Solution : गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति के निम्नलिखित प्रभाव हुए - <br> (I) सार्वजनिक पुस्तकालय -19वीं सदी में मुद्रण निर्धन लोगों तक पहुँचा। प्रकाशकों ने छोटी और सस्ती पुस्तकें छापनी शुरू कर दिन। इन पुस्तकों को चौराहों पर बेचा जाता था। ईसाई मिशनरियों तथा संपन्न लोगों द्वारा सार्वजानिक पुस्तकालय भी खोले गए। <br> (II) वर्गभेद के मुद्दे को उछलना - 19वीं सदी के अंत में कई लेखकों ने वर्गभेद के मुद्दे पर लेखन शुरू किया। <br> (a) ज्योतिबा फुले एक समाज सुधारक थे। उन्होंने निम्न जाती की शोचनीय दशा में लिखा। उन्होंने अपनी पुस्तक .गुलामगिरी.(1871) में जाति -व्यवस्था के अन्यायों के विषय में लिखा। <br> (b) 20वीं सदी में बी. आर. आंबेडकर ने भी जाति-व्यवस्था के विरुद्ध डटकर लिखा। उन्होंने छुआछूत के विरोध में भी लिखा। <br> (c ) ई. वी. रामास्वामी नायकर,जिन्हे पेरियार भी कथे हैं, ने मद्रास में व्याप्त जाति व्यवस्था के विषय में लिखा। इन लेखकों का लेखन पूरे भारत के लोगों द्वारा पढ़ा जाता था। स्थानीय विरोध आंदोलनों और सम्प्रदायों में भी प्राचीन धर्मग्रंथों की आलोचना करते हुए नए और न्यायपूर्ण समाज का भविष्य निर्मित करने के लिए पत्र-पत्रिकाएँ व गुटके छपे । <br> (III) किताबों के माध्यम से मजदूर वर्ग में नशखोरी, साक्षरता, राष्ट्रवाद के सन्देश को प्रसारित किया गया। किताबों में बताया गया कि मजदूरी कि दयनीय परिस्थिति का मुख्य उनका असंगठित होना है।
19वीं सदी में भारत की गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ? - 19veen sadee mein bhaarat kee gareeb janata par mudran sanskrti ka kya asar hua?
मुद्रण संस्कृति से देश की गरीब जनता अथवा मजदूर वर्ग को भी बहुत लाभ पहुंचा । पुस्तकें इतनी सस्ती हो गई थी कि चौक चौराहे पर बिकने लगी थी । गरीब मजदूर इन्हें आसानी से खरीद सकते थे । बीसवीं शताब्दी में सार्वजनिक पुस्तकालय भी खुलने लगे जिससे पुस्तकों की पहुंच और भी व्यापक हो गई।
Solution : गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति के निम्नलिखित प्रभाव हुए - <br> (I) सार्वजनिक पुस्तकालय -19वीं सदी में मुद्रण निर्धन लोगों तक पहुँचा। प्रकाशकों ने छोटी और सस्ती पुस्तकें छापनी शुरू कर दिन। इन पुस्तकों को चौराहों पर बेचा जाता था। ईसाई मिशनरियों तथा संपन्न लोगों द्वारा सार्वजानिक पुस्तकालय भी खोले गए।
मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजी काल में भारतीय लेखकों ने अनेक ऐसी पुस्तकों की रचना की जो राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत थी। बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास आनंदमठ ने लोगों में देश प्रेम की भावना का संचार किया । वंदे मातरम गीत भारत के कोने कोने में गूंजने लगा।