विश्व की प्रथम लिपि कौन सी है? - vishv kee pratham lipi kaun see hai?

२६शती ईसा पूर्व का सुमेरी अभिलेख

अंकन लिपि, क्यूनिफार्म लिपि (Cuneiform script) या कीलाक्षर विश्व में लिखने की प्राचीनतम विधियों में से एक है। छठी-सातवीं सदी ई.पू. से लगभग एक हजार वर्षों तक ईरान में किसी-न-किसी रूप में इसका प्रचलन रहा। प्राचीन फारसी या अवस्ताई के अलावा मध्ययुगी फारसी या ईरानी (३०० ई.पू. - ८०० ई.) भी इसमें लिखी जाती थी। सिकंदर के आक्रमण के समय के प्रसिद्ध बादशाह दारा के अनेक अभिलेख एवं प्रसिद्ध शिलालेख इसी लिपि में अंकित है। इन्हें 'दारा के कीलाक्षर लेख' भी कहते हैं।

इस लिपि का प्रयोग सबसे पहले ३०वीं सदी ईसापूर्व में सुमेर सभ्यता में उभरा और इसकी कुछ पूर्वज लेखन विधियाँ के भावचित्र भी मिलें हैं। समय के साथ-साथ यह चित्रलिपि सरल होती गई और चित्रों से हटकर स्वरों को दर्शाने लगी। जहाँ कांस्य युग के शुरू में कोई १००० कीलाक्षर चिह्न थे यह कांस्य युग के अंत तक घटकर केवल ४०० रह गए। समय के साथ-साथ फ़ोनीशियाई लिपि ज़्यादा प्रचलित हो गई और कीलाक्षर लिपि ख़त्म हो गई।

नाम[संपादित करें]

क्यूनिफार्म लिपि या कीलाक्षर नामकरण आधुनिक है। इसे प्रेसिपोलिटेन (Presipolitain) भी कहते हैं। यह अर्ध-वर्णात्मक लिपि थी। इसमें 41 वर्ण थे जिनमें 4 परमावश्यक एवं 37 ध्वन्यात्मक संकेत थे।

विकास[संपादित करें]

इस लिपि का विकास मेसोपोटामिया एवं वेबीलोनिया की प्राचीन सभ्य जातियों ने किया था। भाषाभिव्यक्ति चित्रों द्वारा होती थी। ये चित्र मेसोपोटामिया में कीलों से नरम ईंटों पर अंकित किए जाते थे। तिरछी-सीधी रेखाएँ खींचने में सरलता होती थी, किंतु गोलाकार चित्रांकन में कठिनाई। साम देश के लोगों ने इन्हीं से अक्षरात्मक लिपि का विकास किया जिससे आज की अरबी लिपि विकसित हुई। मेसोपोटामिया और साम से ही ईरानवालों ने इसे लिया। कतिपय स्रोत इस लिपि को फिनीश (फोनीशियन) लिपि से विकसित मानते हैं। दारा प्रथम (ई. पू. 521-485) के खुदवाए कीलाक्षरों के 400 शब्दों में प्राचीन फारसी के रूप सुरक्षित हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • अवस्ताई भाषा

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • Akkadian (specifically, Neo-Assyrian) sign list (alain.be) - In French
  • Analysis and reports to support an international standard for computer encoding of the Cuneiform writing system
  • Cuneiform Digital Library Initiative. A Joint Project of the University of California at Los Angeles and the Max Planck Institute for the History of Science. See "Sign Lists" article for free online sign lists.
  • Cuneiform Texts from Babylonian Tablets, &c. in the British Museum, Budge, E.A., London, Harrison and Sons, 1896.
  • ETCSL (Sumerian) sign list
  • Evolution of Cuneiform
  • Neo-Assyrian sign list
आंकिक इनकोडिंग एवं प्रदर्शन (Digital encoding and rendering)
  • Online interactive cuneiform tablet from the State Library of Victoria collection.
  • Online Translator - Translates English words, sentences, and phrases into ancient Assyrian, Babylonian, Sumerian cuneiform
सम्पादित्र (Editors)
  • The Emacs editor has an input method for Neo-Akkadian Cuneiform
फाण्ट (Fonts)
  • Unicode
    • Akkadian (reproduces the archaic (Ur III) glyphs given in the Unicode reference chart, themselves based on a font by Steve Tinney)
    • Cuneiform Composite (free Cuneiform font), also Ur III. Designed by Steve Tinney with input from Michael Everson.
    • FreeIdgSerif (branched off FreeSerif), encodes some 390 Old Assyrian glyphs used in Hittite cuneiform.
  • non-Unicode
    • Cuneiform fonts for TeX/LaTeX/PDFLaTeX by Karel Piska (Type 1, GPL)
    • Sumerian font by Carsten Peust (TrueType, freeware)
    • Ur III, Old Babylonian, NeoAssyrian fonts by Sylvie Vanséveren (TrueType, freeware)
    • UR III font by Guillaume Malingue (TrueType, freeware)

'लिपि ' या लेखन प्रणाली का अर्थ होता है किसी भी भाषा की लिखावट या लिखने का ढंग। ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वही लिपि कहलाती है। लिपि और भाषा दो अलग अलग चीज़ें होती हैं। भाषा वो चीज़ होती है जो बोली जाती है, लिखने को तो उसे किसी भी लिपि में लिख सकते हैं। किसी एक भाषा को उसकी सामान्य लिपि से दूसरी लिपि में लिखना, इस तरह कि वास्तविक अनुवाद न हुआ हो, इसे लिप्यन्तरण कहते हैं।

विश्व की लिपियों का मानचित्र

यद्यपि संसार भर में प्रयोग हो रही भाषाओं की संख्या अब भी हजारों में है, तथापि इस समय इन भाषाओं को लिखने के लिये केवल लगभग दो दर्जन लिपियों का ही प्रयोग हो रहा है। और भी गहराई में जाने पर पता चलता है कि संसार में केवल तीन प्रकार की ही मूल लिपियाँ (या लिपि परिवार) हैं-

  • चित्रलिपि (ideographic scripts) - चीन, जापान एवं कोरिया में प्रयुक्त लिपियाँ,
  • ब्राह्मी से व्युत्पन्न लिपियाँ - देवनागरी तथा दक्षिण एशिया एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रयुक्त लिपियाँ; तथा
  • फोनेशियन (Phonecian) से व्युत्पन्न लिपियाँ - सम्प्रति यूरोप, मध्य एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका में प्रयुक्त लिपियाँ

ये तीनों लिपियाँ तीन अलग-अलग क्षेत्रों में विकसित हुईं जो पर्वतों एवं मरुस्थलों द्वारा एक-दूसरे से अलग-अलग स्थित हैं।

अल्फाबेटिक (Alphabetic) लिपियाँ[संपादित करें]

इसमें स्वर अपने पूरे अक्षर का रूप लिये व्यंजन के बाद आते हैं।

  • लैटिन लिपि (रोमन लिपि) -- अंग्रेज़ी, फ्रांसिसी, जर्मन, कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग और पश्चिमी और मध्य यूरोप की सारी भाषाएँ
  • यूनानी लिपि -- यूनानी भाषा, कुछ गणितीय चिन्ह
  • अरबी लिपि -- अरबी, उर्दू, फ़ारसी, कश्मीरी
  • इब्रानी लिपि -- इब्रानी
  • सीरिलिक लिपि -- रूसी, सवियत संघ की अधिकांश भाषाएँ

अल्फासिलैबिक (Alphasyllabic) लिपियाँ[संपादित करें]

इसकी हर एक इकाई में एक या अधिक व्यंजन होता है और उसपर स्वर की मात्रा का चिह्न लगाया जाता है। अगर इकाई में व्यंजन नहीं होता तो स्वर का पूरा चिह्न लिखा जाता है।

  • शारदा लिपि - कश्मीरी भाषा, लद्दाखी भाषा, हिमाचली/पहाड़ी/डोंगरी भाषा, पंजाबी/गुरुमुखी भाषा,तिब्बती भाषा, उत्तर - पश्चिमी भारतीय भाषा की लिपि
  • देवनागरी लिपि - हिन्दी भाषा, काठमाण्डू भाषा (नेपाली भाषा), भोजपुरी भाषा, बंगाली भाषा, उड़िया भाषा (कलिंग भाषा), असमिया भाषा, राजस्थानी भाषा, गुजराती भाषा, मारवाड़ी भाषा, सिन्धी भाषा, गढ़वाली भाषा, छत्तीसगढ़ी भाषा, अवधी, मराठी, कोंकणी
  • मध्य भारतीय लिपि - तेलुगू भाषा
  • द्रविड़ लिपि - तमिल भाषा, कन्नड़ भाषा, मलयालम भाषा, कोलंबो (श्रीलंकाई) भाषा

दक्षिण भारतीय भाषाओं व बौद्ध धर्म के प्रचारकों द्वारा पूर्वमें भाषा को क्रमबद्ध एवम् व्यवस्थित किया गया जिससे चित्र लिपि में भी मात्राओं जैसी प्रवृत्ति विकसित हो गई। अन्य भाषाएँ

  • मंगोलियन लिपि जापानी भाषा, कोरियाई भाषा, मैण्डरिन भाषा, चीनी भाषा, तुर्कमेनिस्तान भाषा, दक्षिण पूर्वी सोवियत गणराज्य के देशों की भाषाएँ।

चित्र लिपियाँ[संपादित करें]

ये सरलीकृत चित्र होते हैं।

  • प्राचीन मिस्री लिपि -- प्राचीन मिस्री
  • चीनी लिपि -- चीनी (मंदारिन, कैण्टोनी)
  • कांजी लिपि -- जापानी

लिपि (लेखन कला) का उद्भव[संपादित करें]

भारतीय दृष्टिकोण[संपादित करें]

भारतीय दृष्टिकोण सदा अध्यात्मवादी रहा है। किसी भी भौतिक कृति को जो थोड़ी भी आश्चर्यजनक होती है तथा जिसमें नवीनीकरण रहता है उसे दैवीय कृति ही माना जाता है। यही कारण है कि आदि ग्रन्थ वेद को अपौरुषेय कहा जाता है, वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति ब्रह्मा से जोड़ी जाती है तथा भारतीय लिपि ब्राह्मी को ब्रह्मा द्वारा निर्मित बताया जाता है।

भारतीय लेखन-कला के उद्धव के सम्बन्ध में भी भारतीय दृष्टिकोण कुछ इसी प्रकार का प्रतीत होता है। बादामी से ईसवी सन् 580 का एक प्रस्तर-खण्ड प्राप्त हुआ है जिसपर ब्रह्मा की आकृति बनी है। उनके हाथ में ताड़-पत्रों का एक समूह है। यह स्पष्ट पुरातात्त्विक प्रमाण है कि ब्राह्मा से ही लेखन-कला का सम्बन्ध जोड़ा गया है। नारदस्मृति में लिपि के उद्भव के समब्न्ध में एक श्लोक आया है-[1]

ना करिष्यति यदि ब्रह्मा लिखितं चक्षुरुत्तमम्‌।तदेयमस्य लोकस्य नाभविष्यत्‌ शुभाङ्गतिः ॥अर्थात्‌ यदि ब्रह्मा 'लेखन' के रूप में उत्तम नेत्र का विकास नहीं करते तो तीनों लोकों को शुभ गति नहीं प्राप्त होती।

वृहस्पति स्मृति में भी इसी प्रकार यह लिखा है कि पहले सृष्टि-कर्त्ता ने अक्षरों को पत्तों पर अंकित करने का विधान किया क्योंकि छः मास में किसी भी वस्तु के सम्बन्ध में स्मृति विभ्रमित हो जाती थी। बौद्ध ग्रन्थ ललितविस्तर सूत्र में 64 लिपियों का उल्लेख किया गया है। उनमें से सबसे पहले ब्राह्मी लिपि का उल्लेख है। जैन ग्रन्थों में एक प्रसंग आता है कि ऋषभ नाथ को एक लड़की थी। उसका नाम बम्पी था। उसी को पढ़ाने के लिए उन्होंने एक लिपि को विकसित किया। इसी से बम्पी को पढ़ाने के लिए निकाली गई लिपि ब्राह्मी कहलाई। यहीं समवायंणसूत्र एवं पणवणासूत्र में 18 लिपियों का वर्णन मिलता है जिनमें प्रथम नाम ब्राह्मी का है।

विदेशी विचारधारा[संपादित करें]

प्रायः पश्चिमी विचारकों ने इस सम्बन्ध में एक नवीन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, जिससे इस क्षेत्र में अनेक समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं। उन्होंने सामान्यतया यह व्यक्त किया है कि भारतीयों ने 600 ई० पू० के पहले लेखन-कला में कोई गति नहीं प्राप्त की थी। इसके पूर्व भारतीय, लेखन-कला से पूर्णतया अनभिज्ञ थे। इस मत के संस्थापक तथा प्रतिस्थापक हैं-- ब्यूलर, डेविड डिरिंजर आदि। इस समस्या का अध्ययन सबसे पहले डॉ० मैक्समूलर महोदय ने किया। पाणिनीय शिक्षा के निम्नलिखित श्लोक को आधार बनाकर डॉ० डेबिड डिरिंजर कहते हैं कि ब्राह्मी भारत की आदि लिपि है और इसकी तिथि किसी उपलब्ध तर्क के आधार पर पाँचवीं शताब्दी ई० पू० के पहले निर्धारित नहीं की जा सकती -

गीती शीघ्री शिरःकम्पी तथा लिखित-पाठकः ।अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठश्च षडेते पाठकाधमाः ॥३२॥(अर्थ : गाकर पढ़ना, शीघ्रता से पढ़ना, पढ़ते हुए सिर हिलाना, लिखा हुआ पढ़ना, अर्थ न जानकर पढ़ना, और धीमा आवाज होना -- ये छे पाठक के दोष हैं।)

इस श्लोक में पाठक के छः दोषों का विवेचन किया गया है, पर इसके साथ कहीं भी लेखक का वर्णन नहीं मिलता। इसलिए इनका विचार है कि लेखनक्रिया का बाद में विकास हुआ होगा।

पर विदेशी विचारकों का यह मत पूर्णतया भारतीय दृष्टिकोण से अमान्य है। इसलिए उपर्युक्त मतों का खण्डन बड़े ही समवेत स्वर में भारतीय विचारक डॉ० राजबली पाण्डेय, डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा तथा डॉ० ए० सी० दास आदि ने किया है।

जहाँ डिरिंजर जहाँ केवल पाठकों की स्थिति का अनुमान करते हैं वहीं 'लिखित' शब्द इस बात का द्योतक है कि पाठक लिखा हुआ पढ़ता था अथवा बोल-बोल कर लिखता था। डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का यह तर्क बड़ा सटीक प्रतीत होता है। यहाँ इस श्लोक में गीती, शीघ्री, शिरः कम्पी, अनर्थज्ञ एवं अल्पकण्ठ आदि पाठकों के छः दोष बताये गये हैं। पाठक का अभिप्राय 'पढ़ने वाले' से है। जब तक लिखने का प्रसंग नहीं होगा तब तक पढ़ने वाले का प्रसंग आना अस्वाभाविक है। अतएव निश्चित ही उस समय तक लेखन-कला का विकास हो गया होगा।

लेखन की दिशा[संपादित करें]

विश्व की लिपियों के लिखने की दिशा भिन्न-भिन्न है। कुछ दाएँ-से-बाएँ लिखी जातीं हैं, कुछ बाएँ-से-दाएँ। कुछ तो बाएँ-से-दाएँ और दाएँ-से-बाएँ दोनों तरफ लिखी जातीं हैं। कुछ लिपियाँ ऊपर-से-नीचे भी लिखीं जातीं हैं।

देवनागरी से अन्य लिपियों में रूपान्तरण[संपादित करें]

  • आईट्रान्स निरूपण, देवनागरी को लैटिन (रोमन) में परिवर्तित करने का आधुनिकतम और अक्षत (lossless) तरीका है। (Online Interface to iTrans)
  • आजकल अनेक कम्प्यूटर प्रोग्राम उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को किसी भी भारतीय लिपि में बदला जा सकता है।
  • कुछ ऐसे भी कम्प्यूटर प्रोग्राम हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को लैटिन, अरबी, चीनी, क्रिलिक, आईपीए (IPA) आदि में बदला जा सकता है। (ICU Transform Demo)
  • यूनिकोड के पदार्पण के बाद देवनागरी का रोमनीकरण (romanization) अब अनावश्यक होता जा रहा है। क्योंकि धीरे-धीरे कम्प्यूटर पर देवनागरी को (और अन्य लिपियों को भी) पूर्ण समर्थन मिलने लगा है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. भारतीय पुरालेखों का अध्ययन Archived 2018-11-10 at the Wayback Machine (लेखक-शिवस्वरूप सहाय)

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • लिपि (संस्कृत)
  • लिप्यन्तरण - एक लिपि में लिखे पाठ (टेक्स्ट) को दूसरी लिपि में बदलना।
  • लिपि के अनुसार भाषाओं की सूची
  • लिपियों की सूची
  • देवनागरी
  • ब्राह्मी लिपि
  • यूनिकोड
  • देवनागरी विमर्श

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • संस्कृति, साहित्य और लिपि-संदर्भ राष्ट्रभाषा[मृत कड़ियाँ] - डॉ॰ मनोज पाण्डेय
  • देवनागरी लिपि में वेब पोर्टल

संसार की सबसे पुरानी लिपि कौन सी है?

सबसे प्राचीन लिपि भारतवर्ष में अशोक की पाई जाती है जो सिंध नदी के पार के प्रदेशों (गांधार आदि) को छोड़ भारतवर्ष में सर्वत्र बहुधा एक ही रूप की मिलती है। जिस लिपि में अशोक के लेख हैं वह प्राचीन आर्यो या ब्राह्मणों की निकाली हुई ब्राह्मी लिपि है।

विश्व की सबसे पहली भाषा कौन सी है?

कई इतिहासकारों ने भी माना है और कई रिसर्च में भी सामने आया है कि तमिल दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है. माना जाता है कि करीब 5000 साल पहले इस भाषा की उत्पत्ति हुई थी. एक सर्वे के अनुसार, प्रतिदिन सिर्फ तमिल भाषा में 1863 अखबार प्रकाशित होते हैं. वर्तमान में तमिल भाषा बोलने वालों की संख्या लगभग 7.7 करोड़ है.

दुनिया की सबसे अच्छी भाषा कौन सी है?

इनमें हिंदी के बाद बंगाली भाषा का स्थान है जो लिस्ट में 26.5 करोड़ लोगों के साथ सातवें स्थान पर है. 17 करोड़ लोगों के साथ 11वें नंबर पर उर्दू का स्थान है. 9.5 करोड़ लोगों के साथ 15वें स्थान पर मराठी, 9.3 करोड़ के साथ 16वें नंबर पर तेलगू और 8.1 करोड़ लोगों के साथ 19वें स्थान पर तमिल भाषा आती है.

देवनागरी लिपि का जन्म कब हुआ?

जबकि देवनागरी का जो वर्तमान मानक स्वरूप है, वैसी देवनागरी का उपयोग १००० ई के पहले आरम्भ हो चुका था। मध्यकाल के शिलालेखों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि नागरी से सम्बन्धित लिपियों का बड़े पैमाने पर प्रसार होने लगा था। कहीं-कहीं स्थानीय लिपि और नागरी लिपि दोनों में सूचनाएँ अंकित मिलतीं हैं।

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