सांप्रदायिकता क्या है भारत में सांप्रदायिकता के कारणों की चर्चा कीजिए? - saampradaayikata kya hai bhaarat mein saampradaayikata ke kaaranon kee charcha keejie?

सांप्रदायिकता का अर्थ (sampradayikta kya hai)

sampradayikta arth karan dushparinam;सांप्रदायिक से अभिप्राय अपने धार्मिक संप्रदाय से भिन्न अन्य संप्रदाय अथवा संप्रदायों के प्रति उदासीनता, उपेक्षा, दयादृष्टि, घृणा विरोधी व आक्रमण की भावना है, जिसका आधार वह वास्तविक या काल्पनिक भय है कि उत्त संप्रदाय हमारे संप्रदाय को नष्ट कर देने या हमे जान-माल की हानि पहुंचाने के लिए कटिबद्ध है। 

व्यापक अर्थ मे सांप्रदायिकता एक संकीर्ण मानसिक सोच है जो अपने समूह को श्रेष्ठ मानती है और उसके हितो के संवर्धन के लिये कोशिश करती है। यह धर्म, जाति, भाषा, स्वजातीय या क्षेत्रीय मे से किसी भी आधार पर हो सकती है किन्तु एक निश्चित अर्थ मे सांप्रदायिकता का आधार धर्म है। सांप्रदायिकता वस्तुतः विभिन्न धर्मावलम्बियों मे विद्वेष की भावना है। आधुनिक भारतीय समाज सांप्रदायिकता व जातिवाद के जहर से सर्वाधिक व्याधिग्रस्त है जो वस्तुतः धर्म व जाति के व्युत्पन्न (बाई प्रोजेक्ट है। 

प्रो. बलराज मधोक के शब्दों मे ," संप्रदाय कुछ धार्मिक वर्गो का राष्ट्रीय वर्ग अथवा अन्य धार्मिक वर्गो की कीमत पर अपने विशेष राजनीति अधिकार एवं अन्य अधिकारों की मांग करता है।" &lt;/p&gt;&lt;h2 style="text-align:center"&gt;भारत मे सांप्रदायिकता के कारण (sampradayikta ke karan)&lt;/h2&gt;&lt;div&gt;सांप्रदायिकता के कारण इस प्रकार है--&lt;/div&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;1. ऐतिहासिक कारण&lt;/b&gt;&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;इस्लाम धर्म बाहर से भारत मे आया। मुसलमानों ने यहाँ अपना शासन कायम किया। सत्ता और तलवार के जोर पर उन्होंने लोगो से जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन करने की प्रक्रिया शुरू की। इसी समय से मुसलमानों के प्रति विरोध की भावना उत्पन्न हुई। औरंगजेब तथा अन्य मुस्लिम शासको ने अनेक हिन्दुओं को जबर्दस्ती मुसलमान बनाया। इससे हिन्दुओं के मन मे मुसलमानों के प्रति घृणा उत्पन्न हुई। बाद मे स्वतंत्रता आन्दोलन के समय मुस्लिम लीग की स्थापना मुसलमानों द्वारा की गई और उनकी मांग के आधार पर धार्मिक दृष्टि से पाकिस्तान के निर्माण की माँग अंग्रेजों ने मानकर देश का विभाजन किया, जो अनेक लोगो को पसंद नही आया। फिर विभाजन के समय दंगे, आगजनी और बलात्कार की घटनायें हुई और अनेक हिन्दू अपने ही देश मे शरणार्थी हो गये।&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;2. राजनीतिक दलो द्वारा मुसलमानों को वोट बैंक के रूप मे प्रयोग करना&lt;/b&gt;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;स्वतंत्रता के बाद वोट की राजनीति के कारण भी मुसलमान राष्ट्र की मुख्य धारा मे सम्मिलित नही हो पाए। कुछ राजनीतिक दलो ने इन की राजनीति के कारण अपने आपको मुसलमानों का सबसे अधिक शुभेच्छु बताने की कोशिश की ताकि वह मुसलमानों के वोट प्राप्त कर सके। काफी समय तक इस वोट बैंक पर काँग्रेस का एकाधिकार रहा। इसके बाद जनता पार्टी और जनता दल ने कांग्रेस के इस एकाधिकार को तोड़ा। वर्तमान मे अपने आप को धर्म निरपेक्ष कहने वाले अनेक दल इस वोट बैंक को अपने अधिकार मे करने के लिए प्रयासरत है। वोटों की इस राजनीति ने मुसलमानों को राष्ट्रीय समरसता की धारा मे सम्मिलित नही होने दिया।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;3. मुसलमानों का आर्थिक पिछड़ापन&amp;nbsp;&lt;/b&gt;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;अंग्रेजी शासन काल से ही यह वर्ग आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा रहा। इस पिछ़ड़ेपन के कारण इस वर्ग का आधुनिकीकरण नही हो पाया। परिणामतः नए विचारों की हवा इस समुदाय मे प्रविष्ट नही हो पाई और मुसलमानों के मुल्ला-मौलवियों ने इस वर्ग को राष्ट्रीय मुख्यधारा मे सम्मिलित नही होने दिया तथा फतवों की राजनीति जारी रही। राजनीतिक दलों से वोट के सौदे इनके द्वारा किए जाने लगे।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;&lt;b&gt;4. मनोवैज्ञानिक कारण&amp;nbsp;&lt;/b&gt;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;सत्य सनातन और इस्लाम के अनुयायियों मे परस्पर घृणा, विरोध, विद्वेष एवं पृथक्करण की भावनाये विकसित हो गई है। इन भावनाओं के विकसित होने का कारण प्राचीन काल से चली आ रही भ्रांतियाँ और पूर्वाग्रह है। जहाँ हिन्दू मुसलमानों की राष्ट्रीय वफादारी मे शंका व्यक्त करते है, वहीं कुछ मुसलमान भी अपनी करतूतों से इस शंका को समय समय पर पुष्ट करते रहते है।&lt;script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"&gt; 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सांप्रदायिकता के दुष्परिणाम या दुष्प्रभाव 

sampradayikta ke dushparinam;सांप्रदायिकता एक विश्वव्यापी समस्या है जिससे कमोवेश दुनिया के प्रायः सभी बहुल समाज जूझ रहे है। जो बहुधर्मी समाज अपने समुदायों के बीच सामंजस्य व सौहार्द्र कायम रखने मे सफल रहे है, वे भी ब्राह्रा समाजों की धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद से अपनी आन्तरिक शांति को खतरा महसूस कर रहे हैं। अतीत मे धार्मिक कट्टरता एवं धर्म के प्रचार एवं प्रसार को लेकर विश्व मे अनेक लड़कियां लड़ी गई जो विज्ञान व टेक्नालॉजी के विकास के साथ विगत शताब्दियों मे कुछ थम गई थी, लेकिन अब ये पुनः उभर रही है जिससे भारत ही नही अपितु पूरे विश्व मे शांति व व्यवस्था कायम रखने मे कठिनाई महसूस की जा रही है। दरअसल सांप्रदायिकता एक प्रकार का जहर है जो सभी के विवेक पर पर्दा डाल देता है, उनकी सोच को समुदाय के हित तक सीमित कर देता है। परिणामस्वरूप व्यक्ति अपने समुदाय के हित साधन मे लग जाता है। इनता ही नही वह अन्य समुदाय या समुदायों के हित को क्षति पहुँचाने की भी कोशिश करता है। समुदायों के बीच द्वेष घृणा व संघर्ष से न केवल व्यक्तियों व समुदायों की प्रगति अवरूद्ध होती है अपितु पूरे समाज व देश की प्रगति भी ठप्प पड़ जाती है। सांप्रदायिकता के दुष्परिणाम इस प्रकार है---

1. आपसी द्वेष 

सांप्रदायिकता से आपसी द्वेष को बढ़ावा मिलता है। यह द्वेष कभी-कभी भयंकर रूप धारण कर देश मे आतंक और मारकाट फैला देता है।

2. आर्थिक हानि 

सांप्रदायिक झगड़े समाज मे अशांति व अव्यवस्था का मौल पैदा करते है जिससे लूटपाट, मारपीट व झगड़ा फसाद की स्थिति निर्मित होती है, मिलों, कारखानों और औद्योगिक व्यावसायिक संगठनों मे कामकाज ठप्प पड़ जाता है, बैंक और बाजार बंद हो जाते है, व्यापार, वाणिज्य व अन्य आर्थिक गतिविधियाँ थम जाती है। परिणामस्वरूप देश की आर्थिक प्रगति अवरूद्ध होती है। 

2. जन हानि

सांप्रदायिकता के कारण उत्पन्न दंगो मे आर्थिक हानि के हाथ ही जन की भी हानि होती। सांप्रदायिकता दंगो मे अनेक परिवार उजड़ जाते है और करूणापूर्ण और मार्मिक दृश्य उपस्थित हो जाता है।

4. राजनीतिक अस्थिरता 

सांप्रदायिक दंगो के परिणामस्वरूप देश मे राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न होती है जो देश के विकास मे बाधक है।

5. राष्ट्रीय एकता मे बाधा 

सांप्रदायिकता राष्ट्रीय एकता की घोर शत्रु है। प्रकारांतर से संपूर्ण समाज और राष्ट्र के लिए नुकसान देह है।

6. राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा 

सांप्रदायिकता के कारण होने वाले दंगे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे मे डाल देते है।

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सांप्रदायिकता क्या है भारत में सांप्रदायिकता के कारण?

सांप्रदायिकता का अर्थ (Meaning of Communalism) 'सांप्रदायिकता' से तात्पर्य उस संकीर्ण मनोवृति से है, जो धर्म और संप्रदाय के नाम पर पूरे समाज तथा राष्ट्र के व्यापक हितों के विरुद्ध व्यक्ति को केवल अपने व्यक्तिगत धर्म व संप्रदाय के हितों को प्रोत्साहित करने और उन्हें संरक्षण देने की भावना को महत्व देती है।

सांप्रदायिकता के कारण क्या है?

sampradayikta arth karan dushparinam;सांप्रदायिक से अभिप्राय अपने धार्मिक संप्रदाय से भिन्न अन्य संप्रदाय अथवा संप्रदायों के प्रति उदासीनता, उपेक्षा, दयादृष्टि, घृणा विरोधी व आक्रमण की भावना है, जिसका आधार वह वास्तविक या काल्पनिक भय है कि उत्त संप्रदाय हमारे संप्रदाय को नष्ट कर देने या हमे जान-माल की हानि पहुंचाने के ...

सांप्रदायिकता क्या है भारत में सांप्रदायिकता की समस्या के समाधान हेतु सुझाव दीजिए?

सांप्रदायिकता के अंतर्गत वे सभी भावनाएं व क्रियाकलाप आ जाते हैं. जिनमें धर्म एवं भाषा के आधार पर किसी समूह विशेष के हितों पर बल दिया जाए, उन हितों को राष्ट्रीय हितों से भी अधिक प्राथमिकता दी जाए तथा उस समूह में पृथकता की भावना उत्पन्न की जाये या उसको प्रोत्साहित किया जाए.

सांप्रदायिकता से आप क्या समझते हैं इसके मुख्य तत्व बताएं?

सांप्रदायिकता से अर्थ उस विचारधारा से है, जिसमें व्यक्ति अपने धर्म को ही श्रेष्ठ समझता है और दूसरे धर्म को अपने धर्म से कमतर आंकता है। अपने धर्म के प्रति कट्टरता का भाव अपनाना तथा अपने धर्म को अन्य धर्म को धर्मों से ऊंचा मानना ही सांप्रदायिकता है।

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