असहयोग आंदोलन में भाग लेने के प्रति बागानों के मजदूरों की क्या प्रतिक्रिया थी? - asahayog aandolan mein bhaag lene ke prati baagaanon ke majadooron kee kya pratikriya thee?

1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुन कर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में लिखते हुए दर्शाइए कि वे आंदोलन में शामिल क्यों हुए ?

असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले विभिन्न सामाजिक समूहों की सूची:

(i) शहरों का मध्यम वर्ग
(ii) बागान मजदूर
(iii) विद्यार्थी और अध्यापकगण
(iv) ग्रामीण क्षेत्रों के किसान और वन्य प्रदेशों के आदिवासी 
(v) सौदागर और व्यापारीगण 
(vi) बुनकर और अन्य कारीगर
(vii) मुस्लिम खिलाफत कमेटी के सदस्य
(viii) अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता

तीन समूहों के लोग और उनकी आशाएँ व संघर्ष :

(i) शहरों का मध्यम वर्ग: इसमें मुख्य रूप से छात्र, शिक्षक और वकील शामिल थे। असहयोग आंदोलन और बहिष्कार से जुड़ने का आह्वान करते हुए उन्होंने उत्साहपूर्वक जवाब दिया। उन्होंने आंदोलन को विदेशी वर्चस्व से स्वतंत्रता के मार्ग के रूप में देखा। उदाहरण के लिए, खादी कपड़ा अक्सर बड़े पैमाने पर बनने वाले कपड़ों की तुलना में अधिक महंगा था और गरीब लोग इसे खरीदने का जोखिम नहीं उठा सकते थे।

(ii) ग्रामीण क्षेत्रों के किसान और वन्य प्रदेशों के आदिवासी: कई स्थानों पर, किसान असहयोग आंदोलन में शामिल हुए। यह आंदोलन मुख्य रूप से तालुकदारों और जमींदारों के खिलाफ था। स्वराज के द्वारा वे समझ गए कि उन्हें किसी भी कर का भुगतान करने की ज़रूरत नहीं होगी और यह भूमि पुनर्वितरित की जाएगी। किसान आंदोलन अक्सर हिंसक हो गया और किसानों को बुलेट और पुलिस क्रूरता का सामना करना पड़ा।

(iii) बागान मजदूर: बागान कार्यकर्ता भी गांधीजी के नेतृत्व में आंदोलन में शामिल हुए। बागानी मज़दूरों के लिए आजादी का अर्थ यह था कि वे उन चारदीवारियों से जब चाहे आ जा सकते हैं जिनमें उनको बंद करके रखा गया था। उनके लिए आज़ादी का अर्थ था कि वह अपने गाँवों से संपर्क कर पाएँगे।1859 के इंग्लैंड इमीग्रेशन एक्ट के तहत बागानों में काम करने वाले मज़दूरों को बिना इज़ाज़त बागान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी और यह छूट उन्हें विरले ही कभी मिलती थी। जब उन्होंने असहयोग आंदोलन के बारे में सुना तो हज़ारों मजदूर अपने अधिकारियों की अवहेलना करने लगे। उन्होंने बागान छोड़ दिए और अपने घर को चल दिए। उनको लगता था कि अब गांधी राजा आ रहा है इसीलिए अब तो प्रत्येक को गॉंव में ज़मीन मिल जाएगी।

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व्याख्या करें:
उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी?

वियतनाम और दूसरे उपनिवेशों की तरह भारत में भी आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की परिघटना उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन के साथ गहरे तौर पर जुड़ी हुई थी। औपनिवेशिक शासकों के विरुद्ध संघर्ष के दौरान लोग आपसी एकता को पहचानने लगे थे। उत्पीड़न और दमन के साझा भाव ने विभिन्न समूहों को एक-दूसरे से बाँध दिया था। लेकिन प्रत्येक वर्ग और समहू पर उपनिवेशवाद का प्रभाव एक जैसा नहीं था। उनके अनुभव भी अलग थे और स्वतंत्रता के अर्थ भी भिन्न थे। महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इन समूहों को एकत्रित करके एक विशाल आंदोलन खड़ा किया परन्तु इस एकता में टकराव के बिंदु भी विधमान थे।      

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राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर क्यों बँटे हुए थे।   

जब सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ उस समय समुदायों के बीच संदेह और अविश्वास का माहौल बना हुआ था।

(i) बहुत सारे दलित नेता अपने समुदाय की समस्याओं का अलग राजनीतिक हल ढूंढना चाहते थे। वे खुद को संगठित करने लगे, उन्होंने शिक्षा संस्थानों में आरक्षण के लिए आवाज उठाई और अलग निर्वाचन क्षेत्रों की बात कही ताकि वहां से विधाई परिषदों के लिए केवल दलितों को ही चुनकर भेजा जा सके। उनका मानना था कि सामाजिक अपंगता केवल राजनीतिक सशक्तीकरण से ही दूर हो सकती है।

(ii) उनका मत था कि दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था से समाज में उनके एकीकरण की प्रक्रिया धीमी पड़ जाएगी।

(iii) बहुत सारे मुस्लिम नेता और बुद्धिजीवी भारत में अल्पसंख्यको के रूप में मुसलमानों की हेसियत को लेकर चिंता जता रहे थे। मोहम्मद अली जिन्ना का कहना था कि अगर मुसलमानों को केंद्र सभा में आरक्षित सीटें दी जाएँ और मुस्लिम बहुल प्रांतों में मुसलमानों को आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाए तो वे मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचिका की माँग छोड़ने के लिए तैयार हैं ।

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व्याख्या करें:
भारत के लोग रॉयल एक्ट के विरोध में क्यों थे?

ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को रोकने के क्रम में, इस कानून के द्वारा सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक क़ैदियों को दो साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रखने का अधिकार मिल गया था। इसलिए भारत के लोग रॉयल एक्ट के खिलाफ़ थे।

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व्याख्या करे:
पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया।

(i) सबसे पहली बात यह है कि विश्वयुद्ध ने एक नई आर्थिक और राजनीतिक स्थिति उत्पन्न कर दी थी। इसके कारण रक्षा व्यय में काफी वृद्धि हुई। इस व्यय की भरपाई करने के लिए युद्ध के नाम पर ऋण लिए गए और करों में वृद्धि की गई। सीमा शुल्क बढ़ा देगी और आयकर शुरू किया गया।

(ii)

युद्ध के दौरान कीमतों में तेज़ी से वृद्धि हो रही थी।1913 से 1918 के बीच कीमतें दोगुनी हो चुकी थीं जिसके कारण आम लोगों की मुश्किलें बढ़ गई थीं।

(iii) गावों में सिपाहियों को जबरदस्ती भर्ती किया गया जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक गुस्सा था।

(iv) उसी समय फ्लू की महामारी फैल गई।1921 की जनगना के अनुसार दुर्भिक्ष और महामारी के कारण 120-130 लाख लोग मारे गए।

(v) लोगो को उम्मीद थी कि युद्ध समाप्त होने के बाद उनकी परेशानियाँ कम हो जाएँगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

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व्याख्या करें:
गांधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों किया?

गांधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया था। परन्तु 1922 में गोरखपुर के चौरी-चारा में हिंसक घटना घटित हुई जिसके तहत भीड़ ने पुलिस थाने को आग लगा दी जिसमे 22 पुलिसकर्मी जलकर मर गए। इस घटना को देखते हुए महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का निर्णय किया।

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बागानी मजदूरों के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के क्या कारण थे कोई तीन कारण स्पष्ट कीजिए?

शहरी क्षेत्र में मध्यम वर्ग तथा ग्रामीण क्षेत्र में किसानो और आदीवासियों का इसे व्यापक समर्थन मिला। इसमें श्रमिक वर्ग की भी भागीदारी थी। इस प्रकार यह प्रथम जन आंदोलन बन गया। 1914-1918 के प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था और बिना जाॅच के कारावास की अनुमति दे दी थी।

असहयोग आंदोलन का असम के बागान मजदूरों पर क्या प्रभाव पड़ा था?

जब उन्होंने असहयोग आंदोलन के बारे में सुना तो हज़ारों मज़दूर अपने अधिकारियों की अवहेलना करने लगे। उन्होंने बागान छोड़ दिए और अपने घर को चल दिए।

बागान मजदूरों ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन को कैसे अपनाया?

वे गांधीजी के प्रशंसक थे । उन्होने लोगों को खादी पहनने तथा शराब छोड़ने को कहा । लक्ष्य प्राप्त करने के लिए उन्होने हिंसा का मार्ग भी अपनाया ।.
अनुबंधक नियमों का उल्लंघन.
चाय बगानों से बाहर निकलना.
असहयोग आंदोलन में सम्मिलित होना.
कृषि भूमि को प्राप्त करना ।.

असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे थे?

रॉलेट सत्याग्रह से ही गाँधी जी एक सच्चे राष्ट्रीय नेता बन गए। इसकी सफलता से उत्साहित होकर गाँधी जी ने अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ 'असहयोग' अभियान की माँग कर दी। जो भारतीय उपनिवेशवाद का ख़ात्मा करना चाहते थे उनसे आग्रह किया गया कि वे स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालय न जाएँ तथा कर न चुकाएँ।

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