रांगेय राघव का पूरा नाम क्या था? - raangey raaghav ka poora naam kya tha?

साहित्‍यकार रांगेय राघव ने 14 वर्ष की उम्र में शुरू कर दिया था लेखन। 12 सितंबर 1962 को मुंबई में कैंसर से हुआ था निधन। हिंदीभाषी न होते हुए भी उन्‍होंने हिंदी साहित्‍य को अमूल्‍य योगदान दिया इसलिए ही उन्‍हें हिंदी का शेक्‍सपियर कहा जाता है।

आगरा, जागरण संवाददाता। रांगेय राघव हिंदी साहित्य के ऐसे दैदीप्यमान नक्षत्र हैं, जिनकी हिंदी साहित्य की सेवा को दुनिया भुला नहीं सकती। महज 39 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले रांगेय ने मात्र 14 वर्ष की उम्र में लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया था। रांगेय राघव, जब 11वीं कक्षा में पढ़ते थे, तभी उनका उपन्यास 'घरौंदा' आ गया था। विश्वभर में अपनी कलम की धाक जमाकर उन्होंने उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि और इतिहासवेत्ता के रूप में पहचान बनाई।

रांगेय राघव का जन्म आगरा में 17 जनवरी, 1923 को हुआ था। उनका पूरा नाम तिरुमल्लै नंबकम वीर राघव आचार्य था। उनके घर में या तो तमिल बोली जाती थी या शुद्ध ब्रज भाषा। बावजूद इसके उन्होंने हिंदी साहित्य की हर विधा में अपनी कलम चलाई। कवि, आलोचक, नाटककार, उपन्यासकार, कहानीकार और अनुवादक के रूप में हिंदी साहित्य की सेवा कर वह हमेशा के लिए अमर हो गए। 12 सितंबर 1962 को मुंबई में देहांत से पूर्व वह 150 कृतियों की रचना कर चुके थे। हिंदुस्‍तानी अकादमी पुरस्कार, डालमिया पुरस्कार, उप्र शासन पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया था। वरिष्ठ कवि प्रो. सोम ठाकुर ने बताया कि रांगेय राघव से उनके निकट के संबंध थे। वह जब आगरा आते थे तो होटल गोवर्धन में रुका करते थे। गोकुलपुरा में डा. घनश्याम अस्थाना के यहां रांगेय राघव, डा. रामविलास शर्मा, राजेंद्र यादव से उनकी मुलाकात हुआ करती थी। रांगेय राघव का बाग मुजफ्फर खां में घर था।

बाग मुजफ्फर खां में वो घर, जहां रांगेय राघव रहा करते थे। 

मेघदूत की तरह उन्होंने काव्य ग्रंथ लिखा था, लेकिन उसका प्रकाशन नहीं हो सका था। उनका निधन मुंबई में कैंसर से हुआ था।सेंट जोंस कालेज के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. श्रीभगवान शर्मा ने बताया कि रांगेय राघव ने 'गुरु गोरखनाथ और उनका युग' विषय पर आगरा विश्वविद्यालय (वर्तमान डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय) से पीएचडी की थी। शोध कार्य के दौरान उन्होंने नाथ साधुओं के वेश को भी अपना लिया था। दीक्षांत समारोह में वह पीएचडी की डिग्री लेने नहीं गए थे। उन्हें लिखने का बहुत शौक था। वह बिना किसी ब्रेक के उपन्यास, कहानी, साहित्य लेखन के साथ ही अनुवाद भी किया करते थे।

रांगेय का हिंदी साहित्य आज अविरल धारा

हिंदी के शेक्सपियर कहे जाने वाले रांगेय राघव का साहित्य आज भी लोगों के जेहन में बसता है। युवा पीढ़ी उनके साहित्य के प्रगतिवादी दृष्टिकोण की अविरल धारा को सीखने की कोशिश करती है। युवाओं का कहना है कि उनके द्वारा लिखा साहित्य आज भी प्रासंगिक है।

रांगेय राघव हिंदी साहित्य के विलक्षण कथाकार, लेखक व साहित्यकार थे। जीवन में जब कठिनाइयां आती हैं, तो उनकी लिखी कविता जब मयकदे से निकला मैं राह के किनारे, मुझसे पुकार बोला प्याला वहां पड़ा था..., मेरे जेहन में आती है। इससे मुश्किल में भी जीवन अच्छी तरह जीने की प्रेरणा मिलती है।

दीक्षा चौहान, छात्रा।

रांगेय राघव विशिष्ट, बहुमुखी और प्रतिभाशाली रचनाकार थे, वह अल्पायु में एक उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासविद लेखक के रूप में स्थापित हुए। अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन कराए। हिंदीतर भाषी होकर भी उन्होंने हिंदी साहित्य के विभिन्न धरातलों पर युगीन सत्य से उपजा महत्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया।

चारु अग्रवाल, शोधार्थी।

रांगेय राघव ने हिंदी उपन्यास विधा में लंबा लेखन किया था। उन्होंने जीवनी परक उपन्यासों में देवकी का बेटा, यशोधरा, जीत गई, लोई का ताना, रत्ना की बात आदि प्रमुख हैं। उन्होंने तीन दर्जन से अधिक उपन्यासों की रचना की, उनमें प्रथम उपन्यास घरौंदे वर्ष 1946 में आया था। उनकी रचनाएं आज भी प्रभावित करती हैं।

जसराम, शोधार्थी।

रांगेय राघव एक सफल कवि, आलोचक, नाटककार, निबंधकार और विचारक थे। ङ्क्षहदी साहित्य का कोई क्षेत्र उनसे अछूता नहीं रहा। उन्होंने फ्रांसीसी व जर्मन साहित्य का अध्ययन कर हिंदी जगत को उनसे अवगत कराया। हिंदी साहित्य की पूर्ववर्ती रचनाओं के जवाब में भी साहित्य रचे।

अमित कुमार सिंह, शोधार्थी।

हिंदी के शेक्सपियर कहे जाने वाले रांगेय राघव बहुमुखी प्रतिभा संपन्न व बहुभाषाविद साहित्यकार थे। उन्होंने साहित्य की हर विधा कहानी, उपन्यास, रिपोर्ताज और कविता आदि में अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। गैर हिंदी भाषी होते हुए भी उन्होंने हिंदी की अतुलनीय सेवा की, जो हिंदी साहित्य जगत के लिए अविस्मरणीय है।

मेधा अग्रवाल, शोधार्थी।

रांगेय राघव अल्पायु में ही अपनी लेखनी के माध्यम से देश व समाज को नई दिशा देने में सफल रहे। अङ्क्षहदी भाषी होते हुए भी उन्होंने हिंदी को समृद्ध किया, अपने साहित्य में इतिहास से लेकर आंचलिक परिवेश तक का यथार्थ चित्रांकन किया। उनका साहित्य आज भी हमें नई दिशा प्रदान कर रहा है, जिसे आत्मसात कर एक नवीन समाज का निर्माण कर सकते हैं।

अनिल कुमार, शोधार्थी

Edited By: Prateek Gupta

रांगेय राघव हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, व कवि थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी रचनाकार रांगेय राघव की आज 12 सितंबर को 60वीं पुण्यतिथि है। विलक्षण प्रतिभा के धनी रांघेय राघव मूल रूप से तमिल भाषी थे, परंतु उन्हें हिंदी में विशेष योग्यता हासिल थीं। रांगेय मशहूर साहित्यकार प्रेमचंद के बाद हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक लेखक माने गए। वह मूलतः मानवीय सरोकारों के लेखक थे। इस मौके पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ रोचक बातें…

रांगेय राघव का जीवन परिचय

उपन्यासकार रांगेय राघव का जन्म 17 जनवरी, 1923 को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में हुआ। राघव का मूल नाम तिरुमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य था, लेकिन उन्होंने अपना साहित्यिक क्षेत्र में ‘रांगेय राघव’ नाम रखा। उनके पिता रंगाचार्य और माता कनकवल्ली थी। इनके पूर्वज करीब 300 साल पहले जयपुर और भरतपुर के गांवों में निवास करने लगे थे।

उनकी पढ़ाई आगरा में संपन्न हुई थी। उन्होंने वर्ष 1944 में सेंट जॉन्स कॉलेज से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1949 में उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से गुरु गोरखनाथ पर शोध करके पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। इनकी शादी सुलोचना से हुई थी, जो जयपुर के राजस्थान विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र की एसोसिएट प्रोफेसर रही।

साहित्य के क्षेत्र में उपलब्धियां

रांगेय राघव ने 13 वर्ष की उम्र में लेखन कार्य शुरू किया और 39 वर्ष की उम्र तक किया। हिंदी, अंग्रेजी, ब्रज और संस्कृत भाषाओं पर उनकी अच्छी पकड़ थी, साथ ही दक्षिण भारतीय भाषाओं तमिल और तेलुगू का भी उन्हें ज्ञान था। वह 39 वर्ष की उम्र तक जीवित रहे, इस बीच उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, रिपोर्ताज सहित आलोचना आदि विधाओं पर पुस्तकें लिखी थी।

जब उन्होंने लेखन कार्य शुरू किया था तब पूरे देश में आजादी के लिए संघर्ष जारी था, ऐसे में उनके लेखन में प्रगतिशील विचारों का समावेश मिलता है। वर्ष 1942 में उन्होंने बंगाल में पड़े अकाल की रिपोर्ट ‘तूफानों के बीच’ लिखी जो काफी चर्चित रही। रांगेय राघव ने जर्मन और फ्रांसीसी भाषाओं के कई साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया। उनके द्वारा विलियम शेक्सपीयर की रचनाओं का हिंदी अनुवाद किया जो हूबहू मूल रचनाओं जैसा था इसलिए उन्हें ‘हिंदी के शेक्सपीयर’ की संज्ञा दे दी गई।

मानवीय सरोकार के लेखक थे रांगेय राघव

रचनाकार रांगेय राघव ने अपनी रचनाओं की विषय वस्तु के रूप में आम जन जीवन का समूचा चित्रण किया है। वह लेखन के किसी वाद में नहीं बंधे। उन्होंने अपने ऊपर मढ़े जा रहे मार्क्सवाद, प्रगतिवाद और यथार्थवाद का विरोध किया। उनका कहना था कि उन्होंने न तो प्रयोगवाद और प्रगतिवाद का आश्रय लिया और न ही प्रगतिवाद के चोले में अपने को यांत्रिक बनाया। वह मूलतः मानवीय सरोकारों के लेखक हैं।

उनके साहित्य लेखन में मानवीय जीवन की दु:ख, दर्द, पीड़ा और उस चेतना की, जिसके भरोसे वह संघर्ष करता है, अंधकार से जूझता है, उसे ही सत्य माना, और उसी को आधार बनाकर उन्होंने लिखा। रांगेय राघव प्रेमचंद के बाद हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक लेखक माने गए।

साहित्यिक रचनाएं

कहानी संग्रह

उनके द्वारा अनेक कहानियां लिखी गई, जिनमें प्रमुख हैं— देवदासी, समुद्र के फेन, जीवन के दाने, इंसान पैदा हुआ, पांच गधे, साम्राज्य का वैभव, अधूरी मूरत, ऐयाश मुर्दे, एक छोड़ एक, धर्म संकट, गदल आदि प्रमुख है।

उपन्यास

मुर्दों का टीला (1948), कब तक पुकारूं (1957), हुजूर, रत्न की बात, राय और पर्बत, भारती का सपूत, विषाद मठ, सीधा-सादा रास्ता, लखिमा की आंखें, प्रतिदान, काका, अंधेरे के जुगनू (1953), लोई का ताना, उबाल, पराया, आंधी की नावें, धरती मेरा घर, अंधेरे की भूख, छोटी-सी बात, बोलते खंडहर, पक्षी और आकाश, बौने और घायल फूल, राह न रुकी, जब आवेगी काली घटा, पथ का पाप, कल्पना, प्रोफ़ेसर, दायरे, मेरी भाव बाधा हरो, पतझड़, धूनी का धुआं, यशोधरा जीत गई (1958), आखिरी आवाज़ (1962), देवकी का बेटा आदि प्रसिद्ध हैं।

राघव द्वारा लिखे गए नाटकों में स्वर्ग का यात्री, घरौंदा (1946), रामानुज और विरूदक प्रमुख है। उन्होंने आलोचना विधा में भारतीय पुनर्जागरण की भूमिका, संगम और संघर्ष, प्रगतिशील साहित्य के मानदंड, काव्यदर्श और प्रगति, भारतीय परंपरा और इतिहास, महाकाव्य विवेचन, समीक्षा और आदर्श, तुलसी का कला शिल्प, काव्य कला और शास्त्र, आधुनिक हिन्दी कविता में विषय और शैली, भारतीय संत परंपरा और समाज, आधुनिक हिन्दी कविताओं में प्रेम और श्रृंगार, गोरखनाथ और उनका युग आदि लिखी।

रांगेय राघव ने अनेक रिपोर्ताज लिखें जिनमें से ‘तूफानों के बीच’ काफी चर्चित रहा। उनके द्वारा रचित कविता संग्रहों में पिघलते पत्थर, श्यामला, अजेय, खंडहर, मेधावी, राह के दीपक, पांचाली, रूप छाया आदि प्रमुख है।

सम्मान और पुरस्कार

रांगेय राघव को उनकी रचनाओं के लिए उनके छोटे से जीवनकाल में कई पुरस्कार व सम्मान मिले। उन्हें वर्ष 1951 में हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार मिला। उन्हें डालमिया पुरस्कार, उत्तरप्रदेश शासन, राजस्थान साहित्य अकादमी सम्मान मिले हैं। उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1966 में महात्मा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

रांगेय राघव का निधन

कहानीकार रांगेय राघव का देहांत 39 वर्ष की अवस्था में 12 सितंबर, 1962 को कैंसर होने से हुआ था।

Read Also: अमृता प्रीतम ने साहिर का प्यार पाने के लिए तोड़ दी थी अपनी शादी

रंगे राघव की मृत्यु कब हुई थी?

12 सितंबर 1962रांगेय राघव / मृत्यु तारीखnull

Iv रांगेय राघव की रचना का नाम क्या है?

रांगेय राघव की प्रथम रचना 1946 में 'घरौंदा' शीर्षक से प्रकाशित हुई। यह विश्वविद्यालय जीवन पर लिखा गया प्रथम उपन्यास था। घरौंदा उपन्यास से वे प्रगतिशील कथाकार के रूप में चर्चित हुए। 1942 में अकालग्रस्त बंगाल की यात्रा के बाद उन्होंने रिपोर्ताज ' तूफान के बीच ' लिखा।

रांगेय राघव का जन्म कहाँ हुआ था?

आगरा, भारतरांगेय राघव / जन्म की जगहnull

रांगेय राघव जी का जन्म कब और कहां हुआ?

रांगेय राघव हिंदी साहित्य के विलक्षण कथाकार, लेखक, कवि थे. वह मूल रूप से तमिल भाषी थे, पर हिंदी में बहुतायत लिखा. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में 17 जनवरी, 1923 को हुआ.

Toplist

नवीनतम लेख

टैग