- सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले
कारक
- 1. परिवार
- 2. स्कूल
- 3. संवेगात्मक विकास
- 4. शारीरिक स्वास्थ्य
- 5. समुदाय का प्रभाव
- 6. खेल के साथी और मित्रों का प्रभाव
- 7. बौद्धिक विकास
- 8. धार्मिक संस्थाओं का प्रभाव
- 9. मनोरंजन एवं सूचना करने वाले साधन
- 10. आस-पड़ोस का प्रभाव
- 11. सामाजिक आर्थिक स्तर
- 12. माता-पिता का व्यवसाय
- 13. भाई-बहनों का प्रभाव
- 14. परिवार का आकार
- 15. वंशानुक्रम
- 16. समूह का प्रभाव
- 17. माता-पिता एवं बच्चों का सम्बन्ध
- 18. माता-पिता का परस्पर सम्बन्ध
- 19. जन्मक्रम तथा भाई-बहन का आपस में सम्बन्ध
- 20. संघ, संस्था और कैम्प
- 21. सामाजिक व्यवस्था
- 22. दल
- 23. नेतृत्व
- 24. संवेग
- Important Links
- Disclaimer
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक
बालक के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-
1. परिवार
गर्भ से बाहर आते ही शिशु परिवार का सदस्य बनता है तथा तभी से उसका समाजीकरण शुरू हो जाता है। अतः परिवार इस समाजीकरण की प्रक्रिया को किसी न किसी रूप में प्रभावित करता है। परिवार का आकार, माता-पिता का आपसी सम्बन्ध, उनका दृष्टिकोण, परिवार का आर्थिक स्तर, परिवार की सामाजिक दशा, सामाजिक परम्पराएं, रीति-रिवाज आदि परिवार से सम्बन्धित कारक के विभिन्न पक्ष हैं।
अच्छे परिवार सुसमायोजित व्यक्तित्व उत्पन्न करते हैं। पारिवारिक क्लेश, परिवारों का बच्चों में रुचि न लेना, तलाक, अप्रसन्नता, मृत्यु आदि कुसमायोजित व्यक्तित्व को जन्म देते हैं।
साईमंड के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के स्वस्थ, स्थाई, उत्साही और स्नेहमयी माता-पिता हैं तो वह एक अच्छा नागरिक, अच्छा कार्यकर्ता, अच्छा पति, अच्छी पत्नी और एक अच्छा अध्यापक होगा।
परिवार सामाजिक जीवन में तीन कार्य करता है-
(i) परिवार बच्चे के सामाजीकरण का मुख्य साधन है।
(ii) परिवार संस्कृति के संचारण में सहायक होता है।
(iii) परिवार व्यक्तित्व के प्रदर्शन का साधन है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि परिवार के निम्न पक्ष बच्चों के सामाजिक विकास को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं—(a) परिवार का आकार, (b) परिवार के अन्दर सम्बन्ध, (c) परिवार की परम्पराएं, (d) सामाजिक तथा आर्थिक स्तर, (e) परिवार के अन्य सदस्यों के दृष्टिकोण इत्यादि ।
2. स्कूल
परिवार के प्रभाव के पश्चात् स्कूल का प्रभाव भी बच्चों के व्यक्तित्व पर बहुत गहरा पड़ता है। क्योंकि परिवार से निकल कर वे अधिकतर समय स्कूल ही व्यतीत करते हैं। माता-पिता का स्थान स्कूल में अध्यापक ग्रहण कर लेता है। होश संभालने के पश्चात् बच्चे अधिकतर समय तक अध्यापकों के सम्पर्क में ही रहते हैं। इस दृष्टि से बच्चों के प्रति अध्यापकों का दृष्टिकोण बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इसके अतिरिक्त स्कूल बच्चों का सांस्कृतिक ज्ञान और विषयों का ज्ञान प्रदान करता है। यह सफल जीवन के लिये आवश्यक है। एक जिम्मेदार नागरिक को तैयार करने में स्कूल की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। स्कूलों में निरंकुश वातावरण सामाजिक विकास को प्रभावित करता है तथा जनतन्त्रीय वातावरण सामाजिक विकास में सहयोग करता है। संक्षेप में, स्कूल में चलाये जा रहे कार्यक्रम, अध्यापकों और विद्यार्थियों के सामाजिक गुणों व उनके सामाजिक व्यवहारों आदि का प्रभाव बच्चे के सामाजिक विकास पर अत्यधिक होता है।
3. संवेगात्मक विकास
सामाजिक विकास का आधार संवेगात्मक विकास होता है। सामाजिक और संवेगात्मक विकास दोनों ही साथ-साथ चलते हैं। संवेगात्मक रूप से परिपक्व व्यक्ति सामाजिक रूप से परिपक्व होता है। अतः सामाजिक विकास के लिये बच्चों को संवेगों के नियंत्रण के बारे में प्रशिक्षण देना अति आवश्यक होता है।
4. शारीरिक स्वास्थ्य
शारीरिक विकास भी सामाजिक विकास पर अपना प्रभाव छोड़ता है। अस्वस्थ बच्चा कभी भी समाज में स्वयं को समायोजित नहीं कर सकता लेकिन एक स्वस्थ बालक समायोजन में अग्रसर रहता है। अस्वस्थ बच्चों में कई प्रकार की हीन भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं जो कि उनके सामाजिक विकास में बाधा उत्पन्न करती हैं।
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5. समुदाय का प्रभाव
बालक के सामाजिक विकास पर समुदाय का भी प्रभाव पड़ता है। पार्क, खेल का मैदान, अजायबघर, पुस्तकालय आदि बच्चों की स्वतन्त्रता, व्यक्तिगत सुरक्षा आदि को प्राप्त करने के लिये अत्यधिक सहायक होते हैं। समुदाय के ये साधन बच्चों में आज्ञा पालन, ईमानदारी, नम्रता जैसे गुणों का विकास करने में सहायक होते हैं।
6. खेल के साथी और मित्रों का प्रभाव
प्रारम्भ में बच्चा अपने माता-पिता की स्वीकृति के बारे में चिन्तित होता है। लेकिन स्कूल में प्रवेश के पश्चात् वह अपने मित्रों और खेल के साथियों को अधिक महत्त्वपूर्ण मानता है। वह अपने व्यक्तित्व के उन्हीं पक्षों को अधिक विकसित करने का प्रयास करेगा, जिनकी प्रशंसा उनके मित्र या खेल के साथी करते हों। स्कूल में वह दूसरे साथियों के सम्पर्क में आता है और स्वयं के व्यक्तित्व का अनुमान लगाना सीखता है। यह उसके व्यक्तित्व की आधारशिला होती है। वह जितने अनुभव प्राप्त करेगा उतना ही उसका व्यक्तित्व निखरेगा तथा उतना ही अच्छा उसका सामाजिक समायोजन होगा। इसी प्रकार बच्चे की लोकप्रियता उसके व्यक्तित्व को निखारने में बहुत सहायक होती है।
7. बौद्धिक विकास
जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि सामाजिक विकास और बौद्धिक विकास में गहरा सम्बन्ध होता है। बौद्धिक विकास के अन्तर्गत स्वयं को समाज में ठीक प्रकार से समायोजित कर सकता है। इस प्रकार का विकास बच्चे के सामाजिक विकास का एक आवश्यक तत्त्व है। अतः बौद्धिक रूप से विकसित बालक सामाजिक रूप में भी विकसित होगा।
8. धार्मिक संस्थाओं का प्रभाव
बालकों का सामाजिक विकास विभिन्न धार्मिक संस्थानों द्वारा भी प्रभावित होता है। जैसे मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरजाघर आदि धार्मिक संस्थाओं के बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास संभव हो पाता है। अतः धार्मिक संस्थाओं का महत्त्व भी कभी नहीं आंका जाना चाहिए।
9. मनोरंजन एवं सूचना करने वाले साधन
व्यक्ति के जीवन में मनोरंजन और विभिन्न प्रकार की सूचनाओं का भी बहुत अधिक महत्व होता है। अतः मनोरंजन और सूचनाएँ प्रदान करने वाले साधनों पर नजर रखना अनिवार्य है, क्योंकि वे साधन व्यक्ति के व्यक्तित्व को किसी न किसी रूप में प्रकाशित करते रहते हैं। इन साधनों में शामिल हैं- समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन, पत्रिकाएं, पुस्तकें,सिनेमा इत्यादि। बच्चों में अनुकरण की प्रवृत्ति होती है। सिनेमा, टेलीविजन इत्यादि का अनुकरण बच्चे अत्याधिक करते हैं। अतः इन साधनों का चयन बड़ी सावधानी से किया जाना चाहिए।
10. आस-पड़ोस का प्रभाव
सामाजिक विकास का बच्चों का आस-पड़ोस भी हावी रहता है। आस-पड़ोस के वातावरण का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। आस-पड़ोस द्वारा बच्चों को जीवन के स्तर का ज्ञान होता है। दोषपूर्ण आस-पड़ोस से बच्चों का समायोजन भी दोषपूर्ण ही होगा तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी कई समस्याएँ उभरेंगी।
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11. सामाजिक आर्थिक स्तर
सामाजिक विकास पर परिवार का सामाजिक-आर्थिक स्तर का प्रभाव भी आसानी से देखा जा सकता है। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तरों के बच्चों के व्यवहारों में भी भिन्नता देखने को मिलती है। यह भिन्नता धन-व्यय करने, बच्चे को प्रशिक्षण देने, अनुशासन तथा माता-पिता के प्रति दृष्टिकोण आदि में पाई जाती है।
12. माता-पिता का व्यवसाय
माता-पिता का व्यवसाय बच्चों के सामाजिक विकास को भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। बाल्यकाल से प्रारम्भिक वर्षों में यह प्रभाव अधिक होता है, क्योंकि बालक के पालन-पोषण के व्यवसाय का सीधा सम्बन्ध होता है, जैसे उसका भोजन, कपड़े, खेल का सामान इत्यादि। माता-पिता का व्यवसाय बच्चों को सामाजिक सम्मान भी प्रदान करता है।
13. भाई-बहनों का प्रभाव
परिवार में रहते भाई-बहनों का उनके माता-पिता के साथ सम्बन्धों का प्रभाव परिवार में रह रहे बालक पर पड़ता है। जैसे–परिवार का पहला बच्चा माता-पिता को बहुत प्यारा लगता है तथा वह उन पर बहुत आश्रित रहता है। घर से बाहर रहकर बच्चा स्वयं को समायोजित नहीं कर पाता। वह स्वार्थी हो जाता है। लेकिन जब परिवार में दूसरा बच्चा जन्म लेता है तो वह स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगता है।
14. परिवार का आकार
बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में परिवार का आकार बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान करता है। बड़े-बड़े परिवारों के बच्चों का व्यक्तित्व छोटे परिवारों के बच्चों से भिन्न होता है तथा बेहतर होता है। प्रत्येक परिवार में बच्चा अपनी विशिष्ट भूमिका ग्रहण कर लेता है।
15. वंशानुक्रम
वंशानुक्रम बालक के सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि वंशानुक्रम का बालक के सामाजिक विकास पर एक निर्धारित सीमा तक प्रभाव पड़ता है।
16. समूह का प्रभाव
बालक किसी न किसी समूह का सदस्य होता है। समूह का सदस्य होने के कारण वह व्यवहार में दक्ष हो जाता है। इस दक्षता के परिणामस्वरूप उन्हें समाज में समायोजन करने में किसी विशेष कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। अतः टोली के प्रभावों में रहकर बालक प्रशिक्षण प्राप्त कर लेता है।
17. माता-पिता एवं बच्चों का सम्बन्ध
अध्ययनों के आधार पर देखा गया है कि माता-पिता द्वारा किए गए अधिक लाड़-प्यार या जरूरत से कम लाड़ प्यार से बच्चा स्वार्थी एवं अंतर्मुखी स्वभाव का हो जाता है। आगे चलकर ऐसे बच्चे का जीवन बड़ा कष्टमय हो जाता है। वह हमेशा दूसरों पर निर्भर करने लगता है। अधिक प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं। कहा गया है कि माता-पिता का अधिक प्यार बच्चों को बरबाद कर देता है।
इसके विपरीत, जिन बच्चों को माता-पिता का प्यार कम मिलता है वे बच्चे बाल अपराधी हो जाते हैं। वे सोचने लगते हैं कि जब समाज के लोग उनकी परवाह नहीं करते तो वे ही क्यों समाज की परवाह करें। इस तरह वे समाजद्रोही बन जाते हैं। कम प्यार मिलने से बच्चा, खिन्न, ईर्ष्यालु, चिन्तित इत्यादि हो जाता है, जिससे उसका सामाजिक विकास ठीक से नहीं हो पाता। इतना ही नहीं, कभी-कभी यह देखा जाता है कि माता किसी काम के लिए प्रशंसा करती है, किन्तु पिता उसी के लिए सजा देता है। ऐसी अवस्था में बच्चा यह समझ नहीं पाता कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। अतः बच्चें में उचित-अनुचित का ज्ञान नहीं हो पाता और वह समाजद्रोही हो जाता है। माता-पिता को सदा यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों को न अधिक प्यार करें, न कम, बल्कि जरूरत के अनुसार प्यार करें। बच्चों के सामने कभी ऐसी परिस्थिति उपस्थित न की जाए, जिससे उसमें उचित-अनुचित का ज्ञान न हो।
18. माता-पिता का परस्पर सम्बन्ध
माता-पिता के आपसी सम्बन्ध का भी बच्चों के सामाजिक विकास में काफी महत्त्वपूर्ण स्थान है। अगर माता-पिता के सम्बन्ध अच्छे हैं तो बच्चे का सामाजिक विकास भी सुचारु ढंग का होगा, अन्यथा नहीं देखा गया कि झगड़ालू माता-पिता के बच्चे भी झगड़ालू ही होते हैं। अतः सामाजिक विकास सुचारु ढंग से हो, इसके लिए आवश्यक है कि माता-पिता के सम्बन्ध भी सुख शान्ति से परिपूर्ण हों।
19. जन्मक्रम तथा भाई-बहन का आपस में सम्बन्ध
इस सम्बन्ध में मनावैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों का ‘जन्मक्रम’ तथा ‘भाई-बहन के आपसी सम्बन्ध’ का निश्चित रूप से सामाजिक विकास पर असर पड़ता है। इस संबंध में एडलर का कहना है कि परिवार का सबसे बड़ा लड़का जब अकेले रहता। है, तब उसका सामाजिक विकास बहुत तेजी एवं सुचारु ढंग से होता है। इसका कारण यह है कि उसके माता-पिता उसकी ओर काफी ध्यान देते हैं। किन्तु दूसरे बच्चे के आगमन से परिवार के लोगों का ध्यान बड़े बच्चे से हटकर छोटे बच्चे पर चला जाता है। बड़ा बच्चा परिवार के लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ऐसे बहुत सारे गुणों का विकास अपने में कर लेता है, जो सामाजिक विकास के लिए बाधक होते हैं। उसमें अपने छोटे भाई-बहन के प्रति ईर्ष्या की भावना हो जाती है। परिवार के ‘सबसे छोटे बच्चे’ को भ्रष्ट बच्चा कहते हैं। बीच वाले बच्चे का वातावरण ऐसा होता है, जो उसके सामाजिक विकास के लिए कम अनुकूल होता है ।
माता-पिता के लिए आवश्यक है कि अपने बच्चों के समक्ष एक उचित पारिवारिक वातावरण उपस्थित करें, जिससे उनके बच्चों में उपेक्षित होने की भावना का विकास न हो। यह ध्यान में रहे कि उनके बच्चे न आपस में झगड़ें, न एक-दूसरे से डाह करें। इस तरह के उचित पारिवारिक वातावरण के अभाव में बच्चे का सामाजिक विकास सुचारु ढंग से नहीं हो पाता। बच्चे इसके अभाव में बाल अपराधी हो जाते हैं। अतएव पारिवारिक वातावरण पर ध्यान देना अति आवश्यक है।
20. संघ, संस्था और कैम्प
संघ, संस्था और कैम्प का भी सामाजिक विकास पर कम प्रभाव नहीं पड़ता। इनसे भी बच्चों में बहुत सारे ऐसे गुणों का आविर्भाव होता है, जो आगे चलकर सामाजिक विकास में काफी सहायक होते हैं, जैसे- सहकारिता, प्रतियोगिता, अनुशासन का पालन, भौतिकता, निःस्वार्थता इत्यादि। यही कारण है कि हर स्कूल में एन.सी.सी., स्काउट आदि की शिक्षा लड़कों को दी जाती है। इस .तरह कैंप, संस्था, संघ इत्यादि में रहकर बच्चा उसके नियमों का पालन करना, नेता की बातों को मानना आदि सीखता है, जिनका उपयोग आगे के सामाजिक जीवन में अधिक होता है।
21. सामाजिक व्यवस्था
देश की सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक इत्यादि व्यवस्थाओं का प्रभाव भी बच्चों के सामाजिक विकास पर पड़ता है।
22. दल
बालकों में अपने दल के प्रति आस्था देखी जाती है। यह आस्था कभी-कभी बड़ी ब होती है। दल के नेता का आदेश हर बालक मानता है। दल समायोजन, आज्ञा पालन, नवीन मूल्यों आदि भावनाओं को विकसित करता है। दल में रहकर वह अनेक गुणों तथा दुर्गुणों को भी सीखता है ।
23. नेतृत्व
जहाँ कहीं कुछ बालक एक साथ खेलते हैं, उनका सामाजिक व्यवहार एक-सा प्रतीत – नहीं होता। बालकों के समूह में उनका एक नेता अवश्य बन जाता है। वह बालक अपने समूह की आवश्यकता को समझता है और उसके अनुसार कार्य करता है। नेतृत्व का गुण समाज में परिस्थितियों के कारण विकसित होता है। नेता बालक कई परिस्थितियों में नेतृत्व कर सकता है। शारीरिक स्वास्थ्य, भाषा, कार्य कुशलता, वीर-पूजा आदि गुणों से नेतृत्व का विकास होता है।
24. संवेग
बालक का संवेगात्मक व्यवहार उसके सामाजिक विकास को प्रभावित करता है। जिद्दी, नाराज होने वाला, क्रोध करने वाला बालक समूह में ठीक प्रकार से समायोजित नहीं हो पाता। यदि यह कहा जाये कि संवेगात्मक तथा सामाजिक विकास एक-दूसरे के पूरक हैं, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
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