अभिलेखागार और संग्रहालय के विकास का इतिहास - abhilekhaagaar aur sangrahaalay ke vikaas ka itihaas

Archives and Museum Ch-2 संग्रहालय का एक ऐतिहासिक चित्रण कीजिए।

प्रश्न : संग्रहालय का एक ऐतिहासिक चित्रण कीजिए।

उत्तर-

प्राचीन काल से ही संग्रहालय जैसी संस्थाएं मानव के सामाजिक जीवन का हिस्सा रही है। हालांकि आधुनिक संग्रहालय की अवधारणा का विकास यूरोप में हुआ जहां संग्रहालयों में पुरावशेषों को इकट्ठा और प्रदर्शित किया जाता था तथा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक वस्तुओं की सुरक्षा की जाती थी, परन्तु भारत में भी इससे मिलती जुलती संस्थाएं मौजूद रही हैं। .

  1. पश्चिमी दुनिया (यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका)- प्राचीनतम संगठित संग्रहालय की स्थापना उत्तर एलेग्जेन्डर काल में मिस्र के एक राजा टोलेंनी सॉटर ने तीसरी शताब्दी ई. पूर्व में अलेग्जेन्ड्रिया में की थी परन्तु यह कलाकृतियों का संग्रह स्थल न होकर विश्वविद्यालय था।यह एक राज्य समर्थित संस्था थी और यहां उच्च शिक्षा प्रदान की जाती थी। यह छह शताब्दियों तक कायम रही और अन्ततः एक गृहयुद्ध के दौरान इसे नष्ट कर दिया गया।

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इसके बाद बहुत दिनों तक सुनियोजित ढंग से किसी संग्रहालय का निर्माण नहीं हुआ। 14वीं शताब्दी में यूरोप के पुनर्जागरण के तुरन्त बाद संग्रहालगों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट हुआ। 15वीं शताब्दी में लोरेंजी के काल में इटली में फ्लोरेंस के मेडिसी परिवार के संग्रहों के लिए संग्रहालय (म्यूजियम) शब्द का इस्तेमाल किया गया। इस समय एक तरफ मनुष्य ने अपने ज्ञान के विकास के लिए संग्राहलय जैसी संस्था को पुनः स्थापित किया तो दूसरी ओर कला, विज्ञान और मानविकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुए।

परन्तु पुनर्जागरण के दौरान भी संग्रहालय जनता के लिए नहीं खोले गए। वस्तुतः, ये अभी तक कलाकृतियों के निजी संग्रह ही थे। श्री एलियास अशमीले के संग्रहों का उपयोग कर 1683 ई. में ऑक्सफोर्ड में सार्वजनिक संग्रहालय खोला गया। इसके बाद 1753 ई. में ब्रिटिश संग्रहालय खुला। अभी भी इन संग्रहालयों में प्रतिदिन सीमित संख्या में ही लोग अंदर प्रवेश कर सकते थे। फ्रांस के लाउरे संग्रहालय में भी प्रवेश सीमित और प्रतिबंधित था। 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के बाद इसे जनता के लिए पूर्ण रूप से खोल दिया गया। इस प्रकार यूरोप में निजी संग्रहालयों को सार्वजनिक संग्रहालयों में बदलने में लगभग दो शताब्दियाँ लग गई। वास्तव में निजी संग्रह को सार्वजनिक जनता के लिए उपलब्ध करना आमतौर पर “यूरोपीय अवधारणा के रूप में देखा जाता है।” 

संयुक्त राज्य अमेरिका में संग्राहलयों का निर्माण अपेक्षाकृत बाद में हुआ। अत: यहा आरंभ से ही सार्वजनिक सेवा में शिक्षा के उद्देश्य से संग्रहालयों की स्थापना की गई। संयुक्त राज्य अमेरिका में कार्लोनिया में स्थित कार्लेस्टन लाइब्रेरी सोसायटी की स्थापना 1773 में हुई। उस समय से लेकर 1846 ई. में राष्ट्रीय संग्रहालय की स्थापना होने तक अमेरिका में संग्राहलय अपने विकास के दौरान सार्वजनिक बना रहा। 

यूरोप के पुनर्जागरण के तुरन्त बाद संग्रहालयों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट हुआ। 15वी शताब्दी में लोरेंजी के काल में इटली में प्लोरेंस के एक मोडिया परिवार के संग्रहों के लिए संग्रहालय (म्यूजियम) शब्द का इस्तेमाल किया गया। इस समय एक तरफ मनुष्य ने अपने ज्ञान के विकास के लिए संग्रहालय जैसी संस्था को पुनः स्थापित किया तो दूसरी ओर कला, विज्ञान और मानविकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुए।

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  1. भारत- हमारे देश में अपनी विरासत को बचाकर रखने के लिए कई तरीके अपनाए गए। प्राचीन भारत में चित्रशालाएं और चित्रवीयिया हुआ करती थी। मध्य युग के दौरान राजाओं और कुलीनों के निजी संग्रह बहुत समृद्ध होते थे। भारत में आधुनिक संग्रहालय की शुरुआत 1796 ई. से मानी जा सकती है। 1784 में स्थापित एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल ने 1796 ई. में निर्णय लिया कि वर्षों से इन्होंने जो कलाकृतिय जुटाई है उन्हें कलकत्ता में सुव्यवस्थित ढंग से रखा जाए। हालांकि यह योजना सफल न हो सकी और 1814 में सोसाइटी एक सही ढंग का संग्रहालय स्थापित कर सकी।इसके दो भाग थे। एक हिस्सा पुरातत्व मानव जाति विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित था और दूसरा हिस्सा भूगर्भ और प्राणी विज्ञान से। भारत में 1857 ई तक विभिन्न प्रकार के बारह संग्रहालय स्थापित हो गए। परन्तु सबसे महत्वपूर्ण है कलकत्ता का इंडियन म्यूजियम (भारतीय संग्रहालय) जिसकी स्थापना 1875 ई. में हुई थी।

1936 ई. तक संग्रहालयों की संख्या लगभग 100 हो गई। 1949 ई. में दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय की स्थापना हुई जो इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। 1995 ई. तक भारत में संग्रहालयों की संख्या बढ़कर 360 हो गई।

विकास के चरण- यूरोप में पुनर्जागरण के दौरान संग्रहालयों की स्थापना की गई और ज्ञानोदय के युग में इसका प्रसार हुआ। अभी तक संग्रहालय अपने विकास के काम में चार चरणों से गुजर चुका है। 

(i) आरंभ में इसमें कलात्मक और वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण वस्तुएं संग्रहित की जाती थी। 14वीं शताब्दी से लेकर लगभग 17वीं शताब्दी तक यही प्रवृत्ति बनी रही। यह प्रथम चरण था। 

(ii) 18वीं और 19वीं शताब्दियों के दौरान राज्यों ने संग्रहालयों को अपने अधीन लेकर उन्हें सार्वजनिक संस्था के रूप में रूपांतरित कर दिया। इसमें नए औद्योगिकृत राष्ट्रों के गौरव और साम्राज्यवादी शक्तियों के प्रसार को प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया गया। यह दूसरा चरण था।

(iii) 20वीं शताब्दी में अपने तृतीय चरण के दौरान संग्रहालय ने शैक्षिक भूमिका अपनाई। वस्तुओं को संग्रहित, व्यवस्थित और प्रदर्शित कर संग्रहालयों ने जनता को उनके इतिहास, संस्कृति, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी परम्पराओं से परिचित कराने और शिक्षित करने की भूमिका अपनाई। 

(iv) 1970 के दशक के बाद भारी संख्या वाले पर्यटन की शुरुआत हुई और इसने संग्रहालयों के उद्देश्य को बिल्कुल बदल दिया। अब वे “मनोरंजन, पर्यटन और आय अर्जन” की ओर उन्मुख हुए। अधिक आय अर्जित करने की होड़ में उनकी शैक्षिक भूमिका में कमी आई।

समतावाद का जमाना आया। जनता को अधिक से अधिक महत्व दिया जाने लगा और संग्रहालय जनता की रुचियों को ध्यान में रखकर स्थापित किए जाने लगे।

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