माता सीता के विवाह के लिए रखे गए स्वयंवर में श्री राम ने शिव धनुष को भंग कर माता सीता से विवाह किया था. रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने एक दोहा लिखा है.रामायण का हर किरदार लोगों के जेहन में बसा है. भगवान राम को लेकर हमारे यहां हजारों मिथक गढ़े गए हैं. राम इतने प्रासंगिक हैं कि बच्चा-बच्चा उनके पराक्रम से परिचित है. हम सभी ने पर्दे पर रामायण धारावहिक को देखा है. मगर भगवान को लेकर कई सवाल हमारे मन में रह जाते हैं. ऐसा ही एक सवाल सभी के मन में घूमता रहता है और वो सवाल यह है कि जब राम की शादी सीता से हुई थी, तब दोनों की उम्र कितनी थी? Show
भगवान श्री राम और माता सीता के रिश्ते की मिसाल दी जाती है. कहा जाता है की जीवन में हर पति पत्नी के बीच भगवान राम और माता सीता की तरह प्रेम और विश्वास होना चाहिए. विवाह के समय कितनी उम्रमाता सीता के विवाह के लिए रखे गए स्वयंवर में श्री राम ने शिव धनुष को भंग कर माता सीता से विवाह किया था. रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने एक दोहा लिखा है, जिसे राम और सीता की आयु के बीच कितना अंतर था, यह साफ हो जाता है. मगर विवाह के समय दोनों की उम्र कितनी थी इसके बारे में वाल्मीकि रामायण में मालूम चलता है. गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखित रामचरितमानस में एक दोहा आता है- “वर्ष अठ्ठारह की सिया, सत्ताईस के राम || कीन्हो मन अभिलाष तब, करनो है सुर काम” || इस दोहे से यह साफ हो जाता है कि श्री राम और सीता की उम्र के बीच लगभग 9 वर्ष का अंतर था. मगर इनकी शादी किस उम्र में हुई थी. इसके बारे में वाल्मीकि रामायण में बताया गया है कि विवाह के समय भगवान राम की आयु 13 वर्ष और माता सीता की आयु 6 वर्ष थी. वाल्मीकि रामायण के अनुसारवाल्मीकि रामायण के अनुसार, 18 वर्ष की आयु में माता सीता भगवान राम के साथ वन में चली गई थीं. 14 वर्षों के बाद वो वनवास से लौटीं और 33 वर्ष की आयु में अयोध्या की महारानी बनीं. वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड में प्रभु राम और माता सीता की उम्र को लेकर एक प्रसंग मिलता है. इस प्रसंग में सीता, साधु के रूप में आए रावण को अपना परिचय इस प्रकार देती हैं. उषित्वा द्वादश समा इक्ष्वाकूणां निवेशने। भुंजना मानुषान् भोगान् सर्व कामसमृद्धिनी।1। तत्र त्रयोदशे वर्षे राजामंत्रयत प्रभुः। अभिषेचयितुं रामं समेतो राजमंत्रिभिः।2। परिगृह्य तु कैकेयी श्वसुरं सुकृतेन मे। मम प्रव्राजनं भर्तुर्भरतस्याभिषेचनम्।3। द्वावयाचत भर्तारं सत्यसंधं नृपोत्तमम्। मम भर्ता महातेजा वयसा पंचविंशक:। अष्टादश हि वर्षाणि मम जन्मनि गण्यते।। वनवास के समय कितनी थी आयुसीता रावण से कहती हैं कि विवाह के बाद 12 वर्ष तक इक्ष्वाकुवंशी महाराज दशरथ के महल में रहकर मैंने अपने पति के साथ सभी सुख भोगे हैं. मैं वहां सदा मनोवांछित सुख-सुविधाओं से संपन्न रही हूं. इसके बाद वो कहती हैं कि वन जाते समय मेरे पति की आयु 25 साल थी और मेरे जन्म काल से लेकर वन के लिए प्रस्थान के वक्त तक मेरी अवस्था वर्ष गणना के अनुसार 18 साल की हो गई थी. तारणहार श्रीराम का नाम : 'राम' यह शब्द दिखने में जितना सुंदर है उससे कहीं महत्वपूर्ण है इसका उच्चारण। 'राम' कहने मात्र से शरीर और मन में अलग ही तरह की प्रतिक्रिया होती है, जो हमें आत्मिक शांति देती है। इस शब्द की ध्वनि पर कई शोध हो चुके हैं और इसका चमत्कारिक असर सिद्ध किया जा चुका है इसीलिए कहते भी हैं कि 'राम से भी बढ़कर श्रीरामजी का नाम है'। श्रीराम-श्रीराम जपते हुए असंख्य साधु-संत मुक्ति को प्राप्त हो गए हैं। प्रभु श्रीराम नाम के उच्चारण से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। जो लोग ध्वनि विज्ञान से परिचित हैं वे जानते हैं कि 'राम' शब्द की महिमा अपरंपार है। जब हम 'राम' कहते हैं तो हवा या रेत पर एक विशेष आकृति का निर्माण होता है। उसी तरह चित्त में भी विशेष लय आने लगती है। जब व्यक्ति लगातार 'राम' नाम जप करता रहता है तो रोम-रोम में प्रभु श्रीराम बस जाते हैं। उसके आसपास सुरक्षा का एक मंडल बनना तय समझो। प्रभु श्रीराम के नाम का असर जबरदस्त होता है। आपके सारे दुःख हरने वाला सिर्फ एकमात्र नाम है- 'हे राम।' राम या मार : 'राम' का उल्टा होता है म, अ, र अर्थात 'मार'। 'मार' बौद्ध धर्म का शब्द है। 'मार' का अर्थ है- इंद्रियों के सुख में ही रत रहने वाला और दूसरा आंधी या तूफान। श्रीराम को छोड़कर जो व्यक्ति अन्य विषयों में मन को रमाता है, मार उसे वैसे ही गिरा देती है, जैसे सूखे वृक्षों को आंधियां। कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी दशरथ की प्रमुख रानियाँ थीं। राजा ने बहुत ही प्रतिकूल और कठोर परिस्थितियों में 350 अन्य राजकुमारियों से विवाह किया। परशुराम, भगवान विष्णु के शक्तिशाली अवतार, कुछ क्षत्रियों द्वारा की गई गलती के परिणामस्वरूप पूरी पृथ्वी को नष्ट कर क्रोध में आए।परशुराम पूरे विश्व में यात्रा पर थे और उनके रास्ते में आने वाले प्रत्येक क्षत्रिय को काल के गाल पर लाया जाएगा; हालांकि, उन्होंने उन क्षत्रियों को नहीं छुआ जो महिलाओं से घिरे थे या उनसे शादी कर रहे थे। एक राजा का नाम नारिकवच रखा गया क्योंकि उसने अपने जीवन की रक्षा के लिए अपने चारों ओर महिलायें खड़ी करवा दीं।। परशुराम जी उसे देखकर चौंक गए और उनके पास राजा को छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था। दूसरी ओर, दशरथ ने विवाह की शरण ली। जब भी उन्हें परशुराम जी के कहीं भी आने का संदेह होता था, वे जहां भी होते, राज्य की एक युवती के साथ अपना विवाह समारोह शुरू कर देते थे। परशुराम न तो उनसे लड़ सकते थे और न ही उन्हें मार सकते थे क्योंकि उनके विवाह कार्यक्रम थे। परशुराम अपने अभियान के दौरान 350 बार अयोध्या के आसपास निकले और दशरथ ने कई बार मौत को धोखा दिया! इस प्रकार तीन प्रमुख रानियों सहित 350 रानियां उसके पास आईं। राजा दशरथ की 3 नहीं बल्कि 353 रानियां थीं। जब राम वनवास के लिए अपनी माताओं को अलविदा कहने जाते हैं, तो राजा दशरथ की रानीवास में 350 और पत्नियां थी। तीन पत्नियां कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी थीं, इस प्रकार कुल 353 रानियों का उल्लेख है। तो वाल्मीकि रामायण के श्लोकों से ज्ञात होता है कि महाराज दशरथ की कई (कम से कम 350) रानियाँ थीं। इसके अलावा महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं कि महाराज दशरथ अपनी तीन मुख्य पत्नियों (कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी) को समान रूप से प्यार करते थे। लेकिन जब गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की तो उन्होंने महाराज दशरथ की इन तीन रानियों का ही वर्णन किया। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि महाराज दशरथ अपनी तीन रानियों में कैकेयी से सबसे अधिक प्रेम करते थे। हो सकता है कि महर्षि वाल्मीकि ने स्वयं रामायण में महाराज दशरथ की अन्य रानियों का विस्तार से वर्णन न किया हो, इसलिए तुलसीदासजी ने उन्हें रामचरितमानस में शामिल नहीं किया।
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