुआ संगीत उत्पन्न करता रहता है।
प्रश्न-9: 'महज़ एक धागे के सहारे, पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ' उन्हें (बच्चों को) कैसे थाम लेती हैं? चर्चा करें।
उत्तर : बच्चे पतंग को धागे के माध्यम से उड़ाते हैं। उनके हाथों में पतंग की डोर होती है। जैसे-जैसे वे डोर को ढीला छोड़ते हैं, पतंग ऊँचाई की ओर बढ़ती चली जाती है। बच्चे अपनी पतंग को ऊँचाइयों में देखकर रोमांचित हो उठते हैं। उन्हें लगता है कि वही पतंग हैं और ऊँचाइयों में उड़ते जा रहे हैं। उन्हें यह ख्याल ही नहीं रहता है कि वे पतंग नहीं हैं और आसमान में नहीं उड़ रहे हैं। बस वे स्वयं को उड़ता हुआ महसूस करते हैं। इसलिए कहा गया है कि महज एक धागे के सहारे, पंतगों की धड़कती ऊँचाइयाँ' उन्हें (बच्चों को) थाम लेती है।
प्रश्न-10: हिंदी साहित्य के विभिन्न कालों में तुलसी, जायसी, मतिराम, द्विजदेव, मैथिलीशरण गुप्त आदि कवियों ने भी शरद ऋतु का सुंदर वर्णन किया है। आप उन्हें तलाश कर कक्षा में सुनाएँ और चर्चा करें कि पतंग कविता में शरद ऋतु वर्णन उनसे किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर : (क) तुलसी द्वारा कृत एक रचना-
जानि सरद रितु खंजन आए।
पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए।
(ख) जायसी द्वरा कृत रचना का एक भाग-
भइ
निसि, धनि जस ससि परगसी । राजै-देखि भूमि फिर बसी॥
भइ कटकई सरद-ससि आवा । फेरि गगन रवि चाहै छावा॥
तुलसीदास जी ने शरत ऋतु में खंजन पक्षी का वर्णन किया है और जायसी ने शरद ऋतु के समय चाँद तथा रात का वर्णन किया है। पतंग कविता में जहाँ सुबह का वर्णन मिलता है, वहीं इस ऋतु में बच्चों का पतंग उड़ाने का दृश्य दृष्टिगोचर होता है। तीनों की कविता में अलग-अलग वर्णन
हैं।
प्रश्न-11 : आपके जीवन में शरद ऋतु क्या मायने रखती है?
उत्तर : मेरे जीवन में शरद ऋतु बहुत मायन रखती है। शरद ऋतु में ग्रीष्म ऋतु की तरह अधिक गर्मी नहीं पड़ती। भादों के समान अधिक बारिश नहीं होती। इस समय ठंड होती है, जो बहुत अच्छी लगती है। वातावरण सुंदर तथा मस्ती से भरा होता है। धूप का मज़ा भी इस ऋतु में उठाया जाता है। शरद ऋतु अपने साथ त्यौहारों की बहार लेकर आती है। दीपावली, दशहरा, नवरात्र, दुर्गा पूजा, भईया दूज, क्रिसमिस इत्यादि इस ऋतु में आने वाले प्रमुख भारतीय त्यौहार हैं। इस ऋतु में खाने के लिए विभिन्न प्रकार की सब्ज़ियाँ उपलब्ध हो जाती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह ऋतु उत्तम होती है क्योंकि इस ऋतु में पाचन शक्ति मज़बूत होती है।
पतंग कविता का काव्य-सौंदर्य-
सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादों गया
सवेरा हुआ
ख़रगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार
करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
काव्य-सौंदर्य-
कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत चित्रण किया है।
बाल-सुलभ चेष्टाओं का अनूठा वर्णन है।
शरद ऋतु का मानवीकरण किया गया है।
‘खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा’ में उपमा अलंकार है, ‘पुलों को पार’ में अनुप्रास अलंकार तथा ‘ज़ोर-ज़ोर’ में पुरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
मिश्रित शब्दावली है।
लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग है।
प्रसाद गुण है तथा मुक्तक छंद है।
1. काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :-
अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वीन और भी तेज़ घूमती हूई आती है
उनके बेचैन पैरों के पास।
काव्य-सौंदर्य:-
काव्यांश में भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है।
मिश्रित शब्दावली है। मुक्तक छंद है।
‘दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए, वे पेंग भरते हुए चले आते हैं, डाल की
तरह लचीले वेग से’ – में उपमा अलंकार का सुंदर प्रयोग है।
‘दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए’ में श्रव्य बिंब का प्रयोग है।
‘डाल की तरह लचीले वेग से अकसर’ पंक्ति में कवि ने बच्चों के शरीर के
लचीलेपन की तुलना पेड़ की डाल से की है। पेड़ की डाल एक जगह जुड़ी
शरीर को हिलाते-झुलाते तथा आगे-पीछे करते रहते हैं।
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