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वर दे वीणावादिनी वर दे ! / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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वर दे, वीणावादिनि वर दे!
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे!
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे!
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव
पर, नव स्वर दे!
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
वीणा वादिनी के लेखक कौन है?
वर दे वीणा वादिनी वर दे :माँ सरस्वती वंदना : बसंत पंचमी विशेष : Var De Veena Vadini Var De - YouTube.
वर दे वीणावादिनी वर दे किसकी कविता है?
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
वर दे, वीणावादिनि वरदे! भारत में भर दे! जगमग जग कर दे!
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सम्राज्ञी का नैवेद्य-दान - कविता | हिन्दवी
वीणा वादिनी वर दे में कौन सा अलंकार है?
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