भगवान कृष्ण को करौली के शासक परिवार सहित यदुवंशी जादौन (शाब्दिक रूप से यदुओं के वंशज) का मुखिया माना जाता है। करौली के यदुवंशी जादौन परिवारों का भगवान श्री कृष्ण के वंशज होने का उल्लेख राजा विजय पाल के शासन समय के बीजक में भी पाया जाता है जो बयाना के प्रसिद्ध विजैमंदिर्गर्ह किले में मिले हैं । राजा विजय पाल की दसवीं पीढ़ी के वंशज राजा अर्जुन देव जी ने करौली शहर को स्थापित किया था। इस बीजक के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के 181 वे वंशज के रूप में करौली राजपरिवार सहित यदुवंशी जादौन परिवारों को माना जाता है।
भगवान कृष्ण के वंश में थे वज्र नाभ
कृष्ण के वंशज के रूप में जो ऐतिहासिक तथ्य मिलते हैं उसके अनुसार भगवान कृष्ण के परपोते के वंशज में वज्र नाभ का नाम प्रमुख रूप से सामने आता है, जो चंद्र वंश या चंद्रवंश के उप-कबीले हैं । उनको ब्रजभूमि का ऐतिहासिक शासक और भगवान कृष्ण के परपोते के वंशज माना जाता है। धार्मिक कथाओं में उल्लेख है कि यदुवंश में वज्र नाभ ही द्वारका के द्वीप साम्राज्य के विनाश से बचे।
भगवद पुराण के अनुसार, भगवान कृष्ण द्वारका में
अपने वंशजों के बीच होने वाली लड़ाई से क्षुब्ध थे। भगवान तो स्पष्ट रूप से भाई-भतीजावाद से मुक्त हैं क्योंकि उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कबीले के भीतर कलह को इस हद तक बढ़ा दिया था कि सदस्य खुद एक-दूसरे पर गिर पड़े, क्योंकि द्वारका का तैरता स्वर्ग समुद्र में डूब गया था। इस दौरान वज्र नाभ को बचा लिया गया क्योंकि वह अपने परदादा भगवान कृष्ण के बचपन के घर मथुरा यात्रा पर थे।
वज्रनाभ ने बनाया मदनमोहन जी विग्रह
वज्र नाभ को मथुरा के शासक के रूप में ताज पहनाया जाने के बाद, उन्होंने ब्रज पत्थर से सोलह मूर्तियों का निर्माण किया। इनमें से एक जन-जन के आराध्य मदन मोहन जी महाराज भी हैं। मदन मोहन जी गोविंद देव जी के साथ, और गोपीनाथ जी की त्रिमूर्ति बनाई गई, जिनको एक साथ भगवान कृष्ण का पूर्ण रूप माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वज्र नाभ ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के निर्देश पर मूर्तियों का निर्माण किया था, जिन्होंने वास्तव में स्वयं भगवान का साक्षात दर्शन किया था।
सपना देकर करौली पधारे मदनमोहनजी
मथुरा से मदन मोहन जी जिस प्रकार करौली पधारे, यह कथा भी प्रभु की अपार महिमा को दर्शाती है। औरंगज़ेब के विनाशकारी राज्य में मदन मोहन जी महाराज की प्रतिमा को जयपुर ले ज़ाया गया था।
फिर 18 वीं शताब्दी में करौली के महाराज गोपाल सिंह जी को सपने में दिव्य दृष्टि प्रदान हुई, मदन मोहन जी ने उन्हें दर्शन दिया कि वे वापस ब्रजभूमि पधारना चाहते हैं। महाराजा गोपाल सिंह जी की बहन उस समय जयपुर की महारानी थी और उन्होंने भाई का यह सपना अपने पति को बताया। जयपुर के महाराजा ने तीन एक सामान्य मूर्तियाँ तैयार की। महाराजा गोपाल सिंह जी की आँखों पर
पट्टी बाँध के बोला गया की इनमे से मदन मोहन जी को पहचान लीजिए। प्रभु की कृपा से उन्होंने मदन मोहन जी की प्रतिमा को पहचान लिया और इसी तरह मदन मोहन जी बड़ी धूम धाम के साथ करौली पधारे।
श्री भागवत पुराण के दृश्य और यदुवंश के गौरवशाली इतिहास जन्माष्टमी की भावना को पूरी तरह से प्रतिबिंबित करते हैं, जहां हर साल भगवान का आशीर्वाद उनके भक्तों पर नवीनीकृत होता है।
गेस्ट राइटर- विवस्वत पाल, भंवर विलास, करौली
भगवान कृष्ण किस वंश के थे : आप सभी भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले श्री कृष्ण से जुड़ी बहुत सी कथाओं के बारे में जानते ही होंगे, परंतु आज मैं आपको इस लेख में भगवान कृष्ण की पूरी वंशावली के बारे में बताने जा रहा हूं । जिसके बारे में सभी कृष्ण भक्तों को अवश्य ही जानना चाहिए । भगवान कृष्ण किस जाति के थे, कृष्ण भगवान किस गोत्र के थे, कृष्ण भगवान किस कास्ट के थे इन सभी सबलो का उत्तर हमने इस पोस्ट में प्रमाण के साथ दिया है। इन सभी उत्तरो को जानने के लिए इस पोस्ट को पूरा पड़े। विषयसूची
भगवान कृष्ण किस वंश के थे ? Krishna Bhagwan Kis Vansh Ke The
भगवान कृष्ण किस वंश के थे, ये जानने के लिए आपको पहले श्री कृष्ण की पूर्वज के वारे में जानना होगा। भगवान कृष्ण की पूर्वज कौन थे, ये जानते ही आपको खुद बा खुद पता चल जायेगा की भगवान कृष्ण के वंश क्या था और भगवान कृष्ण कौनसे जाती के थे ? (Krishna Bhagwan Kaun Si Jaati Ke The)
श्री कृष्ण वासुदेव के पुत्र थे। श्री कृष्ण के पिता वासुदेव जी की जाति क्षत्रिय यदुवंशी ओर कुल चंद्रवंशी था। यादवोंके पूर्वज राजा यदु भी एक क्षत्रिय यदुवंशी थे । यदुवंशी अपने नाम के पीछे यादव लगाते हैं। इससे पता चलता है की, श्री कृष्ण भगवान की जाति क्षत्रिय यदुवंशी था।
अधिक पढ़ें : भगवान कृष्ण के १००० नाम हिंदी में
नीचे हमने भगवान श्री कृष्ण के पूरी वंशावली के बारे लिखा है, चाहे तो आप पूरा लेख पढ़ सकते है और भगवान कृष्ण की पूर्बज के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है।
कृष्ण वंशावली | वासुदेव ओर श्री कृष्ण के पूर्वज
१. चंद्रवंशी की उत्पत्ति
अगर आप भगवान श्री कृष्ण के भक्त हैं तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़े । पाठकों विष्णु पुराण में इस बात का वर्णन किया गया है कि तीनों लोकों के पालनहार विष्णु जी की नाभि कमल से परम पिता ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई थी । और सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के मस्तिष्क से उत्पन्न हुए थे अत्री । अत्री ने भद्र से विवाह किया उन दोनों से सौम्भ यानी चंद्रमा की उत्पत्ति हुई और यहीं से सौम्भ वंश अर्थात चंद्र वंश की शुरुआत हुई ।
युवावस्था में सौम्भ की तरफ ऋषि बृहस्पति की पत्नी तारा आकर्षित हुई । दोनों ने मिलकर ऋषि बृहस्पति की अनुपस्थिति में बुध नामक बालक को जन्म दिया । भागवत के अनुसार सौम्भ पुत्र ऋषि बुध भारत खंड आए। धरती पर सूर्यवंशी राजा मनु की पुत्री इला को बुध से प्रेम हो गया । दोनों के मिलन से पुरर्बा नामक पुत्र का जन्म हुआ ।
अधिक पढ़ें : कृष्ण भगवान की सम्पूर्ण जीवन गाथा
भारत में पुरर्बा चक्रवर्ती सम्राट हुए, उसके बाद राजा और स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी ने मिलकर आयु को जन्म दिया । राजा आयु चौथी चंद्रवंशी सम्राट थे । राजा आयु ने राजा सर्बभानु की पुत्री प्रभा से विवाह किया , इस विवाह से ५ पुत्र हुए जिनके नाम है नहुष, क्षत्रवर्ध , रंभ, रजी और अदेना बाद में युवराज नहुष उस सिंहासन के उत्तराधिकारी बने ।
२. ययाति की कहानी
राजा नहुष ने व्रजा से विवाह किया और उनके ६ पूर्ति हुए। उनके नाम है यति, ययाति, समति, अयति, वियति और कीर्ति और एक रूचि को जनम दिया जो की एक नारी थी। बाद में राजकुमारी रुचि का विवाह, चवन ऋषि और सुकन्या के पुत्र अपनवन से हुआ ।
राजा नहुष के जेष्ठ पुत्र यति धार्मिक प्रवृत्ति के थे उनकी राजपाट में तनिक भी रुचि नहीं थी । उनके स्थान पर ययाति राजा हुए। महाराज ययाति ने २ विवाह किये, पहली पत्नी असुरों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी थी ओर ययाति की दूसरी पत्नी का नाम शर्मिष्ठा थी । जो भ्रष्ट प्रवाह की कन्या थी ।
राजा ययाति की दोनों पत्नियों से कुल ५ महा प्रतापी पुत्र पैदा हुए जिनका वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है । उन्हें ऋग्वेद में पांचजन्य पुरुष कहा गया है । इसलिए यादव आधुनिक क्षेत्रीय नहीं बल्कि पौराणिक और वैदिक क्षत्रिय हैं । राजा ययाति की पहली पत्नी देवयानी से यदु और तुर्वसु पैदा हुए । जबकि दूसरी पत्नी शर्मिष्ठा से द्रुह्यु, अनु और पुरु पैदा हुए ।
३. यदु वंश की वंशावली
ययाति के इन पांचों पुत्रों से पांच महत्वपूर्ण वंश की उत्पत्ति हुई जैसे ययाति की प्रथम पत्नी के प्रथम पुत्र यदु से यादव वंश तथा इनके दूसरे पुत्र तुर्वसु से यवन वंश बना । उसी प्रकार राजा ययाति की दूसरी पत्नी शर्मिष्ठा के तीनों पुत्रों से जैसे की द्रुह्यु से भोजवंश, अनु से मलेक्ष वंश और पुरू से पौरव वंश बना ।
यदु से सहस्त्रजीत, कोष्ठा, नल और रिपु ४ पुत्र हुए। जिसमें कोष्ठा से १३ पुत्र हुए। कोष्ठा के १३ वें पुत्र विधर्म ने विदर्भ राज्य की स्थापना की थी राजा विदर्भा के तीन पुत्र थे। कथ कौशिक रोमपाद। विदर्भा सबसे वड़े पुत्र कथ से १५ पुत्र जन्मे। कथ के १५ वे पुत्र भीमसत्वत से सात महा प्रतावी पुत्र जन्मे, उनके नाम है भाजी भजमान दिव्य देववृद्ध वृष्णी अंधक और महाभोज ।
इन सातों पुत्रों में से वृष्णी और अंधक अति महान थे । वृष्णी के देवमोड और योध्याजीत नाम के दो पुत्र हुए । देवमोड की २ रानियां मनीषा और विष्पर्णा थी । देव मोड़ की पहली पत्नी मनीषा से शूरसेन हुए और शूरसेन की पत्नी मारिया से १० पुत्र और ५ पुत्री पैदा हुई । इन के १० पुत्रों में वासुदेव सबसे बड़े थे और पांच पुत्रियों में सबसे बड़ी प्रथा यानी कि कुंती थी । जबकि देवमोड और विष्पर्णा से पार्जन्य का जन्म हुआ और पार्जन्य से ९ पुत्र हुए जिनमें नंदबाबा सबसे प्रमुख थे । वह भीमसत्व के पुत्र अंधक के वंश में देवकी और कंस का जन्म हुआ ।
ऊपर दिए गए तत्व से पता चलता है कि वासुदेव यदुवंशी थे। वासुदेव की २ पत्नियां थी, देवकी और रोहिणी । रोहिणी के गर्भ से वलराम का जन्म हुआ । जवकि देवकी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था । उसके बाद श्री कृष्ण और रुक्मणी से प्रधुम्न, प्रधुम्न से अनिरुद्ध और अनिरुद्ध से वज्र पैदा हुआ । इससे पता चलता है कि भगवान श्री कृष्ण यदुवंशी थे।
तो दोस्तों आप को श्रीकृष्ण से जुडी यह जानकारी पसंद आई होगी अगर आपको पसंद आई हो तो ज्यादा से ज्यादा इस लेख को शेयर करे।
अधिक पढ़ें : भगवान कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी ?
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न :
प्रश्न : कृष्ण भगवान कौन थे ?
कृष्ण, भगवान विष्णु के अष्टम अवतार थे और वासुदेव और माता देवकी जी की अष्ठम संतान थे। जबकि कृष्ण भगवान के पालक पिता नन्द बाबा और पालक माता माता यशोदा थी।
प्रश्न : भगवान श्री कृष्ण के पिता और माता कौन हैं?
भगवान कृष्ण के पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम देवकी थी।
प्रश्न : कृष्ण भगवान के दादाजी का क्या नाम है ?
श्री कृष्ण के दादा का नाम शूरसेन था।
प्रश्न : कृष्ण के नाना और नानी का नाम क्या है ?
भगवान कृष्ण के नाना का नाम उग्रसेन था। उग्रसेन यदुवंशीय राजा आहुक के पुत्र थे। श्रीकृष्ण की नानी का नाम पद्मावती थी।
प्रश्न : भगवान कृष्ण किस वंश के थे ?
भगवान श्री कृष्ण क्षत्रिय यदुवंशी थे ओर कुल चंद्रवंशी था।
प्रश्न : कृष्ण जी कौन से जाति के थे? Krishna Bhagwan Kis Jati Ke The ?
श्री कृष्ण वासुदेव के पुत्र थे। श्री कृष्ण के पिता वासुदेव जी की जाति क्षत्रिय यदुवंशी ओर कुल चंद्रवंशी था। यादवोंके पूर्वज राजा यदु भी एक क्षत्रिय यदुवंशी थे । यदुवंशी अपने नाम के पीछे यादव लगाते हैं। इससे पता चलता है की, श्री कृष्ण भगवान की जाति क्षत्रिय यदुवंशी था।
प्रश्न : भगवान श्री कृष्ण का गोत्र क्या था ?
श्रीकृष्ण जी वृष्णि गोत्र के थे। यदुवंश के शाखागोत्र – १. वृष्णि २. अन्धक ३. हाला ४. शिवस्कन्दे या सौकन्दे ५. डागुर या डीगराणा ६. खिरवार-खरे ७. बलहारा ८. सारन ९. सिनसिनवाल १०. छोंकर ११. सोगरवार १२. हागा १३. घनिहार १४. भोज।
प्रश्न : भगवान कृष्ण का वंश कब तक चला?
एक समय आया जव कृष्ण भगवान रुक्मणी जी को अपहरण करके विवाह किया था । कृष्ण और रुक्मणी जी से प्रधुम्न का जन्म हुआ, प्रधुम्न से अनिरुद्ध और अनिरुद्ध से वज्र पैदा हुआ । वज्रनाभ द्वारिका के अंतिम शासक थे जिन्होंने एक सप्ताह से भी कम द्वारिका मे राज किया।
प्रश्न : श्री कृष्ण के पूर्वज कौन थे?
इस प्रश् का उत्तर जानने के लिए ऊपर दिया गए लेख को संपूर्ण पढ़ना होगा। संक्षेप में : देव मोड़ की पहली पत्नी मनीषा से शूरसेन हुए और शूरसेन की पत्नी मारिया से १० पुत्र और ५ पुत्री पैदा हुई । इन के १० पुत्रों में वासुदेव सबसे बड़े थे। वासुदेव की २ पत्नियां थी, देवकी और रोहिणी । रोहिणी के गर्भ से वलराम का जन्म हुआ । जवकि देवकी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था ।
प्रश्न : देवकी किस जाति की थी?
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवकी चंद्रवंशी यादव राजा उग्रसेन के भाई देवक की कन्या थीं। इससे हमें ज्ञात होता है कि देवकी की जाति चंद्रवंशी थी।
यह भी पढ़ें
- गोपियों ने हारिल की लकड़ी किसे कहा है
- राधा और कृष्ण की शादी क्यों नहीं हुई थी
- भगवान श्री कृष्ण के कितने पुत्र थे
- भगवान कृष्ण कौन हैं
- महाभारत में कितने कृष्ण थे
- कृष्ण भगवान के 16108 पट रानियों का सच