Veto Power of President- वीटो एक लैटिन शब्द है जिसका मतलब है मना करना या निषेध करना यानि कि मैं अनुमति नहीं देता. वीटो शक्ति भारत के राष्ट्रपति का संवैधानिक अधिकार है जिसके तहत वह अपने विवेक के द्वारा यह तय करता है कि कोई विधेयक वैध है या नहीं. अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं FREE GK EBook- Download Now. / GK Capsule Free pdf - Download here
(Veto Power of President) वीटो शक्ति
''राष्ट्रपति के वीटो पावर'' का अर्थ है कि राष्ट्रपति के पास ऐसे पॉवर का होना जिसके आधार पर वह किसी भी विधेयक या प्रस्ताव को अस्वीकृत कर, लंबित कर या अटका कर उसको कानून बनने या लागू होने से रोक सकता है. ज्ञातव्य है कि किसी भी विधेयक पर जब तक राष्ट्रपति की सहमति नहीं मिलती तब तक वह विधेयक, अधिनियम नहीं बन सकता.
वीटो - एक विशेष शक्ति
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 111 के तहत भारत के राष्ट्रपति को सौंपी गई यह एक विशेष शक्ति है, जिसका प्रयोग कर के वह संसद द्वारा रखे गए किसी भी निर्णय या प्रस्ताव को अस्वीकार कर सकता है. भारत के राष्ट्रपति को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 111 के तहत तीन प्रकार के वीटो पावर या वीटो शक्ति प्राप्त है - पूर्ण वीटो पावर (Absolute Veto), निलंबन वीटो पावर (Suspensive Veto) और पॉकेट वीटो पावर (Pocket Veto).
1.
Source:
safalta
पूर्ण वीटो पावर (Absolute Veto) -
पूर्ण वीटो पावर या एब्सोल्यूट वीटो का इस्तेमाल करके राष्ट्रपति विधेयक की स्वीकृति को रोक सकता है. इस तरह के मामलों में बिल खारिज हो जाता है और वह कानून नहीं बन पाता.
पूर्ण वीटो पावर या एब्सोल्यूट वीटो का उदाहरण -
साल 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस वीटो पॉवर का प्रयोग करके पेप्सू विनियोग विधेयक को रोक दिया था.
Free Demo Classes
Register here for Free Demo Classes
Please fill the name
Please enter only 10 digit mobile number
Please select course
Please fill the email
तब राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त होने तक इसे निरस्त कर दिया गया था.
साल 1991 में, राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेंशन (संशोधन) विधेयक पर रोक लगाई थी.
2. निलंबन वीटो पावर (Suspensive Veto) -
निलंबन वीटो पावर या सस्पेंशन वीटो पावर में राष्ट्रपति बिल को खारिज नहीं
करता बल्कि बिल को पुनर्विचार करने के लिए संसद में भेज देता है. हालाँकि संसद अगर दुबारा उस बिल को पास कर के राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए भेजती है तो राष्ट्रपति के लिए सहमति देना अनिवार्य हो जाता है.
निलंबन वीटो पावर या सस्पेंशन वीटो पावर का उदहारण -
राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के द्वारा ऑफिस ऑफ प्रॉफिट बिल के मामले में एक बार इस वीटो पावर का इस्तेमाल किया गया था.
3. पॉकेट वीटो पावर (Pocket Veto) -
इस प्रकार के वीटो पावर के तहत राष्ट्रपति, विधेयक को न तो स्वीकृति देता है और न ही उसे संसद को लौटाता है बल्कि बिल को अनिश्चित समय के लिए लंबित कर देता है, परिणाम स्वरूप उस बिल का कानून नहीं बन सकता.
पॉकेट वीटो पावर का उदाहरण - पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक के लिए पॉकेट वीटो का प्रयोग किया था. तब संसद ने इसे आगे नहीं बढ़ाने का निर्णय किया था और यह बिल स्वतः समाप्त हो गया था.
इस प्रकार राज्य विधेयक के मामले में भारत के राष्ट्रपति के पास
तीन शक्तियाँ पूर्ण वीटो, निलंबन वीटो और पॉकेट वीटो के रूप में मौजूद होती हैं.
Attempt Free Daily General Awareness Quiz - Click here |
Attempt Free Daily Quantitative Aptitude Quiz - Click here |
Attempt Free Daily Reasoning Quiz - Click here |
Attempt Free Daily General English Quiz - Click here |
Attempt Free Daily Current Affair Quiz - Click here |
वीटो शक्ति का प्रयोग और विधेयकों के प्रकार
राष्ट्रपति की वीटो शक्तियां सभी प्रकार के विधेयकों पर समान रूप से लागू नहीं होती हैं. अलग-अलग विधेयकों पर वीटो शक्ति का अलग-अलग प्रभाव होता है. जैसे कि धन विधेयक के सम्बन्ध में राष्ट्रपति या तो अपनी सहमति दे सकते हैं अथवा असहमति प्रकट कर सकते हैं लेकिन उसे पुनर्विचार के लिए संसद वापस नहीं भेज सकते. यानि कि निलंबन अथवा ससपेंशन वीटो धन विधेयक पर लागू नहीं होता.