बुद्ध की शिक्षाएं
बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति के 49 दिनों के बाद उनसे पढ़ाने के लिए अनुरोध किया गया था। इस अनुरोध के परिणामस्वरूप योग द्वारा बुद्ध ने धर्म के पहले चक्र को पढ़ाया था। इन शिक्षणों में चार आर्य सत्य और अन्य प्रवचन सूत्र शामिल थे जो हीनयान और महायान के प्रमुख श्रोत थे।
बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति के 49 दिनों के बाद उनसे पढ़ाने के लिए अनुरोध किया गया था। इस अनुरोध के परिणामस्वरूप, योग से उठने के बाद बुद्ध ने धर्म के पहले चक्र को पढ़ाया था। इन शिक्षणों में चार आर्य सत्य और अन्य प्रवचन सूत्र शामिल थे जो हीनयान और महायान के प्रमुख श्रोत थे।
हीनयान शिक्षाओं में बुद्ध बताते हैं कि कष्टों से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को स्वयं ही प्रयास करना होगा और महायान में वह बताते हैं कि दूसरों की खातिर कैसे पूर्ण ज्ञान, या बुद्धत्व प्राप्त कर सकते हैं। दोनों परंपराएं एशिया में सर्वप्रथम भारत और तत्पश्चात तिब्बत सहित आसपास के अन्य देशों में धीरे-धीरे विस्तारित होने लगी। अब ये पश्चिम में पनपने की शुरुआत कर रहीं हैं।
चार आर्य सत्य और या अष्टांगिक मार्ग बौद्ध शिक्षाओं का मजबूत आधार हैं।
बौद्ध धर्म के मूल शिक्षाओं के रूप में चार आर्य सत्य निम्नलिखित हैं:
- दुनिया दुःख और कष्टों से भरी है।
- सभी पीड़ाओं का एक कारण (समुदाय) हैं जो ईच्छा (तृष्णा) है।
- दर्द और दुःख का अंत इच्छाओं के छुटकारा मिलने से किया जा सकता है (निरोध)।
- तृष्णा को अष्टांगिक मार्ग के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
अष्टांग मार्ग नीचे निम्नलिखित हैं:
1) सम्यक विचार
2) सम्यक विश्वास
3) सम्यक वाक
4) सम्यक कर्म
5) सम्यक जीविका
6) सम्यक प्रयास
7) सम्यक स्मृति
8) सम्यक समाधि
अष्टांग मार्गों में तीन बुनियादी श्रेणियां शामिल हैं जिनके नाम एकाग्रता (समाधि स्कंद), ज्ञान (प्रज्ञा स्कंद) और नैतिक आचरण (शील स्कंद) है। समाधि स्कंद के अंतर्गत सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि आते हैं जबकि सम्यक वाक, सम्यक जीविका और सम्यक प्रयास शील स्कंद के अंतर्गत विभाजित हैं। प्रज्ञा स्कंद में सम्यक विचार, सम्यक कर्म और सम्यक विश्वास शामिल हैं।
बौद्ध धर्म में निर्वाण की संकल्पना को कैसे परिभाषित किया गया है?
बौद्ध धर्म में बताया गया है कि निर्वाण के द्वारा मृत्यु और जन्म के चक्र से छुटकारा मिल सकता है। बौद्ध धर्म के अनुसार, इसे आप जीवन भर हासिल कर सकते हैं और मृत्यु के बाद नहीं। हालांकि, यह मोक्ष की अवधारणा से इनकार करता है और आचरण के नैतिक मूल्यों को प्राप्त करने के लिए आचरण की नैतिक आचार- संहिता की जरूरत पर बल देता है।
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महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का वर्णन करें
महात्मा बुद्ध द्वारा स्थापित बौद्ध धर्म में अंधविश्वासों के लिए कोई स्थान नहीं था। यह धर्म कर्मकांड, सूक्ष्मदर्शीका, और पौराणिक मान्यताएं पर आधारित नहीं था। यह धर्म बुद्धि वादी और मानव कल्याण के धर्म का आधार था।
गौतम बुद्ध के सिद्धांत | महात्मा बुद्ध के उपदेश
1. चार आर्य सत्य-
महात्मा बुद्ध ने संसार को दुःखमय कहा और इस संबंध में चार आर्य सत्य का प्रतिपादन किया।
- दुःख- सभी संसार में दुःख भरा हुआ है, जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा और रोग सभी दुःख हैं, इच्छा वस्तु प्राप्त ना होना भी दुःख है।
- दुःख समुदाय- संसार में प्रत्येक दुःख का कोई ना कोई कारण अवश्य होता है, बुद्ध के अनुसार दु:खों का मुख्य कारण तृष्णा है।
- दुःख निरोध- महात्मा बुद्ध के अनुसार रूप वेदना संज्ञा संस्कार और विज्ञान ही दुःख का नरोध है। उन्होंने बताया कि तृष्णा के बिना से प्रत्येक दुःख का विनाश संभव है।
- दुःख निरोध गामिनीप्रतिपदा- यह वह मार्ग है, जिसके द्वारा दु:खों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। बुद्ध ने अपने इस सिद्धांत के अंतर्गत 8 मार्गों का प्रतिपादन किया, इसे बुद्ध के अष्टांग मार्ग भी कहते हैं_ 1. सम्यक् दृष्टि, 2. सम्यक् संकल्प 3. सम्यक् वाणी 4. सम्यक् कर्मान्त 5. सम्यक् अजीव 6. सम्यक् प्रयत्न 7. सम्यक् स्मृति 8. सम्यक् समाधि।
2. दस शील-
बुद्ध ने आचरण की शुद्धता हेतु दस शील के पालन पर विशेष बल दिया। यह दस शील इस प्रकार है_
1. अहिंसा
2. सत्य
3. अस्तेय (चोरी ना करना)
4. ब्रह्मचर्य
5. अपिरग्रह (संग्रह ना करना)
6. नृत्य व संगीत का त्याग
7. सुगंधित पदार्थों का त्याग
8.असमय में भोजन का त्याग
9. कोमल शय्या का त्याग
10. कामिनी कंचन का त्याग
3. अनीश्वरवाद-
महात्मा बुद्ध अनीश्वरवादी थे। उनका ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं था। उनका विश्वास था कि संसार की उत्पत्ति के लिए किसी करता की आवश्यकता नहीं होता, संसार का संचालन कार्य करने से होता है।
4. अनात्मवाद-
आत्मा के विषय में उन्होंने मध्यम मार्ग अपनाया। आत्मा के विषय में महात्मा बुद्ध मौन ही रहे।
5. वेदों में अविश्वास-
महात्मा बुद्ध और उनके अनुयायियों ने वेदों की प्रमाणिकता का खंडन किया और वेदों में कही गई बातों का भी स्वीकार नहीं किया।
6. कर्मवाद-
महात्मा बुद्ध कर्मवादी थे। उनका कहना है कि मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार ही परिणाम भुगतने होते हैं। मनुष्य का यह लोक और परलोक उसके कर्म पर निर्भर है। परंतु बुद्ध के कर्म का अर्थ वैदिक कर्मकांड नहीं था, वह मनुष्य के समस्त वार्षिक और मानसिक चेष्टाओं को कर्म मानते हैं।
7. पुनर्जन्म-
बुद्ध का पुनर्जन्म में विश्वास था उनका कहना था कि कर्मों के अनुसार ही मनुष्य का अच्छा बुरा जन्म होता है। उनका यह मानना था कि पुनर्जन्म तो होता है, लेकिन आत्मा का नहीं मनुष्य के अहंकार का होता है।
8. क्षणिकवाद-
महात्मा बुद्ध संसार को नित्य ना मानकर क्षणभंगुर मानते थे। उनके अनुसार संसार की हर वस्तु परिवर्तनशील है।
9. जाती पांती का खंडन-
महात्मा बुद्ध का जाति पाति में कोई विश्वास नहीं था, लेकिन वह समाज एकता में विश्वास रखते थे। उनका कहना है कि बौद्ध धर्म का अनुसरण कोई भी व्यक्ति कर सकता है चाहे वह किसी भी जाति का हो।
10 अहिंसा पर बल-
महात्मा बुद्ध अहिंसा पर बल देते थे। उन्होंने ज्ञान प्राप्त करने के बाद जीवन भर ‘अहिंसा परमोधर्म’ के सिद्धांत का प्रचार प्रसार किया। उनका कहना था कि मनुष्य को अपने मन, वचन और कर्म से किसी भी जीव को दुःख नहीं पहुंचाना चाहिए।
11. निर्वाण-
महात्मा बुद्ध के अनुसार निर्वाण वह अवस्था है जिसमें ज्ञान की ज्योति द्वारा अज्ञान रूपी अंधकार की समाप्ति हो जाती है। मनुष्य की समस्त वासनाओं और तृष्णाओं का नाश हो जाता है। महात्मा बुद्ध ने लोगों को उपदेश दिया है कि निर्वाण की प्राप्ति कोई भी व्यक्ति सत कर्मों के द्वारा कर सकता है।
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- गौतम बुद्ध का जीवन परिचय
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