स्कूली पाठ्यक्रम में अनुशासन ज्ञान की प्रकृति क्या है? - skoolee paathyakram mein anushaasan gyaan kee prakrti kya hai?

विद्यालय पाठ्यक्रम में अनुशासनात्मक ज्ञान की क्या भूमिका है?

इसे सुनेंरोकेंअनुशासित वातावरण छात्रों के समक्ष विद्यालय की नियमावलिया, मूल्या आदि प्रस्तुत करता है व जिसको अनपालित करने की अपेक्षा वह छात्रों से करता ह अनुपालन करके छात्र व्यवहार करने के उचित तरीकों का ज्ञान करते हैं।

अनुशासन केंद्रित पाठ्यक्रम क्या है?

इसे सुनेंरोकेंनन् क शब्दों में – ”अपनी भावनाओं और शक्तियों को नियंत्रण के अधीन करना जो अव्यवस्था को व्यवस्था प्रदान करता है”। इस कथन से स्पष्ट है कि अनुशासन के अंतर्गत व्यक्ति को अपनी मुक्त भावनाओं एवं शक्तियों को किसी निर्धारित नियन्ण द्वारा नियमित तथा नियंत्रित करना होता है। अनुशासन समाज में व्यवस्था बनाए रखने में सहायक है।

अनुशासन के कितने प्रकार होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंअनुशासन दो प्रकार के होते हैं। एक बाहर का अनुशासन और दूसरा भीतर का या आंतरिक अनुशासन। बाहर का अनुशासन दिखावटी होता है और भीतर का अनुशासन मौलिक होता है।

आप अनुशासन के बारे में क्या जानते हैं स्कूली पाठ्यक्रम में अनुशासन ज्ञान की प्रकृति और भूमिका का वर्णन करें?

इसे सुनेंरोकेंअनुशासन से अभिप्राय नियन्त्रित एवं आदेशित आचरण से है। कुल मिलाकर नियमों व नियन्त्रण के अनुरूप चलने की प्रक्रिया को अनुशासन कहा जाता है। अनुशासन किसी भी राष्ट्र, समाज एवं संगठन के लिए आवश्यक है। इसके माध्यम से व्यक्ति की भावनाओं और शक्तियों को नियमबद्ध करके दक्षता तथा लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है।

क्या स्कूल के पाठ्यक्रम में विषयगत ज्ञान की भूमिका है?

इसे सुनेंरोकेंज्ञान की प्राप्ति : पाठ्यक्रम छात्रों को आवश्यक ज्ञान प्रदान करता है। छात्रों को यह भी मालूम रहता है कि अमुक स्तर पर उनका ज्ञान अमुक स्तर तक होना चाहिए। पाठ्यक्रम ज्ञान-विज्ञान का साधन है।

अनुशासनात्मक ज्ञान क्या होता है?

इसे सुनेंरोकेंसामान्यतः अन्तः अनुशासनात्मक उपागम एक थीम या मुद्दे के साथ शुरू होता है जिसमें विभिन्न विषय क्षेत्रों को एक दूसरे से जोड़ने या सम्बन्धित करने के लिए एक थीम या मुद्दे का उपयोग किया जाता है। . अनुशासन आसानी से पहचाने जा सकते हैं यद्यपि विषयवस्तु एक दूसरे से अन्तर्सम्बंधित होते हैं।

विद्यालय कितने प्रकार के होते हैं?

विद्यालय के प्रकार

  • केन्द्रीय विद्यालय यह अखिल भारतीय स्तर पर संचालित है जिसमें समान पाठ्यक्रम समान स्तरों पर संचालित होता है यह ”केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड” (C.B.S.E.)
  • नवोदय विद्यालय
  • निजी विद्यालय
  • संस्कृत विद्यालय
  • मिशनरीज स्कूल
  • आर्मी वेलफेयर सोसायटी द्वारा संचालित विद्यालय
  • मिलट्री स्कूल
  • मदरसे

कक्षा में अनुशासन कैसे बनाएं?

1 विधि 1 का 6: एलिमेंटरी (प्राथमिक) स्कूल क्लासरूम के लिए काम करना

  1. दूसरों के साथ सम्मान से पेश आएँ
  2. अपनी देखभाल करें
  3. क्लासरूम की देखभाल करें
  4. कुछ बोलने के लिए या किसी का ध्यान अपनी ओर करने के लिए अपना हाँथ खड़ा करें

विद्यालय में अनुशासन हीनता के क्या कारण है?

इसे सुनेंरोकेंअनुशासहीनता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं— (1) व्यक्तिगत कारण (2) सामाजिक कारण (3) राजनीतिक कारण (4) शैक्षिक कारण (5) मनोवैज्ञानिक कारण। अनुशासनहीनता दूर करने के उपाय।

विद्यालय अनुशासन की अवधारणा

विद्यालय अनुशासन की अवधारणा एवं महत्व को स्पष्ट कीजिए।

    • विद्यालय अनुशासन की अवधारणा –
    • अनुशासन का अर्थ (Meaning of Discipline)-
    • अनुशासन की परिभाषा:
    • अनुशासन का महत्व (Importance of Discipline)
    • Important Links
  • Disclaimer

विद्यालय अनुशासन की अवधारणा –

अनुशासन से अभिप्राय नियन्त्रित एवं आदेशित आचरण से है। कुल मिलाकर नियमों व नियन्त्रण के अनुरूप चलने की प्रक्रिया को अनुशासन कहा जाता है। अनुशासन किसी भी राष्ट्र, समाज एवं संगठन के लिए आवश्यक है। इसके माध्यम से व्यक्ति की भावनाओं और शक्तियों को नियमबद्ध करके दक्षता तथा लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है। अनुशासित समाज किसी भी राष्ट्र विकास का आधार होता है।

अनुशासन का अर्थ (Meaning of Discipline)-

‘अनुशासन’ शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसमें शासन से पहले ‘अनु’ उपसर्ग लगाकर अनुशासन बनाया गया है। यह शब्द ‘शस’ धातु से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है नियम अथवा नियन्त्रण। कुछ विद्वानों का मत है कि अनुशासन लैटिन भाषा के शब्द (Discipulus) डिसाइपुल्स से लिया गया है । इसका अर्थ है सीखना या अनुपालन करना। वर्तमान समय में अंग्रेजी भाषा के शब्द (Discipline) का अर्थ व्यवहारों में नियमबद्धता से लिया जाता है जोकि आत्म नियन्त्रण तथा उचित व्यवहारों से आती है। अत: अनुशासन के संबन्ध में निम्नलिखित परिभाषाएँ दी जा सकती हैं-

अनुशासन की परिभाषा:

रॉस के अनुसार- “अनुशासन अत्यन्त व्यापक अर्थ रखता है। इसे छात्र के चरित्र पर विद्यालय के प्रभाव का वाचक नहीं होना चाहिए। इसका सम्बन्ध केवल बाहरी आचरण से ही नहीं, बल्कि ये आचरण के आन्तरिक उद्देश्यों से भी सम्बन्धित है।”

प्रो. ए.डी. मूलर के अनुसार- “आधुनिक सन्दर्भ में अनुशासन का तात्पर्य है-बालक-बालिकाओं को प्रजातन्त्र के लिए “तैयार करना, अनुशासन का उद्देश्य है। व्यक्तियों का ज्ञानार्जन, शक्तियों, आदतों, रुचियों व आदर्शों के विकास में सहयोग देना जिससे वह स्वयं का, अपने साथियों का व सम्पूर्ण समाज के उत्थान हेतु कार्य कर सकें।”

डब्ल्यू.एम. रायबर्न के अनुसार-“एक विद्यालय में अनुशासन का अर्थ सामान्यतः तथा कार्यों के सम्पादन में विधि, नियमितता एवं आदर्शों की अनुपालना होती है।”

डीवी के अनुसार-“विद्यालय में बौद्धिक विकास के साथ-साथ अन्य प्रकार के विकास भी सहयोगी क्रिया द्वारा समान उद्देश्य के हेतु प्राप्त किये जाते हैं। जिन कार्यों को करने में परिणाम या निष्कर्ष निकलते हैं, उन कार्यों को सामाजिक एवं सहयोगी ढंग से करने पर अपने ही ढंग एवं रूप का अनुशासन उत्पन्न होता है।”

पी.सी. रैन के अनुसार-“जिस प्रकार सेना, जलसेना और सरकार के व्यक्तित्व के लिए अनुशासन आवश्यक है, उसी के समान विद्यालय में ही अनुशासन होना चाहिए।”

टी.पी. नन के अनुसार-“अनुशासन का अभिप्राय अपनी प्रवृत्तियों, भावनाओं तथा शक्तियों को रोककर इस प्रकार नियन्त्रित करना है कि विफलता, अव्यवस्था, प्रभावहीनता व अपव्ययता के स्थान पर सफलता, व्यवस्था, कार्य-कुशलता व मितव्ययिता प्राप्त की जा सके और विकृति के स्थान पर आकृति आ सके अर्थात् मूल प्रवृत्तियों, संवेगों तथा शक्तियों का नियमाधीन करना ही अनुशासन है।”

पेस्टालॉजी के अनुसार- “अनुशासन का आधार प्रेम बताया है।”

अनुशासन का महत्व (Importance of Discipline)

जीवन में अनुशासन का अधिक महत्व है। अनुशासन ही व्यवस्था का प्रतीक है। बिना अनुशासन के कोई भी व्यक्ति अपनी शक्तियों का उचित प्रयोग नहीं कर सकता क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति, समाज एवं प्रत्येक राष्ट्र को अनुशासन की अत्यधिक आवश्यकता होती है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति, उन्नति तभी सम्भव है जब वह पूर्ण रूप से अनुशासन से कार्य करेगा। अनुशासन के अभाव में राष्ट्रों को विभिन्न प्रकार की आन्तरिक एवं बाहरी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अनुशासनहीनता के कारण व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र की समस्त स्फूर्ति और जोश भी नष्ट हो जाते हैं। सच्चा अनुशासन । किसी भी रूप में नकारात्मक नहीं हो सकता है, बल्कि एक सकारात्मक है जो व्यक्ति को उसके व्यक्तिगत विकास के लिए तथा उसके सामाजिक विकास में अपना योगदान देने की क्षमता का विकास करता है। अनुशासन से ही व्यक्ति को अपने उत्तरदायित्वों को पूर्ण करने की प्रेरणा मिलती है जिससे व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली परेशानियों को आसानी से सुलझा सकता है। अनुशासन से ही शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी एवं दक्षता- पूर्ण बनाया जा सकता है।

जॉन ड्यूई के अनुसार- “अनुशासन शक्ति हैं और कार्य को करने के लिए उपलब्ध साधनों का सदुपयोग है। हमें क्या करना है और कैसे करना है तथा किन साधनों से करना है-यह जानना ही अनुशासन है।”

यदि विद्यालय परिवेश में अनुशासन विद्यमान है तो इसका प्रभाव विद्यालय के सम्पूर्ण वातावरण पर पड़ेगा। प्रशासन अनेक प्रकार की परेशानियों से बच सकता है यदि वह सुचारू रूप से चलता रहे। यदि विद्यालय में अनुशासन होगा तो शैक्षणिक प्रक्रिया प्रभावशाली एवं दक्षतापूर्ण बन सकेगी क्योंकि विद्यालयी अनुशासन से छात्रों के चरित्र का निर्माण हो जाता है और वे व्यवहार करने के उचित तरीकों का ज्ञान प्राप्त करते हैं।

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स्कूली पाठ्यक्रम में अनुशासनात्मक ज्ञान की क्या भूमिका है?

इस इकाई का अध्ययन के पश्चात आप- 1.

आप अनुशासन के बारे में क्या जानते हैं स्कूली पाठ्यक्रम में अनुशासन ज्ञान की प्रकृति और भूमिका का वर्णन करें?

अनुशासन से अभिप्राय शिक्षा, चारित्रिक विकास, स्वास्थ्य विकास करके एवं कु- संस्कारों को समाप्त कर व्यक्ति के अंदर उत्तम संस्कार का विकास करना है। अनुाशसन वह चारित्रिक परिष्कार है, जिसको प्राप्त कर आचरण तो सुन्दर होते ही है, जीवन में निपुणता, दक्षता और विकास का भी प्रार्दुभाव होता है।

अनुशासनिक ज्ञान की प्रकृति क्या है?

अनुशासनिक ज्ञान की प्रकृति क्या है? इसे सुनेंरोकेंज्ञान प्रेक्षक है ज्ञान केवल बाह्य उद्देश्यों की वास्तविकता की व्याख्या नहीं करता है ; यह अनुभव द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर वास्तविकता को तैयार करता है । यह केवल चरित्र में व्याख्यात्मक नहीं है , बल्कि यह चरित्र और प्रकृति में निर्वचनात्मक है ।

अनुशासन की प्रकृति से आप क्या समझते हैं?

अनुशासन की परिभाषा नन् क शब्दों में - ''अपनी भावनाओं और शक्तियों को नियंत्रण के अधीन करना जो अव्यवस्था को व्यवस्था प्रदान करता है''। इस कथन से स्पष्ट है कि अनुशासन के अंतर्गत व्यक्ति को अपनी मुक्त भावनाओं एवं शक्तियों को किसी निर्धारित नियन्ण द्वारा नियमित तथा नियंत्रित करना होता है।

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