समावेशी शिक्षा में शिक्षक की भूमिका pdf - samaaveshee shiksha mein shikshak kee bhoomika pdf

उत्तर : समावेशी शिक्षा विशेष बालकों तथा सामान्य बालकों को एक साथ गुणवत्तापूर्ण, समग्र व समावेशित शिक्षण की व्यवस्था है। एडम्स ने शिक्षण को त्रिमुखी प्रक्रिया बताया है जिसके एक कोण पर शिक्षक दूसरे पर बालक व तीसरे पर विषय या पाठ्यक्रम हैं–

निसंदेह शिक्षण की प्रक्रिया में शिक्षक, बालक तथा विषय तीनों पक्ष अपना–अपना महत्त्व रखते हैं परन्तु शिक्षण में शिक्षक तथा अधिगम में बालक की भूमिका होती है । विषय या पाठ्यक्रम शिक्षण–अधिगम का माध्यम है।

समावेशी विद्यालय में कक्षा शिक्षक तथा स्रोत (रिसोर्स) शिक्षक का कार्य केवल शिक्षण देना नहीं है । यह कार्य तो विषय शिक्षक भी पूर्ण कर लेते हैं । कक्षा शिक्षक कक्षा विशेष की व्यवस्था का भी उत्तरदायी है तथा स्रोत शिक्षक स्रोत कक्ष की व्यवस्था का भी जिम्मेदार है | अतः शिक्षण के अतिरिक्त भी समावेशी विद्यालय में इन दोनों की भूमिका अधिक महत्त्व रखती है |

(अ) कक्षा शिक्षक की भूमिका

कक्षा शिक्षक किसी विशेष स्तर या वर्ग का प्रभारी शिक्षक होता है जैसे कक्षा 8वीं, 9वीं, 5वीं, 7वीं का कक्षा शिक्षक। कक्षा शिक्षक अपने प्रभार की कक्षा की सभी प्रकार की व्यवस्थागत जिम्मेदारियों को पूर्ण करता है। वह कक्षा विशेष के छात्रों के प्रवेश तथा नियमित उपस्थिति, उनकी बैठक व्यवस्था, उनकी समय–सारणी (टाइमटेबल) उनमें अनुशासन व्यवस्था, उनके प्रगति पत्र (रिकॉर्ड), उनके मूल्यांकन के रिकॉर्ड, उनकी पाठ्यसहगामी गतिविधियों के अतिरिक्त छात्र की वैयक्तिक, शैक्षिक समस्याओं के निराकरण के लिए भी उत्तरदायी होता है ।

समावेशी विद्यालय में कक्षा शिक्षक की भूमिका और महत्त्वपूर्ण इसलिए हो जाती है क्योंकि उसे सामान्य छात्रों के साथ–साथ विशेष आवश्यकताओं वाले निःशक्त बालकों का भी ध्यान रखना होता है । समावेशी शिक्षा में कक्षा शिक्षक की भूमिका निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट है |

(1) कक्षा प्रबंधन– कक्षा शिक्षक को निःशक्त बालकों की बैठक व्यवस्था पर ध्यान देना होता है। श्रवणबाधित बालकों को सामने की सीटों पर बैठाना ताकि वे सरलता से कक्षा शिक्षकीय बातों को सुन सके आवश्यक है । मंद दृष्टि वाले बालकों के लिए भी कक्षा में सामने की बैठक व्यवस्था कक्षा शिक्षक को करनी चाहिए ताकि श्यामपट (ब्लेक बोर्ड) पर लिखी बातों को पढ़ने में उन्हें कठिनाई न हो । मंदबुद्धि वाले बालकों तथा धीमी गति से अधिगम करने वाले बालकों के साथ एक सामान्य उपयुक्त संगी–साथी को बैठाने से तथा उसे सहायता करने से कक्षा शिक्षक को सुविधा होती है । अस्थि विकलांग बालक हेतु उसके बैशाखी, व्हीलचेयर, ट्रायसिकल आदि को कक्षा के बाहर रखने की व्यवस्था तथा कक्षा में उसकी सहायता के लिए बालक की व्यवस्था भी कक्षा शिक्षक को करनी चाहिए। कक्षा शिक्षक को कक्ष में प्रकाश तथा वायु हेतु भी व्यवस्था करनी चाहिए। कक्षा में आधुनिक शिक्षोपकरणों के रखरखाव, कक्षा के बालकों के अभिलेख (रिकॉर्ड) की फाइलों को व्यवस्थित रखने आदि उत्तरदायित्व भी कक्षा शिक्षक के लिए। कक्षा में चाक डस्टर ब्लेकबोर्ड, पाइंटर तथा प्रदर्शन योग्य सामग्री के टांगने आदि का कार्य भी कक्षा शिक्षक की जिम्मेदारी है।

कोई छात्र यदि नियमित रूप से अनुपस्थित रहता है या शाला से भागता रहता है तो उसके कारणों की पड़ताल करना, बीमार या दुर्घटना ग्रस्त बालक को तुरंत उपचार हेतु भेजना इत्यादि बातें भी कक्षा प्रबंध के अंतर्गत कक्षा शिक्षक की भूमिका को व्यक्त करती है।

(2) छात्रों की वैयक्तिक विभिन्नताओं, विशेष आवश्यकताओं की पहचान– समावेशी शिक्षा में विशेष आवश्यकताओं वाले बालकों की भिन्न–भिन्न आवश्यकताओं, समस्याओं, विशेषताओं, लक्षणों की पहचान के अनुरूप उनके लिए शैक्षिक व अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करनी होती है। श्रवण बाधित, दृष्टिबाधित, अस्थिबाधित, मंदबुद्धि, धीमी गति से सीखने वाले तथा वंचित असविधाग्रस्त वर्ग के बालकों की अपनी–अपनी शारीरिक मानसिक सांस्कृतिक, सामाजिक कमियाँ होती हैं। एक अच्छे कक्षा शिक्षक के लिए आवश्यक है कि वह अपनी कक्षा में प्रवेशित इन वर्गों के बालकों की कमियों तथा खूबियों (गुणों) का पहचाने तथा उसके अनुसार आवश्यक होने पर चिकित्सक, अभिभावकों या स्रोत शिक्षक को प्रकरण संदर्भित करे।

साथ ही कक्षा शिक्षक को विशेष व सामान्य बालकों की वैयक्तिक विशेषताओं/विभिन्नताओं की पहचान होनी चाहिए । विशेषकर मानसिक व संवेगात्मक भिन्नताएं अधिगम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बालकों की बुद्धिलब्धि, उनकी रुचियाँ, स्वभाव, अभिवृत्तियों की पहचान कर कक्षा शिक्षक उनके आधार पर शिक्षण विधि का प्रयोग कर सकता है |

कुछ विशिष्ट व सामान्य बालकों में कुछ खूबियाँ भी होती हैं जैसे अंधे या अस्थि विकलांगता वाले कुछ बालक अच्छे गायक होते हैं. कुछ अच्छे वादक होते हैं । कुछ सामान्य बालक भी सृजनशील तथा कलात्मक रुचि के होते हैं। ऐसे बालकों की पहचान कर कक्षा शिक्षक को उन बालकों की प्रतिभा का उपयोग पाठ्यसहगामी क्रियाओं में कर उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

(3) बालक की आर्थिक स्थिति तथा पारिवारिक पृष्ठभूमि की पहचान– समावेशी विद्यालय के बालक विभिन्न परिवारों तथा समुदायों से आते हैं। उन पर वंशानुक्रम व पर्यावरण का प्रभाव रहता है । कुछ बालक संस्कारविहीन दलित निर्धन परिवार के, कुछ अपराधी परिवारों से होते हैं। आर्थिक स्थिति व पारिवारिक पृष्ठभूमि यदि समस्यात्मक होगी तो ऐसे बालकों की अनेक आर्थिक पारिवारिक समस्याएं भी होंगी। शाला में चोरी करने वाले,शाला से भागने वाले, छात्रों से झगड़ा करने वाले, कक्षा में अनुशासनहीनता करने वाले या अन्य समस्यात्मक बालकों की पहचान कक्षा शिक्षक के लिए आवश्यक होती है । इस पहचान का उपयोग बालक के व्यक्तित्व में सुधार तथा कक्षा व शाला में अनुशासन व व्यवस्था स्थापित करने में किया जा सकता है ।

(4) प्रोत्साहन भरा व्यवहार तथा बाधितों–वंचितों के प्रति संवेदनशीलता– अच्छा कक्षा शिक्षक बालकों का मित्र व मार्गदर्शक होता है । उसे सभी बालकों–विशेषकर अपंग, बाधित व असुविधाग्रस्त बालकों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए। उन्हें प्रताड़ित या अपमानित नहीं करना चाहिए । कक्षा शिक्षण में इन बालकों के लिए प्रोत्साहन,प्रशंसा,प्रेरणा उनके अधिगम में सहायता करती है। कक्षा अनुशासन के नाम पर किसी भी छात्र को दंडित नहीं किया जाकर धीरे–धीरे स्वानुशासन की भावना ऐसे छात्रों में उत्पन्न करनी चाहिए । कक्षा शिक्षक द्वारा दिये गए छोटे–छोटे पुरस्कार पारितोषिक (जैसे पेन, पैंसिल, रबर, शार्पनर, स्केल, पुस्तक, कहानी की सचित्र पुस्तक आदि) पाकर सभी छात्र शिक्षक को मित्र तथा हितैषी मानने लगते हैं। यह भावना कक्षा शिक्षक को बालकों के लिए नेता (हीरो) बनाने में सहायक है तथा छात्रों को उनका अनुगामी बनाती है।

(5) अनुकूल शिक्षण रणनीतियों के प्रयोग में सहायता– कक्षा शिक्षक कक्षा विशेष के प्रभार के साथ–साथ विषय शिक्षक का कार्य भी करता है। विषय शिक्षक की भूमिका के सफल निर्वाह हेतु कक्षा शिक्षक को छात्रों की वैयक्तिक विभिन्नता की पहचान का उपयोग विषय शिक्षण में करने हेतु उपयुक्त शिक्षण रणनीतियों का उपयोग करना चाहिए। कक्षा शिक्षक की भूमिका में सफलता उसे अच्छे अध्यापक की भूमिका में सहायता प्रदान करती है। योजना विधि, क्रियात्मक शिक्षण, सहायक शिक्षण सामग्रियों का उपयोग, शिक्षक तकनीक का उपयोग, प्रश्न कला, आदि का उपयोग कर विशेष व सामान्य दोनों प्रकार के बालकों हेतु कक्षा शिक्षक अधिगम अनुभवों के निर्माण में सहायक है।

(6) समावेशी शिक्षा के सिद्धान्तों के अनुसार कार्य– समावेशी विद्यालय में बिना किसी भेदभाव के निःशक्त बालक सामान्य बालकों के साथ–साथ शिक्षा अर्जित करते हैं । इस समावेशी शिक्षा का प्रमुख सिद्धान्त है कि विशेष स्कूलों में निःशक्त बालकों को शिक्षा देने से अलगाव या पृथक्करण की भावना उत्पन्न होती है जो ऐसे बालकों की सामाजिक समायोजन के विरुद्ध है अतः इन बालकों को समाज की मुख्य धारा में सम्मिलित करने के लिए उन्हें अन्य सामान्य बालकों के साथ शिक्षित किया जाए। इसलिए समावेशी विद्यालय में कार्यरत कक्षा शिक्षकों को अपनी–अपनी कक्षा के निःशक्त बालकों को बिना भेदभाव या अलगाव के समाज की मुख्य धारा में लाने की जिम्मेदारी रहती है।

(7) निःशक्त व सामान्य बालकों के पालकों/अभिभावकों से जीवंत संपर्क– समावेशी विद्यालय के कक्षा शिक्षकों को अपनी कक्षा के छात्रों के पालकों या अभिभावकों से जीवंत संपर्क (फोन या सेलफोन पर नहीं बल्कि प्रत्यक्षतः) रखकर उन्हें छात्र की समस्याओं, प्रगति तथा उपलब्धियों आदि से परिचित कराते रहना चाहिए। कभी किसी छात्र विशेष के संबंध में कोई आपत्तिजनक बात सामने आए तो छात्र के घर जाकर उनके पालकों/अभिभावकों को सुधारात्मक दृष्टि से विश्वास में लेकर अवगत कराना चाहिए। पैरेंट्स मीट (पालक शिक्षक बैठक) में भी उन्हें छात्र की न केवल आपत्तिजनक वरण उपलब्धियाँ प्रगति से भी अवगत कराना चाहिए।

(8) पाठ्यसहगामी क्रियाओं में सहभागिता हेतु छात्रों को प्रोत्साहित करना – कक्षा शिक्षक का दायित्व है कि अपनी कक्षा के छात्रों (विशेष व सामान्य) को उनकी रुचि, योग्यता, क्षमता, प्रतिभा आदि के अनुरूप भाषण, कविता पाठ, निबंध लेखन, वाद–विवाद, नाटक मंचन, शाला के बाहर शैक्षणिक यात्रा, शाला के समीप सामुदायिक कल्याण कार्य आदि के लिए अभिप्रेरित करे। उसे छात्रों को प्रोत्साहित देते रहना चाहिए कि तुम यह कर सकते हो। इससे छात्र के आत्मविश्वास तथा उत्साह में वृद्धि होगी। जो निःशक्त जन इनडोर या आउटडोर जिस प्रकार का खेल खेल सकने में यदि समर्थ हों तो उन्हें इस हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए । कक्षा शिक्षक को समावेशी शिक्षा के छात्र के सर्वांगीण (शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक व सामाजिक) के लक्ष्य की पूर्ति में प्रयत्नशील होना चाहिए।

(9) मापन मूल्यांकन विधियों का उपयोग– विद्यालय में उपलब्ध उपलब्धि परीक्षण, बुद्धि परीक्षण, व्यक्तित्व परीक्षण, रुचि परीक्षण, अभिवृत्ति परीक्षण, अभियोग्यता परीक्षणों का उपयोग अपने छात्रों पर कर उनका मापन करना तथा उसका अभिलेख रखना चाहिए। इसी प्रकार सतत समग्र मूल्यांकन की अवधारणा के अनुसार कक्षा में दैनिक शिक्षण मूल्यांकन प्रश्नों द्वारा तथा मासिक, त्रैमासिक, वार्षिक परीक्षाओं के आयोजन द्वारा करवाकर सभी विषयों की उपलब्धि का अभिलेख संधारित करना चाहिए।

(10) निर्देशन व मार्गदर्शन– समावेशी शाला में छात्रों को परामर्श देने तथा उनका मार्गदर्शन करने हेतु पृथक से विशेषज्ञ की सेवाएं न होने पर वह कक्षा शिक्षक ही है जो अपने छात्रों को वैयक्तिक, शैक्षिक, व्यावसायिक निर्देश व परामर्श दे सकता है। निःशक्त छात्रों के सामने भविष्य में आजीविका (रोजी कमाने) की समस्या भी आएगी अत: कौनसा व्यवसाय किस छात्र की शारीरिक मानसिक क्षमताओं के अनुरूप है इसका आकलन कर छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा की सलाह कक्षा शिक्षक को देनी चाहिए ।

(ब) स्रोत शिक्षक की भूमिका

समावेशी विद्यालयों में अध्ययनरत, दृष्टिबाधित, श्रवणशक्ति बाधित, अस्थि बाधित, मंद बुद्धि तथा धीमे अधिगमकर्ताओं आदि की कठिनाइयों व कमियों के आकलन तथा उनके सही ढंग से उपचार के प्रयास के लिए स्रोत शिक्षक (रिसोर्स टीचर) नियुक्त होते हैं । अलग–अलग क्षतिग्रस्त, अपंग, विकलांग चाहे वे शारीरिक रूप से दोषमुक्त हों या मानसिक रूप से या फिर पढ़ने–लिखने में असमर्थ हो या भावनात्मक रूप से क्षुब्ध–इन सभी के लिए अलग–अलग प्रशिक्षित स्रोत शिक्षकों की आवश्यकता होती है जो अपने–अपने कार्य के विशेषज्ञ होते हैं। जब समावेशी विद्यालयों के कक्षा शिक्षक या विषय शिक्षक निःशक्त बालकों को पहचानने या उनकी व्यावहारिक विशेषताओं आदि की पहचान करने में असमर्थ होते हैं तो वह उसे उपचार के प्रयोजन से स्रोत शिक्षक के पास भेज देते हैं।

समावेशी विद्यालयों में स्रोत शिक्षकों की भूमिका निम्नानुसार है–

(1) प्रवेश प्रक्रिया– समावेशी शाला में छात्रों के प्रवेश की प्रक्रिया में स्रोत शिक्षक निःशक्त छात्रों के प्रवेश हेतु चयन में विशेषज्ञ के रूप से उपस्थित रहकर यह सुनिश्चित करते हैं कि निःशक्त छात्र समावेशी विद्यालय में प्रवेश हेतु कितना अनुकूल है । जो पूर्णत: बधिर या अंधे हों उन्हें विशेष विद्यालयों में प्रवेश हेतु संदर्भित किया जा सकता है तथा अन्य सामान्य रूप से बाधित बालकों को स्रोत शिक्षक अपने समावेशी शाला में प्रवेश के लिए अनुशंसित कर सकता है । इस प्रवेश प्रक्रिया के कारण भविष्य में ऐसे छात्रों के संबंध में किसी समस्यात्मक स्थिति से बचाव हो जाता है । प्रवेश के साथ ही कक्षा के वर्गीकरण में भी स्रोत शिक्षक सहायक हो सकता है।

(2) नि:शक्त छात्रों का परीक्षण कर उनकी पहचान करना– स्रोत शिक्षक अपने अनुभव, प्रशिक्षण के द्वारा तथा छात्र की अभियोग्यताओं के मापन के द्वारा उसकी निःशक्तता के संबंध में स्थिति को बता सकता है। बुद्धि परीक्षण द्वारा मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि की जाँच करना, दृष्टि क्षमता या श्रवण क्षमता का परीक्षण उपकरणों से करना, परीक्षा लेकर अस्थि विकलांग की जाच करना अथवा विभिन्न निःशक्त जनों के शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक लक्षणों से उनकी निःशक्तता की स्थिति का मापन करना स्रोत शिक्षक अपने अनुभव से कर पाता है। उदाहरण के लिए दृष्टिबाधित छात्र विषयवस्तु को बहुत पास से या बहुत दूर से पढ़ने का प्रयास करते हैं जिससे स्रोत शिक्षक उनकी निकट दृष्टि या दूर की दृष्टि की स्थिति का अनुमान लगा सकते हैं।

(3) चिकित्सा, उपकरण सहायता आदि हेत संदर्भित करना – स्रोत शिक्षक का यह दायित्व है कि निःशक्त बालकों की पहचान के बाद यदि उसे लगता है कि उसकी चिकित्सा से बाधित बालक की कमी कम हो सकती है अथवा उसके उपचार से वह सामान्य बालक जैसा हो सकता है तो स्रोत शिक्षक को उस बालक को आगे की चिकित्सा हेतु चिकित्सक के साथ भेजना चाहिए । इसी प्रकार कृत्रिम अंग या श्रवण यंत्र, चश्मे, वैशाखी, ट्रायसिकल आदि से निशक्त बालक के निष्पादन व क्षमता में वृद्धि होती हो तो स्रोत शिक्षक को चाहिए कि वह निःशक्त छात्र व उनके अभिभावकों को इस बाबत सलाह दे।

(4) संसाधन कक्ष का संधारण– समावेशी विद्यालय में स्रोत कक्ष या संसाधन कक्ष का उपयोग निःशक्त छात्रों को संसाधन, सहायक उपकरण, शिक्षण सामग्री आदि उपलब्ध कराना है । स्रोत शिक्षक का दायित्व है कि वह संसाधन कक्ष की साज सज्जा तथा सम्पन्नता के लिए प्रयास करें। संसाधन कक्ष के समावेशी विद्यालयों में स्थापना हेतु शासकीय अनुदान भी दिया जाता है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान ने एक पुस्तिका भी प्रकाशित की है जिसमें संसाधन कक्ष में दी गई सुविधाओं, उपस्करों की सूची तथा उनकी अनुमानित लागत भी दी गई है । समावेशी शालाओं में स्रोत शिक्षक को मानक स्वरूप के संसाधन कक्ष का निर्माण, साज–सज्जा तथा कक्ष के निरंतर उपयोग का दायित्व वहन करना चाहिए ।

(5) केस स्टडी तथा क्रियात्मक अनुसंधान करना– एकल अध्ययन (केस स्टडी) किसी व्यक्ति का निकट का गहन अध्ययन होता है । इसमें बालक की पारिवारिक सामाजिक पृष्ठभूमि, जीवन इतिहास, विकलांग के लक्षण व स्वरूप आदि के संबंध में डाटा व सूचनाएं एकत्र कर उनका उपयोग निशक्त बालक के उपचार हेतु किया जा सकता है । स्रोत शिक्षक को समस्यात्मक बालक, बाधित बालक, अलाभप्रद व वंचित वर्ग के किसी बालक का चयन कर उसका एकल अध्ययन करना होता है।

क्रियात्मक अनुसंधान (एक्शन रिसर्च) का प्रयोग अपने समावेशी विद्यालय को व्यवस्थित रूप से सुधारने के उद्देश्य से स्रोत शिक्षक द्वारा किसी समस्या को आधार बनाकर किया गया अनुसंधान कार्य है जैसे वाचन संबंधी त्रुटियाँ करने वाले बालकों का अध्ययन, संस्था में निशक्त बालकों की आने जाने व बैठने के स्थान संबंधी समस्याओं का अध्ययन आदि ।

इसके अतिरिक्त साक्षात्कार विधि का प्रयोग समावेशी विद्यालय में किसी विशेष बालक के अध्ययन हेतु किया जाना चाहिए ।

(6) व्यावसायिक शिक्षा के व्यवसाय के चयन में सहायता– समावेशी विद्यालय में निःशक्त बालकों में उनकी शारीरिक क्षमताओं के अनुकूल उपयुक्त व्यवसाय की व्यावसायिक शिक्षा उनके जीवन कैरियर को देखते हुए दी जानी चाहिए । स्रोत शिक्षक का यह चयन करना होता है कि पैरों के अपंग छात्र के लिए बैठे–बैठे हाथ से काम करने के कौनसे व्यवसाय की शिक्षा उपयुक्त होगी या वे बालक जिन्हें कम नजर आता है या कम सुनाई देता है उन्हें किस व्यवसाय में शिक्षा दी जाए।

(7) मॉनीटरिंग और सुपरविजन– स्रोत शिक्षक को समावेशी विद्यालय में अध्ययनरत बाधित छात्रों को समस्याओं की जानकारी के लिए घूम–घूमकर संस्था का पर्यवेक्षण व अनुश्रवण करना चाहिए और यदि किसी किन्हीं छात्रों हेतु कोई गंभीर किस्म की खामी पाई जाती है तो उसे प्राचार्य या स्कूल प्रशासन के ध्यान में लाकर उसके निराकरण का प्रयास करते रहना चाहिए ।

(8) अपंग छात्रों के अभिभावकों से संपर्क– स्रोत शिक्षक के लिए यह भी आवश्यक है कि वह संस्था में अध्ययनरत निःशक्त बालकों के पालकों अभिभावकों से संपर्क कर बालक हेतु आवश्यक उपकरण सामग्री आदि के लिए परामर्श दे।

(9) निदेशन व मार्गदर्शन– स्रोत शिक्षक विशेष आवश्यकताओं वाले निःशक्त छात्रों का विशेषज्ञ होता है अत: उसे इन छात्रों के लिए सुधार हेतु निदेश व मार्ग देते रहना चाहिए।

(10) विशेष कक्षा का आयोजन– निशक्त छात्रों हेतु अनुकूल शिक्षण देने के लिए स्रोत शिक्षक द्वारा जो बातें वे विषय शिक्षक से नहीं समझ पाए उसे समझाने हेतु विशेष कक्षा भी लेनी चाहिए। जिस व्यवसाय में स्रोत शिक्षक प्रशिक्षित हो उस व्यवसाय की व्यावसायिक शिक्षा भी छात्रों को देनी चाहिए।

समावेशी शिक्षा में शिक्षक की क्या भूमिका होती है?

समावेशी शिक्षा में अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मनुष्य द्वारा किसी व्यक्ति को शिक्षित करना सबसे बड़ी सेवा है इसलिये एक अध्यापक एक अच्छे समाज व राष्ट्र का निर्माता है। उसी के आधार पर एक राष्ट्र की सफलताओं व ऊँचाइयों को मापा जा सकता है। एक अध्यापक शैक्षिक प्रणाली में केन्द्र बिन्दु की भूमिका अदा करता है।

समावेशी शिक्षा से आप क्या समझते हैं समावेशी शिक्षा के लिए शिक्षक में किन शिक्षण संस्थाओं का होना आवश्यक है?

समावेशी शिक्षा में ना केवल बच्चों की शिक्षा में शिक्षक ही सहायक होते हैं बल्कि उन बच्चों के माता-पिता भी उनके शिक्षा में सहयोग प्रदान करते हैं उनकी सहायता करते हैं। जिससे उनके अंदर अधिगम की शक्ति को और भी ज्यादा बढ़ाया जाता है बच्चे अपने माता-पिता के सहयोग पाकर और अच्छी तरह से अधिगम कर पाते हैं

समावेशी विद्यालय की क्या भूमिका है?

समावेशी शिक्षा (अंग्रेज़ी: Inclusive education) एक शिक्षा प्रणाली है। शिक्षा का समावेशीकरण यह बताता है कि विशेष शैक्षणिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक सामान्य छात्र और एक दिव्यांग को समान शिक्षा प्राप्ति के अवसर मिलने चाहिए। इसमें एक सामान्य छात्र एक दिव्याग छात्र के साथ विद्यालय में अधिकतर समय बिताता है।

विद्यालय में समावेशी शिक्षा की व्यवस्था के लिए आप क्या करेंगे?

समावेशी शिक्षा में नियमित कक्षा–कक्ष में विशिष्ट बालकों के शिक्षण में पाठ्यक्रम के स्तर को धीमा करने के स्थान पर दृश्य तथा मौखिक दोनों स्तर पर शिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए विभिन्न ज्ञानेन्द्रिय (आंख, कान, नाक, मुंह व त्वचा) को एक साथ प्रयुक्त कर दृश्य श्रव्य साधनों से सामान्य व विशिष्ट बालकों को शिक्षित किया जाना ...

संबंधित पोस्ट

Toplist

नवीनतम लेख

टैग