नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। हार्मोन असंतुलन सामान्य समस्या है जो महिला पुरुष दोनों में देखा जाता है। इसका मुख्य कारण कम सोना, तनाव, वर्कआउट और समय पर भोजन न करना है। इससे तनाव, चिड़चिड़ापन,मोटापा और सुस्ती आदि की समस्याएं होती हैं। हार्मोन मूड को ठीक रखने में अहम भूमिका निभाता है। हार्मोन अंतःस्रावी ग्रंथि में बनने वाले रसायन हैं जो रक्त के माध्यम से संपूर्ण शरीर में पहुंचते है और उन्हें सुचारू रूप से काम करने के निर्देश देते हैं। इसके बढ़ने और घटने से शरीर की कोशिकाओं पर अनुकूल और प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। शरीर में मुख्यतः 10 प्रकार के हार्मोन पाए जाते हैं जो शरीर के भिन्न-भिन्न कार्यों में अहम भूमिका निभाते हैं। अगर आप भी हार्मोन असंतुलन की समस्या से परेशान हैं, तो अपनी डाइट में इन चीज़ों को जरूर शामिल करें। आइए जानते हैं-
ब्रोकली का सेवन करें
ब्रोकली में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। ब्रोकली एस्ट्रोजन हार्मोन को मेंटेन रखता है। इसमें कैल्शियम भी पाया जाता है जो महिलाओं में होने वाले प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम समस्या को दूर करने में सहायता करता है। साथ ही तनाव, चिड़चिड़ापन, बार-बार खाने और थकान की समस्या को भी दूर करता है।
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समुद्री मछलियों में फैट और ओमेगा-3 अधिक पाया जाता है। इसके सेवन से दिल सेहतमंद रहता है और हार्मोन संतुलित रहता है। साथ ही माहवारी को भी नियमित करता है और हार्मोन असंतुलन की वजह से होने वाली PCOS की समस्या दूर होती है।
अनार खाएं
अनार में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जो एस्ट्रोजन हार्मोन के अधिक उत्सर्जन को नियंत्रित करता है। साथ ही स्तन कैंसर का जोखिम भी कम होता है।
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अलसी में लिग्नांस (Lignans) और ओमेगा-3एस (Omega-3S)पाए जाते हैं।जबकि अलसी के पौधे में फाइटोएस्ट्रोजन पाया जाता है। यह न केवल हार्मोन को संतुलित करता है बल्कि हार्मोन से एस्ट्रोजन होने वाले स्तन कैंसर के खतरे को भी कम करता है।
क्विनोआ खाएं
इसमें विटामिन, फाइबर और प्रोटीन पाए जाते हैं जो ब्लड शुगर कंट्रोल करने में सहायक होते हैं। साथ ही इंसुलिन और एण्ड्रोजन के उत्सर्जन में सहयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त क्विनोआ में एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी के गुण पाए जाते हैं जो डायबिटीज और हृदय संबंधी रोगों में फायदेमंद होते हैं।
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यह भी पढ़ेंडिस्क्लेमर: स्टोरी के टिप्स और सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन्हें किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर नहीं लें। बीमारी या संक्रमण के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
टेस्टोस्टेरोन एक हॉर्मोन है जो पुरुषों के अंडकोष में पैदा होता है. आमतौर पर इसे मर्दानगी के रूप में देखा जाता है. इस हार्मोन का पुरुषों की आक्रामकता, चेहरे के बाल, मांसलता और यौन क्षमता से सीधा संबंध है.
शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ के लिए यह हॉर्मोन सभी पुरुषों के लिए ज़रूरी है.
टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन उम्र के साथ कम होने लगता है. एक अनुमान के मुताबिक 30 और 40 की उम्र के बाद इसमें हर साल दो फ़ीसदी की गिरावट आने लगती है. इसमें क्रमिक गिरावट सेहत से जुड़ी कोई समस्या नहीं है, लेकिन कुछ ख़ास बीमारियों, इलाज या चोटों के कारण सामान्य से कम हो जाता है.
टेस्टोस्टेरोन हार्मोन में कमी को हाइपोगोनडिज़म कहा जाता है. ब्रिटिश पब्लिक हेल्थ सिस्टम के मुताबिक़ इससे 1000 में से पांच लोग पीड़ित हैं.
टेस्टोस्टेरोन सामान्य से कम है इसे ऐसे जानें
- अवसाद, चिंता, चिड़चिड़ापन
- यौन संबंध बनाने की इच्छा कम होना, नपुंसकता की शिकायत
- ज़्यादा देर तक कसरत नहीं कर पाना और मजबूती में गिरावट
- दाढ़ी और मूंछों का बढ़ना कम होना
- यादाश्त और एकाग्रता का कम होना
लंबे समय तक हाइपोगोनडिज़म से हड्डियों को नुक़सान पहुंचने का जोखिम रहता है. इससे हड्डियां कमज़ोर होती हैं और फ्रैक्चर की आशंका बढ़ जाती है.
हाइपोगोनडिज़म एक ख़ास तरह की मेडिकल परिस्थिति है जो उम्र बढ़ने के साथ पैदा होने वाली सामान्य स्थिति से अलग है. इसका सीधा संबंध मोटापा और टाइप 2 डायबिटीज से है.
आप अपने टेस्टोस्टेरोन का मूल्यांकन कई ख़ून जांच से करा सकते हैं. इसका स्तर हर दिन सामान्य नहीं होता है. यदि इसमें गिरावट दर्ज की जाती है तो मरीज़ को एन्डोक्राइन स्पेशलिस्ट के पास भेजा जाता है.
टेस्टोस्टेरोन कम होने की वजह क्या है?
टेस्टोस्टेरोन पुरुषों के अंडकोष में विकसित होता है जो पिट्यूटरी ग्रंथि और हाइपोथैलेमस से नियंत्रित होता है. अगर किसी भी बीमारी से पिट्यूटरी ग्रंथि और हाइपोथैलेमस प्रभावित होता है तो यह हाइपोगोनडिज़म का कारण बनता है. इसका अंडकोष से भी सीधा संबंध होता है. अंडकोष में चोट, उसकी सर्जरी, क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम और आनुवांशिकी गड़बड़ी से पिट्यूटरी ग्रंथि और हाइपोथैलेमस प्रभावित होता है, जिससे हाइपोगोनडिज़म के हालात पैदा होते हैं.
इन्फेक्शन, लीवर और किडनी में बीमारी, शराब की लत, कीमोथेरपी या रेडिएशन थेरपी के कारण भी टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन में कमी आती है.
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