फोटान का संवेग = E/c
डिब्बे का संवेग = Mv
संवेग की अविनाशिता के नियम के अनुसार फोटान का संवेग तथा डिब्बे का संवेग समान होगा।
1) Mv=E/c
फोटान द्वारा डिब्बे को पार करने मे लगने वाला समय
2 ) t=L/c
डिब्बे द्वारा तय की गयी दूरी
3) x=vt
इस समीकरण 3 मे समीकरण 1 और 2 का मूल्य रखने पर
x=[E/(Mc)](L/c)
कुछ समय पश्चात फोटान उसी डिब्बे के दूसरे हिस्से से टकराता है, जिससे उसका संवेग डिब्बे में स्थानांतरित हो जाता है। इस प्रयोग मे पूरे तंत्र का संवेग संरक्षित रहता है, जिससे अब डिब्बे की गति बंद हो जाती है। अब एक समस्या है, इस प्रणाली में कोई बाह्य बल कार्य नहीं कर रहा है, जिससे द्रव्यमान-केंद्र(Center of Gravity) को स्थिर रहना होगा। लेकिन डिब्बे में गति हुयी है। डिब्बे में हुयी गति की पूर्ती द्रव्यमान-केंद्र स्थिर रख कर कैसे होगी? आइन्स्टाइन ने स्पष्ट विरोधाभाष के समाधान के लिए प्रस्तावित किया कि फोटान ऊर्जा का कोई ‘द्रव्यमान समकक्ष‘ होना चाहीये| दूसरे शब्दों में फोटान की ऊर्जा , डिब्बे में द्रव्यमान के बाएं से दायें गति के तुल्य होना चाहिए। साथ में यह द्रव्यमान इतना होना चाहीये कि पूरे तंत्र का द्रव्यमान-केंद्र स्थायी रहेगा।
डिब्बे का द्रव्यमान केन्द्र स्थायी रखने के लिये
4) Mx=mL (m :फोटान का द्रव्यमान)
समीकरण 4 मे समीकरण 3 द्वारा x का मूल्य रखने पर
5) M [E/(Mc)](L/c)=mL
EL/c2 = mL
E/c2=m
E=mc2
आइन्सटाइन के अनुसार, द्रव्यमान तथा ऊर्जा पृथक्-पृथक् अस्तित्व वाली भौतिक राशियाँ नहीं हैं, बल्कि एक ही राशि के दो रूप हैं। द्रव्यमान को ऊर्जा में तथा ऊर्जा को द्रव्यमान में बदला जा सकता है। द्रव्यमान तथा ऊर्जा के बीच तुल्य सम्बन्ध, E = mc2, जहाँ E ऊर्जा तथा m द्रव्यमान हैं। इसके अनुसार यदि ऊर्जा E विलुप्त हो जाए, तो द्रव्यमान m बढ़ जाता है और यदि द्रव्यमान m नष्ट हो जाए तो इसके समतुल्य ऊर्जा E उत्पन्न होती है।
उदाहरण–सूर्य पर चल रही नाभिकीय संलयन की क्रियाओं में सूर्य का द्रव्यमान निरन्तर ऊर्जा में परिवर्तित हो रहा है।
E=mc2, गणित और विज्ञान (Mathematics & Science) के इतिहास में शायद इससे ज़्यादा लोकप्रिय या चर्चित इक्वेशन और कोई नहीं. आज ही के दिन यानी 27 सितंबर 1905 को महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) का रिसर्च पेपर “क्या किसी इकाई की जड़ता उसके ऊर्जा कंटेंट पर निर्भर करती है?” प्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका (Science Magazine) एनालेन डे फिज़ीक में छपा था. इस पेपर में इस सूत्र का उद्घाटन हुआ, जिसमें ऊर्जा और द्रव्यमान (Energy & Mass) के संबंध को समझाया गया. और तबसे यह सूत्र इतिहास बन गया.
फिल्मों, कपड़ों और पोस्टरों, कई जगहों पर दिख चुका यह सूत्र जीवन में कहीं न कहीं दिख ही जाता है. ब्रह्मांड में तमाम चीज़ों की गति से जुड़े इस सूत्र को विशेष सापेक्षता के सिद्धांत के तौर पर भी समझा जाता रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया के सबसे चौंकाने वाले आविष्कारों में से एक 'एटम बम' तक इसी सूत्र की उंगली पकड़कर बना? इस कहानी के साथ ही आपको बताते हैं कि आइंस्टीन के खाते में आने तक इस सूत्र ने कैसे यात्रा की.
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क्या है E=mc2 का मतलब?
इस सूत्र की सरल व्याख्या को इस तरह समझें. E का मतलब है ऊर्जा, जो किसी भी इकाई में स्थित है यानी एक परमाणु से लेकर ब्रह्मांड
के किसी भी पिंड में. m का मतलब द्रव्यमान है और c का मतलब प्रकाश की गति (करीब 186,000 मील प्रति सेकंड) से है. तो इस सूत्र का अर्थ यह हुआ कि किसी भी इकाई के कुल द्रव्यमान को यदि प्रकाश की गति के वर्ग से गुणा किया जाए तो उस इकाई की कुल ऊर्जा मालूम की जा सकती है.
क्या कभी सिद्ध हो सका ये सूत्र?
इस सूत्र के रूप में आइंस्टीन ने थ्योरी यह दी थी कि ऊर्जा और द्रव्यमान सापेक्ष हैं यानी सापेक्षता के इस विशेष सिद्धांत का दावा था कि ऊर्जा को द्रव्यमान और द्रव्यमान को ऊर्जा में
बदला जा सकता है. इससे तब यह सवाल खड़ा हुआ था कि कितने द्रव्यमान से कितनी ऊर्जा रूपांतरित होगी और होगी भी कि नहीं. आइंस्टीन खुद अपने समय में इस थ्योरी को सिद्ध नहीं कर सके थे.
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समय के साथ इस थ्योरी पर शोध और प्रयोग होते गए और आखिरकार 21वीं सदी में इस सूत्र के सिद्ध होने का दावा वैज्ञानिकों ने किया. आइंस्टीन के थ्योरी देने के करीब 113 साल बाद फ्रेंच, जर्मन और हंगरी के वैज्ञानिकों ने साल 2018 में पुष्टि की थी कि प्रयोगों में यह सूत्र प्रामाणिक सिद्ध हुआ. हालांकि इस सूत्र का उपयोग इससे पहले ही आविष्कारों में हो चुका था.
कैसे इस सूत्र से बना एटम बम?
आइंस्टीन की यह थ्योरी जैसे ही चर्चित हुई, तो कुछ ही समय में खास तौर से अमेरिका में न्यूक्लियर पावर स्टेशनों में इस विचार को अमल में लाने की कोशिशें शुरू हुईं. रिएक्टरों के भीतर सबएटॉमिक कणों यानी न्यूट्रॉन्स के साथ यूरेनियम के परमाणुओं के संघटन संबंधी प्रयोग किए गए. अणुओं के विखंडन के इस प्रयोग खासी ऊर्जा रिलीज़ होना पाया गया. 'मास डिफेक्ट' की थ्योरी के तहत यह दावा किया गया कि आइंस्टीन के सिद्धांत के अनुसार आप मिसिंग मास यानी द्रव्यमान
को ऊर्जा में रूपांतरित होने के तौर पर समझ सकते थे.
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बहरहाल, इस सूत्र पर लगातार प्रयोग चलते रहे और न्यूक्लियर फिज़न संबंधी प्रयोगों में यह सिद्धांत उपयुक्त मालूम हुआ. एटम बम के लिए काम शुरू हो चुका था. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भौतिकशास्त्री हेनरी डीवोल्फ स्मिथ ने अमेरिकी सरकार के लिए जो रिपोर्ट तैयार की, उसमें आइंस्टीन के इस सूत्र का ज़िक्र हुआ. इस संदर्भ में जिक्र हुआ कि मैनहैटन प्रोजेक्ट में एटम बम किस तरह तैयार किया जा रहा था. जी हां, वही एटम बम, जो हिरोशिमा और नागासाकी के रूप में दुनिया के लिए ऐतिहासिक विनाश साबित हुआ.
हालांकि एक समय इस मैनहैटन प्रोजेक्ट से आइंस्टीन के खुद जुड़ने की भी चर्चाएं हुई थीं, लेकिन सिक्योरिटी संबंधी क्लीयरेंस न मिलने के चलते उनकी इस प्रोजेक्ट में मौजूदगी न के बराबर ही थी.
क्या आइंस्टीन ही थे इस सूत्र के जनक?
यह सवाल भी विज्ञान के क्षेत्र में काफी चर्चित और बहस का विषय रहा है. ऐसा कहा जाता है कि इस सिद्धांत की यात्रा आइज़ैक न्यूटन के गति के सिद्धांतों से शुरू हुई
थी. इसके बाद, इलेक्ट्रॉन की खोज करने वाले जेजे थॉम्प्सन ने 1881 में द्रव्यमान और ऊर्जा के संबंध में चर्चा की थी. फिर, 1889 में इंग्लैंड के भौतिक शास्त्री ओलिवर हीविसाइड ने m = (4⁄3) E / c2 सूत्र दिया था. इसी सूत्र तक जर्मन भौतिकशास्त्री विलहेम वीन और मैक्स अब्राहम भी पहुंचे थे.
आइंस्टीन के 1905 में छपे पेपर से ठीक पहले 1904 और शुरूआती 1905 में फ्रिट्ज़ हैसेनॉर्ल ने “मूविंग बॉडीज़ में रेडिएशन के सिद्धांत” संबंधी रिसर्च पेपर लिखे थे और इन पेपरों के लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया था. इसके बाद, आइंस्टीन का सिद्धांत आया और शोहरत पाने के साथ ही, इस पर आधारित प्रयोगों की यात्रा आगे भी चलती रही. अस्ल में विज्ञान की दुनिया में चमत्कार नहीं होते इसलिए एक सिद्धांत पिछले समय से चले आ रहे प्रयोगों का ही नतीजा हुआ करता है.
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Tags: Albert Einstein, History, Science
FIRST PUBLISHED : September 27, 2020, 08:15 IST