हिन्दू धर्म में चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नवसंवत की शुरुआत होती है. इसे भारतीय नववर्ष भी कहा जाता है. इसका आरम्भ विक्रमादित्य ने किया था, इसलिए इसे विक्रम संवत भी कहा जाता है. जानें- क्या होता है विक्रम संवत, इसकी शुरुआत और दूसरे कैलेंडर से कितना अलग है.
शक संवत और विक्रम संवत में अंतर
शक संवत को सरकारी रूप से अपनाने के पीछे ये वजह दी जाती है कि प्राचीन लेखों, शिला लेखो में इसका वर्णन देखा गया है. इसके अलावा यह संवत विक्रम संवत के बाद शुरू हुआ. अंग्रेजी कैलेंडर से ये 78 वर्ष पीछे है, 2020 - 78 = 1942 इस प्रकार अभी 1942 शक संवत चल रहा है.
ऐसे शुरू हुआ विक्रम संवत
कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने इसकी शुरुआत की थी. उनके समय में सबसे बड़े खगोल शास्त्री वराहमिहिर थे. जिनके सहायता से इस संवत के प्रसार में मदद मिली. ये अंग्रेजी कैलेंडर से 57 वर्ष आगे है, 2020 + 57 = 2077 विक्रम संवत चल रहा है.
जानें क्या है ग्रेगोरियन कैलेंडर
यूं तो नये साल का मतलब पहली जनवरी है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार जनवरी साल का पहला महीना है और एक जनवरी को दुनिया के प्राय: सभी देशों में नया साल मनाया जाता है. ग्रेगोरियन के अलावा कई अन्य कैलेंडर भी काफी प्रचलित हैं.
इसमें इस्लामी कैलेंडर के अनुसार हिजरी संवत को छोड़ कर सभी कैलेंडर में जनवरी या फरवरी में नये साल का अगाज होता है. भारत में कई कैलेंडर प्रचलित हैं जिनमें विक्रम संवत और शक संवत प्रमुख हैं.
पूरी दुनिया में काल गणना का दो ही आधार है- सौर चक्र और चंद्र चक्र. सौर चक्र के अनुसार पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा करने में 365 दिन और लगभग छह घंटे लगते हैं. इस तरह गणना की जाए तो सौर वर्ष पर आधारित कैलेंडर में साल में 365 दिन होते हैं जबकि चंद्र वर्ष पर आधारित कैलेंडरों में साल में 354 दिन होते हैं. जानें कौन से विश्व के कुछ प्रचलित कैलेंडर हैं.
ग्रेगोरियन कैलेंडर
ग्रेगोरियन कैलेंडर का आरंभ ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह के जन्म के चार साल बाद हुआ. इसे एनो डोमिनी अर्थात ईश्वर का वर्ष भी कहते हैं. यह कैलेंडर सौर वर्ष पर आधारित है और पूरी दुनिया में इसका इस्तेमाल होता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के महीने 30 और 31 दिन के होतें हैं, लेकिन फरवरी में सिर्फ 28 दिन होते हैं. फिर प्रत्येक चार साल बाद लीप ईयर आता है जिसमें फरवरी में 29 और वर्ष में 366 दिन होते हैं.
हिब्रू कैलेंडर
हिब्रू कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर से भी पुराना है. बता दें कि यहुदी अपने दैनिक काम-काज के लिए इसका प्रयोग करते थे. इस कैलेंडर का आधार भी चंद्र चक्र ही है, लेकिन बाद में इसमें चंद्र और सूर्य दोनों चक्रों का समावेश किया गया. इस कैलेंडर का पहला महीना शेवात 30 दिनों का और अंतिम महीना तेवेन 29 दिनों का होता है.
हिज़री कैलेंडर
हिज़री कैलेंडर का आरंभ 16 जुलाई 622 को हुआ. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन इस्लाम के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद मक्का छोड़कर मदीना को प्रस्थान कर गए थे. इस घटना को हिजरत और हिजरी संवत चंद्र वर्ष पर आधारित मानते हैं. इसमें साल में 354 दिन होते हैं. सौर वर्ष से 11 दिन छोटा होने के कारण कैलेंडर वर्ष के अंतिम माह में कुछ दिन जोड़ दिए जाते हैं.
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गुढी पाडवा से क्या आशय है? -अजय मलिक प्रश्न: संवत क्या होता है? ये कब शुरू हुआ? इसका इतिहास क्या
है?-मनोज कुमार खाटी
विक्रम संवत में दिन, सप्ताह और मास की गणना सूर्य व चंद्रमा की गति पर निश्चित की गई है, जो अंग्रेजी कैलेंडर से बहुत विकसित प्रतीत होती है। इसमें सूर्य, चंद्रमा के साथ अन्य ग्रहों को तो जोड़ा ही गया, साथ ही आकाशगंगा के तारों के समूहों को भी शामिल किया गया, जिन्हें नक्षत्र कहते हैं। एक नक्षत्र चार तारा समूहों के संयोग से बनता है, जिन्हें नक्षत्रों का चरण कहते है। कुल 27 नक्षत्र होते है,
जिसमें अट्ठाइसवें नक्षत्र अभिजीत को शुमार नहीं किया गया। सवा दो नक्षत्रों के समूहों से एक राशि बनती है। कुल बारह राशियां होती हैं, जो बारह सौर माहों में शामिल हैं। चंद्रवर्ष सूर्यवर्ष यानि सौर वर्ष से ग्यारह दिवस, तीन घाटी और अड़तालीस पल कम है, इसीलिए हर तीन साल में एक एक मास का योग कर दिया जाता है, जिसे बोलचाल में अधिक माह, मल मास या पुरुषोत्तम माह कहा जाता है।
अप्रैल माह में जन्मे लोग हंसमुख,
मिलनसार, व्यावहारिक और जिद्दी होते हैं। कला, साहित्य, संगीत, अभिनय में इन्हें बेहद रुचि होती है। ये बेहद जिज्ञासु होते हैं। ये पूछताछ बहुत करते हैं, जिससे इनके कई रिश्तों पर उल्टा असर पड़ता है। ये बेहद महत्वाकांक्षी होते हैं। इनके भीतर कुछ कर गुजरने का जज्बा बेहद प्रबल होता है। ये बेहद पराक्रमी होते हैं। अपने बाहरी रूप रंग और पहनावे को लेकर ये बेहद सजग होते हैं। विपरीत लिंगियों को आकर्षित करने की कला में ये कुशल होते हैं। इनके आचरण में कई बार घमंड की झलक नजर आती है। उन्हें कलात्मक वस्तुओं सहित
अनेक चीजों के संग्रह का शौक होता है। ये गलत बातों को बर्दाश्त नहीं कर पाते और भड़क जाते हैं। ये कभी तो बेहद खर्चीले हो जाते हैं, तो कभी कंजूस।
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि चैत्र की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट्र में गुढी पाडवा कहते हैं। इसे हिंदू नव वर्ष माना जाता है। ‘गुढी’ का शाब्दिक अर्थ है, ‘विजय पताका’ और पाडवा का अर्थ है प्रतिपदा। मान्यता है
कि शालिवाहन नाम के कुम्हार ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाकर शत्रुओं को हराया था। इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन संवत या शक का प्रारंभ इस दिन से होता है। इसी दिन चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होता है।
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि संवत को भारतीय कैलेंडर कहा जा सकता है। जम्बूद्वीप यानी भारतीय उपमहाद्वीप में यूं तो कई संवत प्रचलन में हैं, पर वर्तमान में विक्रम संवत और शक संवत अधिक प्रख्यात हैं। शक संवत को ‘शालिवाहन’ या ‘सातवाहन’ भी कहते हैं। सातवाहन पहले सालवाहन या शालवाहन और कालांतर में ‘शालिवाहन’ के नाम से जाना गया। शक संवत के साल का आगाज चंद्र सौर गणना के लिए चैत्र माह से और सौर गणना के लिए मेष राशि से होता है। शक संवत का आरंभ यूं तो ईसा से लगभग
अठहत्तर वर्ष पहले हुआ, पर इसका अस्पष्ट स्वरूप ईसा के पांच सौ साल पहले से ही मिलने लगा था। वराहमिहिर ने इसे शक-काल और कहीं-कहीं शक-भूपकाल कहा है। शुरुआती कालखंड में लगभग ज्योतिषिय गणना और ज्योतिषिय ग्रंथों में शक संवत ही प्रयुक्त होता था। धारणा है कि यह उज्जयिनी सम्राट ‘चेष्टन’ के प्रयास से प्रकट हुआ।
विक्रम संवत ईसा से लगभग पौने 58 वर्ष पहले गर्दभिल्ल के पुत्र
सम्राट विक्रमादित्य के प्रयास से वजूद में आया। शकों को उखाड़ फेंकने के बाद तब के प्रचलित शक संवत के स्थान पर आक्रांताओं पर विजय स्तंभ के रूप में विक्रम संवत स्थापित हुआ। आरंभ में इसे कृत संवत के नाम से
जाना गया, कालांतर में मालव संवत के रूप में प्रख्यात हुआ। बाद में सुधारों को अंगीकार करते हुए विक्रम संवत में तब्दील हो गया। बृहत्संहिता के अनुसार सप्तर्षि एक नक्षत्र में शतवर्षों तक यानि सौ साल तक रहते हैं। मध्य काल में अन्य बहुत से संवत वजूद में थे। ये सारे संवत अपने काल में आज के अंग्रेजी कैलेंडर और विक्रम या शक संवत से ज्यादा प्रभावी माने जाते थे।
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प्रश्न:नवरात्रि पर्व क्या है? क्या इस दिन देवी अंबा की पूजा की जाती है, या
नौ अलग-अलग देवियों की? -राधिका अवस्थी
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि दो ऋतुओं के संधिकाल में नौ दिनों के इस पर्व को देवी ‘अंबा’ का पर्व कहा गया है। पर अंबा शब्द ‘अम्म’ और ‘बा’ के युग्म से बना है। कुछ द्रविड़ भाषाओं में ‘अम्म’ का अर्थ जल और ‘बा’ का मतलब अग्नि से है। लिहाजा अंबा का शाब्दिक अर्थ बनता है, जल से उत्पन्न होने वाली अग्नि अर्थात विद्युत। इसलिए कहीं-कहीं नवरात्र को विद्युत की रात्रि यानि शक्ति की रात्रि भी कहा जाता है। नवरात्र की प्रत्येक रात्रि हमारी स्वयं की सुप्त
आंतरिक क्षमताओं और ऊर्जाओं के भिन्न-भिन्न पहलुओं को प्रकट करती है, जिसे मान्यताएं नौ प्रकार की शक्तियों या देवियों की संज्ञा देती है।
नोट: अगर, आप भी सद्गुरु स्वामी आनंद जी से अपने सवालों के जवाब जानना चाहते हैं या किसी समस्या का समाधान चाहते हैं तो अपनी जन्म तिथि, जन्म समय और जन्म स्थान के साथ अपना सवाल पर मेल कर सकते हैं।
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