शिमला समझौता पर हस्ताक्षर कौन किया था? - shimala samajhauta par hastaakshar kaun kiya tha?

शिमला समझौता

पूरा नाम:

Agreement Between the Government of India and the Government of the Islamic Republic of Pakistan on Bilateral Relations

प्रकारसन्दर्भप्रारूपणहस्ताक्षरितस्थानमोहरबंदीप्रवर्तितशर्तेंवार्ताकारहर्ताक्षरकर्तागणभागीदार पक्षसंपुष्टिकर्तानिक्षेपागारभाषाएँ
Peace treaty
Bangladesh Liberation War
28 June 1972
2 जुलाई 1972; 50 वर्ष पहले
Shimla, Barnes court (Raj bhavan)[1] Himachal Pradesh, India
7 August 1972
4 August 1972
Ratification of both parties
Foreign ministries of India and Pakistan
Indira Gandhi (Prime Minister of India)
Zulfiqar Ali Bhutto (President of Pakistan)
 
भारत
 
पाकिस्तान
Parliament of India
Parliament of Pakistan
Governments of Pakistan and India
  • Hindi
  • Urdu
  • English

1971 का भारत-पाक युद्ध के बाद भारत के शिमला में एक सन्धि पर हस्ताक्षर हुए।[2] इसे शिमला समझौता कहते हैं। इसमें भारत की तरफ से इन्दिरा गांधी और पाकिस्तान की तरफ से ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो शामिल थे। यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच दिसम्बर 1971 में हुई लड़ाई के बाद किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के 90,000 से अधिक सैनिकों ने अपने लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के रूप में पाकिस्तानी शासन से मुक्ति प्राप्त हुई थी। यह समझौता करने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो अपनी पुत्री बेनज़ीर भुट्टो के साथ 28 जून 1972 को शिमला पधारे। ये वही भुट्टो थे, जिन्होंने घास की रोटी खाकर भी भारत से हजारो वर्ष तक युद्ध करने की कसमें खायी थीं। 28 जून से 1 जुलाई तक दोनों पक्षों में कई दौर की वार्ता हुई परन्तु किसी समझौते पर नहीं पहुँच सके। इसके लिए पाकिस्तान की हठधर्मी ही मुख्य रूप से जिम्मेदार थी। तभी अचानक 2 जुलाई को लंच से पहले ही दोनों पक्षों में समझौता हो गया, जबकि भुट्टो को उसी दिन वापस जाना था। इस समझौते पर पाकिस्तान की ओर से भुट्टो और भारत की ओर से इन्दिरा गांधी ने हस्ताक्षर किये थे। यह समझना कठिन नहीं है कि यह समझौता करने के लिए भारत के ऊपर किसी बड़ी विदेशी ताकत का दबाव था। अपना सब कुछ लेकर पाकिस्तान ने एक थोथा-सा आश्वासन भारत को दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर सहित जितने भी विवाद हैं, उनका समाधान आपसी बातचीत से ही किया जाएगा और उन्हें अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाया जाएगा। लेकिन इस अकेले आश्वासन का भी पाकिस्तान ने सैकड़ों बार उल्लंघन किया है और कश्मीर विवाद को पूरी निर्लज्जता के साथ अनेक बार अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया है। वास्तव में उसके लिए किसी समझौते का मूल्य उतना भी नहीं है, जितना उस कागज का मूल्य है, जिस पर वह समझौता लिखा गया है। इस समझौते में भारत और पाकिस्तान के बीच यह भी तय हुआ था कि 17 दिसम्बर 1971 अर्थात पाकिस्तानी सेनाओं के आत्मसमर्पण के बाद दोनों देशों की सेनायें जिस स्थिति में थीं, उस रेखा को ”वास्तविक नियन्त्रण रेखा“ माना जाएगा और कोई भी पक्ष अपनी ओर से इस रेखा को बदलने या उसका उल्लंघन करने की कोशिश नहीं करेगा। लेकिन पाकिस्तान अपने इस वचन पर भी टिका नहीं रहा। सब जानते हैं कि 1999 में कारगिल में पाकिस्तानी सेना ने जानबूझकर घुसपैठ की और इस कारण भारत को कारगिल में युद्ध लड़ना पड़ा।

इतिहास[संपादित करें]

जुलफिकार अली भुट्टो ने 20 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति का पदभार संभाला। उन्हें विरासत में एक टूटा हुआ पाकिस्तान मिला। सत्ता संभालते ही भुट्टो ने यह वादा किया कि वह शीघ्र ही बांग्लादेश को फिर से पाकिस्तान में शामिल करवा लेंगे। पाकिस्तानी सेना के अनेक अधिकारियों को देश की पराजय के लिए उत्तरदायी मान कर बरखास्त कर दिया गया।

कई महीने तक चलने वाली राजनीतिक-स्तर की बातचीत के बाद जून 1972 के अंत में शिमला में भारत-पाकिस्तान शिखर बैठक हुई। इंदिरा गांधी और भुट्टो ने अपने उच्चस्तरीय मन्त्रियों और अधिकारियों के साथ उन सभी विषयों पर चर्चा की जो 1971 के युद्ध से उत्पन्न हुए थे। साथ ही उन्होंने दोनों देशों के अन्य प्रश्नों पर भी बातचीत की। इन में कुछ प्रमुख विषय थे युद्ध बन्दियों की अदला-बदली, पाकिस्तान द्वारा बांग्लादेश को मान्यता का प्रश्न, भारत और पाकिस्तान के राजनयिक सम्बन्धों को सामान्य बनाना, व्यापार फिर से शुरू करना और कश्मीर में नियन्त्रण रेखा स्थापित करना। लम्बी बातचीत के बाद भुट्टो इस बात के लिए सहमत हुए कि भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों को केवल द्विपक्षीय बातचीत से तय किया जाएगा। शिमला समझौते के अन्त में एक समझौते पर इन्दिरा गांधी और भुट्टो ने हस्ताक्षर किए। इसके प्रावधान निम्न्तः है।

प्रमुख प्रावधान[संपादित करें]

इनमें यह प्रावधान किया गया कि दोनों देश अपने संघर्ष और विवाद समाप्त करने का प्रयास करेंगे और यह वचन दिया गया कि उप-महाद्वीप में स्थाई मित्रता के लिए कार्य किया जाएगा। इन उद्देश्यों के लिए इन्दिरा गांधी और भुट्टो ने यह तय किया कि दोनों देश सभी विवादों और समस्याओं के शान्तिपूर्ण समाधान के लिए सीधी बातचीत करेंगे और किसी भी स्थिति में एकतरफा कार्यवाही करके कोई परिवर्तन नहीं करेंगे। वे एक दूसरे के विरूद्घ न तो बल प्रयोग करेंगे, न प्रादेशिक अखण्डता की अवेहलना करेंगे और न ही एक दूसरे की राजनीतिक स्वतंत्रता में कोई हस्तक्षेप करेंगे। दोनों ही सरकारें एक दूसरे देश के विरूद्घ प्रचार को रोकेंगी और समाचारों को प्रोत्साहन देंगी जिनसे सम्बन्धों में मित्रता का विकास हो। दोनों देशों के सम्बन्धों को सामान्य बनाने के लिए : सभी संचार सम्बन्ध फिर से स्थापित किए जाएँगे। आवागमन की सुविधाएँ दी जाएँगी ताकि दोनों देशों के लोग असानी से आ-जा सकें और घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित कर सकें 3 जहाँ तक संभव होगा व्यापार और आर्थिक सहयोग शीघ्र ही फिर से स्थापित किए जाएंगे 4 विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में आपसी आदान-प्रदान को प्रोत्साहन दिया जाएगा। स्थाई शान्ति के हित में दोनों सरकारें इस बात के लिए सहमत हुई कि

  1. भारत और पाकिस्तान दोनों की सेनाएँ अपने-अपने प्रदेशों में वापस चली जाएँगी।
  2. दोनों देशों ने 17 सितम्बर 1971 की युद्ध विराम रेखा को नियन्त्रण रेखा के रूप में मान्यता दी
  3. यह तय हुआ कि इस समझौते के बीस दिन के अन्दर सेनाएँ अपनी-अपनी सीमा से पीछे चली जाएँगी।

यह तय किया गया कि भविष्य में दोनों सरकारों के अध्यक्ष मिलते रहेंगे और इस बीच अपने सम्बन्ध सामान्य बनाने के लिए दोनों देशों के अधिकारी बातचीत करते रहेंगे।

आलोचना[संपादित करें]

भारत में शिमला समझौते के आलोचकों ने कहा कि यह समझौता तो एक प्रकार से पाकिस्तान के सामने भारत का समर्पण था क्योंकि भारत की सेनाओं ने पाकिस्तान के जिन प्रदेशों पर अधिकार किया था अब उन्हें छोड़ना पड़ा। परन्तु शिमला समझौते का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि दोनों देशों ने अपने विवादों को आपसी बातचीत से निपटाने का निर्णय किया। इसका यह अर्थ हुआ कि कश्मीर विवाद को अंतरराष्ट्रीय रूप न देकर, अन्य विवादों की तरह आपसी बातचीत से सुलझाया जाएगा।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "HISTORY OF RAJ BHAVAN BUILDING (BARNES COURT) EMERGENCE OF AN EDIFICE". Government of India. मूल से 17 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 October 2017.
  2. "शिमला समझौते पर भारी पड़ी थी बेनज़ीर की खूबसूरती". मूल से 2 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 अक्तूबर 2018.

भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता पर हस्ताक्षर कब हुआ?

2 जुलाई 1972 को दोनों देशों के बीच समझौता हुआ. इसे ही शिमला समझौता के नाम से जाना जाता है. इस समझौते में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ शिमला आए थे.

शिमला समझौता 1972 के दौरान भारत का प्रधानमंत्री कौन था?

इसी पृष्ठभूमि में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति ल्फ़िक़ार अली भुट्टो शिमला में मिल रहे थे. बाद में जो यहां समझौता हुआ उसे शिमला समझौता कहा गया. समझौते के दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर की तारीख़ 2 जुलाई 1972 दर्ज है.

शिमला समझौता कब कब हुआ था?

2 जुलाई 1972शिमला समझौता / तारीखnull

शिमला समझौता कब और क्यों हुआ था?

यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच दिसम्बर 1971 में हुई लड़ाई के बाद किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के 90,000 से अधिक सैनिकों ने अपने लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के रूप में पाकिस्तानी शासन से मुक्ति प्राप्त हुई थी।

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