निबंधकार जैनेन्द्र कुमार के अनुसार पैसे की शक्ति में कौन सी शक्ति निहित होती है? - nibandhakaar jainendr kumaar ke anusaar paise kee shakti mein kaun see shakti nihit hotee hai?

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बाज़ार दर्शन : MCQ Link (अंक 1)

अंक 2 और 3 के लिए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. बाज़ार व्यक्ति को कैसे आमंत्रित करता है ?                                                   

   उत्तर- बाज़ार व्यक्ति को फिजूल खर्च और अत्यधिक खरीद के लिए आमंत्रित करता है। वह कहता है – आओ मुझे लूटो, मैं तुम्हारें लिए हूँ। मेरा रूप-सौदर्य तुम्हारे लिए है। अगर कुछ खरीदना नहीं है, तब भी देखने में क्या हर्ज है। यह आमंत्रण चाह और आग्रह जगाता है।

प्रश्न 2. बाज़ार का जादू कैसे काम करता है ? अधिक वस्तुएं खरीद कर लाने के मूल में कौनसा तत्व निहित होता है?

उत्तर- बाज़ार का जादू आँखों के रस्ते काम करता है। जिस तरह से चुंबक लोहे को आकर्षित करता है, उसी प्रकार बाज़ार ग्राहक को खींचता है। मन खाली हो और जेब भरी हो तो यह जादू खूब चलता है।

लेखक के अनुसार बाजार में फिजूल खर्ची के लिए जो तत्व जिम्मेदार है, वह है- मनीबैग अर्थात पैसे की गर्मी या एनर्जी। पैसे में वह शक्ति है जो लोगों से धन का अपव्यय करा देती है ।

प्रश्न 3. पर्चेजिंग पावर किसे कहा गया है, बाजार पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर- पर्चेजिंग पावर का अर्थ है खरीदने की शक्ति। पर्चेजिंग पावर के घमंड में व्यक्ति दिखावे के लिए आवश्यकता से अधिक खरीदारी करता है और बाजार को शैतानी व्यंग्य-शक्ति देता है। ऐसे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं।

प्रश्न 4. -लेखक ने बाजार का जादू किसे कहा है, इस जादू की मर्यादा स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- बाजार की चमक-दमक के चुम्बकीय आकर्षण को  बाजार का जादू कहा गया है, यह जादू आंखों की राह कार्य करता है। बाजार के इसी आकर्षण के कारण ग्राहक सजी-धजी चीजों को आवश्यकता न होने पर भी खरीदने को विवश हो जाते हैं। इस जादू की मर्यादा यह है कि यह तब असर करता है जब जेब भरी हो और मन खाली हो । मन के भरे होने पर बाज़ार के जादू का असर नहीं होता ।

प्रश्न 5. आशय स्पष्ट करें- (1.) मन खाली होना  (2.) मन भरा होना  (3.) मन बंद होना

उत्तर-   मन खाली होना- मन में कोई निश्चित वस्तु खरीदने का लक्ष्य न होना। निरुद्देश्य बाजार जाना और व्यर्थ  की चीजों

को खरीदकर  लाना।

मन भरा होना- मन लक्ष्य से भरा होना। जिसका मन भरा हो वह भलीभाँति  जानता है कि उसे बाजार से कौन सी वस्तु

खरीदनी है, अपनी आवश्यकता की चीज खरीदकर वह बाजार को सार्थकता प्रदान करता है।

मन बंद होना-मन में किसी भी प्रकार की इच्छा न होना  अर्थात अपने मन को शून्य कर देना । लेखक ने मन को शून्य का

देने को या मन बंद कर लेने की स्थिति को भी सही नहीं माना है ।

प्रश्न 6. ‘जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है।’ यहाँ किस बल की चर्चा की गयी है?

उत्तर- लेखक ने संतोषी स्वभाव के व्यक्ति के आत्मबल की चर्चा की है। दूसरे शब्दों में यदि मन में संतोष हो तो व्यक्ति दिखावे और ईर्ष्या की भावना से दूर रहता है। उसमें संचय करने की प्रवृत्ति नहीं होती और जिसमें संचय करने की प्रबल प्रवृत्ति होती है यानी अधिक से अधिक संग्रह करने की चाह होती है वहाँ संतोष रूपी बल यानी संतुष्टि का लेश भी नहीं होता है ।

प्रश्न 7. अर्थशास्त्र, अनीतिशास्त्र कब बन जाता है?

उत्तर- जब बाजार में कपट और शोषण बढ़ने लगे, खरीददार  अपनी पर्चेचिंग पावर के घमण्ड में दिखावे  के लिए खरीददारी करें । मनुष्यों में परस्पर भाईचारा समाप्त हो जाए। खरीददार और दुकानदार एक दूसरे को ठगने की घात में लगे रहें , एक की हानि में दूसरे को अपना लाभ दिखाई दे तो बाजार का अर्थशास्त्र, अनीतिशास्त्र  बन जाता है। ऐसे बाजार मानवता के लिए विडंबना है।

प्रश्न 8. भगतजी बाजार और समाज को किस प्रकार सार्थकता प्रदान कर रहे हैं?

उत्तर- भगतजी के मन में सांसारिक आकर्षणों के लिए कोई तृष्णा नहीं है। वे संचय, लालच और दिखावे से दूर रहते हैं। बाजार और व्यापार उनके लिए आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन मात्र है। भगतजी के मन का संतोष और निस्पृह भाव, उनको श्रेष्ठ उपभोक्ता और विक्रेता बनाते हैं।

प्रश्न 9. भगत जी के व्यक्तित्व के सशक्त पहलुओं का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर-निम्नांकित बिंदु उनके व्यक्तित्व के सशक्त पहलू को उजागर करते हैं ।

  • पंसारी की दुकान से केवल अपनी जरूरत का सामान (जीरा और नमक) खरीदना ।
  • निश्चित समय पर चूरन बेचने के लिए निकलना ।
  • छ्ह आने की कमाई होते ही चूरन बेचना बंद कर देना ।
  • बचे हुए चूरन को बच्चों को मुफ़्त बाँट देना ।
  • सभी काजय-जय राम कहकर स्वागत करना ।
  • बाजार की चमक-दमक से आकर्षित न होना ।
  • समाज को संतोषी जीवन की शिक्षा देना ।

प्रश्न 10. बाजार की सार्थकता  किसमें है ?

उत्तर- मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में ही बाजार की सार्थकता है। जो ग्राहक अपनी आवश्यकताओं की चीजें खरीदते हैं वे बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। जो विक्रेता, ग्राहकों का शोषण नहीं करते और छल-कपट से ग्राहकों को लुभाने का प्रयास नहीं करते वे भी बाजार को सार्थक बनाते हैं।

प्रश्न 11. पैसे की व्यंग्य शक्ति को चूर-चूर करने वाले बल पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर- पैसे की शक्ति अपने लोगों के मध्य रिश्तों की मिठास को खटास में बदल सकती है। पर नैतिकता और आत्मसंतोष  का बल पैसे की व्यंग्य शक्ति को चूर-चूर कर देता है। यह बल व्यक्ति को बटोर लेने की चाह को रोकता है, संचय की प्रवृति को समाप्त करता है। तब पैसे की व्यंग्य शक्ति धरी की धरी रह जाती है।

प्रश्न 12. पाठ में ‘मन के बंद होने’ से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर- मन के बंद होने का अभिप्राय है सब इच्छाओं का निरोध करना। बाजार के संदर्भ में मन के बंद होने का अभिप्राय है –आवश्यकता का समाप्त हो जाना , किसी प्रकार की खरीद नहीं करना। लेखक के अनुसार मनुष्य अपनी सम्पूर्ण इच्छाओं का निरोध नहीं कर सकता, यह केवल परमात्मा ही कर सकता है।

प्रश्न 13. भगत जी कौन है और उनका व्यवसाय क्या है ?

उत्तर- भगत जी लेखक के पड़ौसी हैं  और चूरन बेचने का कार्य करते हैं। वे रोज़ाना केवल छह पैसे का चूरन ही बेचते हैं, बाकी बच्चों में मुफ्त बाँट देते हैं। उन्हें किसी प्रकार का लोभ लालच नहीं है, वे केवल अपने मतलब की चीजों के लिए ही बाज़ार जाते हैं और बाज़ार सार्थकता प्रदान करते हैं।

प्रश्न 14. पैसे की विनाशक शक्ति से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर- जो लोग बाज़ार जाकर नहीं जानते कि उन्हें क्या खरीदना है , वे अपनी खरीद क्षमता के बल पर पैसे की विनाशक शक्ति को जन्म देते हैं। वे न तो बाज़ार से लाभ उठा पाते हैं और न ही बाज़ार उनसे । इससे बाज़ार का बाजारुपन बढ़ता है और यह विनाश का द्योतक है।

प्रश्न 15.बाज़ार सामाजिक और लैंगिक भेदभाव नहीं करता, अपितु ग्राहक की क्रय शक्ति को ही देखता है।स्पष्ट कीजिए?

उत्तर- बाज़ार का काम केवल चीज़े बेचना होता है , उसे केवल ग्राहक चाहिए जो किसी भी जाति, धर्म , लिंग का हो सकता है। बाज़ार उन्हें केवल ग्राहक के रूप में देखता है। बाज़ार उनकी क्रय क्षमता को ही देखता है । जितनी अधिक क्रय क्षमता होगी, बाजार के लिए व्यक्ति उतना ही महत्वपूर्ण होगा इसलिए बाजार सामाजिक और लैंगिक भेदभाव नहीं करता परन्तु  कम क्रय क्षमता वाले लोगों को हीन भावना का शिकार होना पड़ता है।

प्रश्न 16. बाजारुपन के क्या दुष्परिणाम होते हैं , इससे बाज़ार का कौनसा उद्देश्य स्पष्ट होता है ?

उत्तर-  बाजारुपन से मनुष्य के आपसी सम्बन्धों पर टिके प्रेम सद्भाव का ह्रास हो जाता है। आपसी सम्बन्ध समाप्त हो जाते हैं, केवल बाज़ार की शक्ति ही शेष रह जाती है, एक –दूसरे को ठगकर अधिक लाभ कमाना ही एक मात्र उद्देश्य रह जाता है।

प्रश्न 17. अर्थशास्त्र के लिए प्रयुक्त विशेषणों को स्पष्ट कीजिए- अनीतिशास्त्र , मायावीशास्त्र

उत्तर- अनीति शास्त्र- जो बाज़ार कपट करके मनुष्य का शोषण करता है , उसका अर्थशास्त्र अनीति शास्त्र का होता है।

मायावी शास्त्र – अर्थशास्त्र के मायावी शास्त्र का विशेषण उसके जादू को उभरता है । हम इस जादू से बच नहीं सकते।

प्रश्न 18. मनुष्य पर धन की विजय चेतन पर जड़ की विजय कैसे है ?

उत्तर- मनुष्य चेतन है और धन जड़ । मनुष्य धन सम्पति की चाह में उसके वश में हो जाता है। मनुष्य की यह निर्बलता है। वह धन की शक्ति के वशीभूत जीवन जीने लगता है, यही चेतन मनुष्य की  हार है और जड़ तत्व  धन की जीत ।

परियोजना कार्य

निबंध कर जैनेन्द्र कुमार के अनुसार पैसे की शक्ति में कौन सी शक्ति निहित होती है?

अगर हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाज़ार का उपयोग करें, तो उसका लाभ उठा सकते हैं। लेकिन अगर हम ज़रूरत को तय कर बाज़ार में जाने के बजाय उसकी चमक-दमक में फँस गए तो वह असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल कर हमें सदा के लिए बेकार बना सकता है। इस मूलभाव को जैनेंद्र कुमार ने भाँति-भाँति से समझाने की कोशिश की है।

जैनेन्द्र के अनुसार पैसा क्या है?

उत्तर – जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ – समाज में ऐसे अनेक प्रसंग हैं जिसमें पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ। 'निठारी कांड' में पैसे की ताकत साफ़ दिखाई देती है। जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई – समाज में अनेक उदाहरण ऐसे भी हैं जहाँ पैसे की शक्ति काम नहीं आती।

जैनेन्द्र कुमार के अनुसार पैसों में कितनी शक्ति है?

वह बिना आवश्यकता के भी चीजें खरीदता है। पैसा ही उसका समाज में स्थान तय करता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि पैसे में पावर है।

जैनेन्द्र जी के अनुसार पर्जेजिंग पावर क्या है बाजार दर्शन पाठ के आधार पर समझाइए?

पर्चेजिंग पावर से अभिप्राय है-क्रय शक्ति। अर्थात् किसी इच्छित वस्तु को खरीदने की क्षमता। पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक उपयोग वारने के लिए अधिकाधिक वस्तुएँ सामाजिक विकास हेतु खरीदी जानी चाहिएँ। ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में इसका उपयोग किया जा सकता है

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