लोगों की राय
- चौकड़िया सागर
Yes
Arvind Yadav - सम्पूर्ण आल्ह खण्ड
Rakesh Gurjar
- हनुमन्नाटक
Dhnyavad is gyan vardhak pustak ke liye, Pata hi nai tha ki Ramayan Ji ke ek aur rachiyeta Shri Hanuman Ji bhi hain, is pustak ka prachar krne ke liye dhanyavad
Pratiyush T - क़ाफी मग
" कॉफ़ी मग " हल्का फुल्का मन को गुदगुदाने वाला काव्य संग्रह है ! " कॉफ़ी मग " लेखक का प्रथम काव्य संग्रह है ! इसका शीर्षक पुस्तक के प्रति जिज्ञासा जगाता है और इसका कवर पेज भी काफी आकर्षक है ! इसकी शुरुआत लेखक ने अपने पिताजी को श्रद्धांजलि के साथ आरम्भ की है और अपने पिता का जो जीवंत ख़ाका खींचा है वो मनोहर है ! कवि के हाइकु का अच्छा संग्रह पुस्तक में है ! और कई हाइकू जैसे चांदनी रात , अंतस मन , ढलता दिन ,गृहस्थी मित्र , नरम धूप, टीवी खबरे , व्यवसाई नेता व्यापारी, दिए जलाये , आदि काफी प्रासंगिक व भावपूर्ण है ! कविताओं में शीर्षक कविता " कॉफ़ी मग " व चाय एक बहाना उत्कृष्ट है ! ग़ज़लों में हंसी अरमां व अक्सर बड़ी मनभावन रचनाये है ! खूबसूरत मंजर हर युवा जोड़े की शादी पूर्व अनुभूति का सटीक चित्रण है व लेखक से उम्मीद करूँगा की वह शादी पश्चात की व्यथा अपनी किसी आगामी कविता में बया करेंगे ! लेखक ने बड़ी ईमानदारी व खूबसूरती से जिंदगी के अनुभवों, अनुभूतियों को इस पुस्तक में साकार किया है व यह एक मन को छूने वाली हल्की फुल्की कविताओं का मनोरम संग्रह है ! इस पुस्तक को कॉफी मग के अलावा मसाला चाय की चुस्की के साथ भी आनंद ले
Vineet Saxena - आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास
Bhuta Kumar
- पांव तले भविष्य
1
VIJAY KUMAR - कारगिल
Priyanshu Singh Chauhan
- सोलह संस्कार
kapil thapak
- सोलह संस्कार
kapil thapak
- कामसूत्रकालीन समाज एवं संस्कृति
very nice book
Malkhan Meena - विवाह पद्धति
No
Rahul Tiwari - भारतीय जड़ी-बूटियाँ और फलों के अचूक नुस्खे
plz e Book
Chandramohan Waghaye - अभिज्ञान शाकुन्तलम्
निर्गतासु न वा कस्य कालिदासस्य सूक्तिषु। प्रीतिर्मधुरसार्द्रासु मञ्जरीष्विव जायते॥ "मधुरसार्द्रासु" यह पाठान्तर "मधुर-सान्द्रासु" से साधु है इति मानता हूं । धन्यवादाः
Shree Shree - ज्योतिष में स्वर विज्ञान का महत्व
मैं यह पुस्तक खरीदना चाह रहा हूं कृपया कर मेरी मदद करें
Sonu Sharma - समय 25 से 52 का
एक अनुभवी और अनोखी पहल .....सफलता के बारे मे
LN Malviya - समय 25 से 52 का
Nice beginning
Deepak Malviya - समय 25 से 52 का
कैसे बंधन मुक्त सोच को रख कर चौका देने वाली सफलताओं को पाये। (मनचाही विधा मे)।
Deepak Malviya - अभिभावक कैसे हों
मैं यह पुस्तक खरीदना चाहता हूं कैसे मिलेगी कृपया बताएं मेरा मोबाइल नंबर है 8789 2688 27
Santosh Kumar - रश्मिरथी
यह पुस्तक नहीं, एक ग्रंथ है, हिंदी काव्य प्रेमियों के लिए महाग्रंथ है ये, इस किताब को जरूर मंगवाए, पढ़े, अपने पास रखे हमेशा, इसका जबरदस्त वीडियो प्रसारण देखने का बहुत अच्छा youtube channel दे रहा हूं, जरूर देखना youtube.com/kavyarang , यह हिंदी कविता प्रेमियों के लिए बहुत अच्छा चैनल है, इसे सब्सक्राइब कर लेने से ,इनके कविता पाठ हमे हमेशा मिलते रहते है। रश्मिरथी का एक वीडियो देखे इं लोगो का //youtu.be/3Il61moUFjU must watch and enjoy
manish bhavsar - त्रिरूपा
I want to buy this book...
ruchi thakur - एक किशोरी की डायरी
5 star review this book
PRADUMAN KUMAR - राष्ट्रवाद
How to buy
DARSHAN AERVADIYA - वैचारिक स्वराज्य
इस पुस्तक के लिये लालायित हूँ लेकिन मिल नहीं रही। कहाँ से और मिलेगी?
Chandrakant Prasad Singh - अपना मन उपवन
बहुत बढ़िया
Narsing Ekile - शुतुरमुर्ग
I want this book
Ramesh Pooniya - बुन्देलखण्ड की लोक कथायें
I want to buy this book. Bundelkhand ki lok kahaniyaan. Pls help
Garima Singh - गौतम बुद्ध
बुद्ध के विचार
AMARDEEP SINHA - रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)
Download link is not working.
Vikram Gupta - शाबर मंत्र सिद्धि रहस्य
Plz yai pustak muje koi pdf mai dedo mai pement kar dunga 9001596561
Manish Vaishnav - अर्थशास्त्र परिभाषा कोश
Download kese kare book..?
Ranjesh Kumar - शिष्टाचार
मुझे किताब चाहिए
Sanjeev Sharma - शाहू छत्रपति : समाज परिवर्तन के नायक
में इस किताब को पढ़ना चाहता हु लेकिन ये मिल नही रही मुझे
Rajesh Meena - प्रेमचंद की श्रेष्ठ कहानियां
How to order this book
Ashish Kumar - बाँसुरी वादन कोर्स
मुझे ये बुक चाहिए, कैसे खरीद सकता हूँ।बताये
Rajkumar Saini - टाइम मैनेजमेंट
Best books for motivation
NAViN MiShra - टाइम मैनेजमेंट
Best books
NAViN MiShra - चाणक्य जीवन गाथा
How to buy this book
Satya Gupta - वयस्क किस्से
This is not a complete book. Story- garmio mein is not complete. Please upload the full version.
Abc Xyz - लोक और लोक का स्वर
In This book very good knowledge about our traditional culture.
Chandrashekhar Sahu - प्रतिनिधि कविताएं: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
पुस्तक मुझे खरीदना है कैसे आर्डर करे
Raj Gaurav - रचनात्मक लेखन
I want purchase this book
Amar Singh - भोलू और गोलू
पढना है
Ratnesh Maurya - आर्थिक संवृद्धि और विकास
Don't see
Abhi Jat - कैदी की करामात
I read this book when i was a kid. There were a total of 20-21 books like robinhood and rest i can't remember. 'kaidi ki karamat' i remembered throughout all these years because it was my favourite among all. I am a graduate now and this book brings back good old memories how my classmates were so crazy about these stories back then.
Arnav Nath - कैसे हासिल करें - जो आप चाहें
Great tips for career
IZAZ UL HAQUE -
काव्य संचयिका
E book add pls
Siddu Kumbar - देहरी के पार
बहुत शानदार। मुझे यह उपन्यास चाहिए कैसे मिलेगा
Sukha Ram Gurjar - पेरियार ई-वी- रामस्वामी क्रांतिकारी बुद्धिजीवी समाज सुधारक
Good
Anuradha Paleewal - भारत की लोक कथाएँ
मुझे यह किताब order करना हैं।
Samir Saha - सत्संग के बिखरे मोती
जय सियाराम ,हमे यह पुस्तक मंगवानी है। हमारा मार्गदर्शन करें।
Uday Kumar Tiwari - गजल का व्याकरण
kindly send Gazal ka Byakran(Kunwar Bechain) through V.P.P. My full address is-Avinash Beohar, Roal Estate Colony, Katangi Road, Marhotal, Jabalpur, 482002.
AVINASH BEOHAR - देववाणी
बुक चाहिए
Dinesh Singh - पाँच जोड़ बाँसुरी
मुझे यह किताब खरीदनी है
MITHILESH Kumar - एक नदी दो पाट
Book chahiye
Vivek Awasthi - हिंदी
बाल साहित्य का इतिहास
अति महत्वपूर्ण पुस्तक. एकबार जरूर पढ़ूँगा.
Dr Ghanshyam Singh Thakar - शक्तिदायी विचार
Vishwas our shakti
Abhishek Patil - आधुनिक चिकित्साशास्त्र
हमे आधुनिक चिकित्सा शास्त्र बुक चाहिए
Mahaveer Sharma - तन्त्र साधना से सिद्धि
Muje ye book chaiye
Sandeep Jadav - कालिका पुराण
Nice book
Kishor Kumar - स्त्रीत्व धारणाएँ
एवं यथार्थ
How can I get this book pls help me
Suresh Lama - पत्रकारिताः एक परिचय
Kya yah book paper me mil skti hai
Mohammad Shahid - राधेश्याम रामायण
Please i am very excited for this book
Vishvash Singh - एकाग्रता का रहस्य
Ad ekagrata ka rahasy
Rajendra Prasad - श्री दुर्गा सप्तशती
Can you plz show any of the अध्याय
Maneet Kapila -
मानविकी पारिभाषिक कोश (मनोविज्ञान)
Plz send quick hindi edition
Manoj Jain - श्री रामनगर रामलीला
Sambad
Upendra Pratap Singh - श्री रामनगर रामलीला
Ramnagar ki ramlila
Upendra Pratap Singh - संगठनात्मक व्यवहार
Nyc
Harman Singh - औद्योगिक अर्थशास्त्र
Good
Vashu Chandrakar - गणेश पुराण
Want this book
suresh mhatre -
श्रीमदभागवत महापुराण - प्रथम एवं द्वितीय खण्ड
Srimad bhagwat mahapuran
Akash Dwivedi - होम्योपैथी - सम्पूर्ण एवं सुरक्षित उपचार
Good
Ajay Anand - हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन
Ye book Mujhe chahiye
Asha Kumari - सच बोलने की भूल
I want to buy
Bhagwati Prasad - फिल्म की कहानी कैसे लिखे
Wanted
Kiran Dhende - एकाग्रता का रहस्य
EKAGRATA KA RAHASYA
Shivam Pandey - शाबर मंत्र सिद्धि रहस्य
यूँ ही तड़पा करेंगे हम यू ही आँसू बहाएँगे मगर लगता है अब तुमसे कुँवर हम मिल न पाएँगे
Rudri Ritambhara - शाबर मंत्र सिद्धि रहस्य
बाबा यह पुस्तक भी मेरे पास आनी ही है। इसे जाने दो, आप ही आ जाओ!!
Rudri Ritambhara - प्राणों का सौदा
'प्राणों का सौदा' नाम के इस पुस्तक को मैं पिछले 35 वर्षों से ढूंढ रहा हूँ। मुझे यह चाहिए। शर्मा जी की एक और पुस्तक 'शिकार' को भी दोबारा पढ़ने की चाहत है। मुझे इस पुस्तक को भी खरीदना है।
SUDHIR KUMAR - रूद्राक्ष रहस्य
Awesome collection of rudras ...
Rahul Kalotra - रूद्राक्ष रहस्य
Sir I want to buy this book What I do....
Rahul Kalotra - भज गोविन्दम्
Dear sir, we want to purchase this book.
SUNIL PAREEK - आदिवासी कौन
आदिवासी kaun
Kailashprasad Bakoria -
108 उपनिषद
I need book108 upnishad written by dr bhuwan singh rana in hindi . . . I m trying to book my order but it's not posible. . I already created my account, but till not able to book my order, Plz inform me how is possible, 8010420866 my contact mo.
Vikas Chauhan - ज्ञानयोग
Interesting book to read
Pooja Verma - पृथ्वीराज रासो : भाषा और साहित्य
बहुत अच्छी जानकारी वाली किताब है।
Vivek Chauhan -
हाफ गर्लफ्रेंड
मुझे पूरी स्टोरी चाहिए
Golu Chouhan - आत्मा के लिए अमृत
Nice book
Rampratap raiwar - कबीर सागर
Sir ye book chahiye cash on delivery me
Bhagt sanjeev das - संकट सफलता की नींव है
Soulmate book....
Aarti Bhagat - शान्ति-पथ प्रदर्शन
Very nice book
Garima Jain - ब्रज भूमि की लोक कथाएँ - 2 भागों में
Dear sir please ye book mujhe uplabdh karayein. My Address:- Hardev Singh Nimotiya Village- Maharoli thakur Post- Shish wada Tehsil- Deeg District- Bharatpur rajasthan Pin 321203
Hardev Singh - अमिता
बहुत सुंदर
Rohit Paikra - यज्ञ कुण्डमण्डप सिद्धि
I want to buy this book
Chandan Mishra - रचनात्मक लेखन
I want purchase this book
Madhuresh Singh - केवट
Like this book a lot
Madhuresh Singh - लाल बहादुर शास्त्री
Good read!
Alok Verma - पहाड़ चोर
क्या आप यह पुस्तक भेज सकते हैं?
Namrata Hansare - केनोपनिषद
badhiya
raviprakash vaishnav - भारतीय दर्शन की रूपरेखा
sundar! ati sundar
rakhee poddar - संसार का असर कैसे छूटे
One of the best book having the essence. Must read. "गागर में सागर"
Sumit Dka - आयुर्वेद
सिद्धान्त रहस्य
Loved this book!
sawan aingh thakur - बोलना तो है
Meri pasand
Abhinav Bhatt - सवाल ही जवाब है
Accha! Mast book hai
aniket bhatt - सवाल ही जवाब है
Very good
aniket bhatt - अपने अपने अजनबी
Mujhe ye book chahiye hai
Himani Gupta - रस-भस्मों की सेवन विधि
रस-भस्मों की सेवन विधि .ye pustak muje chaye.kese book mil sakte h.
Pravesh Bittu - साम्प्रदायिकता का जहर
I want to read this book as soon as possible
Padala Sushila - धर्म सार - 12 महीनो के व्रत और त्योहार
Book chaiye
Sohan Sarda - स्कन्दपुराण
skanda purana chahiye aapki press ka plese
Amit Kumar Singh - हाफ गर्लफ्रेंड
मुझे पूरी स्टोरी चाहिए।
Raghaw Ak - हाफ गर्लफ्रेंड
Plzzz give me full story
Raghaw Ak - रोहतासमठ भाग-2
I like this book
JITENDRA SONI - शक्तिदायी विचार
ईश्वर औऱ धर्म 26
nikhil kumar - हाफ गर्लफ्रेंड
Half girlfriend
geetika luthra - उच्चतर सामान्य मनोविज्ञान
Good book
Kiran Kumar - मासूमों का मसीहा कैलाश सत्यार्थी
Its a real life Hero story....avishashneey avam akalpneey.....
Vandana Raghuvanshi -
मत्स्यगन्धा
बहुत अच्छा
Kamlesh Negi - मिस्ट्री आफ खजुराहो
Nice
Pankaj Ambekar - मिस्ट्री आफ खजुराहो
Fine iwant paper back edition
Pankaj Ambekar - अमेरिकी यायावर
Thank you giving this book for free
gd mehra - फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे
Very Sexy book!
ravi giri - फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे
सेक्स से भरपूर कहानी! जिंदगी के मजे लूटो!
Chandrakant Bhatjiwale - योग पुरुषों के लिए
Ye bahut he best yog book he jo apne dublepan se paresan he maine khud par prayog kiya or mujhe in sari yog ka bahut acha prabhaw pada or mujhe ye lagta he jo log dooble patle ye unhe is pustak baharpur laav uthana chahiye.... Thank you mujhe ye book apke website me dekh k acha laga...
PRAKASH MALPAHARIA - द्रौपदी
I want this book in pdf format
Dipali Shrimali - द्रौपदी
This is the best book.I want to read again.
Dipali Shrimali - दिव्यशक्ति कुण्डलिनी द्वारा स्वगृहयात्रा
Sir KB tak ayegi book
Manish Tiwari - छावा (अजिल्द)
8669172193 मै ये उपन्या खरीदना चाहता हु मुझे फोन करे
Gajanan Deore - जीवन एक खोज
I love this book., Tilok sir you are great man. I am proud of you.
Amit Chauhan - जीवन एक खोज
This is very nice....ye ek bar padkar to dekho ..kya sakun milta hai.. Maine ye book 2011 mai padi thi but mere ghar se koi is book ko magkar le gya..but ab mujhe yad nhi ki kon le gya..tab se lekar aaj tak mai search ksrta rha..ki kya naam tha us book ka...lakin aaj mujhe mil hi gyi..thanks god. Real mai jeevan mai ek baar jarur pade ye book...please aapko bahut acha aur bahut chejo ka rehsye milega....aap padte chle jaoge..thanks
Amit Chauhan - स्वप्न देश की राजकन्या
पूरी काहनी
Deepesh Jagarwad - मंत्र साधना से सिद्धि
यह पुस्तक कैसे प्राप्त करे
Dananath Jaiswal - पाकिस्तान में युद्धकैद के वे दिन
I want this book
Anand Wankhade - रीतिकालीन कवियों की प्रेम व्यंजना
YE PUSTAK MAIN KHAREEDNA CHAHTA HOON KIRPYA PTA BTATEIN ATHWA ANYE SORCE JISSE PUSTAK PRAPT KI JA SAKE
javed zukarit - उपनिषदों का संदेश
... उपर्युक्त ईश्वरीय ज्ञान से सम्वद्ध रहस्यमय विवरण को पढ़कर हार्दिक प्रसन्नता हुई । हृदय वैदिक ऋषियों की आध्यात्मिक उपलब्धियों , गहन अनुभूतियों एवं भावी पीढिय़ों तक आत्मज्ञान अनुभूतियो को शास्त्र रचना के रूप मे हस्तगत करने की उच्च भावना से प्रभावित , कृतज्ञ है । भारतीय साहित्य के संरक्षण एवं प्रसार मे योगदान देने बाले सभी सज्जन समूह ,महापुरुषों को शत - शत नमन ,प्रणाम ।
Ashok Kumar Kumar - संस्कृत नाटक (उद्भव और विकास)
in hindi
vivek mahawar - क्राइम, कानून और रिपोर्टर
पढ़ कर अच्छा लगा
Rahul Kumar - क्राइम, कानून और रिपोर्टर
अपराध को जानने के लिए अच्छी किताब है
Rahul Kumar - चित्रलेखा
चित्रलेखा भाग 32
Chandan kumar Jha - रामचरितमानस (उत्तरकाण्ड)
डाऊनलोड उत्तरकाण्ड श्रीरामचरितमानस
ANIL KUMAR - वीरांगना झलकारी बाई
Ebook download
Pradeep Ghute - अमेरिकी यायावर
Very good romantic novel
sanjay nagpal - हास
परिहास
Book ka nichod kya hai
Shyam Sundar Jena - वैशाली विलय
Best novel in hindi
SUNIL PANDEY - अमेरिकी यायावर
where to find full book
SUNIL PANDEY - अमेरिकी यायावर
मस्त कहानी
Shivam Soni - मैं क्या हूँ ?
I want buy this book
Anuj Bhati - टर्निंग प्वॉइंट्स
bhi yar online read bhi kr sake kuch aisa bhi kro
nitesh pandey pandey - हवेली के अन्दर
Very nice book, lovely storie,
Navalkishor sahu sahu - हास्य-व्यंग्य-रंग एकांकी
Where can I read the full book
Sanika Choudhar - हाफ गर्लफ्रेंड
मुझे पूरी कहानी चाहिए e book पे
Deepak Choudhary - श्री राम विवाह
very good book..excellent writing skill
RAKESH BHUSHAN - अमेरिकी यायावर
where i get full story of this book
abhishek sharma - रस-भस्मों की सेवन विधि
I want this book
MOHAMMAD Shakir - अमेरिकी यायावर
Is it easy make girl friends in America
MANOJ ANDERIYA - अमेरिकी यायावर
मनोरंजक कहानी। पढ़ने में मजा आया
Anju yadav - अमेरिकी यायावर
how much scholarship in American University
Narayan Singh - अमेरिकी यायावर
Nice road trip in America
nupur masih - अमेरिकी यायावर
america ke baare mein achchi jankari
sanjay singh - अमेरिकी यायावर
Interesting book
Anshu Raj - हिन्दी साहित्य का दिग्दर्शन
"हिंदी साहित्य का दिग्दर्शन" समय की आवश्यकताओं के आलोक में निर्मित पुस्तक है जोकि प्रवाहमयी भाषा का साथ पाकर बोधगम्य बन गयी है। संवत साथ ईस्वी सन का भी उल्लेख होता तो विद्यार्थियों को अधिक सहूलियत होती।
Ravindra Singh Yadav - संभाल कर रखना
लाजवाब कविताएँ!
Abhilash Trivedi - वक्त की आवाज
very nice
Vipinsingh chouhan - जादुई कहानियां
Nice
Vipinsingh chouhan - सम्पूर्ण आल्ह खण्ड
Aallhakand
Rinku jhansi - संभोग से समाधि की ओर
mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga
Bakesh Namdev - पुत्र प्रेम
Putra prem
MD FAIZAAN Ali -
जादुई कहानियां
itsnice
Hemant Patel - आरोग्य प्रकाश
Pls. Send me contact cellphones no
rahul jaiswal - इलेक्ट्रिशियन के कामकाज
Hindi book in pdf
Parul Saxena - एक सैक्स वर्कर की आत्मकथा
MASTANI
MUKESH MAURYA - अमेरिकी यायावर
सड़क यात्रा में प्रेम - फूस और चिंगारी
Narendra patidar - स्त्रीत्व धारणाएँ एवं यथार्थ
all story
AMAN KUMAR - समता के समर्थक आंबेडकर
It is really a great book. Here one can peep into the struggle of the great personality Baba Sahib Dr. B.R. Ambedkar. The writer gives the life like description of Baba Sahib.
arun arya - कबीर सागर
Aapka bahut aacha pryas
Rajneesh Kumar Pusker - वैदिक गणित गीता
रोचक पुस्तक। आपको भारतीकृष्णातीर्थ महाराज की वैदिक गणित भी पढ़नी चाहिए।
Kumar Abhishek -
वैदिक गणित
यदि आपने कभी शंकुतला देवी की गणित की पहेलियों की किताब पढ़ी है और आप उनकी तेज अंकगणितीय क्षमता से परिचित हैं तो यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए। इस किताब में कई ऐसे तरीके दिये हुए हैं जिससे आप दूसरों को आश्चर्यचकित कर देंगे।
vishal verma - वैदिक गणित
गणित के विद्यार्थियों को इस पुस्तक को एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए।
Jayati Roy - यथासंभव
यथासंभव और यत्र तत्र सर्वत्र दोनों किताबें उत्कष्ट व्यंग्यों का संकलन हैं। साथ ही हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे के व्यंग्य भी अच्छे लगते हैं। मेरा पसंदीदा व्यंग्य है, वर्जीनिया वुल्फ से सब डरते हैं।
Vinay Patidar - यथासंभव
शरद जोशी जी के व्यंग्यों में एक विशेष पैनापन है। काश वे आज भी होते तो उन्हें लिखने का कितना मसाला मिल जाता! यथासंभव के सारे व्यंग्य आज भी हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं। अभिव्यक्ति के इतने तरीके और साधन उपलब्ध हैं कि हर भारतीय मुखर हो उठा है किसी न किसी विषय पर कुछ न कुछ बोलना चाहता है।
bhawna singh - कैली
कामिनी और अनीता
Its not that girls living in villages only hope that they will be married to suitable husbands. It happens to many of us, but life is not what we expect it to be. Gripping story!!
Ganga Tiwari - कैली कामिनी और अनीता
जीवन की आशाओं, निराशाओँ और हकीकतों का मंजर। कहानी पढ़नी शुरु की तो बस पढ़ती ही चली गई!
mamta patel - हरिवंश गाथा
हरिवंश कथा पर एक उपयोगी और मनोहारी पुस्तक.
manish pawar -
चाणक्य नीति
I bought this book on the train station and i liked it so much that I finished it within few hours.
manish pawar - चाणक्य नीति
चाणक्य नीति या चाणक्य सूत्र के शीर्षकों से हिन्दी पाठकों के सामने कई पुस्तके मुद्रित हुई हैं, परंतु अधिकांश में सतही जानकारी दी जाती है। यह पुस्तक भी प्रामाणिक नहीं मानी जा सकती है। परंत एक सामान्य पाठक के लिए जो कि चाणक्य और उसके विचारों के संबंध में प्राथमिक जानकारी प्राप्त करना चाहता है, यह पुस्तक एक अच्छा आरंभ दे सकती है।
HARSH CHATURVEDI - जिन्दगी और गुलाब के फूल
उषाजी की कहानियाँ विदेशों में विशेषकर अमेरिका में रहने वाली भारतीय महिलाओँ की मनःस्थिति का अत्यंत सजीव चित्रण करती है। इनकी 'शेष यात्रा' विशेष पठनीय है।
Babaji Prasad
प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन | प्रकाशित वर्ष : 2001 |
पृष्ठ :520 मुखपृष्ठ : सजिल्द | पुस्तक क्रमांक : 2318 |
आईएसबीएन :00000 | |
101 पाठक हैं
प्रस्तुत है जयशंकर प्रसाद के सम्पूर्ण उपन्यास.....
Prasad ke sampoornya upanyas
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
जयशंकर प्रसाद
हिन्दी कथा-साहित्य के विकास के प्रथम चरण में ही प्रसाद जी ने कविताओं के साथ कथा-साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया। उनकी सांस्कृतिक अभिरूचि और वैयक्तिक भावानुभूति की स्पष्ट छाप के कारण उनके द्वारा रचित कथा-साहित्य अपनी एक अलग पहचान बनाने में पूर्णतः सक्षम हुआ।
‘कंकाल’ और ‘तितली’ की रचना पर युगीन बोध का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है लाचार और बेबश स्त्रियों की समस्याओं के आधार पर यथार्थ के बाल-निरूपण का जैसा
चित्रण उस समय लेखक कर रहे थे प्रसाद जी उनकी पंक्ति में खड़े हुए और उन्होंने सच्चाई की आन्तरिक औरतों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। एक तरफ से देखे तो वे व्यक्ति के अन्तर संबंधी के कथाकार है और व्यक्ति के मन की गहराइयों में प्रवेश कर उसे उट्घाटित करना चाहते हैं।
‘तितली’ का कथा-शिल्प और वस्तु-विन्यास ब्राह्म यथार्थ और तत्त्कालीन सामाजिक संदर्भों के प्रति अधिक संवेदनशील है। यही कारण है कि ‘तितली’ एक श्रेष्ठ उपन्यास बन सका है।
‘इरावती’ अधूरी रचना है शुँगकालीन ऐतिहासिक कथा-वस्तु को बड़ी
सहजता से इसमें चित्रित किया जा रहा था। और बौद्धकालीन रूढ़ियों और विकृतियों के प्रति विद्रोह की सृष्टि की परिणति से निश्चय ही यह उपन्यास एक श्रेष्ठ ऐतिहासिक उपन्यास बन जाता। लेकिन प्रसादजी इसे पूरा नहीं कर सके।
कुल मिलाकर प्रसाद जी का उपन्यास साहित्य उनकी सांस्कृतिक दृष्टि और अनुभूति पर रचना बोध के कारण हिन्दी कथा साहित्य में चिरस्मरणीय बना रहेगा।
प्राक्कथन
जयशंकर प्रसाद अपने समय के प्रयोगधर्मी रचनाकार थे। भारतेन्दु युगीन खुमारी से मुक्त होकर उन्होंने नाटक और कविता के क्षेत्र में ही नहीं कथा साहित्य के क्षेत्र में भी प्रयोग किया। 1926 से 1929 ई. के बीच प्रसाद के दृष्टिकोण में यथार्थ के प्रति परिवर्तन दिखाई पड़ता है, जिसका प्रमाण ‘प्रतिध्वनि’, ‘स्कंदगुप्त’ और ‘चन्द्रगुप्त’ में भी मिलता है। यह परिवर्तन उनकी मूल स्थापनाओं में कम संसार की पहचान के स्तर पर ही अधिक हुआ है। साहित्य, समाज और मानव संस्कृति आदि उनके लिए अलग-अलग प्रत्यय नहीं बल्कि प्रत्यय श्रंखलाएँ हैं। उनकी प्रमुख समस्या है कि मनुष्य के बिना किसी विकृति और अवरोध के कैसे पूर्णता प्राप्त कर सकता है। कैसे वह अपनी मुक्ति के साथ-साथ दूसरों को मुक्त रख सकता है। वे प्रारम्भ से ही आनन्द को एक मूल्य मानकर चलते हैं और बुद्धि या विवेक को अपूर्णता का कारण मानते हैं।
अपूर्णता का बोध ही प्रगति का लक्ष्य है और प्रसाद जी की प्रगति की अवधारणा देहात्मवादियों, वैज्ञानिक भौतिकवादियों और साम्यवादियों से नितान्त भिन्न हैं। इसलिए प्रसाद जी सांस्कृतिक प्रगतिशीलता शब्द का व्यवहार करते हैं। जगत और जीव के प्रति उनका दृष्टिकोण अपने समकालीनों से नितान्त भिन्न है और इसलिए मनुष्य के सारे कृतित्व या हर प्रकार की अभिव्यक्ति की परिभाषा भी भिन्न है। प्रसाद जी के लिए साहित्य ही नहीं संसार का समग्र चिंतन दो स्पष्ट वर्गों में विभक्त है, जिसकी पुरातात्विक मीमांसा वरुण और इन्द्र के मूल संघर्षों में है। वे इन्द्र को आनन्द साहित्य, संगीत और नृत्य आदि से सम्बद्ध ललित कलाओं के प्रतीक के रूप में देखते हैं और इस तर्क के सारे ऐन्द्रिक बोध और संवेदनाएँ भी इन्द्र से जुड़ जाती हैं। वरुण को उन्होंने विवेक और बुद्धि की परम्परा से जोड़ा है क्योंकि वह वैज्ञानिकता का प्रतीक है। प्रसाद जी के इस विवेचन के मूल में ‘सुखद:खात्मको’ भाव: को भी देखा जा सकता है और आत्मवशता और परवशता की परिभाषा भी खोजी जा सकती है। वस्तुत: प्रसाद जी साहित्य को सांस्कृतिक प्रक्रिया का एक अंग मानते हैं। संस्कृति बोध उनकी दृष्टि से साहित्य बोध से अलग नहीं है। विवेकवाद की यह धारा दु:ख और दु:ख से मुक्ति के उपायों को केन्द्र में मानने के कारण बाजपेयी जी के अनुसार साहित्य में आदर्शर्वाद विवेकवाद और यथार्थवाद विवेकवाद की प्रतिष्ठा करती है।
रामायण के आदर्शात्मक विवेकवाद और महाभारत के यथार्थवादी विवेकवाद के परिणाम प्रसाद जी के अनुसार लौकिक संस्कृत के क्लासिक और रोमांटिक धाराओं में तथा रासो, आल्हा एवं भक्तिकाल की विभिन्न रचनाओं में परिणत हुए परंतु ‘‘विवेकवादी काव्यधारा मानव में राम हैं – या लोकातीत परम शक्ति इसी के विवेचन में लगी रही। मानव ईश्वर से भिन्न नहीं है, यह बोध, यह रसानुभूति विवृत्त नहीं हो सकी।’’ कंकाल, तितली और इरावती में विवेकवाद धारा के परिणाम यथार्थवादी रूप में वर्णित, कथित और दर्शित किये गये हैं। और अन्तत: मानव ईश्वर से भिन्न नहीं है, इसकी प्रतिष्ठा करने की कोशिश भी की गई है। लेकिन उपन्यास में इस कोशिश के बावजूद कई प्रश्न और प्रश्नों के उत्तर प्रसाद से पहले के सामाजित स्थिति और उसकी अभिव्यक्ति विधानों में पूछे गए प्रश्नों के उत्तरों से भिन्न हैं और यही भिन्नता प्रसाद के कंकाल और तितली के महत्त्वपूर्ण और युगान्तकारी है अपेक्षाकृत तितली के।
परंतु इस प्रकार के प्रश्नोंत्तरों को समझने के पूर्व प्रसाद के आदर्श और यथार्थ संबंधी दृष्टिकोण को समझना आवश्यक है क्योंकि प्रसाद जी इस संबंध में स्वयं भी वरुण और इन्द्र की कई परिणतियों को एक तर्कक्रम में रखकर देखना चाहते हैं। कृति, विकृति और संस्कृति के तर्क से दो प्रतिगामी धाराओं के मिलने से उत्पन्न नयी धारा यथार्थ और जीवन्त होती है क्योंकि वह किसी दबाव का नहीं प्रक्रिया का परिणाम होती है। ‘‘भौगोलिक परिस्थितियाँ और काल की दीर्घता तथा उसके द्वारा होने वाले सौंदर्य संबंधी विचारों का सतत अभ्यास एक विशेष ढंग की रुचि उत्पन्न करता है, और वही रुचि सौंदर्य अनुभूति की तुला बन जाती है, इसी से हमारे सजातीय विचार बनते हैं और स्निग्धता मिलती है। इसी के द्वारा हम अपने रहन-सहन, अपनी अभिव्यक्ति का सामूहिक रूप से संस्कृत रूप में प्रदर्शन कर सकते हैं। यह संस्कृति विश्ववाद की विरोधिनी नहीं; क्योंकि इसका उपयोग तो मानव समाज में आरंभिक प्राणित्त्व-धर्म में सीमित मनोभावों को सदा प्रशस्त और विकासोन्मुख बनने के लिए होता है।
संस्कृत मंदिर, गिरजा और मस्जिद विहीन प्रान्तों में अत: प्रतिष्ठित होकर सौंदर्य बोध की वाह्य सत्ताओं का सृजन करती है। संस्कृति का सामूहिक चेतनता से, मानसिक शील और शिष्टाचारों से मनोभावों से मौलिक संबंध है। ... संस्कृति सौंदर्य बोध के विकसित होने की मौलिक चेष्टा है। इसलिए साहित्य के विवेचन में भारतीय संस्कृति और तदनुकूल सौंदर्यानुभूति की खोज अप्रासंगिक नहीं, किन्तु आवश्यक है।’’ सौंदर्य बोध के इसी मूल्यांकन क्रम में प्रसाज जी पाश्चात्य और भारतीय सौंदर्य दृष्टि का मूल्यांकन करते हुए हेगेल के आधार पर बने मूर्तता और अमूर्तता के सिद्धान्त को नकारते हुए यह स्थापना करते हैं कि ‘‘भारतीय विचारधारा ज्ञानात्मक होने के कारण मूर्त और अमूर्त का भेद हटाते हुए बाह्य और आभ्यंतर का एकीकरण करने का प्रयत्न करती है।’’ 1925 के बाद जयशंकर प्रसाद के साहित्य में यह संस्कृति बोध अत्यन्त प्रबलता से पाया जाता है। कामायनी, कंकाल और इरावती में वाह्य और आभ्यंतर के एकता की यही समस्या है। वे इस संदर्भ में अद्वयता के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं और अद्वयता एक प्रकार की घुलनशीलता है जो बुद्धि को अनुभूति में घुलाने से ही आ सकती है। अपना कंचुक या आवरण छोड़कर एक दूसरे में लय होने का सिद्धांत कामायनी में ही नहीं अजातशत्रु, सकन्दगुप्त, चन्द्रगुप्त, एक घूँट और ध्रुवस्वामिनी में पाया जाता है। यह संतुलन व्यष्टि और समष्टि के घुलाने या समझौता कराने का समीकरण भी है।
ईश्वर के प्रति निष्काम भावना और विश्वास प्रसाद में अंतिम समय तक बना रहा। आनन्द और नियतिवादिता का यह घना रिश्ता ईश्वर के माध्यम से ही बनता है। शैवमतावलम्बी जयशंकर प्रसाद की सभी कृतियों में प्राय: एक ‘अदृश्य शक्ति के संचालनत्त्व’ का तर्क दिखाई पड़ता है, जो घोर से घोर नास्तिक को अंतत: आस्तिक बना देता है। कंकाल का विजय इसका प्रमुख उदाहरण है। यह एक विचित्र अन्तर्विरोध है जो उनकी कृतियों में पाया जाता है। कंकाल, तितली और इरावती नियतिवाद उपन्यास हैं। शैल का यह कथन है कि ‘‘नियति दुस्तर समुद्र पार कराती है, चिरकाल के अतीत को वर्तमान से क्षण भर में जोड़ देती है और अपरिचित मानवता सिंधु में से उसी एक से परिचय करा देती है। जिससे जीवन की अग्रगामिनी धारा अपना पथ निर्दिष्ट करती है’’ (तितली, पृ.54) नियतिवादी तर्क है। यह तर्क उपन्यास में कहीं भी अकर्मण्यता का भाव नहीं पैदा करता है बल्कि मानवता के कल्याण के लिए निरंतर सेवा और त्याग को एक मूल्य मानकर स्थापित करता है। प्रसाद की प्रमुख चिंता ‘दिव्य आर्य संस्कृति की स्थापना है’ यह संस्कृति व्यक्तित्व के स्वतंत्र विकास को मान कर चलती है और ‘विधि निषेध’ के बंधनों से मुक्त रहती है। आर्य समाज से प्रभावित होते हुए भी प्रसाद का यह दृष्टिकोण आर्य समाज की शुष्कता से रहित है क्योंकि इसमें प्रेम, प्रमोद और आनन्द को प्राप्य माना गया है। ‘इरावती’ में आनन्दवाद का ‘एक घूँट’ नाटक की भाँति प्रचार पाया जाता है। भारत की निर्वीयता और आलस्य का कारण विवेकवाद और बुद्धिवाद को मानते हुए आनन्द की ही दुन्दुभी बजाए जाने का इसमें संकल्प है, क्योंकि आनन्द एक ऐसा मूल्य है, जो मानव-जीवन में ‘रागतत्त्व’ पैदा करता है और यही रागतत्त्व संगीत, नृत्य आदि विविध कलाओं के रूप में अवतरित होकर जीवन्त समाज की सृष्टि करता है।
‘इरावती’ में इसीलिए बौद्ध धर्म की निवृत्तिमूलकता और निषेधात्मकता से विद्रोह का भाव पाया जाता है, जो भारतीय समाज की निवृत्तिमूलक निषेधात्मक प्रवृत्तियों को निरर्थक मानकर आत्मवादी साधना को प्रमुखता देता है। आनन्दवाद व्यक्ति की समनोवृत्तियों की संतुष्टि को केन्द्र में रखकर ‘व्यक्ति’ को प्रमुख इकाई मानता है और समष्टि को गौण। ‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिगर्मय और मृत्योर्मामृतंगमय’ यद्यपि आर्यसमाज का प्रमुख नारा है और वनजरिया के बाबा रामनाथ महर्षि दयानंद से प्रभावित भी हैं परन्तु बाबा रामनाथ या कंकाल के स्वामी कृष्णशरण जी आर्य समाजी नहीं हैं बल्कि मैथिलीशरण गुप्त के ‘भारत भारती’ के उद्बोधनों के समान सोते हुए भी भारतीय जनता को जगाने का कार्य करने वाले ऐसे संस्कृति पुरुष हैं, जिसके माध्यम से प्रसाद जी केवल भारतीय जाति का ही नहीं मानवता के कल्याण को सांस्कृतिक उद्घोषणा करते हैं। प्रसाद प्रेमचन्द की तरह उपन्यास में इनकी स्थापना के लिए कहीं स्वत: नहीं उपस्थित होते हैं बल्कि दूर खड़े होकर दृश्य का प्रस्तुतीकरण देखते हैं।
प्रसाद जी की समस्या है कि रूढ़ियों और अंधविश्वासों से जर्जरित भारतीय समाज का विकल्प क्या है ? यह वेदना ही संकल्पात्मक रूप धारण करके 1926 के बाद से उनके हर कृतित्व का विषय बनती रही है। दु:ख और दु:ख के विभिन्न कारणों के प्रसादीय निष्कर्ष ‘स्कन्दगुप्त’, ‘चन्द्रगुप्त’, ‘एक घूँट’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आँधी’, ‘इन्द्रजाल’, ‘कंकाल’ और ‘तितली’ की कृतियों के रूप में सृजित हुए हैं। और इन उपन्यासों में प्रवाहित जीवन दृष्टि ही बाद में उनके निबंधों का विषय बनी। ये कृतियाँ बदलते हुए समाज और उसके नये बनते हुए मानव संबंधों को ही नहीं बल्कि ढहते, सड़ते, और डूबते हुए उन संस्थानों को भी उद्घाटित करती हैं, जो बीसवीं शताब्दी में अपना अर्थ खो चुके हैं। छायावादी प्रवृत्ति के सामाजिक आधार को चित्रित करने या दिखाने के साथ-साथ जयशंकर प्रसाद के दिमाग में अपने समाकालीन रचनाकारों से कहीं अधिक बढ़कर ‘विश्व मानवता’ की चिन्ता थी। मुझे तो यह भी लगता है कि संसार में उठते हुए नये सामाजिक प्रश्नों के फ्रायड, मार्क्स, डार्विन और न्यूटन आदि के द्वारा दिये गये उत्तरों से वे संतुष्ट नहीं थे। इन मनीषियों की वाणियाँ कंकाल और तितली में सुनाई पड़ती हैं। कुछ उत्तर तो वे महात्मा गाँधी की तरह भी देना चाहते हैं परंतु कुछ उनसे भिन्न हैं। इरावती महात्मा गाँधी के द्वारा दिये गये अहिंसा के उत्तर के प्रतिकूल है। प्रसाद की यह चिन्तनशीलता प्रेमचन्द्र के उपन्यासों का विषय क्यों बनी या हिन्दी उपन्यास प्रसाद के रास्ते क्यों चला प्रेमचंद्र के रास्ते क्यों नहीं ? इस प्रकार का प्रश्न हो सकता है परंतु यहाँ उसका औचित्य नहीं है। वस्तुत: सामाजिक स्थिति की यह पहचान प्रसाद को एक प्रकार के संकल्पात्मकता की तरफ ले जाती है और वह संकल्प उनकी काव्यात्मक प्रवृत्ति के कारण संकोच के साथ उपन्यासों में भी दिखाई पड़ता है। ‘वेदना’ की इस विवृत्ति का कारण क्या है ? और साहित्य का समाज बीज क्या है ? इसके लिए निम्न उद्धरण महत्त्वपूर्ण है।
‘‘हमारी धार्मिक भावनाएं बँटी हुई हैं, सामाजिक जीवन दंभ से और राजनीतिक क्षेत्र कलह और स्वार्थ से जकड़ा हुआ है। शक्तियाँ हैं पर उनका कोई केन्द्र नहीं किस पर अभिमान हो किसके लिए प्राण दूँ।’’
(दासी – आँधी, पृ.59)।
‘‘क्यों, क्या हिन्दू होना परम सौभाग्य की बात है। जब उस समाज का अधिकांश पददलित और दुर्दशाग्रस्त है, जब उसके अभिमान और गौरव की वस्तु धरापृष्ठ पर नहीं बची – उसकी संस्कृति विडंबना, उसकी संस्था सारहीन, और राष्ट्र बौद्धों के शून्य के सदृश बन गया है; जब संसार की अन्य जातियाँ सार्वजनिक भ्रातृभाव और साम्यवाद को लेकर खड़ी हैं तब आपके इन खिलौनों (मूर्तियों) से भला उनकी संतुष्टि होगी ?’’
(कंकाल, पृ.56) ।
‘‘भारतवर्ष आज वर्णों और जातियों के बंधन में जकड़ कर कष्ट पा रहा है और दूसरों को कष्ट दे रहा है। यद्यपि अन्य देशों में भी इस प्रकार के समूह बन गये हैं; परन्तु यहाँ इसका भीषण रूप है। यह महत्त्व का संस्कार अधिक दिनों तक प्रभुत्त्व भोग कर खोखला हो गया है। दूसरों की उन्नति से उसे डाह होने लगा है। समाज अपना महत्त्व धारण करने की क्षमता खो चुका है परंतु व्यक्तियों की उन्नति का दल बनाकर सामूहिक रूप से विरोध करने लगा है प्रत्येक व्यक्ति अपनी झूठी महत्ता पर इतराता हुआ दूसरे को नीचा – अपने से छोटा समझता है जिससे सामाजिक विषमता प्रभाव फैल रहा है।’’
(कंकाल, पृ. 202)।
भगवान की भूमि भारत में स्त्रियों पर तथा मनुष्यों को पतित बनाकर बड़ा अन्याय हो रहा है। करोड़ों मनुष्य जंगलों में अभी पशु जीवन बिता रहे हैं। स्त्रियाँ विपथ पर जाने के लिए बाध्य की जाती हैं, तुमको उनका पक्ष लेना पड़ेगा। उठो !
(कंकाल, पृ. 111)।
‘‘हिन्दुओं में पारस्परिक तनिक भी सहानुभूति नहीं। मैं जल उठा। मनुष्य, मनुष्य के दु:ख – सुख से सौदा करने लगता है और उसका मापदंड बन जाता है रुपया। आप देखते नहीं कि हिन्दू की छोटी-सी गृहस्थी में कूड़ा करकट तक जुटा रखने की चाल है, और उन पर प्राण से बढ़ कर मोह। दस-पाँच गहने, दो-चार बर्तन, उनको बीसों बार बन्धक करना और घर में कलह करना, यही यही हिन्दू घरों में आये दिन के दृष्य हैं। जीवन का कैसे कोई लक्ष्य नहीं ! पद दलित रहते-रहते उनकी सामूहिक चेतना जैसे नष्ट हो गयी है।’’
(तितली, पृ. 47) ।
मुझे धीरे-धीरे विश्वास हो चला है कि भारतीय सम्मिलित कुटुम्ब की योजना की कड़ियाँ चूर-चूर हो रही हैं। वह आर्थिक संगठन अब नहीं रहा, जिसमें कुल का एक प्रमुख सबके मस्तिष्क का संचालन करता हुआ रुचि की समता का भार ठीक रखता था। मैंने जो अध्ययन किया है, उसके बल पर इतना तो कहा जा सकता है कि हिन्दू समाज की बहुत-सी दुर्बलताएँ इस खिचरी कानून के कारण अपने को प्रतिकूल परिस्थति में देखता है। इसलिए सम्मिलित कुटुम्ब का जीवन दु:खदायी हो रहा है।
तितली, 87)।
सर्व साधारण आर्यों में अहिंसा, अनात्म और अनित्यता के नाम पर जो कायरता, विश्वास का आभाव और निराशा का प्रचार हो रहा है उसके स्थान पर उत्साह, साहस और आत्मविश्वास की प्रतिष्ठा करनी होगी।
‘‘हम सच ही निर्वीय हो रहे हैं।’’
हाँ ! मैं इसलिए प्रयत्न करूँगा कि इनकी वाणी शुद्ध, आत्मा निर्मल और शरीर स्वस्थ हो।
(इरावती, पृ. 31)।
इन उद्धरणों का चयन इस उद्देश्य से भी किया गया ही कि हमें उस मूल उत्प्रेरक का भी ज्ञान हो सके या उस ज्ञानात्मक संवेदना तक हम पहुँच सके हैं, जो प्रसाद के उपन्यासों का विषय रही है। यही मूल वेदना है जिसे प्रसाद जी ‘यथार्थवाद का मूल भाव’ समझते हैं।
उपन्यास का जो यथार्थवादी रूप भारतेन्दु युग के अंतिम समय में विकसित हो चुका था उस पर उस युग की, यथार्थवादी रंगमंचीय परंपरा, निबंधों का दबाव कम नहीं था। प्रसाद जी भारतेन्दु युग के इस प्रचार माध्यम वाली चेतना सेन केवल परिचित थे वल्कि प्रचार और कला माध्यमों को मिलाकर – चन्द्रावली और प्रेमजोगिनी को साथ रखकर – नाटक और कथा साहित्य के क्षेत्र में एक विशेष प्रकार प्रयोग कर रहे है। यथार्थ के प्रति प्रसाद का दृष्टिकोण यथा तथ्यवादी नहीं बल्कि अनुभूति केन्द्रित था। क्योंकि प्रसाद जी मानसिक बनावट को यथार्थ का हिस्सा मानते थे। वे अतिवादी आग्रहों के रचनाकार नहीं थे। प्रचार और कला दोनों की अद्वयता के आधार पर विकसित इस दृष्टि के कारण के विषय और विषयी दोनों को महत्त्व देते हैं। और यह दृष्टि उनके लेखन में क्रमश: कला से प्रचार माध्यम या सोद्देशयता की ओर उन्मुख रही है। एक ‘दिव्य आर्य संस्कृति’ की स्थापना का द्विवेदी युगीन आदेश प्रेमचन्द्र और जयशंकर प्रसाद दोनों में हैं परन्तु ‘गोदान’ तथा ‘कंकाल’ में ये आदर्श चरमराते हैं। कंकाल में चरपरा कर रह जाते हैं और गोदान में टूट जाते हैं। यह आर्य संस्कृति मैथिली शरण गुप्त में भी है परन्तु वहाँ वह अंग्रेजी के विकल्प के रूप में प्रस्तुत है।
जयशंकर प्रसाद की इस कल्पना में परम्परा की जीवन्तता और विश्वास है, जब कि अन्य छायावादियों में अतीत स्मृति भी नहीं है। इस आर्य संस्कृति के मूल रूप में ‘आर्य भाषा और आर्य जाति’ का सांत्वना परक पश्चिमी सिद्धांत भी है और उस सिद्धान्त की भारतीय व्याख्या भी। प्रसाद की हर कृति में स्मृति की पावन धारा का अभिषेक अवश्य है। उनके उपन्यासों में यह कार्य एक प्रकार की ‘उपन्यास रूढ़ि’ के माध्यम से किया गया है, जिसे कोई कथा-समय भी कह सकता है। उनके प्रत्येक उपन्यास में एक निष्काम वैरागी होता है, जो सेवा, मानव कल्याण आनन्द, स्वास्थ्य, निर्भयता, त्याग आदि की न केवल शिक्षा देता है बल्कि उपन्यास के वस्तु संगठन कर्म प्रवाह – से वही भरत वाक्य की तरह निकलता है। ‘कंकाल’ के स्वामी कृष्ण शरण की टेकरी ‘तितली’ के बनजरिया के बाबा रामनाथ और ‘इरावती’ के विश्वनाथ मन्दिक के पुजारी ब्रह्मचारी संरचनात्मक इकाई के रूप में ही व्यवहृत है। वैसे तो प्रसाद के नाटकों में भी इस प्रकार के मूल्य संस्थापक साधु पुरुष आते हैं। प्रौढ़ नाटककार के अनुभव और दक्षता ने उनके उपन्यासों का कथन और वर्णन की प्राथमिक स्थितियों से मुक्त रखा है। उपन्यास की सैद्धान्तिक स्थापनाएँ और लेखकीय दृष्टिकोण एक नाटक विधान के संवाददात्मक अंश है जो वर्तमान सामाजिक जर्जरता पर टिप्पणी के रूप में प्रयुक्त किये हुये लगते हैं।
यह पद्धति शैली की दृष्टि से रामचन्द्र
शुक्ल की निबन्ध शैली का आभ्यंतरी कृत रूप है। पद्धति मूलक विश्लेषण की दृष्टि से इसे ‘उदाहरण और निष्कर्ष’ कहा जा सकता है।
‘पत्थर की पुकार’ में ‘अतीत’ और ‘करुणा’ को साहित्य का चित्ताकर्षक तत्त्व माना गया है। यह दो तत्त्व प्रसाद के साहित्य में अंत तक बने रहे हैं। उपन्यासों में जब भी अवसर मिला है उन्होंने धार्मिक शवता और सामाजिक अपंगत को ऐतिहासिकता से जोड़कर सांस्कृतिक प्रगतिशीलता का एक नया अर्थ देने का प्रयास किया है। वर्तमान जिस रूप में भयावह और निन्दनीय है उसके कारण और विकल्प की चेतना प्रसाद
के उपन्यासों के काल का आयाम फैला देती है। प्रसाद जो कुछ जैसा है उसके साथ-साथ कैसा होना चाहिए की दृष्टि भी रखते हैं और यह दृष्टि व्यापक परिवर्तन की माँग से जुड़ती है परन्तु प्रेमचन्द्र की भाँति वे ‘वर्तमान’ को ही प्रमुख नहीं मानते बल्कि भविष्य को भी ध्यान में रखते हैं, जो उनके ‘अतीत और करुणा’ के सिद्धान्त से मेल खाता है। यह आश्चर्य है कि अज्ञेय और मुक्तिबोध दोनों ही करुणा को सृजनात्मक शक्ति मानते हैं और दोनों में ऐतिहासिक चेतना भावात्मक और अभावात्मक रूपों में मौजूद है। मेरा तात्पर्य उस दिशा की ओर
संकेत करना है जिसकी ओर प्रसाद संकेत करते हैं। ‘प्रगतिशील विश्व’ को स्वीकार करते हुए भी प्रसाद ‘छलांग’ के सिद्धान्त में विश्वास नहीं करते हैं। उनके अनुसार ‘‘जब हम समझ लेते हैं कि कला को प्रगतिशील बनाए रखने के के लिए हमको वर्तमान सभ्यता का – जो सर्वोत्तम है – अनुसरण करना चाहिए तो हमारा दृष्टिकोण भ्रमपूर्ण हो जाता है; अतीत और वर्तमान को देखकर भविष्य का निर्माण होता है; इसलिए हमको साहित्य में एकांगी लक्ष्य नहीं रखना चाहिए’’ (काव्य कला तथा अन्य निबंध, पृ. 112) यह दृष्टिकोण प्रसाद के उपन्यासों में
पहले से है।
उपन्यासों की संरचना में जयशंकर प्रसाद इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं बल्कि उपन्यास उनकी विश्व दृष्टि – आर्य दृष्टि-के परिणाम ही होते हैं, जिसमें ‘इतिहास’ के रूप में अतीत हमारे जातीय स्मृति का न केवल अंग बनकर आता है बल्कि संकल्पात्मक अनु-अनुभूति या वेदना के प्रत्यय में ही वह निहित है। क्योंकि प्रसाद जी युंग के भाँति ‘सामूहिक अचेतन’ को स्वीकार करते हैं जो एक प्रकार से उनके विश्वात्मा के सिद्धान्तों का प्रतिरूप ही है। परंतु यह ऐतिहासिक कथा के रूप में लगभग ‘पद्मावत’ की भाँति जुड़ती है और वेदना को व्यापक और गंभीर दोनों बना देती है। कंकाल में प्रसाद ‘पद्मावत’ को मानव जीवन की समस्याओं के सांत्वनापरक हल का आधार मानते हैं। वेदना की विवृत्ति – स्वप्न और आकांक्षा का, आदर्श और यथार्थ की जो द्विभाजिकता पद्मावत में है वही प्रसाद के उपन्यासों में है।
प्रसाद जी यह मानते हैं कि ‘‘यथार्थवाद क्षुद्रों का ही नहीं अपितु महानों का भी है। वस्तुत: यथार्थवाद का मूल भाव है वेदना। जब सामूहिक चेतना छिन्न – भिन्न होकर पीड़ित होने लगती है, तब वेदना की विवृत्ति आवश्यक हो जाती है। कुछ लोग कहते
हैं – साहित्य को आदर्शवादी होना ही चाहिए और सिद्धान्त से ही आदर्शवादी धार्मिक प्रवचन कर्त्ता बन जाता है। वह समाज को कैसा होना चाहिए, यही आदेश करता है। और यथार्थवादी सिद्धान्त से ही इतिहासकर से अधिक कुछ नहीं ठहरता, क्योंकि यथार्थवाद इतिहास की सम्पत्ति है। वह चित्रित करता है कि समाज कैसा है या था, किन्तु साहित्यकार न तो इतिहास कर्त्ता है और न धर्मशास्त्र प्रणेता। इन दोनों के कर्त्तव्य स्वतंत्र हैं। साहित्य इन दोनों की कमी पूरा करने का काम करता है। साहित्य समय की वास्तविक स्थिति क्या है, इसका
दिखाते हुए भी उसमें आदर्शवाद का सामंजस्य स्थिर करता है। दु:ख दग्ध जगत और आनन्द पूर्ण स्वर्ग का एकीकरण साहित्य है। इसीलिए साहित्य अघटित घटना पर कल्पना की वाणी महत्त्वपूर्ण स्थान देती है, जो निजी सौन्दर्य के कारण सत्य पद पर प्रतिष्ठित होती है। उसमें विश्व मंगल की भावना ओत-प्रोत रहती है।’’
(काव्यकला तथा अन्य निबंध, पृ. 124)
कंकाल, तितली और इरावती में ‘दु:ख दग्घ जगत और आनन्दपूर्ण स्वर्ग’ के इसी एकीकरण का प्रयास है। और इसीलिए कई कमियों के बावजूद कंकाल कथा साहित्य की परिधि पर होता हुआ भी केन्द्र को प्रभावित करने वाला सबसे प्रमुख उपन्यास है। किशोरी, तारा, घंटी, लतिका, सरला रामो, गाला, विजय आदि की ‘दु:ख दग्ध’ दुनिया का, कृष्ण शरण की दुनिया-आनन्दपूर्ण स्वर्ग – से एकीकरण, कंकाल की वस्तु है। ये दोनों दुनियाएँ कंकाल में मिलते-मिलते रह जाती हैं। देव निरंजन, तारा यानी यमुना और विजय का कंकाल ‘पद्मावत’ की धूल की तरह हकीकत को अधिक गहरा और विषाद पूर्ण बना देता है। विजय देवनारायण साहो ने पद्मावत में जायसी की जिस विषाद दृष्टि का उल्लेख किया है वही अंतत: ‘कंकाल’ की ‘गाला’ या ‘तितली’ की तितली की कथा उस करुणा को अधिक गहराती ही है। ‘कंकाल’ में विजय का कंकाल एक प्रश्न चिह्न है। विजय को उपन्यास में देवता, विद्रोही और मंगलदेव द्वारा अंत में सही भी कहा गया है और वही सत्य एक प्रकार से सामूहिक सत्य के प्रतीक के रूप में अनदेखा और अनपहचाना मर जाता है।