साधारणतः किसी काल अथवा किसी भी परिवेश में विभिन्न चीजों के समझने के तरीके को बोध कहा जाता है। हिंदी साहित्य के इतिहास में मध्यकालीन बोध से अभिप्राय मोटे तौर पर १४ वीं सदी से १८ वीं सदी के भारत के हिंदी प्रदेशों में मौजूद सामाजिक समझ से है। यह हिंदी साहित्य के दो महत्वपूर्ण कालखंडों भक्तिकाल एवं रीतिकाल से संबंधित है। रीतिकाल के बाद के कालखंड को आधुनिक बोध से संबंधित माना जाता है। आधुनिक बोध भारत में १८वीं सदी के बाद की परिस्थितियों में पैदा हुई चेतना है। आम तौर पर इसे मध्यकालीन बोध के बरक्स खड़ा किया जाता है। आगे हम इनकी विशेषताएं तथा इनके बीच के अंतर को समझने का प्रयास करेंगें।
मध्यकालीन बोध[सम्पादन]
१.धर्म प्रधान[सम्पादन]
मध्यकालीन बोध की सबसे प्रमुख विशेषता धर्म की प्रधानता है। लोगों के सोचने का तरीका मुख्यतः भावनामय पारलौकिक दृष्टि पर आधारित था। लोग जीवन और इस सृष्टि को नाशवान, निस्सार और माया मानते थें। अपने जीवन का चरम लक्ष्य वे मोक्ष प्राप्ति को मानते थे। कबीर लिखते हैं कि-
"रहना नहीं देश विराना है।
यह संसार चहर की बाजी सांझ परे उठी जाना है।
यह संसार झाड़ और झाँखड़ आग लगे जरी जाना है। ..."
मध्यकाल में ईश्वर की भक्ति कर्तव्य की चिंता से मुक्ति का साधन भी बन जाती थी। मलूक दास। का यह दोहा बहुत ही प्रसिद्ध है-
"अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।।"
२. सामंती व्यवस्था[सम्पादन]
मध्ययुगीन मानसिकता में सामंती व्यवस्था की झलक दिखाई देती है। जाति आधारित- मध्यकालीन भारत के बोध पर जाति की महत्वपूर्ण छाप थी। समाज के विभिन्न व्यक्तियों का एक -दूसरे से संबंध जाति से नियंत्रित होता था। जाति प्रथा एंव अन्य अंतर्विरोधी तत्व मौजूद थें।
३.काल्पनिकता[सम्पादन]
मध्यकालीन युग धर्म के साथ आस्था, विश्वास और श्रद्धा महत्वपूर्ण था। मध्ययुग में रहस्य-रोमांच और जादू, तंत्र-मंत्र और अति काल्पनिक आख्यानों व गाथाओं को विशेष स्थान प्राप्त था।
४. स्त्रियों की दयनीय स्थिति[सम्पादन]
चाहे आदिकालीन और रीतिकालीन श्रृंगारिक कवि हो या भक्तिकाली न संत, सूफी या भक्त कवि हो, सभी स्त्री को लेकर एक ही नतीजे पर पहुंचते हैं। उनके यहां स्त्री या तो उपभोग की वस्तु है, नरक का द्वार है या कोई रहस्यमय जीव जो उन्हें मनुष्य जीवन के सर्वोच्च सोपान, मोक्ष-प्राप्ति से रोकता है।
५. चारणभाट कवि/कविताएं[सम्पादन]
चारणभाट कवि अपने आश्रदाताओं का यशगान करते हुए जनता को अपनी ओजस्विनी कविता द्वारा विदेशी आक्रमणकारियों से युद्ध करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। उदाहरण के तौर पर पृथ्वीराज रासो, हम्मीर रासो,बिसलदेव रासो और आल्ह खंड इत्यादि। इनमें वीर रस की अभिव्यक्ति प्रचुर मात्रा में हुई है।
६. विभिन्न काव्य श्रेणियां[सम्पादन]
आधुनिक बोध[सम्पादन]
आधुनिक काल से तात्पर्य आधुनिक भावबोध और जीवन-दृष्टि का समय है, इस प्रकार 'आधुनिक' शब्द से नय जीवन-संदर्भों का अर्थ लिया जा सकता है।
१. साहित्य विधा का विकास[सम्पादन]
२. देश प्रेम से संबंधित कविताएं[सम्पादन]
३. गद्य का विस्तार[सम्पादन]
४. ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार[सम्पादन]
५. राष्ट्रीय-चेतना का विकास[सम्पादन]
६. पश्चिमी सभ्यता का भारत पर प्रभाव[सम्पादन]
७. ज्ञान-विज्ञान का विस्तार[सम्पादन]
===८. कर्म प्रधान समाज===कर्म प्रधान समाज से अभिप्राय यह था कि आधुनिक काल में लोग अपने कर्म को धर्म से अधिक मान्यता देने लगे थे वह उनके साथ घटित सभी घटनाओं का कारण अपने कर्म को मानते थे।