कबंध कैसा राक्षस था उसने राम से क्या कहा? - kabandh kaisa raakshas tha usane raam se kya kaha?

कबन्ध राक्षस (Kabandh Rakshas) का असली नाम दनु था जिसका जन्म गन्धर्व जाति में हुआ था। वह बचपन से ही अत्यधिक बलशाली व सुंदर था। उसकी सुंदरता के कारण उसके शरीर से एक अलग का प्रकाश निकलता था (Kabandh Ramayan)। साथ ही उसे स्वयं भगवान ब्रह्मा का भी वरदान था कि उसे किसी अस्त्र से नही मारा जा सकता है। अपने बल व पराक्रम के कारण उसमे अहंकार आ गया था व सुंदर शरीर के होते हुए भी वह राक्षसी रूप धारण कर ऋषि मुनियों को डराया करता था। आज हम उसी श्राप तथा कबंध राक्षस के वध (Kabandh Raksh Ka Vadh) के बारे में जानेंगे।

कबंध राक्षस का वध (Ramayana Kabandha Rakshas Vadh)

ऋषि स्थूलशिरा से मिला श्राप (Kabandh Rakshas Ko Kisne Shrap Diya Tha)

कबंध ऐसे ही राक्षसों के भयानक रूप धारण कर प्रतिदिन किसी ना किसी ऋषि को डराया करता था। एक दिन उसने स्थूलशिरा ऋषि को भी डराने के लिए भयानक राक्षस का रूप धारण किया। ऋषि स्थूलशिरा के पास कई दैवीय शक्तियां थी व वे दनु के इस कृत्य से अत्यंत क्रोधित हो गए थे (Kabandh Kaun Rakshas Tha)। इसी क्रोध में उन्होंने उसे श्राप दिया कि वह जिस प्रकार का रूप धारण करके उन्हें डरा रहा हैं वही उसका हमेशा के लिए रूप हो जायेगा और वह राक्षसों के जैसा ही व्यवहार करेगा (Kabandh Kaun The)।

ऋषि के श्राप स्वरुप दनु का शरीर वैसा ही रह गया, उसकी दोनों भुजाएं अत्यंत लंबी व विशाल बन गयी व सारा दिव्य ज्ञान विलुप्त हो गया। अब वह एक राक्षस की भांति व्यवहार करने लगा।

ऋषि ने दिया श्राप का उपाय

अपनी यह अवस्था देखकर दनु ऋषि स्थूलशिरा के सामने गिडगिडाने लगा व क्षमा की याचना करने लगा। ऋषि को भी उस पर दया आ गयी व उन्होंने इस श्राप से मुक्त होने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि एक दिन भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ माता सीता को ढूंढते हुए यहाँ आयेंगे व तुम्हारी दोनों भुजाएं काट देंगे। इसके बाद जैसे ही वे तुम्हारा दाह संस्कार करेंगे तो तुम श्राप से मुक्त हो जायेंगे व पुनः अपने इसी शरीर को प्राप्त करोगे।

देव इंद्र से युद्ध

इसके पश्चात दनु का देवराज इंद्र से युद्ध हुआ। चूँकि दनु को ब्रह्मा जी के द्वारा दीर्घायु होने व किसी अस्त्र से ना मरने का वरदान प्राप्त था इसलिये इंद्र उनकी हत्या तो नही कर पायें लेकिन उनके वज्र के प्रहार से दनु का राक्षस शरीर उसके कबन्ध (पेट) में समा गया व केवल मुख व भुजाएं ही बाहर रही। तब से वह उसी स्थल पर जड़ पड़ा रहा व अपनी लंबी-लंबी भुजाएं फैलाकर पशु पक्षियों को पकड़ कर अपना भोजन करता। तब से उसका नाम कबंध राक्षस पड़ा।

कबंध राक्षस का दाह संस्कार (Ramayan Kabandh Vadh)

जब भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ माता सीता की खोज में वहां पहुंचे तो कबन्ध ने उन्हें अपनी भुजाओं में जकड़ लिया। इससे क्रोधित होकर लक्ष्मण ने उसकी दोनों भुजाएं काट दी। यह देखकर कबन्ध ने उन दोनों का परिचय जाना व सारी बात बताई। साथ ही यह बताया कि पुनः अपने गन्धर्व शरीर को प्राप्त करने के बाद वह माता सीता की खोज में उनकी सहायता कर सकता हैं। अतः भगवान राम व लक्ष्मण ने उनका विधि पूर्वक दाह संस्कार किया।

कबन्ध राक्षस की श्राप से मुक्ति व शबरी का पता बताना (Danu Gandharva)

दाह संस्कार होते ही कबन्ध को ऋषि स्थूलशिरा के श्राप से मुक्ति मिली व पुनः उन्होंने अपने दनु गन्धर्व के शरीर को प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने भगवान राम को उनकी भक्त शबरी का पता दिया व बताया कि वहां से उन्हें सुग्रीव तक पहुँचने का रास्ता मिलेगा जो माता सीता को ढूंढने में उनकी सहायता करेंगे। यह कहकर वे अंतर्धान हो गए।

विषयसूची

  • 1 कबंध कौन था उसने राम की क्या सहायता की?
  • 2 सीता के क्रोध का क्या कारण था?
  • 3 विरह में राम कौन सी नदी पर गए थे?
  • 4 पक्षीराज जटायु ने मरने से पहले क्या बताया?
  • 5 राम का मन शांत कैसे होने लगा?
  • 6 जटायु ने राम से क्या कहा?

कबंध कौन था उसने राम की क्या सहायता की?

इसे सुनेंरोकेंकबंध कौन था? कबन्ध एक गन्धर्व था जो कि दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण राक्षस बन गया था। राम ने उसका वध करके राक्षस योनि से उसका उद्धार किया। एक अन्य कथा के अनुसार यह “श्री” नामक अप्सरा का पुत्र था और “विश्वावसु “नाम का गंधर्व था।

सीता के क्रोध का क्या कारण था?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: सीता स्वयंवर के समय शिवजी के धनुष को श्री राम ने तोड़ दिया था जिस कारण परशुराम क्रोध से भर उठे थे। उनके क्रोध को शाँत करने के लिए राम ने उनसे बिना किसी हर्ष या विषाद के कहा था कि हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला कोई उन का ही दास होगा।

कबंध राक्षस का रूप कैसा था?

इसे सुनेंरोकेंकबन्ध राक्षस (Kabandh Rakshas) का असली नाम दनु था जिसका जन्म गन्धर्व जाति में हुआ था। वह बचपन से ही अत्यधिक बलशाली व सुंदर था। उसकी सुंदरता के कारण उसके शरीर से एक अलग का प्रकाश निकलता था (Kabandh Ramayan)। साथ ही उसे स्वयं भगवान ब्रह्मा का भी वरदान था कि उसे किसी अस्त्र से नही मारा जा सकता है।

कबंध राक्षस ने राम से क्या इच्छा व्यक्त की *?

इसे सुनेंरोकेंकबंध ने इंद्र से युद्ध किया और इंद्र के 100 गांठों वाले वज्र से मेरा सिर और जांघें मेरे शरीर के अंदर घुस गईं, पर ब्रह्मा की बात सच्ची रखने के लिए उन्होंने मेरे प्राण नहीं लिए। कबंध ने राम और लक्ष्मण से यह पूछा कि ‘मस्तक, जंघा, मुख टूटने के बाद मैं कैसे जीवित रहूँगा और खाऊँगा क्या?’

विरह में राम कौन सी नदी पर गए थे?

इसे सुनेंरोकेंविरह में राम गोदावरी नदी के पास गए। उन्होंने नदी, पेड़-पौधे, हाथी, शेर, फूल, चट्टान पत्थरों से भी सीता के बारे में पूछा। वे अपनी सुध-बुध खो बैठे थे। राम का दुख लक्ष्मण से देखा नहीं जा रहा था।

पक्षीराज जटायु ने मरने से पहले क्या बताया?

इसे सुनेंरोकेंपक्षीराज जटायु ने मरने से पहले क्या बताया? Answer: पक्षीराज जटायु ने बताया कि सीता को रावण उठा ले गया है और वह दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर गया है। Question 71.

कबंध ने राम से क्या आग्रह किया?

इसे सुनेंरोकेंप्रश्न-4 कबंध ने राम से क्या आग्रह किया? उत्तर – कबंध ने राम से आग्रह किया कि उसका अंतिम संस्कार राम करें। प्रश्न-5 कंबध किस के शक्ति और बुद्धि पर आश्चर्यचकित था और क्यों? उत्तर – राम और लक्ष्मण के शक्ति और बुद्धि पर कबंध आश्चर्यचकित था क्योंकि उन्होंने अपनी तलवार से एक झटके में ही कंबध के हाथ काट दिए थे ।

सीता को कुटी में न पाने पर राम की क्या दशा ुई?

इसे सुनेंरोकेंसीता को कुटिया में न पाकर राम शोक से व्याकुल हो कर रोने लगे । सीता से बिछुड़ना उनके लिए असहनीय आघात था । उत्तर – राम की मानसिक स्थिति विक्षिप्त जैसी थी । एक बार उन्हें लगा कि सीता वहीं कुटिया के पास है और उन्हें खिझाने के लिए पेड़ के पीछे छीप गई है ।

राम का मन शांत कैसे होने लगा?

इसे सुनेंरोकेंजब तीन दिन तक की निरंतर प्रार्थना के बाद भी समुद्र शांत नहीं हुआ तब श्री राम ने ब्रह्मास्त्र के द्वारा उसे सुखा देने का निश्चय किया। उनके ऐसा निश्चय करते ही समुद्र देवता थर-थर कांपने लगते हैं तथा प्रभु श्री राम से शांत होने की प्रार्थना करते हैं। बालि वध कर श्री राम ने सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य दिला दिया।

जटायु ने राम से क्या कहा?

इसे सुनेंरोकेंजटायु ने राम को बताया कि रावण सीता का हरण कर दक्षिण दिशा की ओर ले गया है. सीता को बचाने में रावण ने उनके पंख काट दिए. उन्होंने संषर्घ के दौरान टूटे हुए रावण के तीर भी दिखाए. जटायु ने बताया कि रावण विश्रवा का पुत्र और कुबेर का भाई है.

त्रिजटा कौन थी?

इसे सुनेंरोकेंत्रिजटा रामभक्त विभीषणजी की पुत्री है। इनकी माता का नाम शरमा है। वह रावण की भ्रातृजा है। राक्षसी उसका वंशगुण है और रामभक्ति उसका पैतृक गुण ।

कबंध अपनी गति पाकर कहाँ गया?

इसे सुनेंरोकेंभावार्थ : श्री रामजी ने अपना धर्म (भागवत धर्म) कहकर उसे समझाया। अपने चरणों में प्रेम देखकर वह उनके मन को भाया। तदनन्तर श्री रघुनाथजी के चरणकमलों में सिर नवाकर वह अपनी गति (गंधर्व का स्वरूप) पाकर आकाश में चला गया॥

कबंध राक्षस का रूप कैसा था?

कबन्ध राक्षस (Kabandh Rakshas) का असली नाम दनु था जिसका जन्म गन्धर्व जाति में हुआ था। वह बचपन से ही अत्यधिक बलशाली व सुंदर था। उसकी सुंदरता के कारण उसके शरीर से एक अलग का प्रकाश निकलता था (Kabandh Ramayan)। साथ ही उसे स्वयं भगवान ब्रह्मा का भी वरदान था कि उसे किसी अस्त्र से नही मारा जा सकता है।

कबंध ने राम से क्या कहा था?

कबंध ने राम से क्या आग्रह किया? उत्तर: कबंध ने श्रीराम से आग्रह करते हुए कहा कि श्रीराम ही उसका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से करें। राम ने कबंध को यह वचन देकर आश्वासित किया कि उसका अंतिम संस्कार वह स्वयं ही करेंगे।

कबंध कौन था उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए?

कबंध कौन था? उत्तर: कबंध एक विशालकाय, डरावना राक्षस थाउसकी एक आँख थी।

कबंध का शरीर कैसा था?

अचानक उन्होंने एक विचित्र दैत्य देखा, जिसके मस्तक और गला नहीं था तथा उसके पेट में मुख था। उसकी केवल एक ही आँख थी। शरीर पर पीले रोयें थे। उसकी एक योजन लम्बी बाहें थीं।

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