1. अनेक साधु-संतों के नाम लेकर संत कवि क्या स्पष्ट करना चाहते हैं? - 1. anek saadhu-santon ke naam lekar sant kavi kya spasht karana chaahate hain?

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
(प्रत्येक 1 अंक)

प्रश्न 1. कवि ने स्वयं को पानी मानकर प्रभु को क्या माना है? ‘रैदास के पद’ के आधार पर लिखिए।
उत्तरः कवि ने स्वयं को पानी मानकर प्रभु को चंदन माना है।

प्रश्न 2. रैदास के आधार पर बताइए कि चंदन को पानी की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तरः पानी की सहायता से ही उसका सुगंधित लेप बनाया जा सकता है।

प्रश्न 3. चन्दन की सुगंध अंग-अंग में बस जाने से रैदास का भाव क्या है? 
उत्तरः राम की भक्ति उनके शरीर के पोर-पोर में समा गयी है।

प्रश्न 4. स्वयं को बाती कहकर रैदास क्या सिद्ध करना चाहते हैं?
उत्तरः मनुष्य ईश्वरीय कृपा से प्रकाशित होता है। रैदास सिद्ध करना चाहते हैं कि वे बाती की तरह ईश्वर के प्रेम में सदा जलते रहते हैं।

प्रश्न 5. सुहागे से मिलने पर सोने में क्या परिवर्तन आता है? 
उत्तरः सुहागा से मिलकर सोना शुद्ध व चमकीला हो जाता है।

प्रश्न 6. रैदास की भक्ति किस प्रकार की है? 
उत्तरः रैदास की भक्ति दास्य भाव की है।

प्रश्न 7. ‘रैदास’ ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है?

अथवा

रैदास ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है? उनके स्वामी की कोई दो विशेषताएँ भी बताइए।
उत्तरः रैदास ने अपने स्वामी को गरीब निवाजु, लाल, गोविन्द, गुसाई, हरि आदि नामों से पुकारा है। स्वामी की नजर में भक्त की भक्ति श्रेष्ठ व उनका प्रेम सर्वाेपरि है।

लघु उत्तरीय प्रश्न 

(प्रत्येक 2 अंक)

प्रश्न 1. कवि रैदास ने भगवान और भक्त की तुलना किन-किन चीजों से की है? 

अथवा

पहले पद में भगवान और भक्त की तुलना किन-किन चीजों से की है, उनका उल्लेख कीजिए। 
उत्तरः रैदास के लाल की विशेषता है कि वह दीनदयालु, गरीब निवाजु हैं। ईश्वर समदर्शी है। जो नीची जाति वालों को भी अपनाकर उन्हें समाज में ऊँचा स्थान देता है। वह असंभव को भी संभव कर सकता है।

प्रश्न 2. रैदास ईश्वर के साथ किन-किन रूपों में एकाकार हो गए हैं? 
उत्तरः रैदास ईश्वर के साथ चंदन-पानी, घन वन-मोर, चाँद चकोर, दीपक-बाती, मोती-धागा, सुहागा-सोना आदि रूपों में एकाकार हो गए हैं।

व्याख्यात्मक हल:

रैदास की आत्मा परमात्मा के प्रेम में उसी तरह एकाकार हो गई है जिस तरह चंदन-पानी, घनवन-मोर, चाँद-चकोर, दीपक-बाती, मोती-धागा, सुहागा-सोना आदि एक दूसरे के बिना अधूरे व महत्वहीन हो जाने के कारण एकाकार हो गए हैं।

प्रश्न 3. रैदास की भक्ति में कौन-सा भाव उभरकर आया है? उनकी कविता से प्रमाण दीजिए।
उत्तरः दास्यमान, प्रमाण -‘तुम स्वामी हम दासा’

व्याख्यात्मक हल:

रैदास की भक्ति दास्य भाव की है। वे स्वयं को लघु, तुच्छ और दास कहते हैं। वे प्रभु को दीनदयाल, भक्तवत्सल कहते हैं व स्वयं को दास और प्रभु को उनका स्वामी बताते हुए कहते हैं-"तुम स्वामी हम दासा।"

प्रश्न 4. कवि रैदास ने प्रभु को निडर क्यों कहा है?

अथवा

रैदास के ‘लाल’ की क्या विशेषता है? 
उत्तरः कवि ने प्रभु को निडर कहा है क्योंकि वह दीन, दयालु, गरीब निवाजु है। वे समदर्शी हैं। वे नीची जाति वालों को भी अपनाकर उन्हें समाज में ऊँचा स्थान देते हैं। वह असंभव को भी संभव कर सकते हैं।

प्रश्न 5. रैदास ने ईश्वर की किस गरीब निवाज की अनोखी आदत का उल्लेख किया है? कवि ‘गरीब निवाजु’ किसे कहते हैं और क्यों?
उत्तरः गरीब को अमीर और राजा बना देता है।

व्याख्यात्मक हल:

कवि रैदास ने अपने प्रभु को ‘गरीब निवाजु’ कहा है। इसका अर्थ है-दीन-दुखियों, गरीबों पर दया करने वाला। प्रभु ने रैदास जैसे अछूत को संत की पदवी प्रदान कर उसे आदर, सम्मान का पात्र बना दिया। प्रभु गरीब को अमीर और राजा बना देता है।

प्रश्न 6. ‘जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै’ - रैदास की पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः इसका आशय यह है कि वह ईश्वर गरीब नवाज है जिन्हें अस्पृश्य, अछूत मानकर यह संसार ठुकराता है उन्हें वह अपनी शरण में लेकर उनका कल्याण करता है। उनके दुःख को देखकर द्रवित होता है। उनके दुःख को दूर करता है।

प्रश्न 7. अनेक साधु-सन्तों के नाम लेकर कवि क्या स्पष्ट करना चाहते हैं? 
उत्तरः अनेक साधु सन्तों के नाम लेकर कवि ईश्वर की दयालुता को स्पष्ट करना चाहते हैं। वे निम्न कोटि के व्यक्तियों को भी अपनी कृपा से उच्च पद प्रदान करते हैं। वे दीनदुखियों के सहायक हैं।

व्याख्यात्मक हल:

कवि कबीर, नामदेव, त्रिलोचन, सधना, सैनु जैसे गरीब व निम्न कोटि के व्यक्तियों को संत का सम्मान दिलाने के ईश्वरीय कृपा के गुण को बताकर प्रभु की महिमा का वर्णन करना चाहता है।

प्रश्न 8. रैदास के इन पदों का केन्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए। 
उत्तरः रैदास के दो पद संकलित हैं। दोनों पदों में ईश्वर के गुणों का बखान करके उसका गुणगान किया गया है। प्रथम पद में ईश्वर को महान् एवं स्वयं को उसका दास बताया है। दूसरे पद में प्रभु को अछूतों, गरीबों तथा दीनों का उद्धारक बताया गया है प्रभु अपनी कृपा से अछूतों को भी समाज में सम्मानजनक पद दिलवा देता है। हमें उसी ईश्वर की पूजा-उपासना करनी चाहिए।

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अनेक साधु संतों के नाम लेकर संत कवि क्या स्पष्ट करना चाहते हैं?

उत्तर : अनेक साधु-संतों का नाम लेकर कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि परमात्मा की दृष्टि में कोई अछूत नहीं है । समाज इन संत कवियों को निम्न दृष्टि से देखता था । फिर भी प्रभु ने उनका उद्धार कर दिया और लोगों ने भी इनका खूब मान-सम्मान किया ।

कवि ने स्वयं को पानी मानकर प्रभु को क्या माना है रैदास के पद के आधार पर लिखिए?

कवि ने स्वयं को पानी मानकर प्रभु को चंदन माना है। रैदास के स्वामी निराकार प्रभु हैं। वे अपनी असीम कृपा से नीच को भी ऊँच और अछूत को महान बना देते हैं। रैदास अपने प्रभु के अनन्य भक्त हैं, जिन्हें अपने आराध्य को देखने से असीम खुशी मिलती है।

रैदास के पदों के आधार पर बताइए कि चंदन को पानी की आवश्यकता क्यों पड़ती है?

रैदास के आधार पर बताइए कि चंदन को पानी की आवश्यकता क्यों पड़ती है? उत्तरः पानी की सहायता से ही उसका सुगंधित लेप बनाया जा सकता है। प्रश्न 3.

दूसरे पद में कवि रैदास अपने प्रभु की क्या क्या विशेषताएँ बताते हैं?

पठित पद से ज्ञात होता है कि रैदास को अपने प्रभु के नाम की रट लग गई है जो अब छुट नहीं सकती है। इसके अलावा कवि ने अपने प्रभु को चंदन, बादल, चाँद, मोती और सोने के समान बताते हुए स्वयं को पानी, मोर, चकोर धाग और सुहागे के समान बताया है। इन रूपों में वह अपने प्रभु के साथ एकाकार हो गया है।

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